इस बार गणेश चतुर्थी 22 अगस्त को मनाई जाएगी कोरोना काल में इस बार गणेश चतुर्थी पर पांडाल तो नहीं सजेंगे, लेकिन गणेश चतुर्थी पर गणेश भगवान की पूजा घरों में की जाएगी। हिंदू पंचांग के अनुसार 22 अगस्त को दोपहर 12 बजकर 22 बजे से शाम 4 बजकर 48 बजे तक चर, लाभ और अमृत के चैघड़िया मुहूर्त हैं। इनमें से किसी भी समय आप गणेश भगवान की स्थापना कर सकते हैं।
गणेश चतुर्थी के दिन गणेश जी की स्थापना हिंदी पंचांग के अनुसार करनी चाहिए। इसलिए चौघड़िया मुहूर्त में गणेश जी की स्थापना करें। यदि इसदिन भूलवश चंद्रमा के दर्शन हो भी जाएं तो इस दोष निवारण के दिन अगले दिन गरीबों को खाने की सफेद चीजों का दान करना चाहिए। गणेश जी को दक्षिणा अर्पित कर उन्हें 21 लड्डूओं का भोग लगाया जाता है। गणेश प्रतिमा के पास पांच लड्डू रखकर बाकी ब्राह्मणों में बांट दिये जाते हैं। गणेश चतुर्थी के दिन उन्हें सिंदूर लगाना शुभ माना जाता है। गणपति बप्पा के माथे पर हर दिन लाल सिंदूर से तिलक लगाएं। पूजा के दौरान दूर्वा अर्पित करना चाहिए। हालांकि गणेश चतुर्थी के दिन दूर्वा अर्पित करने का विशेष महत्व है। श्रीगणेश को लाल पुष्प अर्पित करना शुभ होता है। अगर लाल फूल संभव नहीं है तो कोई भी पुष्प अर्पित कर सकते हैं। हालांकि पूजन के दौरान ध्यान रखें कि भगवान गणेश को भूलकर भी तुलसी अर्पित न करें। गणेश को लड्डू और मोदक प्रिय है। ऐसे में गणेश चतुर्थी के दिन गणपति को मोदक और लड्डू का भोग लगाएं। पूजा के बाद आरती जरूर करनी चाहिए। कहते हैं कि ऐसा करने से पूजा का फल शीघ्र मिलता है।
मंगलवार, 18 अगस्त 2020
गणेश चतुर्थी : ये करेंगे तो गणपति देंगे सुख और समृद्धि
रविवार, 9 अगस्त 2020
T. R. PRIME : कोरोना काल में किस तरह मनाएं श्री कृष्ण जन्माष्टमी
मुजफ्फरनगर l TR Prime में आज हमने श्री कृष्ण जन्माष्टमी को लेकर लोगों में बने भ्रम के लिए विशेषज्ञ से बात की l पहले की तरह इस बार भी कोरोना के चलते अन्य त्योहारों के मुकाबले जन्माष्टमी भी घरों में रहकर ही मनाई जाएगी l
शनिवार, 1 अगस्त 2020
ऐसे बनाइये राखी, ये है वैदिक परम्परा
मुजफ्फरनगर । रक्षासूत्र मात्र एक धागा नहीं बल्कि शुभ भावनाओं व शुभ संकल्पों का पुलिंदा है । यही सूत्र जब वैदिक रीति से बनाया जाता है और भगवन्नाम व भगवद्भाव सहित शुभ संकल्प करके बाँधा जाता है तो इसका सामर्थ्य असीम हो जाता है। प्रतिवर्षश्रावणी-पूर्णिमा को रक्षाबंधन का त्यौहार होता है, इस दिनबहनें अपने भाई को रक्षा-सूत्र बांधती हैं । यह रक्षासूत्र यदि वैदिक रीति से बनाई जाए तो शास्त्रों में भी उसका बड़ा महत्व है ।
कैसे बनायें वैदिक राखी ?
〰〰〰〰〰〰〰
वैदिक राखी बनाने के लिए सबसे पहले एक छोटा-सा ऊनी, सूती या रेशमी पीले कपड़े का टुकड़ा लें।
(१) दूर्वा
(२) अक्षत (साबूत चावल)
(३) केसर या हल्दी
(४) शुद्ध चंदन
(५) सरसों के साबूत दाने*
इन पाँच चीजों को मिलाकर कपड़े में बाँधकर सिलाई कर दें । फिर कलावे से जोड़कर राखी का आकार दें । सामर्थ्य हो तो उपरोक्त पाँच वस्तुओं के साथ स्वर्ण भी डाल सकते हैं।
वैदिक राखी का महत्त्व
〰〰〰〰〰〰〰
वैदिक राखी में डाली जानेवाली वस्तुएँ हमारे जीवन को उन्नति की ओर ले जानेवाले संकल्पों को पोषित करती हैं ।
(१) दूर्वा
〰〰
जैसे दूर्वा का एक अंकुर जमीन में लगाने पर वह हजारों की संख्या में फैल जाती है, वैसे ही ‘हमारे भाई या हितैषी के जीवन में भी सद्गुण फैलते जायें, बढ़ते जायें...’ इस भावना का द्योतक है दूर्वा । दूर्वा गणेशजी की प्रिय है अर्थात् हम जिनको राखी बाँध रहे हैं उनके जीवन में आनेवाले विघ्नों का नाश हो जाय ।*
(२) अक्षत (साबूत चावल)
〰〰〰〰〰〰〰〰
हमारी भक्ति और श्रद्धा भगवान के, गुरु के चरणों में अक्षत हो, अखंड और अटूट हो, कभी क्षत-विक्षत न हो - यह अक्षत का संकेत है । अक्षत पूर्णता की भावना के प्रतीक हैं । जो कुछ अर्पित किया जाय, पूरी भावना के साथ किया जाय ।
(३) केसर या हल्दी
〰〰〰〰〰〰
केसरकेसर की प्रकृति तेज होती है अर्थात् हम जिनको यह रक्षासूत्र बाँध रहे हैं उनका जीवन तेजस्वी हो । उनका आध्यात्मिक तेज, भक्ति और ज्ञान का तेज बढ़ता जाय । केसर की जगह पिसी हल्दी का भी प्रयोग कर सकते हैं । हल्दी पवित्रता व शुभ का प्रतीक है । यह नजरदोष व नकारात्मक ऊर्जा को नष्ट करती है तथा उत्तम स्वास्थ्य व सम्पन्नता लाती है ।*
(४) चंदन
〰〰〰
चंदन दूसरों को शीतलता और सुगंध देता है । यह इस भावना का द्योतक है कि जिनको हम राखी बाँध रहे हैं, उनके जीवन में सदैव शीतलता बनी रहे, कभी तनाव न हो । उनके द्वारा दूसरों को पवित्रता, सज्जनता व संयम आदि की सुगंध मिलती रहे । उनकी सेवा-सुवास दूर तक फैले ।
(५) सरसों
〰〰〰
सरसोंसरसों तीक्ष्ण होती है । इसी प्रकार हम अपने दुर्गुणों का विनाश करने में, समाज-द्रोहियों को सबक सिखाने में तीक्ष्ण बनें ।
अतः यह वैदिक रक्षासूत्र वैदिक संकल्पों से परिपूर्ण होकर सर्व-मंगलकारी है ।
रक्षासूत्र बाँधते समय यह श्लोक बोला जाता है :
येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः।
तेन त्वां अभिबध्नामि१ रक्षे मा चल मा चल।।
रक्षासूत्र बाँधते समय एक श्लोक और पढ़ा जाता है जो इस प्रकार है-
ओम यदाबध्नन्दाक्षायणा हिरण्यं, शतानीकाय सुमनस्यमाना:। तन्मSआबध्नामि शतशारदाय, आयुष्मांजरदृष्टिर्यथासम्।।
इस मंत्रोच्चारण व शुभ संकल्प सहित वैदिक राखी बहन अपने भाई को, माँ अपने बेटे को, दादी अपने पोते को बाँध सकती है । यही नहीं, शिष्य भी यदि इस वैदिक राखी को अपने सद्गुरु को प्रेमसहित अर्पण करता है तो उसकी सब अमंगलों से रक्षा होती है भक्ति बढ़ती है
महाभारत में यहरक्षा सूत्र माता कुंती ने अपने पोते अभिमन्यु को बाँधी थी । जब तक यह धागा अभिमन्यु के हाथ में था तब तक उसकीरक्षा हुई, धागा टूटने पर
अभिमन्यु की मृत्यु हुई । इस प्रकार इन पांचवस्तुओं से बनी हुई वैदिक राखी को शास्त्रोक्त नियमानुसार
बांधते हैं हम पुत्र-पौत्र एवं बंधुजनों सहितवर्ष भर सूखी रहते हैं ।
रक्षा सूत्रों के विभिन्न प्रकार
〰〰〰〰〰〰〰〰
विप्र रक्षा सूत्र- रक्षाबंधन के दिन किसी तीर्थ अथवा जलाशय में जाकर वैदिक अनुष्ठान करने के बाद सिद्ध रक्षा सूत्र को विद्वान पुरोहित ब्राह्मण द्वारा स्वस्तिवाचन करते हुए यजमान के दाहिने हाथ मे बांधना शास्त्रों में सर्वोच्च रक्षा सूत्र माना गया है।
गुरु रक्षा सूत्र- सर्वसामर्थ्यवान गुरु अपने शिष्य के कल्याण के लिए इसे बांधते है।
मातृ-पितृ रक्षा सूत्र- अपनी संतान की रक्षा के लिए माता पिता द्वारा बांधा गया रक्षा सूत्र शास्त्रों में "करंडक" कहा जाता है।
भातृ रक्षा सूत्र- अपने से बड़े या छोटे भैया को समस्त विघ्नों से रक्षा के लिए बांधी जाती है देवता भी एक दूसरे को इसी प्रकार रक्षा सूत्र बांध कर विजय पाते है।
स्वसृ-रक्षासूत्र- पुरोहित अथवा वेदपाठी ब्राह्मण द्वारा रक्षा सूत्र बांधने के बाद बहिन का पूरी श्रद्धा से भाई की दाहिनी कलाई पर समस्त कष्ट से रक्षा के लिए रक्षा सूत्र बांधती है। भविष्य पुराण में भी इसकी महिमा बताई गई है। इससे भाई दीर्घायु होता है एवं धन-धान्य सम्पन्न बनता है।
गौ रक्षा सूत्र- अगस्त संहिता अनुसार गौ माता को राखी बांधने से भाई के रोग शोक डोर होते है। यह विधान प्राचीन काल से चला आ रहा है।
वृक्ष रक्षा सूत्र - यदि कन्या को कोई भाई ना हो तो उसे वट, पीपल, गूलर के वृक्ष को रक्षा सूत्र बांधना चाहिए पुराणों में इसका विशेष उल्लेख है।
〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰
रविवार, 19 जुलाई 2020
आज का पंचांग तथा राशिफल 19 जुलाई शिवरात्रि 2020
🌞 ~ *आज का पंचांग* ~ 🌞
⛅ *दिनांक 19 जुलाई 2020*
⛅ *दिन - रविवार*
⛅ *विक्रम संवत - 2077 (गुजरात - 2076)*
⛅ *शक संवत - 1942*
⛅ *अयन - दक्षिणायन*
⛅ *ऋतु - वर्षा*
⛅ *मास - श्रावण (गुजरात एवं महाराष्ट्र अनुसार आषाढ़)*
⛅ *पक्ष - कृष्ण*
⛅ *तिथि - चतुर्दशी रात्रि 12:09 तक तत्पश्चात अमावस्या*
⛅ *नक्षत्र - आर्द्रा रात्रि 09:40 तक तत्पश्चात पुनर्वसु*
⛅ *योग - व्याघात रात्रि 09:45 तक तत्पश्चात हर्षण*
⛅ *राहुकाल - शाम 05:31 से शाम 07:10 तक*
⛅ *सूर्योदय - 06:08*
⛅ *सूर्यास्त - 19:21*
⛅ *दिशाशूल - पश्चिम दिशा में*
⛅ *व्रत पर्व विवरण -
💥 *विशेष - चतुर्दशी, रविवार और अमावस्या के दिन ब्रह्मचर्य पालन करे तथा तिल का तेल खाना और लगाना निषिद्ध है।(ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-38)*
💥 *रविवार के दिन मसूर की दाल, अदरक और लाल रंग का साग नहीं खाना चाहिए।(ब्रह्मवैवर्त पुराण, श्रीकृष्ण खंडः 75.90)*
💥 *रविवार के दिन काँसे के पात्र में भोजन नहीं करना चाहिए।(ब्रह्मवैवर्त पुराण, श्रीकृष्ण खंडः 75)*
💥 *स्कंद पुराण के अनुसार रविवार के दिन बिल्ववृक्ष का पूजन करना चाहिए। इससे ब्रह्महत्या आदि महापाप भी नष्ट हो जाते हैं।*
💥 *चतुर्मास के दिनों में ताँबे व काँसे के पात्रों का उपयोग न करके अन्य धातुओं के पात्रों का उपयोग करना चाहिए।(स्कन्द पुराण)*
💥 *चतुर्मास में पलाश के पत्तों की पत्तल पर भोजन करना पापनाशक है।*
🌞 *~ हिन्दू पंचांग ~* 🌞
🌷 *सोमवती अमावस्याः दरिद्रता निवारण*
👉🏻 *20 जुलाई 2020 सोमवार सूर्योदय से रात्रि 11:03 तक सोमवती अमावस्या है ।*
🙏🏻 *सोमवती अमावस्या के पर्व में स्नान-दान का बड़ा महत्त्व है।*
☺ *इस दिन भी मौन रहकर स्नान करने से हजार गौदान का फल होता है।*
🌳 *इस दिन पीपल और भगवान विष्णु का पूजन तथा उनकी 108 प्रदक्षिणा करने का विधान है। 108 में से 8 प्रदक्षिणा पीपल के वृक्ष को कच्चा सूत लपेटते हुए की जाती है। प्रदक्षिणा करते समय 108 फल पृथक रखे जाते हैं। बाद में वे भगवान का भजन करने वाले ब्राह्मणों या ब्राह्मणियों में वितरित कर दिये जाते हैं। ऐसा करने से संतान चिरंजीवी होती है।*
🌿 *इस दिन तुलसी की 108 परिक्रमा करने से दरिद्रता मिटती है।*
🌞 *~ हिन्दू पंचांग ~* 🌞
🌷 *ग़रीबी - दरिद्रता मिटाने के लिए* 🌷
🙏🏻 *सोमवती अमावस्या के दिन 108 बार अगर तुलसी की परिक्रमा करते हो, ॐकार का थोड़ा जप करते हो, सूर्य नारायण को अर्घ्य देते हो; यह सब साथ में करो तो अच्छा है, नहीं तो खाली तुलसी को 108 बार प्रदक्षिणा करने से तुम्हारे घर से दरिद्रता भाग जाएगी |*
🌞 *~ हिन्दू पंचांग ~* 🌞
विष्णु पुराण के अनुसार रविवार, एकादशी, द्वादशी, संक्रान्ति, सूर्य ग्रहण, चंद्र ग्रहण तथा संध्या काल में तुलसी के पत्ते नहीं तोड़ना चाहिए. ... शास्त्रों के अनुसार यदि कोई व्यक्ति बिना नहाए ही तुलसी के पत्तों को तोड़ता है तो पूजन में ऐसे पत्ते भगवान द्वारा स्वीकार नहीं किए जाते
घर मे कही भी वास्तु दोष लगे तो तुलसी जी को वहॉ रखने से असर खत्म हो जाता है।
🌷 *धन-धान्य व सुख-संम्पदा के लिए* 🌷
🔥 *हर अमावस्या को घर में एक छोटा सा आहुति प्रयोग करें।*
🍛 *सामग्री : १. काले तिल, २. जौं, ३. चावल, ४. गाय का घी, ५. चंदन पाउडर, ६. गूगल, ७. गुड़, ८. देशी कर्पूर, गौ चंदन या कण्डा।*
🔥 *विधि: गौ चंदन या कण्डे को किसी बर्तन में डालकर हवनकुंड बना लें, फिर उपरोक्त ८ वस्तुओं के मिश्रण से तैयार सामग्री से, घर के सभी सदस्य एकत्रित होकर नीचे दिये गये देवताओं की १-१ आहुति दें।*
🔥 *आहुति मंत्र* 🔥
🌷 *१. ॐ कुल देवताभ्यो नमः*
🌷 *२. ॐ ग्राम देवताभ्यो नमः*
🌷 *३. ॐ ग्रह देवताभ्यो नमः*
🌷 *४. ॐ लक्ष्मीपति देवताभ्यो नमः*
🌷 *५. ॐ विघ्नविनाशक देवताभ्यो नमः*
पंचक
8 जुलाई
दोपहर 12.31 से 13 जुलाई प्रातः 11.15 बजे तक
4 अगस्त
रात्रि 8.47 से 9 अगस्त सायं 7.05 बजे तक
एकादशी
बुधवार, 01 जुलाई देवशयनी एकादशी
गुरुवार, 16 जुलाई कामिका एकादशी
गुरुवार, 30 जुलाई श्रावण पुत्रदा एकादशी
प्रदोष
गुरुवार, 02 जुलै प्रदोष व्रत (शुक्ल)
शनिवार, 18 जुलै शनि प्रदोष व्रत (कृष्ण)
अमावस्या
20 जुलाई 2020 - सोमवार - श्रावण अमावस्या (हरियाली, सोमवती अमावस्या)
पूर्णिमा
आषाढ़ पूर्णिमा तिथि- 5 जुलाई- दिन रविवार
मेष - पॉजिटिव - किसी लाभदायक महत्वपूर्ण सूचना के मिलने से मन में प्रसन्नता रहेगी। इस समय भाग्य आप के पक्ष में है। धर्म-कर्म और अध्यात्म में विश्वास बनाकर रखें। इससे मन में शांति रहेगी तथा सकारात्मक ऊर्जा का संचार होगा। नेगेटिव - बाहरी व्यक्तियों पर अधिक विश्वास ना करें। आकारण ही किसी वजह से मित्रों से बहस हो सकती हैं। अपने गुस्से पर काबू रखें। विद्यार्थियों का ध्यान पढ़ाई से भटक सकता है। दोस्तों के साथ घूमने-फिरने में समय व्यर्थ ना करें। व्यवसाय - व्यवसायिक गतिविधियां अभी धीमी ही रहेंगी। आज का दिन पेमेंट आदि करने में व्यतीत होगा तथा आर्थिक स्थिति भी मजबूत होगी। नौकरीपेशा व्यक्तियों को बदलाव संबंधी कोई सूचना प्राप्त हो सकती है। लव - पति-पत्नी का एक-दूसरे को सहयोग सुख-शांति बनाकर रखेगा। परंतु संतान की कोई परेशानी आपको व्यथित कर सकती हैं। स्वास्थ्य - स्वास्थ्य ठीक रहेगा। परंतु बदलते वातावरण की वजह से लापरवाही ना करें। दिनचर्या व्यवस्थित रखें। भाग्यशाली रंग: लाल, भाग्यशाली अंक: 7
वृष - पॉजिटिव - आज आराम तथा परिवार के साथ दिन व्यतीत करने के मूड में रहेंगे। अगर कोई निवेश संबंधी योजना बन रही है तो तुरंत उस पर काम करें। आर्थिक दृष्टि से परिस्थितियां अनुकूल है। घर के बदलाव संबंधी कोई कार्य भी संभव हो सकता है। नेगेटिव - आलस की वजह से कुछ कार्यों में रुकावट आ सकती है। तथा पैतृक संपत्ति से संबंधित किसी बात पर भाइयों से वाद-विवाद होने की संभावना है। परंतु आप अपने उचित व्यवहार द्वारा परिस्थितियां संभाल लेंगे। व्यवसाय - किसी नए काम से संबंधित पहली पेमेंट आने की संभावना है। जिससे मन में खुशी रहेगी। नौकरी पेशा व्यक्तियों को ट्रांसफर से संबंधित कोई सूचना मिलेगी जो आपके लिए भाग्यवर्धक सिद्ध होगी। लव - विवाहेत्तर प्रेम संबंध स्थापित होने की आशंका लग रही है परंतु इससे आपके विवाहित जीवन में कलह उत्पन्न हो सकती है। इस बात का ध्यान रखें। स्वास्थ्य - कब्ज व बवासीर जैसी स्थिति चल रही है उसे हल्के में ना लें। अपना उचित इलाज लेना आवश्यक है। भाग्यशाली रंग: सफेद, भाग्यशाली अंक: 1
मिथुन - पॉजिटिव - आज का दिन हास-परिहास व मनोरंजन संबंधी कार्यों में व्यतीत होने से स्वयं को हल्का-फुल्का व ऊर्जा से भरपूर महसूस करेंगे। साथ ही सुख-सुविधाओं संबंधी वस्तुओं पर पैसा भी खर्च करने का प्रोग्राम बनेगा। नेगेटिव - परंतु आज किसी भी प्रकार की महत्वपूर्ण योजना बनाने से परहेज करें। क्योंकि आज आपकी काम के प्रति एकाग्रता ना होने की वजह से अपने कार्य के प्रति ध्यान नहीं दे पाएंगे। और मन में चंचलता बनी रहेगी। व्यवसाय - कार्यक्षेत्र में समय ना देने के बावजूद कार्य सुचारू रूप से चलते रहेंगे। इस समय ग्रह स्थितियां उत्तम है। परंतु फिर भी लापरवाही करना उचित नहीं है। इस समय कुछ परिवर्तन के योग भी बन रहे हैं। लव - जीवन साथी के स्वास्थ्य को लेकर चिंता उत्पन्न हो सकती है परंतु आपका सहयोग और देखभाल उन्हें संबल प्रदान करेगा स्वास्थ्य - घुटनों व जोड़ों के दर्द जैसी कोई पुरानी परेशानी उभर सकती हैं। वायु और बादी वाली चीजों का सेवन ना करें। भाग्यशाली रंग: हरा, भाग्यशाली अंक: 6
कर्क - पॉजिटिव - सूर्य का कर्क राशि में प्रवेश आपके व्यक्तित्व को प्रभावशाली बना रहा है। साथ ही आपके अंदर रिस्क लेने जैसी पावर भी उभर रही है। लाभ संबंधी स्थितियां भी बनेंगी। बच्चों को कोई उपलब्धि मिलने से घर में प्रसन्नता का वातावरण रहेगा। नेगेटिव - परंतु सूर्य का राशि में होना आपको इगो जैसी नेचर भी दे सकता है। अपने इस स्वभाव को सकारात्मक रूप में इस्तेमाल करें तो ही अच्छा रहेगा। वरना इसी वजह से तनाव जैसी स्थिति उत्पन्न हो सकती है। व्यवसाय - किसी प्रभावशाली व्यक्ति की वजह से कार्य क्षेत्र में कोई बड़ा ऑर्डर मिलने की संभावना है। आप अपने मार्केटिंग संबंधी सूत्रों को और अधिक मजबूत बनाएं। किसी नए काम को शुरू होने की भी संभावना बन रही है। लव - प्रेम संबंधों में और अधिक मजबूती आएगी। जीवन साथी के साथ कोई नोक-झोंक हो सकती है। परंतु आप समझदारी के साथ परिस्थितियों को संभाल भी लेंगे। स्वास्थ्य - पारिवारिक वरिष्ठ व्यक्ति के स्वास्थ्य को लेकर कुछ चिंता रहेगी। अस्पताल भी जाना पड़ सकता है। साथ ही आप भरपूर नींद न लेने की वजह से थकान महसूस करेंगे। भाग्यशाली रंग: बादामी, भाग्यशाली अंक: 2
सिंह - पॉजिटिव - समाज सेवा संबंधी कार्यों में आपका योगदान और निष्ठा की वजह से समाज में मान-सम्मान व यश में वृद्धि होगी। साथ ही आपके पर्सनल काम भी सुचारू रूप से चलते रहेंगे। नेगेटिव - दूसरों की बातों में आकर वाद-विवाद और झगड़े जैसी स्थिति भी उत्पन्न हो सकती है। जिसकी वजह से कोर्ट-कचहरी के चक्कर भी लगने की संभावना है। इसलिए ज्यादा मेलजोल ना बढ़ाकर अपने काम से ही मतलब रखें। व्यवसाय - कार्यक्षेत्र में काम व्यवस्थित रूप से होते जाएंगे। इसलिए किसी भी प्रकार की चिंता ना करें। साथ ही आय के साधनों में भी वृद्धि होगी। परंतु रिस्क संबंधी किसी कार्य को करने से बचें। लव - पति-पत्नी के संबंधों में कुछ तनाव रहेगा। जिससे घर का वातावरण भी दूषित हो सकता है। परिस्थितियों को संभालने में आप समझदारी से काम ले। स्वास्थ्य - पति-पत्नी दोनों के ही स्वास्थ्य में कुछ गिरावट रहेगी। इसे नजरअंदाज ना करें और तुरंत ही इलाज लेने की जरूरत है। भाग्यशाली रंग: ऑरेंज, भाग्यशाली अंक: 5
कन्या - पॉजिटिव - आपका अपने काम के प्रति पूर्ण समर्पण आपके कई कामों को हल करने में सक्षम हो रहा है। अगर घर में सुधार संबंधी कोई योजना बन रही है तो उसे वास्तु के अनुरूप कराएंगे तो सकारात्मक परिणाम प्राप्त होंगे। नेगेटिव - आज मन में कुछ विचलित विचार उत्पन्न हो सकते हैं। विचारों में भी संकीर्णता आने से पारिवारिक लोगों को परेशानी हो सकती है इसके लिए अपने स्वभाव को संयमित रखना अति आवश्यक है। व्यवसाय - व्यवसायिक स्थल पर अपने कार्यो तथा योजनाओं को किसी से भी शेयर ना करें। क्योंकि दूसरों का हस्तक्षेप आपके काम में रुकावट डाल सकता है। साथ ही रिस्क संबंधी कार्यों से दूर ही रहें। लव - अपनी योजनाओं व कार्यों में जीवनसाथी की सलाह लें। आपको फायदेमंद साबित होंगी तथा परेशानियों को भी हल करने में सहायता मिलेगी। स्वास्थ्य - अपने खान-पान को संयमित रखें क्योंकि भारी खाने की वजह से लिवर में दिक्कत लग रही है। भाग्यशाली रंग: हरा, भाग्यशाली अंक: 8
तुला - पॉजिटिव - बड़े बुजुर्गों का आशीर्वाद व सहयोग आपके लिए भाग्योदय दायक साबित होगा। उनकी देखभाल और सेवा अवश्य करें। साथ ही घर में बच्चे अनुशासन में रहेंगे। जिससे आप अपने कार्यों में एकाग्रता से काम कर पाएंगे। नेगेटिव - अस्वस्थता की वजह से कुछ काम अधूरे रह सकते हैं। परंतु चिंता ना करें क्योंकि स्वास्थ्य का ठीक होना ज्यादा आवश्यक है। किसी प्रकार का भी तनाव अपने ऊपर हावी ना होने दें। व्यवसाय - किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति के सहयोग से आपके कार्य बनते जाएंगे। परंतु अभी आर्थिक स्थिति ज्यादा सुधरने वाली नहीं है। पैसे के लेनदेन संबंधी कार्यों को भी स्थगित ही रखें। लव - विवाहेत्तर संबंध आपके पारिवारिक जीवन को ग्रहण लगा सकते हैं। इसलिए इनसे दूर रहें और अपने गृहस्थ जीवन पर ध्यान केंद्रित रखें। स्वास्थ्य - ब्लड प्रेशर तथा मधुमेह संबंधी परेशानियां हो सकती हैं। जिसकी वजह से कमजोरी महसूस होगी। अतःसावधानी रखना अति आवश्यक है। भाग्यशाली रंग: गुलाबी, भाग्यशाली अंक: 4
वृश्चिक - पॉजिटिव - घर में कोई धार्मिक कार्य संपन्न होगा। भावुकता की बजाए प्रैक्टिकल सोच रखना आपके लिए फायदेमंद साबित होगा। घर को बदलने जैसी कोई अगर आपकी योजना बन रही है तो आज उस पर कोई महत्वपूर्ण बातचीत हो सकती है। नेगेटिव - कभी-कभी आपका गुस्सा आपके बनते कामों को बिगाड़ देता है। बच्चों के लिए भी तकलीफ दायक स्थिति उत्पन्न हो जाती है। अपने व्यवहार पर नियंत्रण रखना अति आवश्यक है। अपनी इस ऊर्जा को सकारात्मक रूप से प्रयोग में लाएं। व्यवसाय - काफी समय से कार्य क्षेत्र में मंद पड़ी हुई गतिविधियों में गति आ रही है। चीजें व्यवस्थित होना शुरू हो जाएंगी। परंतु कोई भी कार्य करने से पहले उसकी रूपरेखा अवश्य बना ले। लव - साथी का आज आराम के मूड में रहना आपके काम को बढ़ा सकता है। परंतु आप सभी कार्यो को सुचारू रूप से क्रियान्वित करने में सक्षम हो पाएंगे। स्वास्थ्य - मन में कुछ उदासी और डिप्रेशन जैसी स्थिति महसूस हो सकती हैं। इन नकारात्मक बातों को हावी ना होने दें। मैडिटेशन पर अधिक ध्यान लगाएं। भाग्यशाली रंग: लाल, भाग्यशाली अंक: 9
धनु - पॉजिटिव - आजकल के नकारात्मक वातावरण से लोगों की रक्षा हेतु आप कुछ समाजसेवी संस्थाओं से जुड़े हैं जिसकी वजह से आपको मानसिक सुख तथा मान-सम्मान की प्राप्ति हो रही है। इस समय आपके विरोधी भी आपके व्यक्तित्व के सामने परास्त हो जाएंगे। नेगेटिव - परंतु कोई भी निर्णय लेने से पहले उस पर दोबारा सोच-विचार अवश्य करें। क्योंकि जरा सी गलती आपके लिए परेशानी का कारण बन सकती है। आर्थिक स्थिति अभी कुछ धीमी रहेगी। व्यवसाय - साझेदारी संबंधी कामों में फायदा रहेगा। सभी महत्वपूर्ण निर्णय अपने सहयोगी को लेने दे। इस समय उनका सहयोग और सलाह व्यवसाय में लाभदायक साबित होगी। नौकरीपेशा व्यक्तियों के तबादले को लेकर कुछ कार्यवाही शुरू हो सकती है। लव - पति-पत्नी के संबंधों में मधुरता रहेगी। तथा परिवार में चल रहे किसी वाद-विवाद को भी साथ बैठकर सुलझाने में सक्षम रहेंगे। स्वास्थ्य - स्वास्थ्य ठीक रहेगा। सिर्फ मनोबल में कुछ कमी महसूस करेंगे परंतु जल्दी ही आप इस स्थिति से उबर भी जाएंगे। भाग्यशाली रंग: पीला, भाग्यशाली अंक: 3
मकर - पॉजिटिव - किसी भी कार्य करने से पहले उसकी पूरी योजना व प्रारूप बनाना आपके कार्यों में गलती होने से बचाता है। मनोरंजन संबंधी कार्यों में समय व्यतीत होगा। साथ में किसी नए काम की पहली कमाई भी आने की संभावना है। नेगेटिव - भाइयों तथा मामा पक्ष के साथ संबंध खराब होने की स्थितियां बन रही है। इसलिए थोड़ा ध्यान रखें। आपका कुछ समय घर के बाहर व्यतीत होगा परंतु उसका कोई भी लाभदायक नतीजा सामने नहीं आएगा। व्यवसाय - व्यवसायिक गतिविधियां पूर्ववत ही सुचारू रूप से चलती रहेंगी। आपको कोई काम संबंधी अथॉरिटी भी प्राप्त हो सकती हैं। जिस पर मन लगाकर काम करने से और भी नए अनुबंध मिलने की संभावना है। लव - प्रेम संबंधों में रोमांटिक माहौल रहेगा। परंतु पति-पत्नी के संबंधों में कोई इगो जैसी दरार आ सकती है। जो कि दांपत्य जीवन के लिए उचित नहीं है। स्वास्थ्य - आपको आगाह किया गया है कि खांसी, जुखाम और इन्फेक्शन जैसी परेशानियों से अपना बचाव करें। भाग्यशाली रंग: आसमानी, भाग्यशाली अंक: 1
कुम्भ - पॉजिटिव - आज आप भावनात्मक रूप से मजबूत रहेंगे। तथा घर परिवार और व्यवसाय में उचित सामंजस्य बनाकर रखेंगे जिससे पारिवारिक सदस्य अपने आपको बहुत अधिक सुरक्षित महसूस करेंगे। नेगेटिव - परंतु आपकी जिद और किसी बात पर अड़ जाने का स्वभाव आपके लिए ही कुछ परेशानियां उत्पन्न कर सकता है। इसलिए अपने स्वभाव में लचीलापन बना कर रखने की अति आवश्यकता है। व्यवसाय - अगर आपने कोई नया काम शुरू किया है तो उसमें आज कुछ रुकावट आने की संभावना है। इसलिए बहुत एकाग्रता के साथ उस काम के प्रति निर्णय लें और कार्य करें। पारिवारिक व्यक्तियों की सलाह भी आपको उचित रास्ता दिखा सकती है। लव - पति-पत्नी में कुछ नोकझोंक जैसी स्थिति रहेगी। परंतु कोई गंभीर स्थिति उत्पन्न होने जैसे बात नहीं होगी। धीरे-धीरे सब सामान्य हो जाएगा। स्वास्थ्य - गर्मी की वजह से पेट में जलन और एसिड बन सकता है। ज्यादा गुस्सा करने और तनाव लेने से परहेज करें। भाग्यशाली रंग: नीला, भाग्यशाली अंक: 4
मीन - पॉजिटिव - आज आप अपना अधिकतर समय बागवानी करने तथा प्रकृति के निकट व्यतीत करेंगे। इससे आपको नई ऊर्जा की अनुभूति होगी। साथ ही कलात्मक व रचनात्मक संबंधी कार्यों में भी आप का रुझान बना रहेगा। नेगेटिव - किसी संतान की वजह से तनाव रह सकता है। जिसका प्रभाव परिवार पर भी पड़ेगा। और स्वभाव में भी चिड़चिड़ापन जैसी स्थिति महसूस होगी। किसी मित्र के साथ विचार विमर्श करने से आपकी समस्याओं का हल निकल सकता है व्यवसाय - आज कोई नया काम ना शुरू करें। वर्तमान कार्य में ही अपना ध्यान केंद्रित रखें। क्योंकि अन्य काम के प्रति आप अपना ध्यान केंद्रित नहीं कर पाएंगे जिसकी वजह से नुकसान होने की संभावना लग रही है। लव - जीवनसाथी का घर के माहौल को ठीक करने में बहुत अधिक सहयोग रहेगा। इससे आप को राहत मिलेगी। आपसी संबंधों में भी नजदीकियां आएंगी। स्वास्थ्य - स्वास्थ्य ठीक रहेगा। किसी वजह से पेट में गैस, एसिड बनने जैसी दिक्कत महसूस करेंगे। मैडिटेशन करें और हल्का खानपान रखें। भाग्यशाली रंग: केसरिया, भाग्यशाली अंक: 9
जिनका आज जन्मदिन है उनको हार्दिक शुभकामनाएं
दिनांक 19 को जन्मे व्यक्ति का मूलांक 1 होगा। आप राजसी प्रवृत्ति के व्यक्ति हैं। आपको अपने ऊपर किसी का शासन पसंद नहीं है। आप साहसी और जिज्ञासु हैं। आपका मूलांक सूर्य ग्रह के द्वारा संचालित होता है। आप अत्यंत महत्वाकांक्षी हैं। आपकी मानसिक शक्ति प्रबल है। आपको समझ पाना बेहद मुश्किल है। आप आशावादी होने के कारण हर स्थिति का सामना करने में सक्षम होते हैं। आप सौन्दर्यप्रेमी हैं। आपमें सबसे ज्यादा प्रभावित करने वाला आपका आत्मविश्वास है। इसकी वजह से आप सहज ही महफिलों में छा जाते हैं।
शुभ दिनांक : 1, 10, 19, 28
शुभ अंक : 1, 10, 19, 28, 37, 46, 55, 64, 73, 82
शुभ वर्ष : 2026, 2044, 2053, 2062
ईष्टदेव : सूर्य उपासना तथा मां गायत्री
शुभ रंग : लाल, केसरिया, क्रीम,
कैसा रहेगा यह वर्ष
यह वर्ष आपके लिए अत्यंत सुखद रहेगा। अधूरे कार्यों में सफलता मिलेगी। स्वास्थ्य की दृष्टि से यह वर्ष उत्तम रहेगा। पारिवारिक मामलों में महत्वपूर्ण कार्य होंगे। अविवाहितों के लिए सुखद स्थिति बन रही है।
विवाह के योग बनेंगे। नौकरीपेशा के लिए समय उत्तम हैं। पदोन्नति के योग हैं। बेरोजगारों के लिए भी खुशखबर है इस वर्ष आपकी मनोकामना पूरी होगी
शिवरात्रि विशेष 🙏ऎसे मनाइये भोले भर देंगे भंडार
आज सावन शिवरात्रि है. शिव और आदि शक्ति मां पार्वती के विवाह का दिन।
इस दिन व्रत रखकर भगवान शिव का जलाभिषेक किया जाता है. शिवरात्रि हर महीने कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को आती है. लेकिन सावन में आने वाली शिवरात्रि का विशेष महत्व होता है. क्योंकि सावन शिव का महीना है, इसलिए इस महीने में पड़ने वाले हर त्योहार शिव पूजा के लिए खास हैं. शिवरात्रि पर भगवान शिव का जलाभिषेक और रुद्राभिषेक करने का विशेष महत्व होता है. इस दिन शिव भक्त व्रत रखते हैं. शिवरात्रि व्रत करने से भक्तों के सभी दुखों का नाश हो जाता है. सावन शिवरात्रि 19 जुलाई रविवार के दिन पड़ रहा है. शिवरात्रि हर महीने कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को आती है. लेकिन सावन में आने वाली शिवरात्रि का विशेष महत्व होता है. क्योंकि सावन शिव का महीना है, इसलिए इस महीने में पड़ने वाले हर त्योहार शिव पूजा के लिए खास हैं. शिवरात्रि पर भगवान शिव का जलाभिषेक और रुद्राभिषेक करने का विशेष महत्व होता है.
पीपल के पेड़ की भी करें पूजा
पीपल के पेड़ की पूजा करें. क्योंकि मान्यता है कि पीपल के पेड़ में भगवान शिव का वास माना जाता है. ऐसी मान्यता है कि पेड़ के ऊपरी हिस्से में भगवान शिव का वास होता है. पीपल के वृक्ष में ही शनि देव भी विराजते हैं, इसलिए पीपल की पूजा करने से शनि के प्रकोप से भी रक्षा होती है. लिंग पुराण में बताया गया है कि शनिवार के दिन पीपल की पूजा करने से उम्र बढ़ती है.
महामृत्युंजय मंत्र का करें 1 लाख बार जाप, रोग-दोष होंगे दूर
शिवपुराण के अनुसार, महाशिवरात्रि के दिन अगर आप एक लाख बार महामृत्युंजय मंत्र का जाप करते हैं तो आपको सारे पापों से मुक्ति मिल जाती है. इसके साथ ही आप रोग और दोष से मुक्त हो जाते हैं. नकारात्मक शक्तियों से आपके और आपके परिवार की रक्षा होती है.
सावन शिवरात्रि व्रत में इन चीजों को भूल कर भी न करें सेवन
सावन शिवरात्रि का व्रत रखने वाले इस बात का ध्यान रखें कि वे किसी भी प्रकार की खट्टी चीज का सेवन न करें. साथ ही इस दिन काले वस्त्र न धारण करें. पूरा दिन व्रत रखे हुए हैं तो भगवान शंकर और माता पार्वती का ध्यान करें और उनका भजन गाएं. जो व्रत न रखे हों वे भी घर में तामसी चीजें न लाएं. मांस के सेवन से बचें. दूसरे दिन भगवान भोलेनाथ और मां पार्वती की पूजन के बाद ही व्रत तोड़ें.
ऐसे लगाएं भोग
सावन शिवरात्रि पर भोलेनाथ को तिल चढ़ाने से संपूर्ण पापों का नाश होता है. इसके अलावा शिव को गेहूं से बनीं वस्तुओं का भोग अर्पित करना भी शुभ माना जाता है, इसके अलावा ऐश्वर्य पाने की आकांक्षा से मूंग का भोग लगाएं. वहीं मनचाहा वर पाने के चने की दाल का भोग भी लगाया जाता है.
शिवरात्रि पूजा सामग्री
महादेव मूर्ति के स्नान के लिए तांबे का पात्र, लोटा, दूध, अर्पित किए जाने वाले वस्त्र, चावल, अष्टगंध, दीपक, तेल, रुई, धूपबत्ती, चंदन, धतूरा, अकुआ के फूल, बिल्वपत्र, जनेऊ, फल, मिठाई, नारियल, पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद व शक्कर), सूखे मेवे, पान, दक्षिणा.
कुंवारी कन्याओं को मिलता है विशेष लाभ
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सावन शिवरात्रि का व्रत कुंवारी कन्याओं के लिए श्रेष्ठ माना गया है. शिवरात्रि व्रत करने से उन्हें मनचाहा वर मिलता है. वहीं जिन कन्याओं के विवाह में समस्याएं आ रही होती हैं उन्हें सावन शिवरात्रि का व्रत करना चाहिए.
आद्रा नक्षत्र में पड़ रहा है शिवरात्रि
इस माह 19 जुलाई, रविवार को सावन की शिवरात्रि है. इसी दिन आद्रा नक्षत्र भी पड़ रहा है. सावन की शिवरात्रि में विशेष पूजा अर्चना कर शिवजी को आसानी से प्रसन्न किया जा सकता है.
शिवलिंग पर कैसे चढ़ाएं बेलपत्र
भोलेनाथ को जो बेलपत्र चढ़ाया जाता है उसमें छेद नहीं होने चाहिए. शिवलिंग पर तीन पत्ते वाले बेलपत्र चढ़ाने चाहिए जो कोमल और अखण्ड हों. वहीं, बेलपत्र पर किसी भी तरह का वज्र या चक्र का निशान नहीं होना चाहिए. बता दें कि पत्ते में सफेद दाग चक्र और डंठल में गांठ वज्र कहलाता है. शिवलिंग पर हमेशा बेलपत्र को उल्टा ही चढ़ाना चाहिए.
सावन शिवरात्रि पर जलाभिषेक करने का समय
कल सावन की शिवरात्रि है, इस सावन के महीने में शिवलिंग पर जलाभिषेक के लिए शुभ समय 19 जुलाई की सुबह 5 बजकर 40 मिनट से 7 बजकर 52 मिनट तक शुभफलदायी रहेगा. प्रदोष काल में जलाभिषेक करना काफी शुभ रहता है. ऐसे में 19 जुलाई की शाम के समय 7 बजकर 28 मिनट से रात 9 बजकर 30 मिनट तक प्रदोष काल में जलाभिषेक किया जा सकता है.
सावन शिवरात्रि पर महादेव जी करेंगें कष्ट दूर
कल सावन की शिवरात्रि है. इस दिन बाबा भोलेनाथ अपने भक्तों के संकट दूर करते हैं. सावन के महीने में उनकी विशेष कृपा बरसती है. इस दिन रुद्राभिषेक करने से भक्त के सभी पापों का विनाश भोले बाबा कर देते हैं.
सावन शिवरात्रि व्रत रखने पर नौकरी में मिलती है तरक्की
सावन शिवरात्रि के सिद्ध मुहूर्त में शिवलिंग को प्राण प्रतिष्ठित करवाकर स्थापित करने से व्यवसाय में वृद्धि और नौकरी में तरक्की मिलती है.
शादी में आ रही बाधा दूर करने के लिए इस मंत्र के साथ शिव-शक्ति की पूजा करें
- हे गौरि शंकरार्धांगि यथा त्वं शंकरप्रिया।
तथा मां कुरु कल्याणी कान्तकांता सुदुर्लभाम।।
- ॐ साम्ब सदा शिवाय नम:।
इन मंत्रों का जाप करने पर सभी मनोकामनाएं होती है पूरी
कल सावन शिवरात्रि है. इस दिन महिलाएं सुख-सौभाग्य के लिए भगवान शिव की पूजा करतीं है. इस दिन शिवलिंग पर दुग्ध की धारा से अभिषेक करते हुए निम्न मंत्र का उच्चारण करने पर सभी मनोकामनाएं पूरी होती है.
ॐ ह्रीं नमः शिवाय ह्रीं ॐ।
इन चीजों को चढ़ाने पर भगवान शिव होते है प्रसन्न
गरुड़ पुराण के अनुसार सावन शिवरात्रि के दिन भगवान शिव को बिल्व पत्र के साथ सफेद आंकड़े के फूल अर्पित करना चाहिए. इस दिन भगवान शिव को बिल्व पत्र व सफेद आंकड़े के फूल बेहद प्रिय हैं. शिव पुराण के अनुसार भगवान शिव को रुद्राक्ष, बिल्व पत्र, भांग, शिवलिंग और काशी अतिप्रिय हैं. इन चीजों को चढ़ाने पर भगवान शिव प्रसन्न होते है.
जानें व्रत के बाद पारण करने का नियम
सावन शिवरात्रि के दिन भगवान शिव की मूर्ति या शिवलिंग को पंचामृत से स्नान कराकर 'ॐ नमः शिवायः' मंत्र से पूजा करनी चाहिए. इसके बाद रात्रि के चारों प्रहर में भगवान शिवजी की पूजा करें, इसके बाद अगले दिन सुबह ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा देकर व्रत का पारण करना चाहिए.
आज लें व्रत का संकल्प
आज त्रयोदशी है. कल शिवरात्रि है. गरुड़ पुराण के अनुसार शिवरात्रि से एक दिन पहले त्रयोदशी तिथि में शिवजी की पूजा करनी चाहिए. आज शाम को व्रत का संकल्प लेना चाहिए. इसके उपरांत चतुर्दशी तिथि को निराहार रहना चाहिए. महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव को गंगा जल चढ़ाने से विशेष पुण्य प्राप्त होता है.
महामृत्युंजय मंत्र
ॐ हौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे
सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्
उर्वारुकमिव बन्धनान्
मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्
ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः जूं हौं ॐ
ये बारह ज्योर्तिलिंग हैं भगवान शिव के धाम
द्वादश(12) शिव ज्योतिर्लिंग!
हिन्दू धर्म में पुराणों के अनुसार स्वयं शिवजी, शिवलिंग के रूप में १२ अलग-अलग स्थानों पर स्थापित हैं, और उन स्थानों को भारत मे ज्योतिर्लिंग के रूप में पूजा जाता है।
सोमनाथ ज्योतिर्लिंग
@Prabhas Patan, Saurashtra Gujrat
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग
@Jamnagar Gujarat
त्रयम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग
@Trimbakeshwar, near Nashik Maharashtra
घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग
@Near Ellora, Aurangabad Maharashtra
भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग
@Bhimashankar Maharashtra
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग
@Srisailam Andhra Pradesh
महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग
@Ujjain Madhya Pradesh
ॐकारेश्वर ज्योतिर्लिंग
@Omkareshwar Madhya Pradesh
केदारनाथ ज्योतिर्लिंग
@Kedarnath Uttarakhand
काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग
@Varanasi Uttar Pradesh
वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग
@Deoghar Jharkhand
रामेश्वर ज्योतिर्लिंग
@Rameswaram Tamil Nadu
क्या आप जानते हैं भगवान शिव के 1008 नाम
शिव सहस्र नामावली
ॐ स्थिराय नमः।
ॐ स्थाणवे नमः।
ॐ प्रभवे नमः।
ॐ भीमाय नमः।
ॐ प्रवराय नमः ।
ॐ वरदाय नमः ।
ॐ वराय नमः ।
ॐ सर्वात्मने नमः ।
ॐ सर्वविख्याताय नमः ।
ॐ सर्वस्मै नमः ॥ १० ॥
ॐ सर्वकराय नमः ।
ॐ भवाय नमः ।
ॐ जटिने नमः ।
ॐ चर्मिणे नमः ।
ॐ शिखण्डिने नमः ।
ॐ सर्वाङ्गाय नमः ।
ॐ सर्वभावनाय नमः ।
ॐ हराय नमः ।
ॐ हरिणाक्षाय नमः ।
ॐ सर्वभूतहराय नमः ॥ २० ॥
ॐ प्रभवे नमः ।
ॐ प्रवृत्तये नमः ।
ॐ निवृत्तये नमः ।
ॐ नियताय नमः ।
ॐ शाश्वताय नमः ।
ॐ ध्रुवाय नमः ।
ॐ श्मशानवासिने नमः ।
ॐ भगवते नमः ।
ॐ खचराय नमः ।
ॐ गोचराय नमः ॥ ३० ॥
ॐ अर्दनाय नमः ।
ॐ अभिवाद्याय नमः ।
ॐ महाकर्मणे नमः ।
ॐ तपस्विने नमः ।
ॐ भूतभावनाय नमः ।
ॐ उन्मत्तवेषप्रच्छन्नाय नमः ।
ॐ सर्वलोकप्रजापतये नमः ।
ॐ महारूपाय नमः ।
ॐ महाकायाय नमः ।
ॐ वृषरूपाय नमः ॥ ४० ॥
ॐ महायशसे नमः ।
ॐ महात्मने नमः ।
ॐ सर्वभूतात्मने नमः ।
ॐ विश्वरूपाय नमः ।
ॐ महाहणवे नमः ।
ॐ लोकपालाय नमः ।
ॐ अन्तर्हितत्मने नमः ।
ॐ प्रसादाय नमः ।
ॐ हयगर्धभये नमः ।
ॐ पवित्राय नमः ॥ ५० ॥
ॐ महते नमः ।
ॐनियमाय नमः ।
ॐ नियमाश्रिताय नमः ।
ॐ सर्वकर्मणे नमः ।
ॐ स्वयंभूताय नमः ।
ॐ आदये नमः ।
ॐ आदिकराय नमः ।
ॐ निधये नमः ।
ॐ सहस्राक्षाय नमः ।
ॐ विशालाक्षाय नमः ॥ ६० ॥
ॐ सोमाय नमः ।
ॐ नक्षत्रसाधकाय नमः ।
ॐ चन्द्राय नमः ।
ॐ सूर्याय नमः ।
ॐ शनये नमः ।
ॐ केतवे नमः ।
ॐ ग्रहाय नमः ।
ॐ ग्रहपतये नमः ।
ॐ वराय नमः ।
ॐ अत्रये नमः ॥ ७० ॥
ॐ अत्र्या नमस्कर्त्रे नमः ।
ॐ मृगबाणार्पणाय नमः ।
ॐ अनघाय नमः ।
ॐ महातपसे नमः ।
ॐ घोरतपसे नमः ।
ॐ अदीनाय नमः ।
ॐ दीनसाधकाय नमः ।
ॐ संवत्सरकराय नमः ।
ॐ मन्त्राय नमः ।
ॐ प्रमाणाय नमः ॥ ८० ॥
ॐ परमायतपसे नमः ।
ॐ योगिने नमः ।
ॐ योज्याय नमः ।
ॐ महाबीजाय नमः ।
ॐ महारेतसे नमः ।
ॐ महाबलाय नमः ।
ॐ सुवर्णरेतसे नमः ।
ॐ सर्वज्ञाय नमः ।
ॐ सुबीजाय नमः ।
ॐ बीजवाहनाय नमः ॥ ९० ॥
ॐ दशबाहवे नमः ।
ॐ अनिमिशाय नमः ।
ॐ नीलकण्ठाय नमः ।
ॐ उमापतये नमः ।
ॐ विश्वरूपाय नमः ।
ॐ स्वयंश्रेष्ठाय नमः ।
ॐ बलवीराय नमः ।
ॐ अबलोगणाय नमः ।
ॐ गणकर्त्रे नमः ।
ॐ गणपतये नमः ॥ १०० ॥
ॐ दिग्वाससे नमः ।
ॐ कामाय नमः ।
ॐ मन्त्रविदे नमः ।
ॐ परमाय मन्त्राय नमः ।
ॐ सर्वभावकराय नमः ।
ॐ हराय नमः ।
ॐ कमण्डलुधराय नमः ।
ॐ धन्विने नमः ।
ॐ बाणहस्ताय नमः ।
ॐ कपालवते नमः ॥ ११० ॥
ॐ अशनये नमः ।
ॐ शतघ्निने नमः ।
ॐ खड्गिने नमः ।
ॐ पट्टिशिने नमः ।
ॐ आयुधिने नमः ।
ॐ महते नमः ।
ॐ स्रुवहस्ताय नमः ।
ॐ सुरूपाय नमः ।
ॐ तेजसे नमः ।
ॐ तेजस्कराय निधये नमः ॥ १२० ॥
ॐ उष्णीषिणे नमः ।
ॐ सुवक्त्राय नमः ।
ॐ उदग्राय नमः ।
ॐ विनताय नमः ।
ॐ दीर्घाय नमः ।
ॐ हरिकेशाय नमः ।
ॐ सुतीर्थाय नमः ।
ॐ कृष्णाय नमः ।
ॐ शृगालरूपाय नमः ।
ॐ सिद्धार्थाय नमः ॥ १३० ॥
ॐ मुण्डाय नमः ।
ॐ सर्वशुभङ्कराय नमः ।
ॐ अजाय नमः ।
ॐ बहुरूपाय नमः ।
ॐ गन्धधारिणे नमः ।
ॐ कपर्दिने नमः ।
ॐ उर्ध्वरेतसे नमः ।
ॐ ऊर्ध्वलिङ्गाय नमः ।
ॐ ऊर्ध्वशायिने नमः ।
ॐ नभस्थलाय नमः ॥ १४० ॥
ॐ त्रिजटिने नमः ।
ॐ चीरवाससे नमः ।
ॐ रुद्राय नमः ।
ॐ सेनापतये नमः ।
ॐ विभवे नमः ।
ॐ अहश्चराय नमः ।
ॐ नक्तंचराय नमः ।
ॐ तिग्ममन्यवे नमः ।
ॐ सुवर्चसाय नमः ।
ॐ गजघ्ने नमः ॥ १५० ॥
ॐ दैत्यघ्ने नमः ।
ॐ कालाय नमः ।
ॐ लोकधात्रे नमः ।
ॐ गुणाकराय नमः ।
ॐ सिंहशार्दूलरूपाय नमः ।
ॐ आर्द्रचर्माम्बरावृताय नमः ।
ॐ कालयोगिने नमः ।
ॐ महानादाय नमः ।
ॐ सर्वकामाय नमः ।
ॐ चतुष्पथाय नमः ॥ १६० ॥
ॐ निशाचराय नमः ।
ॐ प्रेतचारिणे नमः ।
ॐ भूतचारिणे नमः ।
ॐ महेश्वराय नमः ।
ॐ बहुभूताय नमः ।
ॐ बहुधराय नमः ।
ॐ स्वर्भानवे नमः ।
ॐ अमिताय नमः ।
ॐ गतये नमः ।
ॐ नृत्यप्रियाय नमः ॥ १७० ॥
ॐ नित्यनर्ताय नमः ।
ॐ नर्तकाय नमः ।
ॐ सर्वलालसाय नमः ।
ॐ घोराय नमः ।
ॐ महातपसे नमः ।
ॐ पाशाय नमः ।
ॐ नित्याय नमः ।
ॐ गिरिरुहाय नमः ।
ॐ नभसे नमः ।
ॐ सहस्रहस्ताय नमः ॥ १८० ॥
ॐ विजयाय नमः ।
ॐ व्यवसायाय नमः ।
ॐ अतन्द्रिताय नमः ।
ॐ अधर्षणाय नमः ।
ॐ धर्षणात्मने नमः ।
ॐ यज्ञघ्ने नमः ।
ॐ कामनाशकाय नमः ।
ॐ दक्ष्यागपहारिणे नमः ।
ॐ सुसहाय नमः ।
ॐ मध्यमाय नमः ॥ १९० ॥
ॐ तेजोपहारिणे नमः ।
ॐ बलघ्ने नमः ।
ॐ मुदिताय नमः ।
ॐ अर्थाय नमः ।
ॐ अजिताय नमः ।
ॐ अवराय नमः ।
ॐ गम्भीरघोषय नमः ।
ॐ गम्भीराय नमः ।
ॐ गम्भीरबलवाहनाय नमः ।
ॐ न्यग्रोधरूपाय नमः ॥ २०० ॥
ॐ न्यग्रोधाय नमः ।
ॐ वृक्षकर्णस्थिताय नमः ।
ॐ विभवे नमः ।
ॐ सुतीक्ष्णदशनाय नमः ।
ॐ महाकायाय नमः ।
ॐ महाननाय नमः ।
ॐ विश्वक्सेनाय नमः ।
ॐ हरये नमः ।
ॐ यज्ञाय नमः ।
ॐ संयुगापीडवाहनाय नमः ॥ २१० ॥
ॐ तीक्षणातापाय नमः ।
ॐ हर्यश्वाय नमः ।
ॐ सहायाय नमः ।
ॐ कर्मकालविदे नमः ।
ॐ विष्णुप्रसादिताय नमः ।
ॐ यज्ञाय नमः ।
ॐ समुद्राय नमः ।
ॐ बडवामुखाय नमः ।
ॐ हुताशनसहायाय नमः ।
ॐ प्रशान्तात्मने नमः ॥ २२० ॥
ॐ हुताशनाय नमः ।
ॐ उग्रतेजसे नमः ।
ॐ महातेजसे नमः ।
ॐ जन्याय नमः ।पप
ॐ विजयकालविदे नमः ।पपपप
ॐ ज्योतिषामयनाय नमः ।
ॐ सिद्धये नमः ।प
ॐ सर्वविग्रहाय नमः ।प
ॐ शिखिने नमः ।
ॐ मुण्डिने नमः ॥ २३० ॥
प
ॐ जटिने नमः ।
ॐ ज्वलिने नमः ।
ॐ मूर्तिजाय नमः ।
ॐ मूर्धजाय नमः ।प
ॐ बलिने नमः ।
ॐ वैनविने नमः ।
ॐ पणविने नमः ।
ॐ तालिने नमः ।
ॐ खलिने नमः ।
ॐ कालकटङ्कटाय नमः ॥ २४० ॥
ॐ नक्षत्रविग्रहमतये नमः ।
ॐ गुणबुद्धये नमः ।
ॐ लयाय नमः ।
ॐ अगमाय नमः ।
ॐ प्रजापतये नमः ।
ॐ विश्वबाहवे नमः ।
ॐ विभागाय नमः ।
ॐ सर्वगाय नमः ।
ॐ अमुखाय नमः ।
ॐ विमोचनाय नमः ॥ २५० ॥
ॐ सुसरणाय नमः ।
ॐ हिरण्यकवचोद्भवाय नमः ।
ॐ मेढ्रजाय नमः ।प
ॐ बलचारिणे नमः ।
ॐ महीचारिणे नमः ।
ॐ स्रुताय नमः ।
ॐ सर्वतूर्यविनोदिने नमः ।
ॐ सर्वतोद्यपरिग्रहाय नमः ।
ॐ व्यालरूपाय नमः ।
ॐ गुहावासिने नमः ॥ २६० ॥
ॐ गुहाय नमः ।
ॐ मालिने नमः ।
ॐ तरङ्गविदे नमः ।
ॐ त्रिदशाय नमः ।
ॐ त्रिकालधृते नमः ।
ॐ कर्मसर्वबन्धविमोचनाय नमः ।
ॐ असुरेन्द्राणांबन्धनाय नमः ।
ॐ युधि शत्रुविनाशनाय नमः ।
ॐ साङ्ख्यप्रसादाय नमः ।
ॐ दुर्वाससे नमः ॥ २७० ॥
ॐ सर्वसाधिनिषेविताय नमः ।
ॐ प्रस्कन्दनाय नमः ।
ॐ यज्ञविभागविदे नमः ।
ॐ अतुल्याय नमः ।
ॐ यज्ञविभागविदे नमः ।
ॐ सर्ववासाय नमः ।
ॐ सर्वचारिणे नमः ।
ॐ दुर्वाससे नमः ।
ॐ वासवाय नमः ।
ॐ अमराय नमः ॥ २८० ॥
ॐ हैमाय नमः ।
ॐ हेमकराय नमः ।
ॐ निष्कर्माय नमः ।
ॐ सर्वधारिणे नमः ।
ॐ धरोत्तमाय नमः ।
ॐ लोहिताक्षाय नमः ।
ॐ माक्षाय नमः ।
ॐ विजयक्षाय नमः ।
ॐ विशारदाय नमः ।
ॐ संग्रहाय नमः ॥ २९० ॥
ॐ निग्रहाय नमः ।
ॐ कर्त्रे नमः ।
ॐ सर्पचीरनिवासनाय नमः ।
ॐ मुख्याय नमः ।
ॐ अमुख्याय नमः ।
ॐ देहाय नमः ।
ॐ काहलये नमः ।
ॐ सर्वकामदाय नमः ।
ॐ सर्वकालप्रसादये नमः ।
ॐ सुबलाय नमः ॥ ३०० ॥
ॐ बलरूपधृते नमः ।
ॐ सर्वकामवराय नमः ।
ॐ सर्वदाय नमः ।
ॐ सर्वतोमुखाय नमः ।
ॐ आकाशनिर्विरूपाय नमः ।
ॐ निपातिने नमः ।
ॐ अवशाय नमः ।
ॐ खगाय नमः ।
ॐ रौद्ररूपाय नमः ।
ॐ अंशवे नमः ॥ ३१० ॥
ॐ आदित्याय नमः ।
ॐ बहुरश्मये नमः ।
ॐ सुवर्चसिने नमः ।
ॐ वसुवेगाय नमः ।
ॐ महावेगाय नमः ।
ॐ मनोवेगाय नमः ।
ॐ निशाचराय नमः ।
ॐ सर्ववासिने नमः ।
ॐ श्रियावासिने नमः ।
ॐ उपदेशकराय नमः ॥ ३२० ॥
ॐ अकराय नमः ।
ॐ मुनये नमः ।
ॐ आत्मनिरालोकाय नमः ।
ॐ सम्भग्नाय नमः ।
ॐ सहस्रदाय नमः ।
ॐ पक्षिणे नमः ।
ॐ पक्षरूपाय नमः ।
ॐ अतिदीप्ताय नमः ।
ॐ विशाम्पतये नमः ।
ॐ उन्मादाय नमः ॥ ३३० ॥
ॐ मदनाय नमः ।
ॐ कामाय नमः ।
ॐ अश्वत्थाय नमः ।
ॐ अर्थकराय नमः ।
ॐ यशसे नमः ।
ॐ वामदेवाय नमः ।
ॐ वामाय नमः ।
ॐ प्राचे नमः ।
ॐ दक्षिणाय नमः ।
ॐ वामनाय नमः ॥ ३४० ॥
ॐ सिद्धयोगिने नमः ।
ॐ महर्शये नमः ।
ॐ सिद्धार्थाय नमः ।
ॐ सिद्धसाधकाय नमः ।
ॐ भिक्षवे नमः ।
ॐ भिक्षुरूपाय नमः ।
ॐ विपणाय नमः ।
ॐ मृदवे नमः ।
ॐ अव्ययाय नमः ।
ॐ महासेनाय नमः ॥ ३५० ॥
ॐ विशाखाय नमः ।
ॐ षष्टिभागाय नमः ।
ॐ गवां पतये नमः ।
ॐ वज्रहस्ताय नमः ।
ॐ विष्कम्भिने नमः ।
ॐ चमूस्तम्भनाय नमः ।
ॐ वृत्तावृत्तकराय नमः ।
ॐ तालाय नमः ।
ॐ मधवे नमः ।
ॐ मधुकलोचनाय नमः ॥ ३६० ॥
ॐ वाचस्पत्याय नमः ।
ॐ वाजसेनाय नमः ।
ॐ नित्यमाश्रितपूजिताय नमः ।
ॐ ब्रह्मचारिणे नमः ।
ॐ लोकचारिणे नमः ।
ॐ सर्वचारिणे नमः ।
ॐ विचारविदे नमः ।
ॐ ईशानाय नमः ।
ॐ ईश्वराय नमः ।
ॐ कालाय नमः ॥ ३७० ॥
ॐ निशाचारिणे नमः ।
ॐ पिनाकभृते नमः ।
ॐ निमित्तस्थाय नमः ।
ॐ निमित्ताय नमः ।
ॐ नन्दये नमः ।
ॐ नन्दिकराय नमः ।
ॐ हरये नमः ।
ॐ नन्दीश्वराय नमः ।
ॐ नन्दिने नमः ।
ॐ नन्दनाय नमः ॥ ३८० ॥
ॐ नन्दिवर्धनाय नमः ।
ॐ भगहारिणे नमः ।
ॐ निहन्त्रे नमः ।
ॐ कलाय नमः ।
ॐ ब्रह्मणे नमः ।
ॐ पितामहाय नमः ।
ॐ चतुर्मुखाय नमः ।
ॐ महालिङ्गाय नमः ।
ॐ चारुलिङ्गाय नमः ।
ॐ लिङ्गाध्याक्षाय नमः ॥ ३९० ॥
ॐ सुराध्यक्षाय नमः ।
ॐ योगाध्यक्षाय नमः ।
ॐ युगावहाय नमः ।
ॐ बीजाध्यक्षाय नमः ।
ॐ बीजकर्त्रे नमः ।
ॐ अध्यात्मानुगताय नमः ।
ॐ बलाय नमः ।
ॐ इतिहासाय नमः ।
ॐ सकल्पाय नमः ।
ॐ गौतमाय नमः ॥ ४०० ॥
ॐ निशाकराय नमः ।
ॐ दम्भाय नमः ।
ॐ अदम्भाय नमः ।
ॐ वैदम्भाय नमः ।
ॐ वश्याय नमः ।
ॐ वशकराय नमः ।
ॐ कलये नमः ।
ॐ लोककर्त्रे नमः ।
ॐ पशुपतये नमः ।
ॐ महाकर्त्रे नमः ॥ ४१० ॥
ॐ अनौषधाय नमः ।
ॐ अक्षराय नमः ।
ॐ परमाय ब्रह्मणे नमः ।
ॐ बलवते नमः ।
ॐ शक्राय नमः ।
ॐ नित्यै नमः ।
ॐ अनित्यै नमः ।
ॐ शुद्धात्मने नमः ।
ॐ शुद्धाय नमः ।
ॐ मान्याय नमः ॥ ४२० ॥
ॐ गतागताय नमः ।
ॐ बहुप्रसादाय नमः ।
ॐ सुस्वप्नाय नमः ।
ॐ दर्पणाय नमः ।
ॐ अमित्रजिते नमः ।
ॐ वेदकाराय नमः ।
ॐ मन्त्रकाराय नमः ।
ॐ विदुषे नमः ।
ॐ समरमर्दनाय नमः ।
ॐ महामेघनिवासिने नमः ॥ ४३० ॥
ॐ महाघोराय नमः ।
ॐ वशिने नमः ।
ॐ कराय नमः ।
ॐ अग्निज्वालाय नमः ।
ॐ महाज्वालाय नमः ।
ॐ अतिधूम्राय नमः ।
ॐ हुताय नमः ।
ॐ हविषे नमः ।
ॐ वृषणाय नमः ।
ॐ शङ्कराय नमः ॥ ४४० ॥
ॐ नित्यं वर्चस्विने नमः ।
ॐ धूमकेतनाय नमः ।
ॐ नीलाय नमः ।
ॐ अङ्गलुब्धाय नमः ।
ॐ शोभनाय नमः ।
ॐ निरवग्रहाय नमः ।
ॐ स्वस्तिदाय नमः ।
ॐ स्वस्तिभावाय नमः ।
ॐ भागिने नमः ।
ॐ भागकराय नमः ॥ ४५० ॥
ॐ लघवे नमः ।
ॐ उत्सङ्गाय नमः ।
ॐ महाङ्गाय नमः ।
ॐ महागर्भपरायणाय नमः ।
ॐ कृष्णवर्णाय नमः ।
ॐ सुवर्णाय नमः ।
ॐ सर्वदेहिनां इन्द्रियाय नमः ।
ॐ महापादाय नमः ।
ॐ महाहस्ताय नमः ।
ॐ महाकायाय नमः ॥ ४६० ॥
ॐ महायशसे नमः ।
ॐ महामूर्ध्ने नमः ।
ॐ महामात्राय नमः ।
ॐ महानेत्राय नमः ।
ॐ निशालयाय नमः ।
ॐ महान्तकाय नमः ।
ॐ महाकर्णाय नमः ।
ॐ महोष्ठाय नमः ।
ॐ महाहणवे नमः ।
ॐ महानासाय नमः ॥ ४७० ॥
ॐ महाकम्बवे नमः ।
ॐ महाग्रीवाय नमः ।
ॐ श्मशानभाजे नमः ।
ॐ महावक्षसे नमः ।
ॐ महोरस्काय नमः ।
ॐ अन्तरात्मने नमः ।
ॐ मृगालयाय नमः ।
ॐ लम्बनाय नमः ।
ॐ लम्बितोष्ठाय नमः ।
ॐ महामायाय नमः ॥ ४८० ॥
ॐ पयोनिधये नमः ।
ॐ महादन्ताय नमः ।
ॐ महादंष्ट्राय नमः ।
ॐ महजिह्वाय नमः ।
ॐ महामुखाय नमः ।
ॐ महानखाय नमः ।
ॐ महारोमाय नमः ।
ॐ महाकोशाय नमः ।
ॐ महाजटाय नमः ।
ॐ प्रसन्नाय नमः ॥ ४९० ॥
ॐ प्रसादाय नमः ।
ॐ प्रत्ययाय नमः ।
ॐ गिरिसाधनाय नमः ।
ॐ स्नेहनाय नमः ।
ॐ अस्नेहनाय नमः ।
ॐ अजिताय नमः ।
ॐ महामुनये नमः ।
ॐ वृक्षाकाराय नमः ।
ॐ वृक्षकेतवे नमः ।
ॐ अनलाय नमः ॥ ५०० ॥
ॐ वायुवाहनाय नमः ।
ॐ गण्डलिने नमः ।
ॐ मेरुधाम्ने नमः ।
ॐ देवाधिपतये नमः ।
ॐ अथर्वशीर्षाय नमः ।
ॐ सामास्याय नमः ।
ॐ ऋक्सहस्रामितेक्षणाय नमः ।
ॐ यजुः पाद भुजाय नमः ।
ॐ गुह्याय नमः ।
ॐ प्रकाशाय नमः ॥ ५१० ॥
ॐ जङ्गमाय नमः ।
ॐ अमोघार्थाय नमः ।
ॐ प्रसादाय नमः ।
ॐ अभिगम्याय नमः ।
ॐ सुदर्शनाय नमः ।
ॐ उपकाराय नमः ।
ॐ प्रियाय नमः ।
ॐ सर्वाय नमः ।
ॐ कनकाय नमः ।
ॐ कञ्चनच्छवये नमः ॥ ५२० ॥
ॐ नाभये नमः ।
ॐ नन्दिकराय नमः ।
ॐ भावाय नमः ।
ॐ पुष्करस्थापतये नमः ।
ॐ स्थिराय नमः ।
ॐ द्वादशाय नमः ।
ॐ त्रासनाय नमः ।
ॐ आद्याय नमः ।
ॐ यज्ञाय नमः ।
ॐ यज्ञसमाहिताय नमः ॥ ५३० ॥
ॐ नक्तं नमः ।
ॐ कलये नमः ।
ॐ कालाय नमः ।
ॐ मकराय नमः ।
ॐ कालपूजिताय नमः ।
ॐ सगणाय नमः ।
ॐ गणकाराय नमः ।
ॐ भूतवाहनसारथये नमः ।
ॐ भस्मशयाय नमः ।
ॐ भस्मगोप्त्रे नमः ॥ ५४० ॥
ॐ भस्मभूताय नमः ।
ॐ तरवे नमः ।
ॐ गणाय नमः ।
ॐ लोकपालाय नमः ।
ॐ अलोकाय नमः ।
ॐ महात्मने नमः ।
ॐ सर्वपूजिताय नमः ।
ॐ शुक्लाय नमः ।
ॐ त्रिशुक्लाय नमः ।
ॐ सम्पन्नाय नमः ॥ ५५० ॥
ॐ शुचये नमः ।
ॐ भूतनिषेविताय नमः ।
ॐ आश्रमस्थाय नमः ।
ॐ क्रियावस्थाय नमः ।
ॐ विश्वकर्ममतये नमः ।
ॐ वराय नमः ।
ॐ विशालशाखाय नमः ।
ॐ ताम्रोष्ठाय नमः ।
ॐ अम्बुजालाय नमः ।
ॐ सुनिश्चलाय नमः ॥ ५६० ॥
ॐ कपिलाय नमः ।
ॐ कपिशाय नमः ।
ॐ शुक्लाय नमः ।
ॐ अयुशे नमः ।
ॐ पराय नमः ।
ॐ अपराय नमः ।
ॐ गन्धर्वाय नमः ।
ॐ अदितये नमः ।
ॐ तार्क्ष्याय नमः ।
ॐ सुविज्ञेयाय नमः ॥ ५७० ॥
ऊँ सुशारदाय नमः ।
ऊँ परश्वधायुधाय नमः ।
ऊँ देवाय नमः ।
ऊँ अनुकारिणे नमः ।
ऊँ सुबान्धवाय नमः ।
ऊँ तुम्बवीणाय नमः ।
ऊँ महाक्रोधाय नमः ।
ऊँ ऊर्ध्वरेतसे नमः ।
ऊँ जलेशयाय नमः ।
ऊँ उग्राय नमः ।
ऊँ वंशकराय नमः ।
ऊँ वंशाय नमः ।
ऊँ वंशानादाय नमः ।
ऊँ अनिन्दिताय नमः ।
ऊँ सर्वांगरूपाय नमः ।
ऊँ मायाविने नमः ।
ऊँ सुहृदे नमः ।
ऊँ अनिलाय नमः ।
ऊँ अनलाय नमः ।
ऊँ बन्धनाय नमः ।
ऊँ बन्धकर्त्रे नमः ।
ऊँ सुवन्धनविमोचनाय नमः ।
ऊँ सयज्ञयारये नमः ।
ऊँ सकामारये नमः ।
ऊँ महाद्रष्टाय नमः ।
ऊँ महायुधाय नमः ।
ऊँ बहुधानिन्दिताय नमः ।
ऊँ शर्वाय नमः ।
ऊँ शंकराय नमः ।
ऊँ शं कराय नमः ।
ऊँ अधनाय नमः ॥ ६०० ॥
ऊँ अमरेशाय नमः ।
ऊँ महादेवाय नमः ।
ऊँ विश्वदेवाय नमः ।
ऊँ सुरारिघ्ने नमः ।
ऊँ अहिर्बुद्धिन्याय नमः ।
ऊँ अनिलाभाय नमः ।
ऊँ चेकितानाय नमः ।
ऊँ हविषे नमः ।
ऊँ अजैकपादे नमः ।
ऊँ कापालिने नमः ।
ऊँ त्रिशंकवे नमः ।
ऊँ अजिताय नमः ।
ऊँ शिवाय नमः ।
ऊँ धन्वन्तरये नमः ।
ऊँ धूमकेतवे नमः ।
ऊँ स्कन्दाय नमः ।
ऊँ वैश्रवणाय नमः ।
ऊँ धात्रे नमः ।
ऊँ शक्राय नमः ।
ऊँ विष्णवे नमः ।
ऊँ मित्राय नमः ।
ऊँ त्वष्ट्रे नमः ।
ऊँ ध्रुवाय नमः ।
ऊँ धराय नमः ।
ऊँ प्रभावाय नमः ।
ऊँ सर्वगोवायवे नमः ।
ऊँ अर्यम्णे नमः ।
ऊँ सवित्रे नमः ।
ऊँ रवये नमः ।
ऊँ उषंगवे नमः ।
ऊँ विधात्रे नमः ।
ऊँ मानधात्रे नमः ।
ऊँ भूतवाहनाय नमः ।
ऊँ विभवे नमः ।
ऊँ वर्णविभाविने नमः ।
ऊँ सर्वकामगुणवाहनाय नमः ।
ऊँ पद्मनाभाय नमः ।
ऊँ महागर्भाय नमः ।
चन्द्रवक्त्राय नमः ।
ऊँ अनिलाय नमः ।
ऊँ अनलाय नमः ।
ऊँ बलवते नमः ।
ऊँ उपशान्ताय नमः ।
ऊँ पुराणाय नमः ।
ऊँ पुण्यचञ्चवे नमः ।
ऊँ ईरूपाय नमः ।
ऊँ कुरूकर्त्रे नमः ।
ऊँ कुरूवासिने नमः ।
ऊँ कुरूभूताय नमः ।
ऊँ गुणौषधाय नमः ॥ ६५० ॥
ऊँ सर्वाशयाय नमः ।
ऊँ दर्भचारिणे नमः ।
ऊँ सर्वप्राणिपतये नमः ।
ऊँ देवदेवाय नमः ।
ऊँ सुखासक्ताय नमः ।
ऊँ सत स्वरूपाय नमः ।
ऊँ असत् रूपाय नमः ।
ऊँ सर्वरत्नविदे नमः ।
ऊँ कैलाशगिरिवासने नमः ।
ऊँ हिमवद्गिरिसंश्रयाय नमः ।
ऊँ कूलहारिणे नमः ।
ऊँ कुलकर्त्रे नमः ।
ऊँ बहुविद्याय नमः ।
ऊँ बहुप्रदाय नमः ।
ऊँ वणिजाय नमः ।
ऊँ वर्धकिने नमः ।
ऊँ वृक्षाय नमः ।
ऊँ बकुलाय नमः ।
ऊँ चंदनाय नमः ।
ऊँ छदाय नमः ।
ऊँ सारग्रीवाय नमः ।
ऊँ महाजत्रवे नमः ।
ऊँ अलोलाय नमः ।
ऊँ महौषधाय नमः ।
ऊँ सिद्धार्थकारिणे नमः ।
ऊँ छन्दोव्याकरणोत्तर-सिद्धार्थाय नमः ।
ऊँ सिंहनादाय नमः ।
ऊँ सिंहद्रंष्टाय नमः ।
ऊँ सिंहगाय नमः ।
ऊँ सिंहवाहनाय नमः ।
ऊँ प्रभावात्मने नमः ।
ऊँ जगतकालस्थालाय नमः ।
ऊँ लोकहिताय नमः ।
ऊँ तरवे नमः ।
ऊँ सारंगाय नमः ।
ऊँ नवचक्रांगाय नमः ।
ऊँ केतुमालिने नमः ।
ऊँ सभावनाय नमः ।
ऊँ भूतालयाय नमः ।
ऊँ भूतपतये नमः ।
ऊँ अहोरात्राय नमः ।
ऊँ अनिन्दिताय नमः ।
ऊँ सर्वभूतवाहित्रे नमः ।
ऊँ सर्वभूतनिलयाय नमः ।
ऊँ विभवे नमः ।
ऊँ भवाय नमः ।
ऊँ अमोघाय नमः ।
ऊँ संयताय नमः ।
ऊँ अश्वाय नमः ।
ऊँ भोजनाय नमः ॥ ७००॥
ऊँ प्राणधारणाय नमः ।
ऊँ धृतिमते नमः ।
ऊँ मतिमते नमः ।
ऊँ दक्षाय नमःऊँ सत्कृयाय नमः ।
ऊँ युगाधिपाय नमः ।
ऊँ गोपाल्यै नमः ।
ऊँ गोपतये नमः ।
ऊँ ग्रामाय नमः ।
ऊँ गोचर्मवसनाय नमः ।
ऊँ हरये नमः ।
ऊँ हिरण्यबाहवे नमः ।
ऊँ प्रवेशिनांगुहापालाय नमः ।
ऊँ प्रकृष्टारये नमः ।
ऊँ महाहर्षाय नमः ।
ऊँ जितकामाय नमः ।
ऊँ जितेन्द्रियाय नमः ।
ऊँ गांधाराय नमः ।
ऊँ सुवासाय नमः ।
ऊँ तपःसक्ताय नमः ।
ऊँ रतये नमः ।
ऊँ नराय नमः ।
ऊँ महागीताय नमः ।
ऊँ महानृत्याय नमः ।
ऊँ अप्सरोगणसेविताय नमः ।
ऊँ महाकेतवे नमः ।
ऊँ महाधातवे नमः ।
ऊँ नैकसानुचराय नमः ।
ऊँ चलाय नमः ।
ऊँ आवेदनीयाय नमः ।
ऊँ आदेशाय नमः ।
ऊँ सर्वगंधसुखावहाय नमः ।
ऊँ तोरणाय नमः ।
ऊँ तारणाय नमः ।
ऊँ वाताय नमः ।
ऊँ परिधये नमः ।
ऊँ पतिखेचराय नमः ।
ऊँ संयोगवर्धनाय नमः ।
ऊँ वृद्धाय नमः ।
ऊँ गुणाधिकाय नमः ।
ऊँ अतिवृद्धाय नमः ।
ऊँ नित्यात्मसहायाय नमः ।
ऊँ देवासुरपतये नमः ।
ऊँ पत्ये नमः ।
ऊँ युक्ताय नमः ।
ऊँ युक्तबाहवे नमः ।
ऊँ दिविसुपर्वदेवाय नमः ।
ऊँ आषाढाय नमः ।
ऊँ सुषाढ़ाय नमः ।
ऊँ ध्रुवाय नमः ॥ ७५० ॥
ऊँ हरिणाय नमः ।
ऊँ हराय नमः ।
ऊँ आवर्तमानवपुषे नमः ।
ऊँ वसुश्रेष्ठाय नमः ।
ऊँ महापथाय नमः ।
ऊँ विमर्षशिरोहारिणे नमः ।
ऊँ सर्वलक्षणलक्षिताय नमः ।
ऊँ अक्षरथयोगिने नमः ।
ऊँ सर्वयोगिने नमः ।
ऊँ महाबलाय नमः ।
ऊँ समाम्नायाय नमः ।
ऊँ असाम्नायाय नमः ।
ऊँ तीर्थदेवाय नमः ।
ऊँ महारथाय नमः ।
ऊँ निर्जीवाय नमः ।
ऊँ जीवनाय नमः ।
ऊँ मंत्राय नमः ।
ऊँ शुभाक्षाय नमः ।
ऊँ बहुकर्कशाय नमः ।
ऊँ रत्नप्रभूताय नमः ।
ऊँ रत्नांगाय नमः ।
ऊँ महार्णवनिपानविदे नमः ।
ऊँ मूलाय नमः ।
ऊँ विशालाय नमः ।
ऊँ अमृताय नमः ।
ऊँ व्यक्ताव्यवक्ताय नमः ।
ऊँ तपोनिधये नमः ।
ऊँ आरोहणाय नमः ।
ऊँ अधिरोहाय नमः ।
ऊँ शीलधारिणे नमः ।
ऊँ महायशसे नमः ।
ऊँ सेनाकल्पाय नमः ।
ऊँ महाकल्पाय नमः ।
ऊँ योगाय नमः ।
ऊँ युगकराय नमः ।
ऊँ हरये नमः ।
ऊँ युगरूपाय नमः ।
ऊँ महारूपाय नमः ।
ऊँ महानागहतकाय नमः ।
ऊँ अवधाय नमः ।
ऊँ न्यायनिर्वपणाय नमः ।
ऊँ पादाय नमः ।
ऊँ पण्डिताय नमः ।
ऊँ अचलोपमाय नमः ।
ऊँ बहुमालाय नमः ।
ऊँ महामालाय नमः ।
ऊँ शशिहरसुलोचनाय नमः ।
ऊँ विस्तारलवणकूपाय नमः ।
ऊँ त्रिगुणाय नमः ।
ऊँ सफलोदयाय नमः ॥ ८०० ॥
ऊँ त्रिलोचनाय नमः ।
ऊँ विषण्डागाय नमः ।
ऊँ मणिविद्धाय नमः ।
ऊँ जटाधराय नमः ।
ऊँ बिन्दवे नमः ।
ऊँ विसर्गाय नमः ।
ऊँ सुमुखाय नमः ।
ऊँ शराय नमः ।
ऊँ सर्वायुधाय नमः ।
ऊँ सहाय नमः ।
ऊँ सहाय नमः ।
ऊँ निवेदनाय नमः ।
ऊँ सुखाजाताय नमः ।
ऊँ सुगन्धराय नमः ।
ऊँ महाधनुषे नमः ।
ऊँ गंधपालिभगवते नमः ।
ऊँ सर्वकर्मोत्थानाय नमः ।
ऊँ मन्थानबहुलवायवे नमः ।
ऊँ सकलाय नमः ।
ऊँ सर्वलोचनाय नमः ।
ऊँ तलस्तालाय नमः ।
ऊँ करस्थालिने नमः ।
ऊँ ऊर्ध्वसंहननाय नमः ।
ऊँ महते नमः ।
ऊँ छात्राय नमः ।
ऊँ सुच्छत्राय नमः ।
ऊँ विख्यातलोकाय नमः ।
ऊँ सर्वाश्रयक्रमाय नमः ।
ऊँ मुण्डाय नमः ।
ऊँ विरूपाय नमः ।
ऊँ विकृताय नमः ।
ऊँ दण्डिने नमः ।
ऊँ कुदण्डिने नमः ।
ऊँ विकुर्वणाय नमः ।
ऊँ हर्यक्षाय नमः ।
ऊँ ककुभाय नमः ।
ऊँ वज्रिणे नमः ।
ऊँ शतजिह्वाय नमः ।
ऊँ सहस्रपदे नमः ।
ऊँ देवेन्द्राय नमः ।
ऊँ सर्वदेवमयाय नमः ।
ऊँ गुरवे नमः ।
ऊँ सहस्रबाहवे नमः ।
ऊँ सर्वांगाय नमः ।
ऊँ शरण्याय नमः ।
ऊँ सर्वलोककृते नमः ।
ऊँ पवित्राय नमः ।
ऊँ त्रिककुन्मंत्राय नमः ।
ऊँ कनिष्ठाय नमः ।
ऊँ कृष्णपिंगलाय नमः ॥ ८५० ॥
ऊँ ब्रह्मदण्डविनिर्मात्रे नमः ।
ऊँ शतघ्नीपाशशक्तिमते नमः ।
ऊँ पद्मगर्भाय नमः ।
ऊँ महागर्भाय नमः ।
ऊँ ब्रह्मगर्भाय नमः ।
ऊँ जलोद्भावाय नमः ।
ऊँ गभस्तये नमः ।
ऊँ ब्रह्मकृते नमः ।
ऊँ ब्रह्मिणे नमः ।
ऊँ ब्रह्मविदे नमः ।
ऊँ ब्राह्मणाय नमः ।
ऊँ गतये नमः ।
ऊँ अनंतरूपाय नमः ।
ऊँ नैकात्मने नमः ।
ऊँ स्वयंभुवतिग्मतेजसे नमः ।
ऊँ उर्ध्वगात्मने नमः ।
ऊँ पशुपतये नमः ।
ऊँ वातरंहसे नमः ।
ऊँ मनोजवाय नमः ।
ऊँ चंदनिने नमः ।
ऊँ पद्मनालाग्राय नमः ।
ऊँ सुरभ्युत्तारणाय नमः ।
ऊँ नराय नमः ।
ऊँ कर्णिकारमहास्रग्विणमे नमः ।
ऊँ नीलमौलये नमः ।
ऊँ पिनाकधृषे नमः ।
ऊँ उमापतये नमः ।
ऊँ उमाकान्ताय नमः ।
ऊँ जाह्नवीधृषे नमः ।
ऊँ उमादवाय नमः ।
ऊँ वरवराहाय नमः ।
ऊँ वरदाय नमः ।
ऊँ वरेण्याय नमः ।
ऊँ सुमहास्वनाय नमः ।
ऊँ महाप्रसादाय नमः ।
ऊँ दमनाय नमः ।
ऊँ शत्रुघ्ने नमः ।
ऊँ श्वेतपिंगलाय नमः ।
ऊँ पीतात्मने नमः ।
ऊँ परमात्मने नमः ।
ऊँ प्रयतात्मने नमः ।
ऊँ प्रधानधृषे नमः ।
ऊँ सर्वपार्श्वमुखाय नमः ।
ऊँ त्रक्षाय नमः ।
ऊँ धर्मसाधारणवराय नमः ।
ऊँ चराचरात्मने नमः ।
ऊँ सूक्ष्मात्मने नमः ।
ऊँ अमृतगोवृषेश्वराय नमः ।
ऊँ साध्यर्षये नमः ।
ऊँ आदित्यवसवे नमः ॥ ९०० ॥
ऊँ विवस्वत्सवित्रमृताय नमः ।
ऊँ व्यासाय नमः ।
ऊँ सर्गसुसंक्षेपविस्तराय नमः ।
ऊँ पर्ययोनराय नमः ।
ऊँ ऋतवे नमः ।
ऊँ संवत्सराय नमः ।
ऊँ मासाय नमः ।
ऊँ पक्षाय नमः ।
ऊँ संख्यासमापनाय नमः ।
ऊँ कलायै नमः ।
ऊँ काष्ठायै नमः ।
ऊँ लवेभ्यो नमः ।
ऊँ मात्रेभ्यो नमः ।
ऊँ मुहूर्ताहःक्षपाभ्यो नमः ।
ऊँ क्षणेभ्यो नमः ।
ऊँ विश्वक्षेत्राय नमः ।
ऊँ प्रजाबीजाय नमः ।
ऊँ लिंगाय नमः ।
ऊँ आद्यनिर्गमाय नमः ।
ऊँ सत् स्वरूपाय नमः ।
ऊँ असत् रूपाय नमः ।
ऊँ व्यक्ताय नमः ।
ऊँ अव्यक्ताय नमः ।
ऊँ पित्रे नमः । ऊँ मात्रे नमः ।
ऊँ पितामहाय नमः ।
ऊँ स्वर्गद्वाराय नमः ।
ऊँ प्रजाद्वाराय नमः ।
ऊँ मोक्षद्वाराय नमः ।
ऊँ त्रिविष्टपाय नमः ।
ऊँ निर्वाणाय नमः ।
ऊँ ह्लादनाय नमः ।
ऊँ ब्रह्मलोकाय नमः ।
ऊँ परागतये नमः ।
ऊँ देवासुरविनिर्मात्रे नमः ।
ऊँ देवासुरपरायणाय नमः ।
ऊँ देवासुरगुरूवे नमः ।
ऊँ देवाय नमः ।
ऊँ देवासुरनमस्कृताय नमः ।
ऊँ देवासुरमहामात्राय नमः ।
ऊँ देवासुरमहामात्राय नमः ।
ऊँ देवासुरगणाश्रयाय नमः ।
ऊँ देवासुरगणाध्यक्षाय नमः ।
ऊँ देवासुरगणाग्रण्ये नमः ।
ऊँ देवातिदेवाय नमः ।
ऊँ देवर्षये नमः ।
ऊँ देवासुरवरप्रदाय नमः ।
ऊँ विश्वाय नमः ।
ऊँ देवासुरमहेश्वराय नमः ।
ऊँ सर्वदेवमयाय नमः ॥ ९५० ॥
ऊँ अचिंत्याय नमः ।
ऊँ देवात्मने नमः ।
ऊँ आत्मसंबवाय नमः ।
ऊँ उद्भिदे नमः ।
ऊँ त्रिविक्रमाय नमः ।
ऊँ वैद्याय नमः ।
ऊँ विरजाय नमः ।
ऊँ नीरजाय नमः ।
ऊँ अमराय नमः ।
ऊँ इड्याय नमः ।
ऊँ हस्तीश्वराय नमः ।
ऊँ व्याघ्राय नमः ।
ऊँ देवसिंहाय नमः ।
ऊँ नरर्षभाय नमः ।
ऊँ विभुदाय नमः ।
ऊँ अग्रवराय नमः ।
ऊँ सूक्ष्माय नमः ।
ऊँ सर्वदेवाय नमः ।
ऊँ तपोमयाय नमः ।
ऊँ सुयुक्ताय नमः ।
ऊँ शोभनाय नमः ।
ऊँ वज्रिणे नमः ।
ऊँ प्रासानाम्प्रभवाय नमः ।
ऊँ अव्ययाय नमः ।
ऊँ गुहाय नमः ।
ऊँ कान्ताय नमः ।
ऊँ निजसर्गाय नमः ।
ऊँ पवित्राय नमः ।
ऊँ सर्वपावनाय नमः ।
ऊँ श्रृंगिणे नमः ।
ऊँ श्रृंगप्रियाय नमः ।
ऊँ बभ्रवे नमः ।
ऊँ राजराजाय नमः ।
ऊँ निरामयाय नमः ।
ऊँ अभिरामाय नमः ।
ऊँ सुरगणाय नमः ।
ऊँ विरामाय नमः ।
ऊँ सर्वसाधनाय नमः ।
ऊँ ललाटाक्षाय नमः ।
ऊँ विश्वदेवाय नमः ।
ऊँ हरिणाय नमः ।
ऊँ ब्रह्मवर्चसे नमः ।
ऊँ स्थावरपतये नमः ।
ऊँ नियमेन्द्रियवर्धनाय नमः ।
ऊँ सिद्धार्थाय नमः ।
ऊँ सिद्धभूतार्थाय नमः ।
ऊँ अचिन्ताय नमः ।
ऊँ सत्यव्रताय नमः ।
ऊँ शुचये नमः ।
ऊँ व्रताधिपाय नमः ॥ १००० ॥
ऊँ पराय नमः ।
ऊँ ब्रह्मणे नमः ।
ऊँ भक्तानांपरमागतये नमः ।
ऊँ विमुक्ताय नमः ।
ऊँ मुक्ततेजसे नमः ।
ऊँ श्रीमते नमः ।
ऊँ श्रीवर्धनाय नमः ।
ऊँ श्री जगते नमः ॥ १००८ ॥
बीस साल बाद बन रहा सोमवती अमावस्या का ऎसा संयोग
आज है सोमवती अमावस्या ऐसे करें शिव गौरा की पूजा
सावन के तीसरे सोमवार को ही क्यों मनाते हैं? जानिए पूजा विधि और शुभ मुहूर्त इस बार हरिद्वार का गंगा तट रहेगा सूना
भगवान शिव को समर्पित सावन मास का हर सोमवार बहुत खास होता है, लेकिन इस बार सावन का तीसरा सोमवार ज्यादा फलदायी है, इस बार इसका महत्व और अधिक बढ़ गया है. क्योंकि 20 साल बाद सोमवती अमावस्या का संयोग बन रहा है. इसे हरियाली अमावस्या भी कहते हैं. इससे पहले 31 जुलाई 2000 में ऐसा संयोग बना था. इस अमावस्या पर शिवजी के साथ ही देवी पार्वती, गणेशजी, कार्तिकेय स्वामी और नंदी का विशेष पूजा की जाती है.
पूजा में ऊँ उमामहेश्वराय नम: मंत्र का जाप करें. माता को सुहाग का सामान चढ़ाएं. इसके बाद शिवलिंग पर पंचामृत अर्पित करें. फिर पंचामृत दूध, दही, घी, शहद और मिश्री मिलाकर बनाना चाहिए. सोमवार को चन्द्र, बुध, गुरु, शुक्र और शनि ग्रह भी अपनी राशि में रहेंगे. इस दिन भगवान शिव की पूजन फलदायी रहेगा. महिलाओं को तुलसी की 108 बार परिक्रमा करनी चाहिये.
सोमवती अमावस्या मुहूर्त
अमावस्या तिथि प्रारम्भ - 20 जुलाई की रात 12 बजकर 10 मिनट पर
अमावस्या तिथि समाप्त - 20 जुलाई की रात 11 बजकर 02 मिनट पर
हरियाली अमावस्या पर किसी मंदिर में लगाएं पौधा
सावन माह की ये तिथि प्रकृति को समर्पित है. इस दिन प्रकृति को हरा बनाए रखने के लिए पौधा लगाना चाहिए. किसी मंदिर में या किसी सार्वजनिक स्थान पर छायादार या फलदार पौधे लगाएं. साथ ही, इस पौधे का बड़े होने तक ध्यान रखने का संकल्प भी लें.
अमावस्या पर किया जाता है व्रत
जीवन साथी के सौभाग्य और अच्छे स्वास्थ्य के लिए महिलाएं व्रत करती हैं. हरियाली अमावस्या पर मां पार्वती की पूजा करने से कुंवारी कन्याओं को मनचाहा वर मिल सकता है. विवाहित महिलाएं भी इस तिथि पर व्रत करती हैं और देवी मां की पूजा करती है. ऐसा करने से वैवाहिक जीवन सुखी बना रहता है.
अमावस्या पर पितर देवताओं की करें पूजा
अमावस्या तिथि पर घर के तर्पण, श्राद्ध कर्म करने की परंपरा है. परिवार के मृत सदस्यों को ही पितर देवता कहा गया है. अमावस्या तिथि की दोपहर में पितरों के लिए धूप-ध्यान करना चाहिए. गाय के गोबर से बना कंडा जलाएं और उस पर पितरों का ध्यान करते हुए गुड़-घी अर्पित करें.
शनिवार, 18 जुलाई 2020
सावन शिवरात्रि का महत्व और शुभ मुहूर्त
सावन महीने में पड़ने वाली शिवरात्रि का खास महत्व होता है, जो 19 जुलाई को मनाई जाएगी. सावन की शिवरात्रि के साथ ही कई त्योहारों की शुरुआत हो जाती है. हम आपको बता रहे हैं शिवरात्रि की पूजा-विधि, सावन शिवरात्रि का महत्व और शुभ मुहूर्त के बारे में. यूं तो हर महीने की कृष्णपक्ष चतुर्दशी को मास शिवरात्रि होती है, लेकिन सावन और फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को पड़ने वाली शिवरात्रि खास होती है. फाल्गुन महीने में पड़ने वाली शिवरात्रि, महाशिवरात्रि के रूप में मनाई जाती है. कहा जाता है कि इस दिन शिव-पार्वती का विवाह हुआ था.
ऐसी मान्यता है कि शिवरात्रि के मौके पर पूजा-अर्चना करने से शिव काफी प्रसन्न होते हैं, साथ ही इस दिन जल चढ़ाने से वे भक्तों की मनोकामना पूरी करते हैं. इस बार सावन शिवरात्रि का शुभ मुहूर्त सुबह 9:10 बजे से लेकर दोपहर 2:00 बजे तक होगा. माना जाता है कि शिव की सच्चे मन से पूजा करना ही काफी होता है. सच्चे मन से आराधना करने से ही भोलेनाथ प्रसन्न हो जाते हैं.
सावन शिवरात्रि पर ऐसे करें अभिषेक
शिवरात्रि के दिन सुबह जल्दी उठकर सबसे पहले स्नान करना चाहिए. इसके बाद साफ कपड़े पहनकर मंदिर जाएं. मंदिर जाते समय जल, दूध, दही, शहद, घी, चीनी, इत्र, चंदन, केसर, भांग सभी को एक ही बर्तन में साथ ले जाएं और शिवलिंग का अभिषेक करें. शिव को गेहूं से बनी चीजें अर्पित करनी चाहिए. ऐसी मान्यता है कि ऐश्वर्य पाने के लिए शिव को मूंग का भोग लगाया जाना चाहिए. वहीं ये भी कहा जाता है कि मनचाहा जीवनसाथी पाने के लिए शिव को चने की दाल का भोग लगाया जाना चाहिए. शिव को तिल चढ़ाने की भी मान्यता है. कहा जाता है कि शिव को तिल चढ़ाने से पापों का नाश होता है.
शिव चौक पर सन्नाटे के बीच कई वर्षों बाद शहर में पहुंचे दंपत्ति ने किया भगवान आशुतोष का जलाभिषेक
टीआर ब्यूरो l
मुजफ्फरनगर l सावन में शिवरात्रि से 1 दिन पहले मुजफ्फरनगर की हृदय स्थली शिव चौक पर काफी अच्छी चहल पहल डाक कांवड़ियों का रेला होता था। कोरोना के चलते इस बार संपूर्ण कांवड़ यात्रा स्थगित कर दी गई। साथ ही दोनों प्रदेशों उत्तराखंड व उत्तर प्रदेश में शनिवार व रविवार को संपूर्ण लॉक डाउन लगा दिया गया l जिसके चलते कावड़ यात्रा पर जाने वाले शिव भक्तों को हरिद्वार में प्रवेश नहीं मिल रहा यदि कोई गंगा स्नान के लिए पहुंच जाता है l उसे वापस उसे गंतव्य की ओर भेजा जाता है वही मुजफ्फरनगर में लोक डाउन के चलते जिले की हृदय स्थली शिव चौक पर सन्नाटा पसरा रहा। लोग डॉन के चलते सभी शिव भक्तों अपने घरों में ही रहे इसी दौरान नई मंडी निवासी एक दंपत्ति शिव चौक पर भगवान आशुतोष का जलाभिषेक करने के लिए पहुंचा। जब उनसे वार्ता की गई तो उन्होंने बताया कि वह लोग बाहर रहते हैं लॉक डाउन के चलते मुजफ्फरनगर आए हुए थे। इसीलिए उन्होंने भगवान आशुतोष का कई सालों बाद आज जलाभिषेक किया l
बाबा अमरनाथ यात्रा प्राचीन एवं पौराणिक इतिहास
अमरनाथ गुफा के शिवलिंग को 'अमरेश्वर' कहते हैं। गुफा को सबसे पहले भृगु ऋषि ने खोजा था। तब से ही यह स्थान शिव आराधना और यात्रा का केंद्र है। इस गुफा में भगवान शंकर ने कई वर्षों तक तपस्या की थी और यहीं पर उन्होंने माता पार्वती को अमर कथा सुनाई थी, अर्थात अमर होने के प्रवचन दिए थे गुफा की परिधि लगभग 150 फुट है और इसमें ऊपर से सेंटर में बर्फ के पानी की बूंदें टपकती रहती हैं। टपकने वाली हिम बूंदों से लगभग दस फुट लंबा शिवलिंग बनता है। हालांकि बूंदें तो और भी गुफाओं में टपकती है लेकिन वहां यह चमत्कार नहीं होता। बर्फ की बूंदों से बनने वाला यह हिमलिंग चंद्र कलाओं के साथ थोड़ा-थोड़ा करके 15 दिन तक बढ़ता रहता है और चन्द्रमा के घटने के साथ ही घटना शुरू होकर अंत में लुप्त हो जाता है। अमरनाथ की यात्रा करने के प्रमाण महाभारत और बौद्ध काल में भी मिलते हैं। ईसा पूर्व लिखी गई कल्हण की 'राजतरंगिनी तरंग द्वितीय' में इसका उल्लेख मिलता है। अंग्रेज लेखक लारेंस अपनी पुस्तक 'वैली ऑफ कश्मीर' में लिखते हैं कि पहले मट्टन के कश्मीरी ब्राह्मण अमरनाथ के तीर्थयात्रियों की यात्रा करवाते थे। बाद में बटकुट में मलिकों ने यह जिम्मेदारी संभाल ली। विदेशी आक्रमण के कारण 14वीं शताब्दी के मध्य से लगभग 300 वर्ष की अवधि के लिए अमरनाथ यात्रा बाधित रही। कश्मीर के शासकों में से एक 'जैनुलबुद्दीन' (1420-70 ईस्वी) ने अमरनाथ गुफा की यात्रा की थी।
हिन्दुओं के सबसे बड़े तीर्थ स्थल अमरनाथ के बारे में बहुत कम ही लोग कुछ खास बातें जानते होंगे। अमरनाथ की गुफा कश्मीर के श्रीनगर से करीब 145 किलोमीटर की दूरी पर हिमालय पर्वत श्रेणियों में स्थित है। यात्रा पर जाने के लिए 2 रास्ते हैं- एक पहलगाम होकर जाता है और दूसरा सोनमर्ग बालटाल से जाता है। यहां की यात्रा हिन्दू माह अनुसार आषाढ़ पूर्णिमा से प्रारंभ होती है और श्रावण पूर्णिमा तक चलती है। यात्रा के अंतिम दिन छड़ी मुबारक रस्म होती है।
मान्यता अनुसार भगवान शिव ने माता पार्वती को जब अमरत्व का रहस्य सुना रहे थे तब इस रहस्य को शुक (तोता) और दो कबूतरों ने भी सुन लिया था। यह तीनों ही अमर हो गए। कुछ लोग आज भी इन दोनों कबूतरों को देखे जाने का दावा करते हैं। शिव जब पार्वती को अमरकथा सुनाने ले जा रहे थे, तो उन्होंने अनंत नागों को अनंतनाग में छोड़ा, माथे के चंदन को चंदनवाड़ी में उतारा, अन्य पिस्सुओं को पिस्सू टॉप पर और गले के शेषनाग को शेषनाग नामक स्थल पर छोड़ा। पुराण के अनुसार काशी में दर्शन से दस गुना, प्रयाग से सौ गुना और नैमिषारण्य से हजार गुना पुण्य देने वाले श्री बाबा अमरनाथ के दर्शन हैं। जय अमरनाथ।
यह भी जनश्रुति है कि मुगल काल में जब कश्मीरी पंडितों का कत्लेआम किया जा रहा था तो पंडितों ने अमनाथ के यहां प्रार्थना की थी। उस दौरान वहां से आकाशवाणी हुई थी कि आप सभी लोग सिख गुरु से मदद मांगने के लिए जाएं। संभवत: वे हरगोविंद सिंहजी महाराज थे। उनसे पहले अर्जुन देवजी थे।
दो शनि प्रदोष व्रत का अनूठा संयोग देगा कालसर्प योग से मुक्ति
मुजफ्फरनगर । इस बार सावन में दो शनि प्रदोष का अनूठा संयोग आया है। प्रदोष भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए सबसे खास संयोग होता है। इस बार सावन में आने वाले दोनों प्रदोष शनिवार को पड़ रहे हैं। ऐसे में प्रदोष स्नान और व्रत शिव के साथ ही शनि को भी रिझाएगा। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार प्रदोष काल द्वादशी और त्रयोदशी के मध्य सूर्योदय से 24 मिनट पहले और 24 मिनट बाद तक की अवधि में होता है।
ज्योतिषाचार्य पं अतुलेश मिश्रा के अनुसार इस बार सावन में दो शनि प्रदोष होने से इसका महत्व और बढ़ गया है। इसलिए कि भगवान शिव को सावन अति प्रिय है। शनिवार को प्रदोष व्रत रखकर संगम स्नान और भगवान शिव की पूजा करने से शनि की महादशा, अंतरदशा, ढैया या साढ़े साती से मुक्ति मिल सकती है।
शनि प्रदोष के दिन महादेव का व्रत, पूजन करने से भक्तों पर भगवान शिव की कृपा तो बरसती ही है, शनि प्रकोप का नकारात्मक प्रभाव कम होता है। ब्रह्म पुराण, स्कंद पुराण में प्रदोष व्रत के महत्व और उसके लाभ के बारे में उल्लेख किया गया है। ब्रह्मवैवर्त्य पुराण के अनुसार प्रदोषकाल में भगवान शिव प्रसन्न होकर नृत्य करते हैं। यही वजह है कि प्रदोष में शिव की उपासना, आराधना का तुरंत फल प्राप्त होता है।
ऐसे करें शनि प्रदोष व्रत
प्रदोष काल में कुशा के आसन पर बैठ कर भगवान शिव के साथ पार्वती और गणेश, कार्तिकेय की प्रतिमाओं का षोडशोपचार विधि से पूजन करना चाहिए। गन्ने के रस या दुग्ध से रुद्राभिषेक विशे फलदायी होता है। प्रदोष में भगवान शिव की सपरिवार स्तुति करने से शनि की दशा के साथ ही काल सर्प योग की भी स्वत: शांति हो जाती है।
सोमवार, 13 जुलाई 2020
अपनी राशि अनुसार सावन में ऐसे मनाए भोले को, होगा कल्याण
भगवान आषुतोष के लिए श्रावण मास सबसे प्रिय है। ऐसे में पूरे सावन भर भोलेनाथ की कृपा बरसती है। इस बार कांवड यात्रा तो नहीं हो रही है, लेकिन भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए घर पर ही पूजा पाठ करके तमाम परेशानियों से छुटकारा पाया जा सकता है। शनि कि साढ़ेसाती से लेकर तमाम समस्याओं को लेकर भगवान शिव की अर्चना लाभकारी हो सकती है। पंडित आशुतोष मिश्र बताते हैं कि सावन के हर सोमवार को शिवलिंग का रुद्राभिषेक करना चाहिए और उसके पास ही बैठकर शनि के बीज मंत्र का जप करें। सुंदरकांड का पाठ करने से भी लाभ मिलता है। जानते हैं साल 2020 के सावन माह में भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए आपको राशि अनुसार कौन से उपाय करने चाहिए।
मेष- राशि के जातकों को लोटे के जल में थोड़ा गुड़ मिलाकर भोलेबाबा का अभिषेक करना चाहिए। मासिक शिवरात्रि पर शिवजी की विशेष पूजा करनी चाहिए। आप शिवजी पर लाल फूल चढ़ाएं।
वृषभ- शिवलिंग का अभिषेक करने के लिए चांदी या स्टील के लोटे का ही इस्तेमाल करें। वृषभ राशि के जातकों को शिवलिंग पर सफेद चंदन, दही, सफेद फूल और चावल चढ़ाना चाहिए, लाभ मिलेगा।
मिथुन- मिथुन राशि के जातकों को भगवान शिव की पूजा तीन बेल के पत्तों से करनी चाहिए। आप शिवलिंग का अभिषेक करने के लिए गन्ने के रस का इस्तेमाल कर सकते हैं।
कर्क- इस राशि के जातकों को घी से भगवान शिव का अभिषेक करने से विशेष लाभ मिलेगा। शिवजी को कच्चा दूध चढ़ाएं और सफेद चंदन का तिलक लगाएं।
सिंह- सिंह राशि के जातकों को पानी में गुड़ मिलाकर शिव जी का अभिषेक करना चाहिए। भोलेनाथ को गेहूं चढ़ाने से भी आपको शुभ फल की प्राप्ति होगी।
कन्या- कन्या राशि के जातकों को भगवान शिव का विशेष आशीर्वाद पाने के लिए गन्ने के रस से उनका अभिषेक करना चाहिए। आप उन्हें बेल के पत्ते और भांग के पत्ते भी चढ़ा सकते हैं।
तुला- इस राशि के जातकों को भोलेनाथ की असीम कृकृपा पाने के लिए सावन माह में आने वाली मासिक शिवरात्रि पर शिवजी की विशेष पूजा करनी चाहिए। शहद, इत्र, फूलों से सुंगंधित किया हुआ जल या फिर तेल से उनका अभिषेक करें।
वृश्चिक- इस राशि के जातक भोलेनाथ को प्रसन्न करना चाहते हैं तो उन्हें पंचामृत से शिवजी का अभिषेक करना चाहिए।
धनु- आप केसर या हल्दी मिले दूध से शंकर भगवान का अभिषेक करें। बेल के पत्ते और पीले फूल भी आप उन्हें चढ़ाएं।
मकर- मकर राशि के लोगों के लिए काले तिल से शिवजी का अभिषेक करना लाभकारी रहेगा।
कुंभ- कुंभ राशि के जातकों को काले तिल से भोलेनाथ का अभिषेक करना चाहिए। इसके साथ ही आपको अभिषेक के लिए गंगाजल का इस्तेमाल करना चाहिए।
मीन- इस राशि के लोगों को भगवान शिव की पूजा या शिवलिंग पर जल चढ़ाते समय पीले रंग के फूलों का इस्तेमाल करना चाहिए। शिवजी को पीली मिठाई का भोग लगाने से भी लाभ मिलेगा।
सावन का सोमवार कीजिए बाबा अमरनाथ यात्रा आरती के लाइव दर्शन
नई दिल्ली. सावन का पवित्र महीना शुरू हो चुका है. आज सावन का दूसरा सोमवार है. सावन के पावन महीने में भगवान शिव की आराधना का अत्यंत महत्व है. सावन के महीने में भगवान शिव के हर मंदिर और ज्योतिर्लिंग के दर्शन के लिए बड़ी संख्या में भक्त पहुंचते हैं. इस बार कोविड-19 महामारी ने इस पर रोक लगाई हुई है. ऐसे में आज हम आपको बाबा अमरनाथ के दर्शन और वहां की LIVE आरती के दर्शन कराते हैं. यहां देखिए लाइव आरती...
बता दें कि इस साल अमरनाथ यात्रा 21 जुलाई को शुरू हो सकती है. वार्षिक अमरनाथ यात्रा में इस बार कोरोना वायरस महामारी के कारण रोजाना 500 से अधिक तीर्थयात्रियों को पवित्र गुफा में दर्शन के लिए जाने की इजाजत नहीं दी जाएगी. अधिकारियों ने बुधवार को यह जानकारी दी.
शनिवार, 11 जुलाई 2020
स्वामी कल्याण देव की पुण्यतिथि पर कथा प्रारंभ
मोरना। कथा व्यास आशीष माधव शास्त्री ने कहा कि कर्म से अच्छे और हृदय से सच्चे बने। प्रभु की कृपा से एक दासी पुत्र भी देवर्षि नारद बन जाते है। प्रभु कृपा के पात्र अवश्य बनिये।
पौराणिक शुकतीर्थ में भागवत पीठ शुकदेव आश्रम स्थित समाधि मंदिर में वीतराग स्वामी कल्याणदेव महाराज की 16वीं पुण्यतिथि पर आयोजित कथा में भागवत प्रवक्ता आशीष माधव शास्त्री ने कहा कि भगवान की कृपा से जीवन वंदनीय बनता है। नारद, ध्रुव, प्रह्लाद और पांडवों पर प्रभु कृपा थी। जैसे धातु बर्तन को सही आकार देने के लिए अग्नि में कई बार तपाया जाता है, वैसे ही भक्तों को अनेक दुख तथा प्रतिकूलता का सामना करना पड़ता है। इन्हीं परिस्थितियों से गुजरने के बाद जीवन में निखार आता है, जीवन अनमोल बनता है। सतत प्रयास कीजिये ताकि जीवन को प्रभु कृपा मिले। सरलता, सहजता , निष्कपटता और कठिन संकट में प्रभु सुमिरन तथा ईश्वर पर विश्वास हमें भगवान का प्रिय बनाता है-जा पर कृपा राम की होई, ता पर कृपा करे सब कोई। जिसके ऊपर प्रभु कृपा हो जाती है, उस पर बाकी सब की कृपा भी हो जाती है। समस्त सृष्टि अनुकूल दिखती है। पीठाधीश्वर स्वामी ओमानंद महाराज के सानिध्य में कथा से पूर्व पूजन आचार्य गिरीश चंद उप्रेती ने कराया। यज्ञमान शैलेश चौरसिया, विजय शर्मा, राजू रहे।
---------------------------------
गुरुवार, 9 जुलाई 2020
रुद्राभिषेक का होता है अचूक लाभ
क्या है रुद्राभिषेक, जानिए रुद्राभिषेक के 18 आश्चर्यजनक लाभ
रुद्र अर्थात भूतभावन शिव का अभिषेक। शिव और रुद्र परस्पर एक-दूसरे के पर्यायवाची हैं। शिव को ही 'रुद्र' कहा जाता है, क्योंकि रुतम्-दु:खम्, द्रावयति-नाशयतीतिरुद्र: यानी भोले सभी दु:खों को नष्ट कर देते हैं।हमारे धर्मग्रंथों के अनुसार हमारे द्वारा किए गए पाप ही हमारे दु:खों के कारण हैं। रुद्रार्चन और रुद्राभिषेक से हमारी कुंडली से पातक कर्म एवं महापातक भी जलकर भस्म हो जाते हैं और साधक में शिवत्व का उदय होता है तथा भगवान शिव का शुभाशीर्वाद भक्त को प्राप्त होता है और उनके सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं। ऐसा कहा जाता है कि एकमात्र सदाशिव रुद्र के पूजन से सभी देवताओं की पूजा स्वत: हो जाती है।
रुद्रहृदयोपनिषद में शिव के बारे में कहा गया है कि सर्वदेवात्मको रुद्र: सर्वे देवा: शिवात्मका अर्थात सभी देवताओं की आत्मा में रुद्र उपस्थित हैं और सभी देवता रुद्र की आत्मा हैं। हमारे शास्त्रों में विविध कामनाओं की पूर्ति के लिए रुद्राभिषेक के पूजन के निमित्त अनेक द्रव्यों तथा पूजन सामग्री को बताया गया है। साधक रुद्राभिषेक पूजन विभिन्न विधि से तथा विविध मनोरथ को लेकर करते हैं। किसी खास मनोरथ की पूर्ति के लिए तदनुसार पूजन सामग्री तथा विधि से रुद्राभिषेक किया जाता है।
परंतु विशेष अवसर पर या सोमवार, प्रदोष और शिवरात्रि आदि पर्व के दिनों में मंत्र, गोदुग्ध या अन्य दूध मिलाकर अथवा केवल दूध से भी अभिषेक किया जाता है। विशेष पूजा में दूध, दही, घृत, शहद और चीनी से अलग-अलग अथवा सबको मिलाकर पंचामृत से भी अभिषेक किया जाता है। तंत्रों में रोग निवारण हेतु अन्य विभिन्न वस्तुओं से भी अभिषेक करने का विधान है। इस प्रकार विविध द्रव्यों से शिवलिंग का विधिवत अभिषेक करने पर अभीष्ट कामना की पूर्ति होती है।
इसमें कोई संदेह नहीं कि किसी भी पुराने नियमित रूप से पूजे जाने वाले शिवलिंग का अभिषेक बहुत ही उत्तम फल देता है किंतु यदि पारद के शिवलिंग का अभिषेक किया जाए तो बहुत ही शीघ्र चमत्कारिक शुभ परिणाम मिलता है। रुद्राभिषेक का फल बहुत ही शीघ्र प्राप्त होता है।
वेदों में विद्वानों ने इसकी भूरि-भूरि प्रशंसा की है। पुराणों में तो इससे संबंधित अनेक कथाओं का विवरण प्राप्त होता है। वेदों और पुराणों में रुद्राभिषेक के बारे में कहा गया है कि रावण ने अपने दसों सिरों को काटकर उसके रक्त से शिवलिंग का अभिषेक किया था तथा सिरों को हवन की अग्नि को अर्पित कर दिया था जिससे वो त्रिलोकजयी हो गया।
भस्मासुर ने शिवलिंग का अभिषेक अपनी आंखों के आंसुओं से किया तो वह भी भगवान के वरदान का पात्र बन गया। कालसर्प योग, गृहक्लेश, व्यापार में नुकसान, शिक्षा में रुकावट सभी कार्यों की बाधाओं को दूर करने के लिए रुद्राभिषेक आपके अभीष्ट सिद्धि के लिए फलदायक है।
ज्योतिर्लिंग क्षेत्र एवं तीर्थस्थान तथा शिवरात्रि प्रदोष, श्रावण के सोमवार आदि पर्वों में शिववास का विचार किए बिना भी रुद्राभिषेक किया जा सकता है। वस्तुत: शिवलिंग का अभिषेक आशुतोष शिव को शीघ्र प्रसन्न करके साधक को उनका कृपापात्र बना देता है और उनकी सारी समस्याएं स्वत: समाप्त हो जाती हैं। अत: हम यह कह सकते हैं कि रुद्राभिषेक से मनुष्य के सारे पाप-ताप धुल जाते हैं।
स्वयं सृष्टिकर्ता ब्रह्मा ने भी कहा है कि जब हम अभिषेक करते हैं तो स्वयं महादेव साक्षात उस अभिषेक को ग्रहण करते हैं। संसार में ऐसी कोई वस्तु, वैभव, सुख नहीं है, जो हमें रुद्राभिषेक करने या करवाने से प्राप्त नहीं हो सकता है।
शुक्रवार, 26 जून 2020
इस बार पांच मांह का होगा चातुर्मास
इस बार देवशयनी एकादशी 1 जुलाई को है और भगवान विष्णु इसी दिन निद्रा में लीन हो जाएंगे। देवशयनी एकादशी से चातुर्मास शुरू हो रहा है। इसके बाद चार महीनों में मांगलिक कार्यों पर विराम लग जाएगा, क्योंकि श्री हरि योगनिद्रा में लीन हो जाएंगें। देवशयनी एकादशी से देवप्रबोधिनी एकादशी के बीच के समय को ही चातुर्मास कहते हैं। इस बार अधिक मास के कारण चातुर्मास चार की बजाय पांच महीने का होगा। श्राद्ध पक्ष के बाद आने वाले सारे त्योहार लगभग 20 से 25 दिन देरी से आएंगे।
पंडित अतुलेश मिश्र के अनुसार इस बार आश्विन माह का अधिकमास है, मतलब दो आश्विन मास होंगे। इस महीने में श्राद्ध और नवरात्रि, दशहरा जैसे त्योहार होते हैं। आमतौर पर श्राद्ध खत्म होते ही अगले दिन से नवरात्रि आरंभ हो जाती है लेकिन इस बार ऐसा नहीं होगा। 17 सितंबर 2020 को श्राद्ध खत्म होंगे और अगले दिन से अधिकमास शुरू हो जाएगा, जो 16 अक्टूबर तक चलेगा। 17 अक्टूबर से नवरात्रि आरंभ होगी। इस तरह श्राद्ध और नवरात्रि के बीच इस साल एक महीने का समय रहेगा। दशहरा 26 अक्टूबर को और दीपावली 14 नवंबर को मनाई जाएगी। 25 नवंबर को देवउठनी एकादशी रहेगी और इस दिन चातुर्मास खत्म हो जाएंगे।
एक सूर्य वर्ष 365 दिन और करीब 6 घंटे का होता है, जबकि एक चंद्र वर्ष 354 दिनों का माना जाता है। दोनों वर्षों के बीच लगभग 11 दिनों का अंतर होता है। ये अंतर हर तीन वर्ष में लगभग एक माह के बराबर हो जाता है। इसी अंतर को दूर करने के लिए हर तीन साल में एक चंद्र मास अतिरिक्त आता है, जिसे अतिरिक्त होने की वजह से अधिकमास का नाम दिया गया है। अधिकमास के पीछे पूरा वैज्ञानिक दृष्टिकोण है। अगर अधिकमास नहीं होता तो हमारे त्योहारों की व्यवस्था बिगड़ जाती है। अधिकमास की वजह से ही सभी त्योहारों अपने सही समय पर मनाए जाते हैं।
चार्तुमास में साधु-संत एक ही स्थान पर रुककर तप और ध्यान करते हैं। चातुर्मास में यात्रा करने से बचते हैं क्योंकि ये वर्षा ऋतु का समय रहता है, इस दौरान नदी-नाले उफान पर होते है तथा कई छोटे-छोटे कीट उत्पन्न होते हैं। इस समय में विहार करने से इन छोटे-छोटे कीटों को नुकसान होने की संभावना रहती है। इसी वजह से जैन धर्म में चातुर्मास में संत एक जगह रुककर तप करते हैं। चातुर्मास में भगवान विष्णु विश्राम करते हैं और सृष्टि का संचालन भगवान शिव करते हैं। देवउठनी एकादशी के बाद विष्णुजी फिर से सृष्टि का भार संभाल लेते हैं।
अधिकमास में सभी पवित्र कर्म वर्जित माने गए हैं। इस पूरे माह में सूर्य संक्राति नहीं रहती है। इस वजह से ये माह मलिन हो जाता है। इसलिए इसे मलमास कहते हैं। मलमास में नामकरण, यज्ञोपवित, विवाह, गृहप्रवेश, नई बहुमूल्य वस्तुओं की खरीदी जैसे शुभ कर्म नहीं किए जाते हैं। कहते हैं कि मलिन मास होने की वजह से कोई भी देवता इस मास का स्वामी होना नहीं चाहता था, तब मलमास ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की। मलमास की प्रार्थना सुनकर विष्णुजी ने इसे अपना श्रेष्ठ नाम पुरषोत्तम प्रदान किया। श्रीहरि ने मलमास को वरदान दिया कि जो इस माह में भागवत कथा श्रवण, मनन, भगवान शिव का पूजन, धार्मिक अनुष्ठान, दान करेगा उसे अक्षय पुण्य प्राप्त होगा।
ज्योतिषियों के अनुसार देवशयनी एकादशी के बाद मांगलिक कार्य करना शुभ नहीं माना जाता है इसलिए इस दौरान लोग कोई भी विवाह कार्यक्रम नहीं करते हैं। कहा जाता है कि देवशयनी एकादशी से देवउठनी एकादशी तक की अवधि देवताओं के विश्राम की होती है। इस वजह से मांगलिक कार्यों में उनकी उपस्थिति नहीं मानी जाती है। उनकी उपस्थिति के बिना शादी जैसे शुभ कार्य संपन्न नहीं किए जा सकते हैं।
गुरुवार, 25 जून 2020
माँ कामाख्या मंदिर सिद्ध पीठ में होने वाला मेला कोरोंना के चलते स्थगित
मुजफ्फरनगर। कोरोना के चलते इस बार गुवाहाटी के मां
में होने वाले प्रसिद्ध अंबुवाची मेले के स्थगित होने से जिले में मां के भक्त भी निराश हैं।
मां कामख्या मंदिर पर लगने वाले इस मेले में देश-विदेश से करोड़ो भक्त हर साल गुवाहाटी आते हैं। मुजफ्फरनगर से भी हर वर्ष अनेक भक्त वहां जाते रहे हैं, लेकिन इस बार कोरोना के कारण यह आयोजन स्थगित होने से उन्हें निराशा हाथ लगी है। व्यापारी नेता व समाजसेवी राहुल गोयल ने बताया कि माता का मंदिर गुवाहाटी से 8 किलोमीटर ऊपर नीलांचल पर्वत स्थित है और चमत्कारी शक्तिपीठों में से एक है जिसमें मां का स्वरूप योनि मुद्रा में है जिन्हें दस विद्याओं की देवी भी माना जाता है। गुप्त नवरात्रों के दौरान मां कामाख्या के मासिक धर्म रजस्वला को अम्बुबाची के नाम से जाना जाता है। इस समय विशेष पूजा अर्चना का महत्व होता है। यह अत्यंत पवित्र समय माना गया है, इस 5 दिनों के महाआयोजन मे दूर दूर से आये श्रद्धालु अपने अपने तरीके से माता की आराधना करते हैं। यह आयोजन हर वर्ष जून माह में होता है, इस दौरान मंदिर को रजस्वला के कारण बंद कर दिया जाता है। माँ के अनुयागी मंदिर परागण व आसपास अपनी पूजा अर्चना करते है। सन 1565 में मंदिर का निर्माण राजा नारायण ने करवाया था तभी से मेले का आयोजन होता आ रहा है। अम्बुवाची में तंत्र-मन्त्र के लिए साधु संत, विद्वान, महापुरुष आदि सिद्धि प्राप्ति हेतु यज्ञ पूजा अर्चना अनुष्ठान करते हैं। यह पर्व बहुत उल्लास के साथ मनाया जाता है। इन दिनों को माँ का आगमन धरती पर भी माना जाता है। माँ कामाख्या के स्वरूप को महाविधिया का मूल कहा गया है, क्योंकि व समस्त देवियो में महाशक्ति का स्वरूप कामाख्या कामारूप बाल्यावस्था देवी माना गया है। जो सभी शक्तियों के साथ मंदिर के गभज़् गृह में विराजमान है इनके दर्शन मात्र से ही मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है। राहुल गोयल ने बताया की मंदिर के पुजारी द्वारा विधि विधान से पूजन कराया जाता है।
कामाख्यायात्रा दशज़्न में श्रवण गुप्ता, अमित बिंदल,ऋषिराज राही,विकास स्वरुप बबल,अभिनव गोयल मोंटू,रजत अरोरा, विजय वर्मा,राकेश गोयल(के.संस), नमन,पुरु,रमेश त्यागी, मनोज कुमार आदि माँ कामाख्या की सेवा और दर्शन के लिए साल में दो तीन बार जाते हैं। ऋषिराज रही ने बताया कि मां भगवती के दर्शन लाभ के लिए देश के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री व गवर्नर आदि के सहित हजारो की संख्या में, माँ के भगत रोज दर्शन प्राप्त करते है। अपनी मनोकामना के लिए मां के दरबार नीलांचल पवज़्त गुवाहाटी में जाते रहते हैं, इस वर्ष कोरोना महामारी की वजह से श्रद्धालुओं के लिए मंदिर के कपाट बिल्कुल बंद है, मंदिर प्रबंधक के द्वारा अम्बुबाची के सभी अनुष्ठान व नियम किये जाएंगे।
सोमवार, 22 जून 2020
गुप्त नवरात्रि, मां काली का पूजन, तंत्र साधना से जुड़े रहस्य
साल में चार नवरात्रि आते हैं. पहले दो यानी चैत्र और शारदीय नवरात्रि के बारे में हर कोई जानता है. सभी नवरात्रि ऋतु में बदलाव के वक्त मनाए जाते हैं. महाकाल संहिता और अन्य तमाम ग्रंथों ने इन नवरात्रों का महत्व बताया गया है. आज से शुरू हो रहे गुप्त नवरात्रि के बारे में कहा जाता है कि आप सच्चे मन से मां दुर्गा की आराधना करें तो निश्चित तौर आपको फल मिलेगा.
22 जून से गुप्त नवरात्रि शुरू हो गया है. चैत्र और शारदीय नवरात्रि के बारे में सब जानते हैं. इन दोनों नवरात्रि में मां दुर्गा की धूमधाम से पूजा की जाती है. इन दोनों नवरात्रि के अलावा भी दो अन्य नवरात्रि मनाया जाता है. लेकिन ये दोनों नवरात्रि अपेक्षाकृत कम लोकप्रिय हैं. इनमें से एक गुप्त नवरात्रि आज से शुरू हो रहा है. कहा जाता है कि इस नवरात्रि को लेकर कई तरह के रहस्य हैं, इसलिए इसे गुप्त नवरात्रि कहा जाता है.
ऐसे करें पूजा
शारदीय और चैत्र नवरात्रि की तरह ही गुप्त नवरात्रि में कलश की स्थापना की जा सकती है. अगर आपने कलश की स्थापना की है तो आपको सुबह और शाम यानी दोनों समय दुर्गा चालीसा या सप्तशती का पाठ और मंत्र का जाप करना होगा.
इसके अलावे आप दोनों समय मां दुर्गा की आरती करें. दोनों समय आप मां को भोग भी लगाएं. कहा जाता है कि गुप्त नवरात्रि में मां दुर्गा को भोग में लौंग और बताशा चढ़ाना चाहिए.
मां दुर्गा के लिए लाल फूल को सर्वोत्तम माना जाता है. लेकिन मां को आक, मदार, दूब और तुलसी बिलकुल न चढ़ाएं.
पूरे नौ दिनों तक खान पान और आहार सात्विक रखें. इससे आपका मन भी सात्विक रहेगा और आप मां दुर्गा की भक्ति में एकाग्र हो सकेंगे.
इसके अलावे अगर आप मां दुर्गा की साधना कर रहे हैं तो लकड़ी की एक लाल चौकी पर लाल कपड़ा बिछाएं. उसपर मां की मूर्ति या प्रतिकृति स्थापित करें. मां की मूर्ति के सामने एकमुखी दीपक जालाएं. शाम और सुबह में मां के विशेष मंत्र का 108 बार जाप करें. मां दुर्गा का मंत्र- ”ऊं ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडाय विच्चे” है.
गुप्त नवरात्रि क्या है
ऐसा कहा जाता है कि चैत्र और शारदीय नवरात्रि में सात्विक और तांत्रिक दोनों तरह की पूजा की जाती है, लेकिन गुप्त नवरात्रि में मां दुर्गा की पूजा भी गुप्त तरीके से की जाती है. यानी इस दौरान तांत्रिक पूजा पर ही जोर दिया जाता है. इसमें मां दुर्गा के भक्त खुलकर अपनी भावना का इजहार नहीं करते. वे आपने आसपास के लोगों को इसकी भनक नहीं लगने देते कि वे कोई साधना कर रहे हैं. ऐसी मान्यता है कि इस दौरान जितनी गोपनीयता बरती जाए उतनी ही अच्छी सफलता मिलेगी.
मां काली की पूजा
गुप्त नवरात्रि के दौरान मां काली की पूजा की जाती है. कहा गया है कि इस दौरान मां काली के पूजन से मनोकामनाएं पूर्ण होती है. हालांकि नौ दिनों तक चलने वाले इस पर्व में मां के विभिन्न स्वरूपों की पूजा की जाती है. इन स्वरूपों में माता काली, तारा देवी, त्रिपुर सुंदरी, भुवनेश्वरी, छिन्न मां, त्रिपुर भैरवी, धूमावति माता, बगलामुखी, मातंगी और कमला देवी की पूजा होती है.
कैसे करें मां दुर्गा की उपासना
गुप्त नवरात्रि में मां दुर्गा की उपासना के लिए आपको इन दिनों में मां का विशेष पूजन करना चाहिए. प्रतिदिन दुर्गा सप्तशती का पाठ करें. दुर्गा चालीसा, मां दुर्गा के मंत्रों का जप करें. देवी दुर्गा के मंत्र ऊं दुं दुर्गायै नम: मंत्र की नौ माला जपें.
रविवार, 21 जून 2020
विश्व योग दिवस पर देशभर में हुआ योग
टीआर ब्यूरो l
नई दिल्ली l कोविड-19 वैश्विक महामारी के मद्देनजर आज अंतरराष्ट्रीय योग दिवस बिना लोगों के बड़े जमावड़े के डिजिटल मीडिया मंचों पर मनाया जा रहा है. इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश को संबोधित किया. पीएम मोदी ने कहा कि कोरोना काल में आप सब आज योग और प्राणायाम जरूर करें, ये आपकी इम्यूनिटी को बढ़ाएगा. पीएम ने कहा कि इस बार का योग दिवस, भावनात्मक योग का भी दिन है.
योग दिवस की शुरुआत 21 जून 2015 को हुई थी. इस साल की योग दिवस की थीम ‘योगा एट होम, योगा बिथ फैमिली' रखी गई है. आयुष मंत्रालय ने लेह में बड़ा कार्यक्रम करने की योजना बनाई थी, लेकिन महामारी के कारण इसे रद्द कर दिया गया.
Featured Post
बीए की छात्रा से ट्यूबवेल पर गैंगरेप
मुजफ्फरनगर। तमंचे की नोक पर बीए की छात्रा से गैंगरेप के मामले में रिपोर्ट दर्ज की गई है। बुढ़ाना कोतवाली क्षेत्र के एक गांव में कॉफी पिलाने ...
-
*मुजफ्फरनगर वासी ध्यान दें* *ट्रैफिक एडवायजरी* अवगत कराना है कि कल दिनांक 11.08.2023 को समय 10.00 बजे से आयोजित होने वाली भारतीय किसान यूनि...
-
लखनऊ । कोर्ट परिसर में बुधवार दोपहर वकील के वेश में अज्ञात बदमाशों ने गैंगस्टर संजीव माहेश्वरी जीवा की गोली मारकर हत्या कर दी। फायरिंग के ...
-
*मुजफ्फरनगर विकास प्राधिकरण ने अवैध कॉलोनियों की सूची की जारी*