मुजफ्फरनगर । इस बार सावन में दो शनि प्रदोष का अनूठा संयोग आया है। प्रदोष भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए सबसे खास संयोग होता है। इस बार सावन में आने वाले दोनों प्रदोष शनिवार को पड़ रहे हैं। ऐसे में प्रदोष स्नान और व्रत शिव के साथ ही शनि को भी रिझाएगा। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार प्रदोष काल द्वादशी और त्रयोदशी के मध्य सूर्योदय से 24 मिनट पहले और 24 मिनट बाद तक की अवधि में होता है।
ज्योतिषाचार्य पं अतुलेश मिश्रा के अनुसार इस बार सावन में दो शनि प्रदोष होने से इसका महत्व और बढ़ गया है। इसलिए कि भगवान शिव को सावन अति प्रिय है। शनिवार को प्रदोष व्रत रखकर संगम स्नान और भगवान शिव की पूजा करने से शनि की महादशा, अंतरदशा, ढैया या साढ़े साती से मुक्ति मिल सकती है।
शनि प्रदोष के दिन महादेव का व्रत, पूजन करने से भक्तों पर भगवान शिव की कृपा तो बरसती ही है, शनि प्रकोप का नकारात्मक प्रभाव कम होता है। ब्रह्म पुराण, स्कंद पुराण में प्रदोष व्रत के महत्व और उसके लाभ के बारे में उल्लेख किया गया है। ब्रह्मवैवर्त्य पुराण के अनुसार प्रदोषकाल में भगवान शिव प्रसन्न होकर नृत्य करते हैं। यही वजह है कि प्रदोष में शिव की उपासना, आराधना का तुरंत फल प्राप्त होता है।
ऐसे करें शनि प्रदोष व्रत
प्रदोष काल में कुशा के आसन पर बैठ कर भगवान शिव के साथ पार्वती और गणेश, कार्तिकेय की प्रतिमाओं का षोडशोपचार विधि से पूजन करना चाहिए। गन्ने के रस या दुग्ध से रुद्राभिषेक विशे फलदायी होता है। प्रदोष में भगवान शिव की सपरिवार स्तुति करने से शनि की दशा के साथ ही काल सर्प योग की भी स्वत: शांति हो जाती है।
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