DHARM / ADHYATAM लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
DHARM / ADHYATAM लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

रविवार, 15 नवंबर 2020

भैया दूज राहु काल छोड़ किसी भी समय करें तिलक


 


भाई दूज (यम द्वितीया) विशेष


〰️〰️🌼〰️🌼〰️🌼〰️〰️


पौराणिक महत्व


〰️〰️〰️〰️〰️


शास्त्रों के अनुसार भाई को यम द्वितीया भी कहते हैं इस दिन बहनें भाई को तिलक लगाकर उन्हें लंबी उम्र का आशीष देती हैं और इस दिन मृत्यु के देवता यमराज का पूजन किया जाता है ब्रजमंडल में इस दिन बहनें यमुना नदी में खड़े होकर भाईयों को तिलक लगाती हैं। 


 


अपराह्न व्यापिनी कार्तिक शुक्ल द्वितीया को भाई दूज का पर्व मनाया जाता है। इस वर्ष यह पर्व 16 नवंबर सोमवार के दिन मनाया जाएगा।


 


भाई दूज को भ्रातृ द्वितीया भी कहते हैं। इस पर्व का प्रमुख लक्ष्य भाई तथा बहन के पावन संबंध व प्रेमभाव की स्थापना करना है। इस दिन बहनें बेरी पूजन भी करती हैं। इस दिन बहनें भाइयों के स्वस्थ तथा दीर्घायु होने की मंगल कामना करके तिलक लगाती हैं। इस दिन बहनें भाइयों को तेल मलकर गंगा यमुना में स्नान भी कराती हैं। यदि गंगा यमुना में नहीं नहाया जा सके तो भाई को बहन के घर नहाना चाहिए।


 


यदि बहन अपने हाथ से भाई को भोजन कराये तो भाई की उम्र बढ़ती है और जीवन के कष्ट दूर होते हैं। इस दिन बहनें अपने भाइयों को चावल खिलाएं। इस दिन बहन के घर भोजन करने का विशेष महत्व है। बहन चचेरी अथवा ममेरी कोई भी हो सकती है। यदि कोई बहन न हो तो गाय, नदी आदि स्त्रीत्व पदार्थ का ध्यान करके अथवा उसके समीप बैठ कर भोजन कर लेना भी शुभ माना जाता है।


 


इस पूजा में भाई की हथेली पर बहनें चावल का घोल भी लगाती हैं उसके ऊपर सिन्दूर लगाकर कद्दू के फूल, पान, सुपारी मुद्रा आदि हाथों पर रखकर धीरे धीरे पानी हाथों पर छोड़ते हुए निम्न मंत्र बोलती हैं।


 


 "गंगा पूजे यमुना को यमी पूजे यमराज को, सुभद्रा पूजा कृष्ण को, गंगा यमुना नीर बहे मेरे भाई की आयु बढ़े" 


 


इसी प्रकार इस मंत्र के साथ हथेली की पूजा की जाती है 


 


" सांप काटे, बाघ काटे, बिच्छू काटे जो काटे सो आज काटे" 


 


इस तरह के शब्द इसलिए कहे जाते हैं क्योंकि ऐसी मान्यता है कि आज के दिन अगर भयंकर पशु काट भी ले तो यमराज के दूत भाई के प्राण नहीं ले जाएंगे। कहीं कहीं इस दिन बहनें भाई के सिर पर तिलक लगाकर उनकी आरती उतारती हैं और फिर हथेली में कलावा बांधती हैं। भाई का मुंह मीठा करने के लिए उन्हें माखन मिस्री खिलाती हैं। संध्या के समय बहनें यमराज के नाम से चौमुख दीया जलाकर घर के बाहर रखती हैं। इस समय ऊपर आसमान में चील उड़ता दिखाई दे तो बहुत ही शुभ माना जाता है। इस सन्दर्भ में मान्यता यह है कि बहनें भाई की आयु के लिए जो दुआ मांग रही हैं उसे यमराज ने कुबूल कर लिया है या चील जाकर यमराज को बहनों का संदेश सुनाएगा।


 


भैया दूज की कथा 


〰️〰️〰️〰️〰️〰️


भगवान सूर्य नारायण की पत्नी का नाम छाया था। उनकी कोख से यमराज तथा यमुना का जन्म हुआ था। यमुना यमराज से बड़ा स्नेह करती थी। वह उससे बराबर निवेदन करती कि इष्ट मित्रों सहित उसके घर आकर भोजन करो। अपने कार्य में व्यस्त यमराज बात को टालता रहा। कार्तिक शुक्ला का दिन आया। यमुना ने उस दिन फिर यमराज को भोजन के लिए निमंत्रण देकर, उसे अपने घर आने के लिए वचनबद्ध कर लिया।


 


यमराज ने सोचा कि मैं तो प्राणों को हरने वाला हूं। मुझे कोई भी अपने घर नहीं बुलाना चाहता। बहन जिस सद्भावना से मुझे बुला रही है, उसका पालन करना मेरा धर्म है। बहन के घर आते समय यमराज ने नरक निवास करने वाले जीवों को मुक्त कर दिया। यमराज को अपने घर आया देखकर यमुना की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उसने स्नान कर पूजन करके व्यंजन परोसकर भोजन कराया। यमुना द्वारा किए गए आतिथ्य से यमराज ने प्रसन्न होकर बहन को वर मांगने का आदेश दिया।


यमुना ने कहा कि भद्र! आप प्रति वर्ष इसी दिन मेरे घर आया करो। मेरी तरह जो बहन इस दिन अपने भाई को आदर सत्कार करके टीका करे, उसे तुम्हारा भय न रहे। यमराज ने तथास्तु कहकर यमुना को अमूल्य वस्त्राभूषण देकर यमलोक की राह की। इसी दिन से पर्व की परम्परा बनी। ऐसी मान्यता है कि जो आतिथ्य स्वीकार करते हैं, उन्हें यम का भय नहीं रहता। इसीलिए भैयादूज को यमराज तथा यमुना का पूजन किया जाता है।


 


भाई दूज तिलक मुहूर्त


〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️


भाई दूज पर भाई को तिलक करने के लिये राहुकाल के समय को अशुभ माना जाता है।


 


16 नवम्बर सोमवार के दिन सर्वार्थसिद्धि योग प्रातः 6:41 बजे से अपराह्न 2:33 बजे तक एवं सिद्धि योग प्रातः 6:41 बजे से कुछ ही समय तक रहेगा। इस दिन शुक्र ग्रह का अपनी तुला राशि मे प्रवेश रात्रि में होगा। इस दिन वृश्चिक की संक्रांति भी प्रातः 6:51 बजे से लग रही है। इस दिन राहू-काल प्रातः 8:00 बजे से 9:25 बजे तक रहेगा। इस समय मे भाई-दूज नहीं मनाना चाहिये।


 


भाई-दूज तिलक मुहूर्त:


〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️


1. प्रातः काल अमृत के चौघड़िया में।


6:40 बजे से 8:00 बजे तक।


 


2.प्रातः काल शुभ के चौघड़िया में 9:20 बजे से 10:40 बजे तक।


 


3.अपराह्न काल चर-लाभ-अमृत के चौघड़िया मुहुर्त में 1:20 बजे से सांय काल 5:20 बजे तक,


गोवर्धन पूजा : जानिए शुभ पूजा मुहूर्त और कथा


 


दिवाली की पंच पर्व श्रंखला में धनतेरस, नरक चतुर्दशी, बड़ी दिवाली के बाद चौथा त्यौहार 'गोवर्धन पूजा' है। लोग इसे 'अन्नकूट' के नाम से भी जानते हैं, इस बार गोवर्धन पूजा आज है।


 


गोवर्धन पूजा 2020


गोवर्धन पूजा पर्व तिथि - रविवार, 15 नवंबर 2020


गोवर्धन पूजा सायं काल मुहूर्त - दोपहर बाद 15:17 बजे से सायं 17:24 बजे तक


प्रतिपदा तिथि प्रारंभ - 10:36 (15 नवंबर 2020) से


प्रतिपदा तिथि समाप्त - 07:05 बजे (16 नवंबर 2020) तक


पूजा विधि


 


इस पूजा को करने के लिए गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत मनाया जाता है, फिर भगवान श्रीकृष्ण और गोवर्धन पर्वत को 'अन्नकूट' का भोग लगाते हैं, इस दिन गाय-बैल को स्नान कराकर उन्हें रंग लगाया जाता है और उनके गले में नई रस्सी डाली जाती है। गाय-बैलों को गुड़ और चावल मिलाकर खिलाया जाता है और उनकी आरती उतारी जाती है।


 


गोवर्धन पूजा की कथा


 


देवराज इंद्र को अभिमान हो गया था, इंद्र का घमंड तोड़ने के लिए लिए भगवान श्री कृष्ण एक लीला रची। प्रभु की इस लीला में यूं हुआ कि एक दिन उन्होंने देखा के सभी बृजवासी उत्तम पकवान बना रहे हैं और किसी पूजा की तैयारी में जुटे। श्री कृष्ण ने मां यशोदा से प्रश्न किया " मईया ये आप लोग किनकी पूजा की तैयारी कर रहे हैं" कृष्ण की बातें सुनकर मैया बोली लल्ला हम देवराज इंद्र की पूजा के लिए 'अन्नकूट' की तैयारी कर रहे हैं। लीलाधारी की लीला और माया से सभी ने इन्द्र के बदले गोवर्धन पर्वत की पूजा की। देवराज इंद्र ने इसे अपना अपमान समझा और मूसलाधार वर्षा शुरू कर दी। प्रलय के समान वर्षा देखकर सभी बृजवासी भगवान कृष्ण को कोसने लगे कि, सब इनका कहा मानने से हुआ है। तब मुरलीधर ने अपनी कनिष्ठा उंगली पर पूरा 'गोवर्धन पर्वत' उठा लिया और सभी बृजवासियों को उसमें अपने गाय और बछडे़ समेत शरण लेने के लिए बुलाया।


 


इंद्र को इस बात पर और गुस्सा आ गया


 


इंद्र को इस बात पर और गुस्सा आ गया और उन्होंने वर्षा और तेज हो गयी। इंद्र का मान मर्दन के लिए तब कान्हा जी ने सुदर्शन चक्र से कहा कि आप पर्वत के ऊपर रहकर वर्षा की गति को नियत्रित करें और शेषनाग से कहा आप मेड़ बनाकर पानी को पर्वत की ओर आने से रोकें। इंद्र लगातार सात दिन तक मूसलाधार वर्षा करते रहे तब उन्हे एहसास हुआ कि उनका मुकाबला करने वाला कोई आम मनुष्य नहीं हो सकता अत: वे ब्रह्मा जी के पास पहुंचे और सब वृतान्त कह सुनाया। तब ब्रह्मा जी ने बताया कि वो विष्णु के अवतार हैं, यह सुनकर इन्द्र अत्यंत लज्जित हुए औरकृष्ण से कहा कि प्रभु मैं आपको पहचान न सका इसलिए अहंकारवश भूल कर बैठा, मुझे क्षमा कीजिए। लेकिव इस पौराणिक घटना के बाद से ही 'गोवर्धन पूजा' की जाने लगी।


शनिवार, 14 नवंबर 2020

दिवाली पूजन करने के साथ ये जरूर करें, हो जाएगा चमत्कार


दिवाली के दिन विधि-विधान से लक्ष्मी पूजन किया जाता है। मान्यता है कि दीपावली के लिए लक्ष्मी पूजन से घर में धन और धान्य की कमी नहीं आती है। इस दिन लोग मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए कई तरह के उपाय भी करते हैं। कहा जाता है इनमें से एक या ज्यादा उपाय करने से दरिद्रता दूर होती है और घर मां लक्ष्मी का आगमन होता है। अगर आपके घर में भी धन नहीं टिकता है तो आप भी जान लीजिए दिवाली की रात किए जाने वाले उपाय


 


1. अगर तमाम कोशिशों के बावजूद भी नौकरी नहीं मिल रही है तो दिवाली की शाम लक्ष्मी पूजन के बाद या उसी समय थोड़ी चने की दाल लक्ष्मी जी पर छिड़कने के बाद इसे जम करके पीपल के पेड़ पर अर्पित करें। कहते हैं कि ऐसा करने से नौकरी की संभावना बढ़ जाती है।


2. दिवाली की रात पांच सुपारी (साबुत), काली हल्दी, पांच कौड़ी गंगाजल से धोकर लाल कपड़े में बांधकर लक्ष्मी पूजन के समय चांदी की कटोरी या थाली में रखकर पूजा करें। दिवाली के दूसरे दिन इसे धन रखने वाली जगह पर रखें। मान्यता है कि ऐसा करने से मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं।


 


3. कहते हैं कि दीपावली पर लक्ष्मी पूजन के बाद घर के सभी कमरों में शंख और घंटी बजाना चाहिए। मान्यता है कि ऐसा करने से धन-धान्य में बरकत होती है।


4. कहते हैं कि मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए दिवाली पूजन के समय लक्ष्मी जी को कमल गट्टे की माला पहनानी चाहिए।


 


5. दिवाली की शाम घर के आसपास किसी पीपल के पेड़ के नीचे तेल का दीपक जलाना चाहिए। ध्यान रहे कि दीपक जलाकर चुपचाप घर लौट आएं, मुड़कर न देखें।


6. धन लाभ के लिए दीवाली की रात सोने से पहले चौराहे पर तेल का दीपक जलाना चाहिए। ध्यान रखें पीछे पलटकर न देखें।


 


7. धन-सपंदा में वृद्धि के लिए दिवाली की रात तिजोरी में लाल कपड़ा बिछाना चाहिए। अब इस पर महालक्ष्मी का ऐसा फोटो रखना चाहिए, जिसमें लक्ष्मी बैठी हुईं दिखाई दे रही हैं।


8अगर आपकी क‍िस्‍मत साथ न दे रही हो तो द‍िवाली के द‍िन लक्ष्मीजी को चने की कच्ची दाल चढ़ाकर बाद में पीपल वृक्ष में चढ़ा दें। मान्‍यता है ऐसा करने से भाग्‍य चमक उठता है। इसके अलावा दीपावली के दिन किसी भी मंदिर में झाड़ू का दान करें। यदि आपके घर के आसपास कहीं महालक्ष्मी का मंदिर हो तो वहां गुलाब की सुगंध वाली अगरबत्ती का दान करें। द‍िवाली के द‍िन क‍िसी भी युवा सुहागन स्त्री को घर पर भोजन-मिष्ठान्न करवाकर लाल वस्त्रादि भेंट करें। इससे देवी लक्ष्‍मी अत्‍यंत प्रसन्‍न होती हैं और जातक पर उनकी कृपा बनी रहती है।


9द‍िवाली के द‍िन शिव मंदिर में जाएं वहां जाकर शिवलिंग पर चावल चढ़ाएं। ध्यान रखें कि चावल टूटे नहीं होने चाहिए। इसके अलावा दीपावली पर महालक्ष्मी के पूजन में पीली कौड़ियां भी रखें। कौड़ियां पूजन में रखने से महालक्ष्मी बहुत ही जल्द प्रसन्न होती हैं। आपकी धन संबंधी सभी समस्याएं जल्द ही खत्म हो जाएंगी।


10 द‍िवाली के द‍िन लक्ष्मी पूजन के बाद सभी कमरों में शंख और घंटी जरूर बजाएं। इसके अलावा दीपावली पर दीपक में लौंग डालकर जलाएं। इसके बाद उसी दीपक से हनुमानजी की आरती करें। फिर किसी हनुमान मंदिर में जाकर उस दीपक को रख आएं। मान्‍यता है क‍ि ऐसा करने जातक और उसके पर‍िवारीजनों पर आने वाले कष्‍ट टल जाते हैं। सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।


मां लक्ष्मी के हैं आठ रूप


*माँ लक्ष्मी के 8 रूप माने जाते है* या यह कहे की आठ प्रकार की लक्ष्मी होती है | हर रूप विभिन्न कामनाओ को पूर्ण करने वाला है | दिपावली और हर शुक्रवार को माँ लक्ष्मी के इन सभी रूपों की वंदना करने से असीम सम्पदा और धन की प्राप्ति होती है |



*१) आदि लक्ष्मी या महालक्ष्मी*


माँ लक्ष्मी का सबसे पहला अवतार जो ऋषि भृगु की बेटी के रूप में है।


*२) धन लक्ष्मी*


धन और वैभव से परिपूर्ण करने वाली लक्ष्मी का एक रूप | भगवान विष्णु भी एक बारे देवता कुबेर से धन उधार लिया जो समय पर वो चूका नहीं सके , तब धन लक्ष्मी ने ही विष्णु जी को कर्ज मुक्त करवाया था |


*३) धन्य लक्ष्मी*


धन्य का मतलब है अनाज : मतलब वह अनाज की दात्री है।


*४) गज लक्ष्मी*


उन्हें गज लक्ष्मी भी कहा जाता है, पशु धन की देवी जैसे पशु और हाथियों, वह राजसी की शक्ति देती है ,यह कहा जाता है गज - लक्ष्मी माँ ने भगवान इंद्र को सागर की गहराई से अपने खोए धन को हासिल करने में मदद की थी । देवी लक्ष्मी का यह रूप प्रदान करने के लिए है और धन और समृद्धि की रक्षा करने के लिए है।


*५) सनातना लक्ष्मी*


सनातना लक्ष्मी का यह रूप बच्चो और अपने भक्तो को लम्बी उम्र देने के लिए है। वह संतानों की देवी है। देवी लक्ष्मी को इस रूप में दो घड़े , एक तलवार , और एक ढाल पकड़े , छह हथियारबंद के रूप में दर्शाया गया है ; अन्य दो हाथ अभय मुद्रा में लगे हुए है एक बहुत ज़रूरी बात उनके गोद में एक बच्चा है।


*६) वीरा लक्ष्मी*


जीवन में कठिनाइयों पर काबू पाने के लिए, लड़ाई में वीरता पाने ले लिए शक्ति प्रदान करती है।


*७) विजया लक्ष्मी या जाया लक्ष्मी*


विजया का मतलब है जीत। विजय लक्ष्मी जीत का प्रतीक है और उन्हें जाया लक्ष्मी भी कहा जाता है। वह एक लाल साड़ी पहने एक कमल पर बैठे, आठ हथियार पकडे हुए रूप में दिखाई गयी है ।


*८) विद्या लक्ष्मी*


विद्या का मतलब शिक्षा के साथ साथ ज्ञान भी है ,माँ यह रूप हमें ज्ञान , कला , और विज्ञानं की शिक्षा प्रदान करती है जैंसा माँ सरस्वती देती है। विद्या लक्ष्मी को कमल पे बैठे हुए देखा गया है , उनके चार हाथ है , उन्हें सफेद साडी में और दोनों हाथो में कमल पकड़े हुए देखा गया है , और दूसरे दो हाथ अभया और वरदा मुद्रा में हैं ।🌺🌺


शुक्रवार, 13 नवंबर 2020

दिवाली पर ये उपाय करेंगे मालामाल, करेंगे हर समस्या का हल

 


दीपावली का दिन पूजा अर्चना के साथ अपनी इच्छाओं को पूरा करने की प्रार्थना का भी दिन है। इस दिन कुछ ऎसे उपाय हैं जिनका प्रयोग कर अपनी इच्छाओं की पूर्ति कर सकते हैं।



व्यापार में मिलेगी तरक्की


आपके कार्यालय में या व्यापार में किसी कारण से तरक्की नहीं हो रही है या साथ वालों के कारण आपका प्रमोशन नहीं हो पा रहा है तो दीपावली की रात कच्चा सूत लेकर उसे शुद्ध केसर से रंग लें। इसके बाद भाई दूज पर मां लक्ष्मी का स्मरण करते हुए इस सूत को अपने व्यापारिक स्थल में बांध दें। नौकरीपेशा लोग इसे अपनी टेबल, अलमारी या कम्प्यूटर में बांध दें। ऐसा करने से आपका भाग्य चमक उठेगा।



दिवाली के पांच दिनों में श्रीयंत्र खरीदने और उसकी पूजा से अचूक धन-संपत्ति प्राप्त होती है। सही और प्रमाणित तथा विशेष ज्योतिषियों की ओर से अभिमंत्रित गोल्डन प्लेटेड श्रीयंत्र खरीदने के लिए यहां क्लिक करें और सालभर पाएं अभूतपूर्व लाभ।


 


सरसों के तेल से दरिद्रता भागेगी दूर


वैसे तो अन्य दिनों में घर के पूजा स्थल पर सरसों के तेल का दीया नहीं जलाना चाहिए, लेकिन दीपावली की रात सरसों के तेल का दीपक अवश्य जलाएं। सरसों के तेल से दरिद्रता भागती है तथा भूत-प्रेत आदि बाधाएं शांत होती हैं।


 


खुद के घर के लिए


अपना घर हो, यह इच्छा किसकी नहीं होती, लेकिन सभी लोगों की यह इच्छा पूरी नहीं हो पाती। ऐसे में यदि आपका खुद का घर खरीदने का सपना पूरा नहीं हो रहा है तो दीपावली के दिन आप कुछ टोटके आजमा सकते हैं। इसके लिए किसी भूखे को भोजन कराने के साथ ही थोड़ा सा गुड़ खरीद कर गाय को खिलाएं। इसके बाद प्रत्येक शुक्रवार किसी भूखे व्यक्ति को भोजन साथ ही रविवार को गाय को गुड़ खिलाएं। ऐसा करने से एक ही वर्ष में ही आपके अपने मकान का सपना पूरा होने के रास्ते खुलने लगेंगे।  


 


दिवाली के पांच दिनों में श्रीयंत्र खरीदने और उसकी पूजा से अचूक धन-संपत्ति प्राप्त होती। सही और प्रमाणित तथा विशेष ज्योतिषियों की ओर से अभिमंत्रित गोल्डन प्लेटेड श्रीयंत्र खरीदने के लिए यहां क्लिक करें और सालभर पाएं अभूतपूर्व लाभ।


लक्ष्मी का हो जायेगा वास


दीपावली की रात मां लक्ष्मी की पूजा करने के बाद 11 से एक बजे के बीच मां लक्ष्मी के महामंत्र “ह्रीं क्लीं महालक्ष्म्यै नम:” का जाप कमलगट्टे या स्फटिक की माला से करने से घर में लक्ष्मी का स्थाई वास हो जाएगा। 


 


इच्छापूर्ति के लिए


दीपावली के दिन में पांच पीपल के पत्तों को तोड़कर घर ले आएं और रात में महालक्ष्मी का पूजन करने के बाद उन पत्तों पर पनीर या दूध से बना कोई भी मिष्ठान रख कर उसे पीपल पेड़ को अर्पित कर दें। इस दौरान आप अपनी इच्छा भी कहें, आपका कार्य जल्द पूरा होगा।


 


भूखे को कराएं भोजन


दीपावली के दिन अपने पूर्वजों को याद करते हुए दिन में उनका तर्पण कर किसी भूखे गरीब व्यक्ति को भोजन कराने से सभी अटके कार्य उसी दिन से पूरे होने शुरू हो जाते हैं।


 


आर्थिक समृद्धि के लिए


दीपावली के दिन महलक्ष्मी की पूजा के वक्त इत्र और केसर अर्पित करें। इसके बाद अगले दिन से प्रतिदिन उसी केसर का तिलक लगाकर तथा कपड़ों पर इत्र का प्रयोग कर घर से निकलें। 


 


गृहक्लेश शांति के लिए


यदि आपके घर में बहुत ज्यादा क्लेश रहता हो तो दीपावली के दिन मां लक्ष्मी के पूजन के बाद 2 गोमती चक्र लेकर एक डिब्बी में सिंदूर बिछा कर उस पर रखने के बाद डिब्बी को बंद कर उसे घर के किसी एकांत स्थान पर रख दें, जहां किसी की नजर न पड़े। यह कार्य बिना किसी को बताएं करें। इससे घर में शांति आएगी और गृहक्लेश खत्म हो जायेगा। 


 


व्यापार में बढ़ोतरी


दीपावली की रात शुद्ध केसर मिला मीठा दही खाकर घर से निकलने के बाद दुकान या प्रतिष्ठान में मां लक्ष्मी का पूजन करने से व्यापार में बरकत होती हैं।


मां लक्ष्मी की बरसेगी कृपा, बस छोटा सा करना है काम

 


महा लक्ष्मी का आशीर्वाद कौन नहीं चाहता। दिवाली के दिन कुछ उपाय करने से ना सिर्फ आपके घर में मां लक्ष्मी की कृपा बनी रहेंगी बल्कि आपके धन में लगातार वृद्धि होती रहेगी।



पहला टोटका-


हर बार की तरह धन की देवी माँ लक्ष्मी का दीपावली पर पूजन करने के बाद भी अगर वे प्रसन्न नहीं हो रही हैं तो आप यह उपाय करना बिल्कुल न भूलें। इस दीपावली के दिन आप एक नई झाडू खरीदे। इस नई झाडू की पूजा कर आप पूरे घर की सफाई नई झाडू से करें। जिसके बाद झाडू को छुपाकर रख दें। साथ ही दीपावली के दिन होने वाली लक्ष्मी पूजन में एक या फिर दो हल्दी की गांठ रखें। लक्ष्मी पूजन होने के बाद इन हल्दी की गांठ को घर में वहां रखें जहां पर आप अपने रूपये-पैसे रखते हो। ऐसा करने से धन में बरकत बढ़ने लगेगी। 



दूसरा टोटका-


इस दीपावली पर भी आप अपने घर में कुल देवता और धन की देवी मां लक्ष्मी की पूजा कुलरीत के अनुसार करें। इसी के साथ आप एक उपाय यह करें कि दीपावली के दिन होने वाली लक्ष्मी पूजन में पीली कौड़िया रखें। पीली कौड़ियों को रखने से धन की देवी मां लक्ष्मी बहुत ही जल्द प्रसन्न होती है। इस उपाय से आपकी सारी धन संबंधी परेशानियां हमेशा के लिए खत्म हो जाएगी एवं अटका हुआ धन आना प्रारंभ हो जाएगा। 


 


तीसरा टोटका-


दीपावली दीपक का पर्व है। दीपक की रौशनी हमें अंधेरों में शास्वत प्रकाश प्रदान करती है। इसलिए इस दीपावली आप घर तेल के दीपक जलाएं। इनमें से एक दीपक जलाकर उसमें लौंग डालकर रामभक्त श्री हनुमानजी की आरती करें। घर के अलावा आप किसी भी हनुमान मंदिर जाकर दीपावली के दिन यह जरूर करें। जिससे धन की देवी लक्ष्मी के साथ ही आपके व्यवसाय में महाबली हनुमानजी के आशीर्वाद से बल मिलेगा। 


 


चौथा टोटका-


भारत में दीपावली का त्यौहार बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। इस दीपावली आप विधि पूर्वक धन की देवी मां लक्ष्मी की पूजा करें। लक्ष्मी पूजन के बाद घर के सभी कमरों में शंख और घंटी बजाए। जिससे घर की सभी नकारात्मक ऊर्जा के साथ दरिद्रता बाहर चली जाएगी और मां लक्ष्मी का आगमन आपके घर में होता रहेगा। जिससे आपके धन में वृद्धि होगी।


ऐसे करेंगे पूजन तो प्रसन्न होंगी मां लक्ष्मी

 


मां लक्ष्मी के साथ-साथ दिवाली में में श्री यंत्र की पूजा का विशेष महत्व है। इस दीपावली में गुरु धनु राशि में रहेगा। यही कारण है कि श्री यंत्र की पूजा कच्चे दूध से करने से सभी राशि के जातकों को लाभ होगा। इधर, शनि अपनी मकर राशि में विराजमान होगी। साथ ही साथ इस दिन अमावस्या का भी योग बन रहा है। ऐसे में इस दौरान भी तंत्र-यंत्र की पूजा करनी चाहिए। दिवाली पर महालक्ष्मी पूजन का विधिवत पूजन करने से इच्छित परिणाम मिलेंगे। लक्ष्मी पूजन की सामग्री और पूजन विधि जानिए :


सबसे पहले चौकी पर लक्ष्मी व गणेश की मूर्तियां रखें उनका मुख पूर्व या पश्चिम में रहे। 


लक्ष्मीजी, गणेशजी की दाहिनी ओर रहें। 


पूजनकर्ता मूर्तियों के सामने की तरफ बैठें। 


कलश को लक्ष्मीजी के पास चावलों पर रखें। 


नारियल को लाल वस्त्र में इस प्रकार लपेटें कि नारियल का अग्रभाग दिखाई देता रहे व इसे कलश पर रखें। यह कलश वरुण का प्रतीक है।


दो बड़े दीपक रखें। एक घी का, दूसरा तेल का। एक दीपक चौकी के दाईं ओर रखें व दूसरा मूर्तियों के चरणों में। एक दीपक गणेशजी के पास रखें।


मूर्तियों वाली चौकी के सामने छोटी चौकी रखकर उस पर लाल वस्त्र बिछाएं। 


कलश की ओर एक मुट्ठी चावल से लाल वस्त्र पर नवग्रह की प्रतीक नौ ढेरियां बनाएं। 


गणेशजी की ओर चावल की सोलह ढेरियां बनाएं। ये सोलह मातृका की प्रतीक हैं। नवग्रह व षोडश मातृका के बीच स्वस्तिक का चिह्न बनाएं।


इसके बीच में सुपारी रखें व चारों कोनों पर चावल की ढेरी। 


सबसे ऊपर बीचोंबीच ॐ लिखें। छोटी चौकी के सामने तीन थाली व जल भरकर कलश रखें। 


थालियों की निम्नानुसार व्यवस्था करें- 1. ग्यारह दीपक, 2. खील, बताशे, मिठाई, वस्त्र, आभूषण, चन्दन का लेप, सिन्दूर, कुंकुम, सुपारी, पान, 3. फूल, दुर्वा, चावल, लौंग, इलायची, केसर-कपूर, हल्दी-चूने का लेप, सुगंधित पदार्थ, धूप, अगरबत्ती, एक दीपक के साथ विधि-विधान से पूजन करें।


दिवाली पूजन का शुभ मुहूर्त


माता लक्ष्मी की कृपा पाने के लिये दिवाली के दिन को बहुत ही शुभ माना जाता है। घर में सुख-समृद्धि बने रहे और मां लक्ष्मी स्थिर रहें इसके लिये दिनभर मां लक्ष्मी का उपवास रखने के उपरांत सूर्यास्त के पश्चात प्रदोष काल के दौरान स्थिर लग्न (वृषभ लग्न को स्थिर लग्न माना जाता है) में मां लक्ष्मी की पूजा करनी चाहिये। लग्न व मुहूर्त का समय स्थान के अनुसार ही देखना चाहिये।


 


दिवाली पर्व तिथि व मुहूर्त 2020


दिवाली 2020


 


14 नवंबर


 


लक्ष्मी पूजा मुहूर्त- 17:28 से 19:23


 


प्रदोष काल- 17:23 से 20:04


 


वृषभ काल- 17:28 से 19:23


 


अमावस्या तिथि आरंभ- 14:17 (14 नवंबर)


बुधवार, 11 नवंबर 2020

धनतेरस के दिन खरीदें ये चीजें


दीपावली का त्योहार आने वाला है, लेकिन दीपावली से पहले धनतेरस का त्योहार आता है। गुरूवार को आ रहे इस पर्व का मह्त्व हिन्दू संस्कृति में बहुत बड़ा है। हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को हर साल धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है, जो छोटी दिवाली से एक दिन पहले आता है। इस दिन भगवान धनवंतरि की पूजा की जाती है और यह एक शुभ दिन माना जाता है। सोना, चांदी के आभूषण और बर्तन आदि चीजें खरीदना शुभ माना जाता है। इस साल धनतेरस 13 नवम्बर यानी शुक्रवार को है। परन्तु आप में यदि सोना-चांदी जैसी महंगी वस्तुएं खरीदने की क्षमता नहीं है तो आप घबराएं नहीं। आज आपको उन वस्तुओं के बारे में जानकारी दी जा रही है जिसकी खरीददारी में उतना ही लाभ होता है जितना की सोना चांदी खरीदने में। ये चीजें निम्नलिखित हैं।
पीतल- धनतेरस के दिन पीतल की वस्तु खरीदने से भी उतना ही लाभ होता है जितना कि सोना चांदी। सोने-चांदी के बाद पीतल की धातु ही सबसे शुभकारी मानी जाती है। धनतेरस पर पीपल की वस्तुयें खरीदकर भी मां लक्ष्मी की पूजा कर प्रसन्न कर सकते हैं।
-धनिया धनतेरस के दिन धनिया खरीदकर लाना भी बहुत शुभकारी माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि धनिया धन को बढ़ाता है। धनतेरस के दिन धनिया लाकर मां लक्ष्मी को अर्पित कर पूजा की जाती है। इसके कुछ दाने गमले में बो दें। अगर धनिया के पौधे निकलते है तो साल भर घर में सुख समृद्धि की वृद्धि होती है।
झाड़ू- झाड़ू को मां लक्ष्मी का रूप माना जाता है। मान्यता है कि धनतेरस के दिन झाड़ू लाने पर घर में मां लक्ष्मी का प्रवेश होता है। कहते हैं कि धनतेरस के दिन झाड़ू को लाना मां लक्ष्मी को घर लाने के समान है। झाड़ू से घर की गंदगी साफ की जाती है अर्थात इससे घर की सारी नकारात्मकता दूर करते हैं। इसका महत्त्व सोने चांदी के समान है।
अक्षत- धनतेरस के दिन घर पर अक्षत अर्थात धान या चावल लाना चाहिए। शास्त्रों में कहा गया है कि अन्नों में धान ध्चावल को सबसे शुभ माना गया है। अक्षत का अर्थ होता है धन-संपति में अनंत वृद्धि। शास्त्रों में बताया गया है कि धनतेरस के दिन धान या चावल खरीदकर लाने से धन, वैभव और ऐश्वर्य में अनंत वृद्धि होती है। धान या चावल खरीदकर लाना सोने को खरीदकर लाने के समान है।
 जौ- पौराणिक कथा में कहा गया है। कि जौ कनक यानी सोना के समान होता है। धनतेरस के दिन जौ को खरीदकर लाना सोने को खरीद कर लाने के समान ही फल देता है। धनतेरस के दिन चावल खरीदकर लाना  सबसे शुभ माना गया है।


कामाख्या देवी मंदिर में मुकेश अंबानी की ओर से लगेंगे 19 किलो सोने के कलश


गुवाहाटी। असम के प्रसिद्ध कामाख्या देवी मंदिर के लिए मुकेश अंबानी की ओर से 19 किलो सोना दान किए जाने की खबर है।
कोरोना काल में लंबे समय तक बंद रहने के बाद 12 अक्टूबर को खुले मंदिर का गुंबद बनने के लिए मुकेश अंबानी दिवाली के मौके पर यह दान देने वाले हैं।  अंबानी फैमिली का मंदिर को यह दिवाली गिफ्ट अभी मुंबई में स्थानीय शिल्पकारों की ओर से तैयार किया जा रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक मुकेश अंबानी निजी तौर पर इस प्रोजेक्ट में रुचि ले रहे हैं। दरअसल मंदिर के गुंबद के पास तीन कलश रखे जाने हैं, जो सोने के होंगे। फिलहाल इन्हें तैयार करने का काम चल रहा है।  मंदिर के गुंबद का काम जल्दी ही पूरा हो जाएगा और फिर आगे का काम दो सप्ताह में पूरा होगा। मुख्य ढांचा तांबे से तैयार हो रहा है और फिर उस पर सोने की परत चढ़ाई जाएगी। इसे लेकर मंदिर प्रशासन भी काफी उत्साहित है। कामाख्या मंदिर ट्रस्ट के मुखिया मोहित चंद्र शर्मा ने कहा, श्कोरोना संकट के चलते लंबे समय बाद मंदिर को खोला गया है। अब आने वाले श्रद्धालुओं को मंदिर में नई और एक अच्छी चीज देखने को मिलेगी। इस बदलाव के चलते हमें मंदिर में श्रद्धालुओं की संख्या में भी इजाफा होने की उम्मीद है।श् मां कामाख्या देवी को समर्पित यह मंदिर असम के गुवाहाटी में है। कोरोना काल में जारी नियमों के चलते यह मंदिर भी बंद था और श्रद्धालुओं की आवाजाही पर पूर्ण रोक थी। देश के 4 महाशक्तिपीठो में से एक इस मंदिर में पहली बार मुकेश अंबानी इतना बड़ा दान करने वाले हैं।


धनतेरस पर आएगी बाजार में बहार


मुजफ्फरनगर। दीपावली का पांच दिवसीय पर्व धनतेरस से शुरू होगा। धनतेरस कल यानी गुरुवार को है। ऐसे में इस पर्व पर बिक्री के लिए प्रयागराज का बाजार पूरी तरह सज गया है। इस रोज खरीदारी के लिए ग्राहक भी इंतजार में हैं। बर्तन और आभूषणों की खरीदारी इस दिन खास होती है। इसके लिए दो और चार पहिया वाहनों, फ्लैटों, ज्वेलरी, इलेक्ट्रॉनिक सामानों की बुकिंग पहले से ही लोगों ने करा ली है। अब इसकी डिलीवरी लोग गुरुवार को लेंगे, जिससे बाजार में धन वर्षा होगी। हर सेक्टर में मिलाकर धनतेरस पर करीब एक हजार करोड़ रुपए के कारोबार का अनुमान है।
दीपों के पर्व धनतेरस और दीपावली पर खरीदारी के लिए ग्राहकों को लुभाने के लिए कंपनियों ने पहले से ही आफरों की बौछार की हैं। इसी में सहालग भी शुरू है, इसलिए ऑफर का लाभ लेने के लिए लोग इसी मौके पर दो और चार पहिया वाहनों, फ्रिज, वाशिंग मशीन, एलईडी, फर्नीचर, रजाई, गद्दे, ज्वेलरी,  बर्तन, कपड़े आदि भी खरीद ले रहे हैं। इसकी वजह से कई महीनों से ठंडे चल रहे बाजार में एकाएक बूम आ गया है। इलेक्ट्रॉनिक्स कारोबार में भी रौनक लौटने के दावे  कारोबारी कर रहे हैं। दोपहिया वाहनों की बिक्री में भी तेजी आई है।


सोमवार, 9 नवंबर 2020

दीप पर्व विशेषः लक्ष्मी के हैं विविध रूप


दीपावली के दिन जो पूजा होती है उसे लक्ष्मी पूजन कहा जाता है। आज ज्यादातर लोग समझते हैं कि लक्ष्मी का अर्थ है धन की देवी।


ये लक्ष्मी शब्द का बहुत संकुचित अर्थ हो गया। वास्तव में इस शब्द का अर्थ बहुत विशाल है। लक्ष्मी शब्द की उत्पत्ति संस्कृत की लक्ष धातु से हुई है।


लक्ष का शाब्दिक अर्थ है ध्यान लगाना, ध्येय बनाना, ध्यानपूर्वक निरीक्षण करना इत्यादि। इसका अर्थ ये है कि जब हम एकाग्रचित्त होकर कोई कार्य या साधना करते हैं तो उसका जो फल प्राप्त होता है उसे लक्ष्मी कहते हैं।


हमारे प्राचीन ॠषियों का प्रत्येक कार्य तप, ध्यान इत्यादि का उद्देश्य हमेशा शुभ एवं आध्यात्मिक समृद्धि के लिए होता था। तब लक्ष्मी का अर्थ जीवन के चार आयामों धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष के समन्वय से जीवन को दिव्यता के मार्ग पर ले जाना था।


हमारी सबसे प्राचीन पुस्तक ॠग्वेद में भी लक्ष्मी देवी का उल्लेख आता है परंतु वहां लक्ष्मी का अर्थ धन की देवी नहीं, शुभता एवं सौभाग्य की देवी है। धन की उपयोगिता सीमित है।इस संसार में आप धन से सब कुछ नहीं प्राप्त कर सकते। न धन से आप माता-पिता खरीद सकते हैं, न दोस्त, न ज्ञान। ऐसा बहुत कुछ है जो धन से नहीं खरीदा जा सकता। परंतु सौभाग्य से आप जो चाहें वो प्राप्त कर सकते हैं।


अथर्ववेद में भी लक्ष्मी को शुभता, सौभाग्य, संपत्ति, समृद्धि, सफलता एवं सुख का समन्वय बताया गया है।


पुराणों में लक्ष्मी के आठ प्रकार बताए गए हैं ये हैं ....
आदिलक्ष्मी,
धान्यलक्ष्मी,
धैर्यलक्ष्मी,
गजलक्ष्मी,
संतानलक्ष्मी,
विजयलक्ष्मी,
विद्यालक्ष्मी,
एवं धनलक्ष्मी।


इससे स्पष्ट होता है कि लक्ष्मी का प्रभाव क्षेत्र केवल धन तक ही सीमित नहीं है। लक्ष्मी की उत्पत्ति समुद्र मंथन के समय मानी गई है। विभिन्न देवताओं की भिन्न-भिन्न शक्तियों का मूल स्त्रोत भी माता लक्ष्मी ही हैं।


पुराणों के अनुसार माता लक्ष्मी ने अग्निदेव को अन्न का वरदान दिया, वरूण देव को विशाल साम्राज्य का, सरस्वती को पोषण का, इन्द्र को बल का, बृहस्पति को पांडित्य का इत्यादि-इत्यादि।


 इससे सिद्ध होता है कि माता लक्ष्मी की कृपा जिसपर भी हो जाए उसे नाना प्रकार के ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। माता लक्ष्मी के हाथ में कमल है।शास्त्रों में कमल को ज्ञान, आत्म साक्षात्कार एवं मुक्ति का प्रतीक माना गया है।


हमारा दर्शन हमें जलकमलवत् रहने की शिक्षा देता है। इसका अर्थ है कि समस्त ऐश्वर्य के बीच रहते हुए भी मन को निर्लिप्त रखना। माता के दोनों ओर दो गज शक्ति का हैं। माता लक्ष्मी का वाहन उल्लू है जो अँधेरे में भली-भाँति देखने में सक्षम है।


इसका अर्थ है कि जब चहुँ ओर दुख का अँधकार छाया हो तो माता की कृपा से हम हमारी दृष्टि सम्यक रहती है एवं हम अपना मार्ग सरलता से ढूँढ सकते हैं।


माता लक्ष्मी के हाथ से हमेशा धनवर्षा होती रहती है जो इस बात की सूचक है कि हमें केवल धन का संग्रह ही करना है परंतु वंचितों को उनकी आवश्यकतानुसार दान भी करना है। माता लक्ष्मी ने भगवान् विष्णु को पति रूप में वरण किया है जो सर्वश्रेष्ठ हैं।


माता सदा उनके चरणों में रहती हैं। यह इस बात का द्योतक है कि धन आदि ऐश्वर्य सदा उत्तम पुरूषों के पास ही टिकता है। अधम पुरूषों को इसकी प्राप्ति नहीं होती


यदि संयोगवश प्राप्ति हो भी जाए तो वो टिकती नहीं है। कलियुग में लक्ष्मी का वास नारी में कहा गया है।


इसीलिए कन्या के जन्म पर कहा जाता है कि लक्ष्मी जी पधारी हैं ,परंतु विद्वानों का ये भी कहना है कि।यदि हम कन्या के अवतरण पर निराश हो जाते हैं तो लक्ष्मी उल्टे पाँव लौट जाती है। जिस घर में नारी का आदर होता है वहाँ।माता लक्ष्मी की विशेष कृपा होती है एवं जहां नारी का अनादर होता है वहाँ से लक्ष्मी का पलायन हो जाता है।


माता लक्ष्मी की कृपादृष्टि हेतु समस्त नारी जाति का सम्मान करना अत्यावश्यक है। चूंकि माता लक्ष्मी समस्त प्रकार के ऐश्वर्य की प्रदात्री हैं इसलिए माता लक्ष्मी को केवल धन की देवी मानने की भूल न करें।


शनिवार, 7 नवंबर 2020

अहोई अष्टमी : कथा और पूजन विधि

. दिनांक 08.11.20 दिन रविवार तदनुसार संवत् २०७७ कार्तिक मास कृष्ण पक्ष की अष्टमी को आने वाला व्रत :-



                             "अहोई अष्टमी"


 


           अहोई अष्टमी का व्रत कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन किया जाता है। पुत्रवती महिलाओं के लिए यह व्रत अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। माताएं अहोई अष्टमी के व्रत में दिन भर उपवास रखती हैं, और सायंकाल तारे दिखाई देने के समय अहोई माता का पूजन किया जाता है। तारों को करवा से अर्ध्य भी दिया जाता है। यह अहोई गेरू आदि के द्वारा दीवार पर बनाई जाती है, अथवा किसी मोटे वस्त्र पर अहोई काढ़कर पूजा के समय उसे दीवार पर टांग दिया जाता है। अहोई अष्टमी का व्रत महिलायें अपनी सन्तान की रक्षा और दीर्घ आयु के लिए रखती हैं। इस दिन धोबी मारन लीला का भी मंचन होता है, जिसमें श्री कृष्ण द्वारा कंस के भेजे धोबी का वध प्रदर्शन किया जाता है।


 


                                 अहोई माता


 


           अहोई माता के चित्रांकन में ज़्यादातर आठ कोष्ठक की एक पुतली बनाई जाती है। उसी के पास सेह तथा उसके बच्चों की आकृतियां बना दी जाती हैं। उत्तर भारत के विभिन्न क्षेत्रों में अहोई माता का स्वरूप वहां की स्थानीय परंपरा के अनुसार बनता है। सम्पन्न घर की महिलाएं चांदी की अहोई बनवाती हैं। ज़मीन पर गोबर से लीपकर कलश की स्थापना होती है। अहोई माता की पूजा करके उन्हें दूध-चावल का भोग लगाया जाता है। तत्पश्चात् एक पाटे पर जल से भरा लोटा रखकर कथा सुनी जाती है।


 


                                पूजन विधि


 


01. अहोई अष्टमी व्रत के दिन प्रात: उठकर स्नान करें और पूजा पाठ करके अपनी संतान की दीर्घायु एवं सुखमय जीवन हेतु कामना करते हुए, मैं अहोई माता का व्रत कर रही हूँ, ऐसा संकल्प करें।


02. अहोई माता मेरी संतान को दीर्घायु, स्वस्थ एवं सुखी रखे। माता पार्वती की पूजा करें।


03. अहोई माता की पूजा के लिए गेरू से दीवार पर अहोई माता का चित्र बनाएँ और साथ ही सेह और उसके सात पुत्रों का चित्र बनाएँ।


04. संध्या काल में इन चित्रों की पूजा करें।


05. अहोई पूजा में एक अन्य विधान यह भी है कि चांदी की अहोई बनाई जाती है जिसे सेह या स्याहु कहते हैं। इस सेह की पूजा रोली, अक्षत, दूध व भात से की जाती है। पूजा चाहे आप जिस विधि से करें लेकिन दोनों में ही पूजा के लिए एक कलश में जल भर कर रख लें।


06. पूजा के बाद अहोई माता की कथा सुने और सुनाएं।


07. पूजा के पश्चात् सासू-मां के पैर छूएं और उनका आर्शीवाद प्राप्त करें।


08. तारों की पूजा करें और जल चढ़ायें तथा इसके पश्चात् व्रती अन्न जल ग्रहण करें।


 


                       अहोई अष्टमी व्रत कथाएँ


 


       (अहोई अष्टमी व्रत की दो लोक कथाएँ प्रचलित हैं)


 


                                  प्रथम कथा


 


           प्राचीन काल में किसी नगर में एक साहूकार रहता था। उसके सात लड़के थे। दीपावली से पहले साहूकार की स्त्री घर की लीपा-पोती हेतु मिट्टी लेने खदान में गई और कुदाल से मिट्टी खोदने लगी। दैव योग से उसी जगह एक सेह की मांद थी। सहसा उस स्त्री के हाथ से कुदाल सेह के बच्चे को लग गई जिससे सेह का बच्चा तत्काल मर गया। अपने हाथ से हुई हत्या को लेकर साहूकार की पत्नी को बहुत दु:ख हुआ परन्तु अब क्या हो सकता था? वह शोकाकुल पश्चाताप करती हुई अपने घर लौट आई। कुछ दिनों बाद उसके बेटे का निधन हो गया। फिर अकस्मात दूसरा, तीसरा और इस प्रकार वर्ष भर में उसके सभी बेटे मर गए। महिला अत्यंत व्यथित रहने लगी। एक दिन उसने अपने आस-पड़ोस की महिलाओं को विलाप करते हुए बताया कि उसने जान-बूझ कर कभी कोई पाप नहीं किया। हाँ, एक बार खदान में मिट्टी खोदते हुए अंजाने में उससे एक सेह के बच्चे की हत्या अवश्य हुई है और तत्पश्चात् मेरे सातों बेटों की मृत्यु हो गई। यह सुनकर पास-पड़ोस की वृद्ध औरतों ने साहूकार की पत्नी को दिलासा देते हुए कहा कि यह बात बताकर तुमने जो पश्चाताप किया है उससे तुम्हारा आधा पाप नष्ट हो गया है। तुम उसी अष्टमी को भगवती माता की शरण लेकर सेह और सेह के बच्चों का चित्र बनाकर उनकी अराधना करो और क्षमा-याचना करो। ईश्वर की कृपा से तुम्हारा पाप धुल जाएगा। साहूकार की पत्नी ने वृद्ध महिलाओं की बात मानकर कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को उपवास व पूजा-याचना की। वह हर वर्ष नियमित रूप से ऐसा करने लगी। बाद में उसे सात पुत्र रत्नों की प्राप्ति हुई। तभी से अहोई व्रत की परम्परा प्रचलित हो गई।


 


                               द्वितीय कथा


 


          प्राचीन काल में दतिया नगर में चंद्रभान नाम का एक आदमी रहता था। उसकी बहुत सी संतानें थीं, परंतु उसकी संतानें अल्प आयु में ही अकाल मृत्यु को प्राप्त होने लगती थीं। अपने बच्चों की अकाल मृत्यु से पति-पत्नी दु:खी रहने लगे थे। कालान्तर तक कोई संतान न होने के कारण वह पति-पत्नी अपनी धन दौलत का त्याग करके वन की ओर चले जाते हैं और बद्रिकाश्रम के समीप बने जल के कुंड के पास पहुंचते हैं तथा वहीं अपने प्राणों का त्याग करने के लिए अन्न-जल का त्याग करके उपवास पर बैठ जाते हैं। इस तरह छह दिन बीत जाते हैं तब सातवें दिन एक आकाशवाणी होती है कि हे साहूकार! तुम्हें यह दु:ख तुम्हारे पूर्व जन्म के पाप से मिल रहे हैं। अतः इन पापों से मुक्ति के लिए तुम्हें अहोई अष्टमी के दिन व्रत का पालन करके अहोई माता की पूजा-अर्चना करनी चाहिए, जिससे प्रसन्न हो अहोई माता तुम्हें पुत्र प्राप्ति के साथ-साथ उसकी दीर्घ आयु का वरदान देंगी। इस प्रकार दोनों पति-पत्नी अहोई अष्टमी के दिन व्रत करते हैं और अपने पापों की क्षमा मांगते हैं। अहोई माँ प्रसन्न होकर उन्हें संतान की दीर्घायु का वरदान देती हैं। आज के समय में भी संस्कारशील माताओं द्वारा जब अपनी सन्तान की इष्टकामना के लिए अहोई माता का व्रत रखा जाता है और सांयकाल अहोई माता की पूजा की जाती है तो निश्चित रूप से इसका शुभफल उनको मिलता ही है और सन्तान चाहे पुत्र हो या पुत्री, उसको भी निष्कंटक जीवन का सुख मिलता है।


 


                    अहोई अष्टमी उद्यापन विधि


 


          जिस स्त्री का पुत्र न हो अथवा उसके पुत्र का विवाह हुआ हो, उसे उद्यापन अवश्य करना चाहिए। इसके लिए एक थाल में सात जगह चार-चार पूरियां एवं हलवा रखना चाहिए। इसके साथ ही पीत वर्ण की पोशाक-साडी, ब्लाउज एवं रुपये आदि रखकर श्रद्धा पूर्वक अपनी सास को उपहार स्वरूप देना चाहिए। उसकी सास को चाहिए कि वस्त्रादि को अपने पास रखकर शेष सामग्री हलवा-पूरी आदि को अपने पास-पड़ोस में वितरित कर दे। यदि कोई कन्या हो तो उसके यहाँ भेज दे।


 


                        अहोई माता की आरती


 


जय अहोई माता, जय अहोई माता!


          तुमको निसदिन ध्यावत हर विष्णु विधाता॥जय॥


ब्रह्माणी, रुद्राणी, कमला तू ही है जगमाता।


                  सूर्य-चंद्रमा ध्यावत नारद ऋषि गाता॥जय॥


माता रूप निरंजन सुख-सम्पत्ति दाता॥


             जो कोई तुमको ध्यावत नित मंगल पाता॥जय॥


तू ही पाताल बसंती, तू ही है शुभदाता।


              कर्म-प्रभाव प्रकाशक जगनिधि से त्राता॥जय॥


जिस घर थारो वासा वाहि में गुण आता॥


          कर न सके सोई कर ले मन नहीं धड़काता॥जय॥


तुम बिन सुख न होवे न कोई पुत्र पाता।


            खान-पान का वैभव तुम बिन नहीं आता॥जय॥


शुभ गुण सुंदर युक्ता क्षीर निधि जाता।


                     रतन चतुर्दश तोकू कोई नहीं पाता॥जय॥


श्री अहोई माँ की आरती जो कोई गाता।


                 उर उमंग अति उपजे पाप उतर जाता॥जय॥


                        ----------:::×:::----------


 


                           "जय अहोई माता"


********************************************


 


         "श्रीजी की चरण सेवा"


शुक्रवार, 6 नवंबर 2020

संतान सुख और दीर्घायु की कामना के लिए होता है अहोई अष्टमी व्रत : जानिए मुहूर्त


संतान के सुख सौभाग्य और दीर्घायु की कामना के लिए किए जाने वाला अहोई अष्टमी व्रत पर्व इस बार 8 नवम्बर 2020 दिन रविवार को पड़ रहा है. कार्तिक कृष्ण पक्ष अष्टमी के दिन यह पर्व मनाया जाता है. 8 नवंबर को सूर्योदय से लेकर रात में 1:36 तक अष्टमी तिथि व्याप्त रहेगी. इस पर्व में भी चन्द्रोदय व्यापिनी अष्टमी का ही विशेष महत्त्व है ,अतः अष्टमी तिथि में चन्द्रोदय रात में 11 बजकर 39 मिनट पर होगा. इन दिन सास के चरणों को तीर्थ मानकर उनसे आशीर्वाद लिया जाता है. वहीं कुछ जगह सास को बायना भी दिया जाता है.


अहोई अष्टमी मुहूर्त


8 नवंबर दिन रविवार की शाम 5 बजकर 26 मिनट से शाम 6 बजकर 46 मिनट तक


अवधि- 1 घंटा 19 मिनट


अष्टमी तिथि आरंभ- 8 नवंबर की सुबह 7 बजकर 28 मिनट से


अष्टमी तिथि समाप्त- 8 नवंबर की सुबह 6 बजकर 50 मिनट तक



 


ऐसे करें अहोई अष्टमी की पूजा


इस दिन माताएं सूर्योदय से पूर्व स्नान करके व्रत रखने का संकल्प लें. अहोई माता की पूजा के लिए दीवार या कागज पर गेरू से अहोई माता का चित्र बनाएं और साथ ही सेह और उसके सात पुत्रों का चित्र बनाएं. सायंकाल के समय पूजन के लिए अहोई माता के चित्र के सामने एक चौकी रखकर उस पर जल से भरा कलश रखें. तत्पश्चात रोली-चावल से माता की पूजा करें. मीठे पुए या आटे के हलवे का भोग लगाएं. कलश पर स्वास्तिक बना लें और हाथ में गेंहू के सात दाने लेकर अहोई माता की कथा सुनें, इसके उपरान्त तारों को अर्घ्य देकर अपने से बड़ों के चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लें.


अहोई अष्टमी का महत्‍व


अहोई अष्टमी व्रत का महत्व बहुत ही ज्यादा है. यह पर्व खासतौर से माताओं के लिए होता है. क्योंकि अहोई अष्टमी के दिन महिलाएं अपने बच्चों के कल्याण के लिए व्रत रखती हैं. इस दिन निर्जला उपवास रखकर रात को चंद्रमा या तारों को देखने के बाद ही व्रत खोला जाता है. इस दिन जो महिलाएं यह व्रत करती हैं वो शाम के समय दीवार पर आठ कोनों वाली एक पुतली बनाती हैं. दीवार पर बनाई गई इस पुतली के पास ही स्याउ माता और उसके बच्चे भी बनाए जाते हैं. फिर इसकी पूजा की जाती है. जो महिलाएं नि:संतान हैं वो भी संतान प्राप्ति के लिए अहोई अष्टमी का व्रत या उपवास करती हैं. यह व्रत दीपावली से एक हफ्ता पहले और करवा चौथ के 4 दिन बाद आता है.


अहोई अष्टमी कथा 


मान्यता है कि एक शहर में एक साहूकार के 7 लड़के रहते थे. साहूकार की पत्नी दिवाली पर घर लीपने के लिए अष्टमी के दिन मिट्टी लेने गई. जैसे ही मिट्टी खोदने के लिए उसने कुदाल चलाई वह सेह की मांद में जा लगी, जिससे कि सेह का बच्चा मर गया. साहूकार की पत्नी को इसे लेकर काफी पश्चाताप हुआ, इसके कुछ दिन बाद ही उसके एक बेटे की मौत हो गई. इसके बाद एक-एक करके उसके सातों बेटों की मौत हो गई. इस कारण साहूकार की पत्नी शोक में रहने लगी.


एक दिन साहूकार की पत्नी ने अपनी पड़ोसी औरतों को रोते हुए अपना दुख की कथा सुनाई, जिस पर औरतों ने उसे सलाह दी कि यह बात साझा करने से तुम्हारा आधा पाप कट गया है. अब तुम अष्टमी के दिन सेह और उसके बच्चों का चित्र बनाकर मां भगवती की पूजा करो और क्षमा याचना करो. भगवान की कृपा हुई तो तुम्हारे पाप नष्ट हो जाएंगे. ऐसा सुनकर साहूकार की पत्नी हर साल कार्तिक मास की अष्टमी को मां अहोई की पूजा व व्रत करने लगी. माता रानी कृपा से साहूकार की पत्नी फिर से गर्भवती हो गई और उसके कई साल बाद उसके फिर से सात बेटे हुए. तभी से अहोई अष्टमी का व्रत चला आ रहा है.


मंगलवार, 3 नवंबर 2020

करवा चौथ की व्रत कथा, शुभ मुहूर्त व पूजन विधि

टी आर न्यूज इंडिया आपके लिए लाएं है


करवा चौथ व्रत की कथा: 


एक ब्राह्मण के सात पुत्र थे और वीरावती नाम की इकलौती पुत्री थी। सात भाइयों की अकेली बहन होने के कारण वीरावती सभी भाइयों की लाडली थी और उसे सभी भाई जान से बढ़कर प्रेम करते थे. कुछ समय बाद वीरावती का विवाह किसी ब्राह्मण युवक से हो गया। विवाह के बाद वीरावती मायके आई और फिर उसने अपनी भाभियों के साथ करवाचौथ का व्रत रखा लेकिन शाम होते-होते वह भूख से व्याकुल हो उठी। सभी भाई खाना खाने बैठे और अपनी बहन से भी खाने का आग्रह करने लगे, लेकिन बहन ने बताया कि उसका आज करवा चौथ का निर्जल व्रत है और वह खाना सिर्फ चंद्रमा को देखकर उसे अर्घ्‍य देकर ही खा सकती है। लेकिन चंद्रमा अभी तक नहीं निकला है, इसलिए वह भूख-प्यास से व्याकुल हो उठी है।


वीरावती की ये हालत उसके भाइयों से देखी नहीं गई और फिर एक भाई ने पीपल के पेड़ पर एक दीपक जलाकर चलनी की ओट में रख देता है। दूर से देखने पर वह ऐसा लगा की चांद निकल आया है। फिर एक भाई ने आकर वीरावती को कहा कि चांद निकल आया है, तुम उसे अर्घ्य देने के बाद भोजन कर सकती हो। बहन खुशी के मारे सीढ़ियों पर चढ़कर चांद को देखा और उसे अर्घ्‍य देकर खाना खाने बैठ गई।उसने जैसे ही पहला टुकड़ा मुंह में डाला है तो उसे छींक आ गई। दूसरा टुकड़ा डाला तो उसमें बाल निकल आया। इसके बाद उसने जैसे ही तीसरा टुकड़ा मुंह में डालने की कोशिश की तो उसके पति की मृत्यु का समाचार उसे मिल गया।


उसकी भाभी उसे सच्चाई से अवगत कराती है कि उसके साथ ऐसा क्यों हुआ। करवा चौथ का व्रत गलत तरीके से टूटने के कारण देवता उससे नाराज हो गए हैं। एक बार इंद्र देव की पत्नी इंद्राणी करवाचौथ के दिन धरती पर आईं और वीरावती उनके पास गई और अपने पति की रक्षा के लिए प्रार्थना की। देवी इंद्राणी ने वीरावती को पूरी श्रद्धा और विधि-विधान से करवाचौथ का व्रत करने के लिए कहा। इस बार वीरावती पूरी श्रद्धा से करवाचौथ का व्रत रखा। उसकी श्रद्धा और भक्ति देख कर भगवान प्रसन्न हो गए और उन्होंनें वीरावती सदासुहागन का आशीर्वाद देते हुए उसके पति को जीवित कर दिया। इसके बाद से महिलाओं का करवाचौथ व्रत पर अटूट विश्वास हो ने लगा।


इस व्रत का विधान 


कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को करवा चौथ का व्रत करने का विधान है। सौभाग्यवती महिलाएं इस दिन अपने पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं। इस व्रत की शुरुआत सरगी से होती है। इस दिन घर की बड़ी महिलाएं अपनी बहू को सरगी, साड़ी सुबह सवेरे देती हैं। सुबह चार बजे तक सरगी खाकर व्रत को शुरू किया जाता है, सरगी में फैनी, मट्ठी आदि होती हैं। इस व्रत में पूरे दिन निर्जला रहा जाता है। व्रत में पूरा श्रृंगार किया जाता है। महिलाएं दोपहर में या शाम को कथा सुनती हैं। कथा के लिए पटरे पर चौकी में जलभरकर रख लें। थाली में रोली, गेंहू, चावल, मिट्टी का करवा, मिठाई, बायना का सामान आदि रखते हैं। प्रथम पूज्य गणेश जी की पूजा से व्रत की शुरुआत की जाती है। गणेश जी विघ्नहर्ता हैं इसलिए हर पूजा में सबसे पहले गणेश जी की पूजा की जाती है। इस बात का ध्यान रखें कि सभी करवों में रौली से सतियां बना लें। अंदर पानी और ऊपर ढ़क्कन में चावल या गेहूं भरें। 


पूजन करने का शुभ मुहूर्त 


संध्या पूजा का शुभ मुहूर्त 4 नवंबर (बुधवार)- शाम 05 बजकर 34 मिनट से शाम 06 बजकर 52 मिनट तक।


इस व्रत में क्या करे, क्या नहीं 


इस व्रत में पूरे दिन निर्जला रहा जाता है। व्रत में पूरा श्रृंगार किया जाता है। महिलाएं दोपहर में या शाम को कथा सुनती हैं। कथा के लिए पटरे पर चौकी में जलभरकर रख लें। थाली में रोली, गेंहू, चावल, मिट्टी का करवा, मिठाई, बायना का सामान आदि रखते हैं। प्रथम पूज्य गणेश जी की पूजा से व्रत की शुरुआत की जाती है। गणेश जी विघ्नहर्ता हैं इसलिए हर पूजा में सबसे पहले गणेश जी की पूजा की जाती है। इसके बाद शिव परिवार का पूजन कर कथा सुननी चाहिए। करवे बदलकर बायना सास के पैर छूकर दे दें। रात में चंद्रमा के दर्शन करें। चंद्रमा को छलनी से देखना चाहिए। इसके बाद पति को छलनी से देख पैर छूकर व्रत पानी पीना चाहिए।


सोमवार, 2 नवंबर 2020

बुधादित्य योग में करवा चौथ रहेगी खास, जानिए पूजा का मुहूर्त


इस बार सुहागिनों का सबसे बड़ा पर्व करवा चौथ बुधवार को मनाया जाएगा। इस दिन विवाहित महिलाएं पति की लंबी उम्र के लिए निर्जला व्रत रहती हैं। इस बार का महापर्व करवाचौथ कई अच्छे संयोग लेकर आ रहा है। इस बार करवा चौथ पर सर्वार्थ सिद्धि योग के साथ-साथ शिवयोग, बुधादित्य योग, सप्तकीर्ति, महादीर्घायु और सौख्य योग भी बन रहे हैं। शास्त्रों में इन योगों के महत्व में विस्तृत जानकारियां दी गई हैं। ये सभी योग बहुत ही महत्वपूर्ण हैं और इनसे इस करवा चौथ की महत्ता और भी बढ़ जाती है।


 


*खास तौर पर सुहागिनों के लिए यह करवा चौथ अखंड सौभाग्य देने वाला होगा। इस बार करवा चौथ कथा और पूजन का शुभ मुहूर्त 5:34 बजे से शाम 6:52 बजे तक है।*


 


-करवा चौथ पर बुध के साथ सूर्य ग्रह भी विद्यमान होंगे, जो बुधादित्य योग बना रहे हैं।


-इस दिन शिवयोग के साथ ही सर्वार्थसिद्धि, सप्तकीर्ति, महादीर्घायु और सौख्य योग


-चार नवंबर को प्रातः 3:24 बजे से कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि सर्वार्थ सिद्धि योग एवं मृगशिरा नक्षत्र में


-चतुर्थी तिथि का समापन 5 नवंबर को प्रातः 5:14 बजे होगा।


-4 नवंबर को शाम 5:34 बजे से शाम 6:52 बजे तक करवा चौथ की पूजा का शुभ मुहूर्त है


 


करवा चौथ के दिन मां पार्वती, भगवान शिव कार्तिकेय एवं गणेश सहित शिव परिवार की पूजा-अर्चना की जाती है। मां पार्वती से सुहागिनें अखंड सौभाग्य की कामना करती हैं। इस दिन करवे में जल भरकर कथा सुनी जाती है। महिलाएं सुबह सूर्योदय से लेकर चंद्रोदय तक निर्जला व्रत रखती हैं और चंद्र दर्शन के बाद व्रत खोलती हैं।


 


*"ऐसे करें पूजा"*


 


कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को करक चतुर्थी व्रत करने का विधान है। केवल सौभाग्यवती स्त्रियों को ही यह व्रत करने का अधिकार है। स्त्री किसी भी आयु, जाति, वर्ण, संप्रदाय की हो, इस व्रत को कर सकती है।करवों में लड्डू का नैवेद्य रखकर नैवेद्य अर्पित करें। एक लोटा, एक वस्त्र व एक विशेष करवा दक्षिणा के रूप में अर्पित कर पूजन समापन करें। करवा चौथ व्रत की कथा पढ़ें अथवा सुनें।


 


सायंकाल चंद्रमा के उदित हो जाने पर चंद्रमा का पूजन कर अर्घ्य प्रदान करें। इसके पश्चात ब्राह्मण, सुहागिन स्त्रियों व पति के माता-पिता को भोजन कराएं। भोजन के पश्चात ब्राह्मणों को यथाशक्ति दक्षिणा दें। पति की माता अर्थात अपनी सास को उपरोक्त रूप से अर्पित एक लोटा, वस्त्र व विशेष करवा भेंटकर आशीर्वाद लें। यदि वे जीवित न हों तो उनके तुल्य किसी अन्य स्त्री को भेंट करें। इसके पश्चात स्वयं व परिवार के अन्य सदस्य भोजन करें।


गुरुवार, 29 अक्तूबर 2020

करवा चौथ पर भूलकर भी ना करें ये काम


चार नवंबर को करवा चौथ का दिन सुहागिनों के लिए बेहद खास है।  इस दिन स्त्रियां अपने पति की लंबी आयु और सुखी जीवन के लिए व्रत रखती हैं।  इस साल करवा चौथ व्रत 4 नवंबर (बुधवार) को करवाचौथ के दिन निर्जला व्रत रखा जाएगा। इस दिन चंद्रोदय के बाद अपने पति के हाथ से जल ग्रहण करने के बाद ही महिलाऐं अपना व्रत खोलती हैं। करवा चौथ के व्रत-पूजन में कुछ नियमों का पालन करना बेहद जरूरी माना गया है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन सुहागिन महिलाओं को कुछ चीज़ें भूलकर भी नहीं करनी चाहिए। आइए जानते हैं करवा चौथ के दिन किन गलतियों को करने से बचना चाहिए -   


धार्मिक मान्यताओं के अनुसार करवा चौथ के दिन सुई-धागे का इस्तेमाल वर्जित है।  कई महिलाएं इस दिन खुद को व्यस्त रखने के लिए सिलाई-कढ़ाई का काम करने लगती हैं, लेकिन ऐसा नहीं करना चाहिए।  करवा चौथ के दिन सिलाई-कढ़ाई और बुनाई करना प्रतिबंधित माना गया है।  


वैसे तो कभी भी सुहाग की चीज़ें जैसे चूड़ियाँ, बिंदी और सिंदूर आदि कूड़े में नहीं फेंकनी चाहिए। लेकिन ख़ास तौर पर करवा चौथ के दिन इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए।  अगर पूजा के लिए तैयार होते समय चूड़ियां टूट जाए तो उन्हें भूलकर भी कचड़े में ना डालें।  चूड़ियाँ या सुहाग की चीज़ों को बहते जल में प्रवाहित कर दें और अपने सुहाग की कामना करें।  


करवा चौथ के दिन भूलकर भी सफेद या काले रंग के कपड़े नहीं पहनने चाहिए। किसी पूजा-पाठ या शुभ अवसर पर काले या सफ़ेद रंग के कपड़े पहनना सही नहीं माना जाता है।  इस दिन लाल रंग के कपड़े पहनना शुभ माना जाता है क्योंकि लाल रंग सुहाग का प्रतीक है।  


करवा चौथ पर सफेद कपड़े पहनने के साथ-साथ सफ़ेद चीज़ें जैसे दूध, दही या चावल आदि का दान नहीं करना भी चाहिए।  सफेद रंग का संबंध चंद्रमा से बताया जाता है इसलिए इस दिन सफेद रंग की चीज़ें दान करने से बचना चाहिए।  


करवा चौथ के दिन कैंची का इस्तेमाल करना भी अशुभ माना जाता है। करवा चौथ के दिन कैंची के इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।  इस दिन कैंची को कहीं छिपा कर रख दें ताकि आपकी नज़र भी कैंची पर ना पड़े।


करवा चौथ पर अपने मन और विचारों में पवित्रता लाएं। इस दिन खुद को मानसिक रूप से शांत और पवित्र रखें और सकारात्मक सोचें। घृणा, ईर्ष्या या अन्य नकारात्मक विचारों को अपने मन में ना आने दें।  इस दिन किसी के लिए बुरा ना सोचें न ही किसी की बुराई करें।


धार्मिक मान्यताओं के अनुसार करवा चौथ पर सात्विक भोजन खाना चाहिए।  इस दिन भूलकर भी माँस, शराब आदि चीज़ों का सेवन ना रहें।  इस दिन सरगी में और व्रत खोलने के बाद शुद्ध-शाकाहारी भोजन ही खाना चाहिए।


गलती होने पर क्यों पकडते हैं कान

 


गौतम, वसिष्ठ, आपस्तंब धर्मसूत्रों और पाराशर स्मृति सहित अन्य ग्रंथों में ज्ञान की कई बातें बताई गई हैं। इन ग्रंथों में रहन-सहन के नियम और तरीकों के बारे में बताया गया है। इन ग्रंथों के अनुसार, हमारे शरीर में पंचतत्वों के अलग-अलग प्रतिनिधि अंग माने गए हैं जैसे- नाक भूमि का, जीभ जल का, आंख अग्नि का, त्वचा वायु का और कान आकाश का प्रतिनिधि अंग। विभिन्न कारणों से शेष सभी तत्व अपवित्र हो जाते हैं, लेकिन आकाश कभी अपवित्र नहीं होता। इसलिए ग्रंथों में दाहिने कान को अधिक पवित्र माना जाता है।


 


1. मनु स्मृति के अनुसार, मनुष्य के नाभि के ऊपर का शरीर पवित्र है और उसके नीचे का शरीर मल-मूत्र धारण करने की वजह से अपवित्र माना गया है। यही कारण है कि शौच करते समय यज्ञोपवित (जनेऊ) को दाहिने कान पर लपेटा जाता है क्योंकि दायां कान, बाएं कान की अपेक्षा ज्यादा पवित्र माना गया है। इसलिए जब कोई व्यक्ति दीक्षा लेता है तो गुरु उसे दाहिने कान में ही गुप्त मंत्र बताते हैं, यही कारण है कि दाएं कान को बाएं की अपेक्षा ज्यादा पवित्र माना गया है।


 


2. गोभिल गृह्यसूत्र के अनुसार, मनुष्य के दाएं कान में वायु, चंद्रमा, इंद्र, अग्नि, मित्र तथा वरुण देवता निवास करते हैं। इसलिए इस कान को अधिक पवित्र माना गया है।


गोभिल गृह्यसूत्र का श्लोक...


मरुत: सोम इंद्राग्नि मित्रावरिणौ तथैव च।


एते सर्वे च विप्रस्य श्रोत्रे तिष्टन्ति दक्षिणै।।


 


3. पराशर स्मृति के बारहवें अध्याय के 19 वें श्लोक में बताया गया है कि के छींकने, थूकने, दांत के जूठे होने और मुंह से झूठी बात निकलने पर दाहिने कान का स्पर्श करना चाहिए। इससे मनुष्य की शुद्धि हो जाती है।


 


पराशर स्मृति का श्लोक...


क्षुते निष्ठीवने चैव दंतोच्छिष्टे तथानृते।


पतितानां च सम्भाषे दक्षिणं श्रवणं स्पृशेत्।।


 


एक नए दृष्टिकोण से समझें ............


 


कान पकड़ना का अर्थ है – बुरे काम को न करने की प्रतिज्ञा करना।


 


ऐसा भी कहा जाता है कि कान के मूल में जो नाड़ियाँ हैं उनका मूत्राशय और गुदा से संबंध है। दाहिने कान की नाड़ी मूत्राशय के लिए गई है और बाएँ कान की नाड़ी गुदा से संबंध है। मूत्र त्याग करते समय दाहिने कान को लपेटने से उन नाड़ियों पर दबाव पड़ता है फल स्वरूप मूत्राशय की नाड़ियाँ भी कड़ी रहती हैं। तदनुसार, बहुमूत्र, मधुमेह, प्रमेह आदि रोग नहीं होते। इसी प्रकार दाहिने कान की नाड़ियाँ दबने से काँच, भगन्दर, बवासीर आदि गुदा के रोग नहीं होते। कई सज्जन शौच जाते समय दोनों कानों पर यज्ञोपवीत चढ़ाते हैं उनका तर्क यह है कि मल त्याग के समय मूत्र विसर्जन भी होता है इसलिए दोनों कानों पर उपवीत को बढ़ाना चाहिए। मैथुन के समय कान पर भले ही चढ़ाया जाय पर अशुद्ध अंगों से ऊंचा अवश्य कर लेना चाहिये।


 


क्षुते निष्ठीवने चैव दन्तेच्छिप्टे तथान्नृते।


पतितानाँ चसम्भायें दक्षिणं श्रवण स्पृष्येत।


पाराशर स्मृति 7। 38


 


अर्थात्- छींकने पर, थूकने पर, दाँतों से किसी अंग के उच्छिष्ट हो जाने पर झूठ बोलने और पाठकों के साथ संभाषण करने पर अपने दाहिने कान का स्पर्श करें।


 


छोटी-मोटी अशुद्धताएं कान का स्पर्श करने मात्र से दूर हो जाती हैं। कान को छूने पकड़ने या दबाने से भूल सुधारने का प्रायश्चित होने का सम्बन्ध है। बालक के कान पकड़ने का अध्यापकों का यही प्रयोजन होता है कि उसे देवत्व का और मनोबल का विकास हो। कान पर यज्ञोपवीत चढ़ाने से भी सूक्ष्म रूप से वही प्रयोजन सिद्ध होता है। इसलिए भी मलमूत्र के समय उसके कान पर चढ़ाने का विधान है।


 


आदित्यावसवो रुद्रा वायुरग्निश्व धर्मराट्।


विप्रस्य दक्षिणे कर्णे नित्यं निष्ठन्ति देवताः॥


शंख्यायन-


अग्निरापश्च वेदाश्च सोमः सूर्योऽनिलस्तथा।


सर्वे देवास्तु विप्रस्य कर्णे तिष्ठन्ति दक्षिणें॥


आचार मयूख-


प्रभासादीनि तीर्थानि गंगाद्या सरितस्तथा।


विप्रस्य दक्षिणे कर्णे वसन्ति मुनिरब्रवीत॥


 


परराशरः


 


उपरोक्त तीन श्लोकों में दाहिने कान का पवित्रता का वर्णन है। शांख्यायन का मत है कि आदित्य, वसु, रुद्र, वायु और अग्नि देवता विप्र-के दाहिने कान में सदा रहते हैं। आचार्य मयूखकार का कथन है अग्नि, जल, वेद, सोम, सूर्य, अनिल तथा सब देवता ब्राह्मण के दाहिने कान में निवास करते हैं। पराशर का मत है कि गंगा आदि सरिताएं तीर्थ गण दाहिने कान में निवास करते हैं। इसलिए ऐसे पवित्र अंग पर मलमूत्र त्यागते समय यज्ञोपवीत को चढ़ा लेते हैं जिससे वह अपवित्र न होने पावे।


 


कान और ऊपरी अंगों को निरोगी और सर्वदा पवित्र रखें के लिए विशेष श्री विष्णु मन्त्र पढ़ें l ॐ हुम विष्नवे नम:l🌹🙏🙏


बुधवार, 28 अक्तूबर 2020

30 अक्टूबर की रात आसमान से बरसेगा अमृत


शरद पूर्णिमा अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को मनाई जाती है। भारतीय परंपरा में इसका बड़ा महत्व है। इस वर्ष शरद पूर्णिमा या आश्विन पूर्णिमा 30 अक्टूबर दिन शुक्रवार को है। माना जाता है कि शरद पूर्णिमा का चंद्रमा सोलह कलाओं से युक्त होता है। 


शास्त्रों की मानें तो इस दिन यानि शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा से निकलने वाली किरणों में सभी प्रकार के रोगों को हरने की क्षमता होती है। इसी कारण कहा जाता है कि शरद पूर्णिमा की रात अमृत वर्षा होती है। शरद पूर्णिमा का शुभ मुहूर्त भी कई मान्यताओं के लिहाज से खास है। 


माना जाता है कि शरद पूर्णिमा पर चंद्रमा पृथ्वी के सबसे निकट होता है। अंतरिक्ष के समस्त ग्रहों से निकलने वाली सकारात्मक ऊर्जा चंद्रकिरणों के माध्यम से पृथ्वी पर पड़ती हैं। शरद पूर्णिमा पर खीर बनाई जाती है और उसे पूरी रात खुले आसमान के नीचे रखा जाता है। पूर्णिमा की चांदनी में खीर बनाकर खुले आसमान के नीचे रखने के पीछे वैज्ञानिक तर्क यह है कि चंद्रमा के औषधीय गुणों से युक्त किरणें पड़ने से खीर भी अमृत के समान हो जाती हैं। उसका सेवन करना स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद माना जाता है।


 


शरद पूर्णिमा पर किए गए धार्मिक अनुष्ठान या समारोह बेहतर परिणाम देते हैं। शरद पूर्णिमा पर, चंद्रमा पृथ्वी के सबसे करीब होता है। शरद पूर्णिमा का चंद्रमा उन किरणों को उत्सर्जित करता है जिनके पास अविश्वसनीय चिकित्सा और पौष्टिक गुण होते हैं। इसके अलावा, यह माना जाता है कि इस दिन चांद की चांदनी से अमृत बरसता है तो इस दिन भक्त खीर तैयार करते हैं और इस मिठाई का कटोरा सीधे चंद्रमा की रोशनी में रख देते हैं ताकि चंद्रमा की सभी सकारात्मक और दिव्य किरणों को इकट्ठा किया जा सके। अगले दिन, इस खीर को प्रसाद के रूप में सभी के बीच वितरित किया जाता है। 


 


इस बार 2020 को शरद पूर्णिमा पर अमृदसिद्धि योग बन रहा है। 30 अक्टूबर 2020 शु्क्रवार के दिन मध्यरात्रि में अश्विनी नक्षत्र रहेगा। साथ ही इस दिन 27 योगों के अंतर्गत आने वाला वज्रयोग, वाणिज्य / विशिष्ट करण तथा मेष राशि का चंद्रमा रहेगा। ज्योतिष के अनुसार, शरद पूर्णिमा को मोह रात्रि कहा जाता है। श्रीभगवद्गीता के अनुसार, शरद पूर्णिमा पर रासलीला के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने शिव पार्वती को निमंत्रण भेजा था। वहीं जब पार्वती जी ने शिवजी से आज्ञा मांगी तो उन्होंन स्वयं जाने की इच्छा प्रकट की। इसलिए इस रात्रि को मोह रात्रि कहा जाता है।


 


शरद पूर्णिमा के शुभ दिन पर सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर किसी पवित्र नदी में स्नान करें।


 


इसके बाद एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछाएं। उसके बाद उस पर देवी लक्ष्मी की मूर्ति या तस्वीर रखें। फिर, देवी लक्ष्मी को लाल फूल, नैवेद्य, इत्र और अन्य सुगंधित चीजें अर्पित करें। देवी मां को सुन्दर वस्त्र, आभूषण, और अन्य श्रंगार से अलंकृत करें। मां लक्ष्मी का आह्वान करें और उन्हें फूल, धूप (अगरबत्ती), दीप (दीपक), नैवेद्य, सुपारी, दक्षिणा आदि अर्पित करें और उसकी पूजा करें।


 


एक बार इन सभी चीजों को अर्पित करने के बाद, देवी लक्ष्मी के मंत्र और लक्ष्मी चालीसा का पाठ करें। देवी लक्ष्मी की पूजा धूप और दीप (दीपक) से करें। साथ ही देवी लक्ष्मी की आरती करना भी आवश्यक है।


 


इसके बाद देवी लक्ष्मी को खीर चढ़ाएं। इसके अलावा इस दिन खीर किसी ब्राह्मण को दान करना ना भूलें।


 


गाय के दूध से खीर तैयार करें। इसमें घी और चीनी मिलाएं। इसे भोग के रूप में धन की देवी को मध्यरात्रि में अर्पित करें।


 


रात में, भोग लगे प्रसाद को चंद्रमा की रोशनी में रखें और दूसरे दिन इसका सेवन करें। सुनिश्चित करें कि इसे प्रसाद की तरह वितरित किया जाना चाहिए और पूरे परिवार के साथ साझा किया जाना चाहिए।


 


शरद पूर्णिमा व्रत (उपवास) पर कथा (कहानी) अवश्य सुनें। कथा से पहले, एक कलश में पानी रखें, एक गिलास में गेहूं भर लें, साथ ही पत्ते के दोने में रोली और चावल रखें और कलश की पूजा करें, तत्पश्चात दक्षिणा अर्पित करें।


 


इसके अलावा इस शुभ दिन पर भगवान शिव, देवी पार्वती और भगवान कार्तिकेय की भी पूजा की जाती है। 


 


शरद पूर्णिमा खीर के लाभ


 


शरद पूर्णिमा की रात्रि में आकाश के नीचे रखी जाने वाली खीर को खाने से शरीर में पित्त का प्रकोप और मलेरिया का खतरा भी कम हो जाता है। 


 


यदि आपकी आंखों की रोशनी कम हो गई है तो इस पवित्र खीर का सेवन करने से आंखों की रोशनी में सुधार हो जाता है। 


 


अस्थमा रोगियों को शरद पूर्णिमा में रखी खीर को सुबह 4 बजे के आसपास खाना चाहिए। 


 


शरद पूर्णिमा की खीर को खाने से हृदय संबंधी बीमारियों का खतरा कम हो जाता है। साथ ही श्वास संबंधी बीमारी भी दूर हो जाती है।


 


पवित्र खीर के सेवन से स्किन संबंधी समस्याओं और चर्म रोग भी ठीक हो जाता है। 


मंगलवार, 27 अक्तूबर 2020

शरद पूर्णिमा के दिन क्यों खाते हैं खीर, जानिए 5 कारण 


शरद पूर्णिमा के दिन खीर खाने या दूध पीने के प्रचलन हैं। आखिर इस दिन खीर क्यों खाते हैं? क्या है इसका वैज्ञानिक कारण और रहस्य जानिए 5 कारण।


1.अमृत की किरणें : कहते हैं कि इस दिन आसमान से अमृतमयी किरणों का आगमन होता है। इन किरणों में कई तरह के रोग नष्ट करने की क्षमता होती है। ऐसे में जहां इन किरणों से बाहरी शरीर को लाभ मिलता है वहीं शरीर के भीतर के अंगों को भी लाभ मिले इसके लिए खीर को चंद्रमा की रोशनी में रखकर बाद में उसे खाया जाता है। यही कारण है कि शरद पूर्णिमा की रात को लोग अपने घरों की छतों पर खीर रखते हैं।


2.अमृत समान बन जाता है दूध : यह भी कहा जाता है कि इस दौरान चंद्र से जुड़ी हर वस्तु जाग्रत हो जाती है। दूध भी चंद्र से जुड़ा होने ने कारण अमृत समान बन जाता है जिसकी खीर बनाकर उसे चंद्रप्रकाश में रखा जाता है।


3.शीत ऋतु का आगमन : शरद पूर्णिमा से मौसम में परिवर्तन की शुरूआत होती है। इस तिथि के बाद से वातावरण में ठंडक बढ़ने लगती है। शीत ऋतु का आगमन होता है। शरद पूर्णिमा की रात में खीर का सेवन करना इस बात का प्रतीक है कि शीत ऋतु में हमें गर्म पदार्थों का सेवन करना चाहिए, क्योंकि इन्हीं चीजों से ठंड में शक्ति मिलती है।


4.पौष्टिक पदार्थ का सेवन : खीर में दूध, चावल, सूखे मेवे आदि पौष्टिक चीजें डाली डाती हैं, जो कि शरीर के लिए फायदेमंद होती हैं। इन चीजों की वजह से शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। अच्छा स्वास्थ्य मिलता है। यहीं खीर जब पूर्णिमा को बनाकर खाई जाए तो उसका गुण दोगुना हो जाता है।


5.खीर की प्रसाद का वितरण : यह भी मान्यता है कि पूर्णिमा के दिन दूध या खीर का प्रसाद वितरण करने से जहां चंद्रदोष दूर हो जाता है वहीं लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है। इसीलिए कुछ स्थानों पर सार्वजनिक रूप से खीर प्रसादी का वितरण किया जाता है।


Featured Post

बीए की छात्रा से ट्यूबवेल पर गैंगरेप

मुजफ्फरनगर। तमंचे की नोक पर बीए की छात्रा से गैंगरेप के मामले में रिपोर्ट दर्ज की गई है।  बुढ़ाना कोतवाली क्षेत्र के एक गांव में कॉफी पिलाने ...