शरद पूर्णिमा अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को मनाई जाती है। भारतीय परंपरा में इसका बड़ा महत्व है। इस वर्ष शरद पूर्णिमा या आश्विन पूर्णिमा 30 अक्टूबर दिन शुक्रवार को है। माना जाता है कि शरद पूर्णिमा का चंद्रमा सोलह कलाओं से युक्त होता है।
शास्त्रों की मानें तो इस दिन यानि शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा से निकलने वाली किरणों में सभी प्रकार के रोगों को हरने की क्षमता होती है। इसी कारण कहा जाता है कि शरद पूर्णिमा की रात अमृत वर्षा होती है। शरद पूर्णिमा का शुभ मुहूर्त भी कई मान्यताओं के लिहाज से खास है।
माना जाता है कि शरद पूर्णिमा पर चंद्रमा पृथ्वी के सबसे निकट होता है। अंतरिक्ष के समस्त ग्रहों से निकलने वाली सकारात्मक ऊर्जा चंद्रकिरणों के माध्यम से पृथ्वी पर पड़ती हैं। शरद पूर्णिमा पर खीर बनाई जाती है और उसे पूरी रात खुले आसमान के नीचे रखा जाता है। पूर्णिमा की चांदनी में खीर बनाकर खुले आसमान के नीचे रखने के पीछे वैज्ञानिक तर्क यह है कि चंद्रमा के औषधीय गुणों से युक्त किरणें पड़ने से खीर भी अमृत के समान हो जाती हैं। उसका सेवन करना स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद माना जाता है।
शरद पूर्णिमा पर किए गए धार्मिक अनुष्ठान या समारोह बेहतर परिणाम देते हैं। शरद पूर्णिमा पर, चंद्रमा पृथ्वी के सबसे करीब होता है। शरद पूर्णिमा का चंद्रमा उन किरणों को उत्सर्जित करता है जिनके पास अविश्वसनीय चिकित्सा और पौष्टिक गुण होते हैं। इसके अलावा, यह माना जाता है कि इस दिन चांद की चांदनी से अमृत बरसता है तो इस दिन भक्त खीर तैयार करते हैं और इस मिठाई का कटोरा सीधे चंद्रमा की रोशनी में रख देते हैं ताकि चंद्रमा की सभी सकारात्मक और दिव्य किरणों को इकट्ठा किया जा सके। अगले दिन, इस खीर को प्रसाद के रूप में सभी के बीच वितरित किया जाता है।
इस बार 2020 को शरद पूर्णिमा पर अमृदसिद्धि योग बन रहा है। 30 अक्टूबर 2020 शु्क्रवार के दिन मध्यरात्रि में अश्विनी नक्षत्र रहेगा। साथ ही इस दिन 27 योगों के अंतर्गत आने वाला वज्रयोग, वाणिज्य / विशिष्ट करण तथा मेष राशि का चंद्रमा रहेगा। ज्योतिष के अनुसार, शरद पूर्णिमा को मोह रात्रि कहा जाता है। श्रीभगवद्गीता के अनुसार, शरद पूर्णिमा पर रासलीला के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने शिव पार्वती को निमंत्रण भेजा था। वहीं जब पार्वती जी ने शिवजी से आज्ञा मांगी तो उन्होंन स्वयं जाने की इच्छा प्रकट की। इसलिए इस रात्रि को मोह रात्रि कहा जाता है।
शरद पूर्णिमा के शुभ दिन पर सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर किसी पवित्र नदी में स्नान करें।
इसके बाद एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछाएं। उसके बाद उस पर देवी लक्ष्मी की मूर्ति या तस्वीर रखें। फिर, देवी लक्ष्मी को लाल फूल, नैवेद्य, इत्र और अन्य सुगंधित चीजें अर्पित करें। देवी मां को सुन्दर वस्त्र, आभूषण, और अन्य श्रंगार से अलंकृत करें। मां लक्ष्मी का आह्वान करें और उन्हें फूल, धूप (अगरबत्ती), दीप (दीपक), नैवेद्य, सुपारी, दक्षिणा आदि अर्पित करें और उसकी पूजा करें।
एक बार इन सभी चीजों को अर्पित करने के बाद, देवी लक्ष्मी के मंत्र और लक्ष्मी चालीसा का पाठ करें। देवी लक्ष्मी की पूजा धूप और दीप (दीपक) से करें। साथ ही देवी लक्ष्मी की आरती करना भी आवश्यक है।
इसके बाद देवी लक्ष्मी को खीर चढ़ाएं। इसके अलावा इस दिन खीर किसी ब्राह्मण को दान करना ना भूलें।
गाय के दूध से खीर तैयार करें। इसमें घी और चीनी मिलाएं। इसे भोग के रूप में धन की देवी को मध्यरात्रि में अर्पित करें।
रात में, भोग लगे प्रसाद को चंद्रमा की रोशनी में रखें और दूसरे दिन इसका सेवन करें। सुनिश्चित करें कि इसे प्रसाद की तरह वितरित किया जाना चाहिए और पूरे परिवार के साथ साझा किया जाना चाहिए।
शरद पूर्णिमा व्रत (उपवास) पर कथा (कहानी) अवश्य सुनें। कथा से पहले, एक कलश में पानी रखें, एक गिलास में गेहूं भर लें, साथ ही पत्ते के दोने में रोली और चावल रखें और कलश की पूजा करें, तत्पश्चात दक्षिणा अर्पित करें।
इसके अलावा इस शुभ दिन पर भगवान शिव, देवी पार्वती और भगवान कार्तिकेय की भी पूजा की जाती है।
शरद पूर्णिमा खीर के लाभ
शरद पूर्णिमा की रात्रि में आकाश के नीचे रखी जाने वाली खीर को खाने से शरीर में पित्त का प्रकोप और मलेरिया का खतरा भी कम हो जाता है।
यदि आपकी आंखों की रोशनी कम हो गई है तो इस पवित्र खीर का सेवन करने से आंखों की रोशनी में सुधार हो जाता है।
अस्थमा रोगियों को शरद पूर्णिमा में रखी खीर को सुबह 4 बजे के आसपास खाना चाहिए।
शरद पूर्णिमा की खीर को खाने से हृदय संबंधी बीमारियों का खतरा कम हो जाता है। साथ ही श्वास संबंधी बीमारी भी दूर हो जाती है।
पवित्र खीर के सेवन से स्किन संबंधी समस्याओं और चर्म रोग भी ठीक हो जाता है।
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