बुधवार, 10 मार्च 2021

देहरादून के किराना व्यापारी के 5 साल के बेटे का अपहरण, शव देवबंद से मिला

 सहारनपुर l देहरादून के दो बदमाशों ने किराना व्यापारी के पांच साल के बेटे का अपहरण कर दस लाख की फिरौती मांगी। बाद में बच्चे की हत्या कर शव को देवबंद की साखन नदी में फेंक दिया। उत्तराखंड पुलिस ने अभियुक्तों की निशानदेही पर बच्चे के शव को बरामद कर लिया। वारदात को अंजाम देने वाला एक अभियुक्त हिमाचल प्रदेश तो दूसरा उत्तराखंड के सहसपुर का रहने वाला है।



वारदात देहरादून के विकासनगर स्थित थाना सहसपुर क्षेत्र की है। मंगलवार को किराना व्यापारी पप्पू का पांच साल का बेटा अभय घर के बाहर ही खेल रहा था, तभी उसका अपहरण कर लिया गया। देर शाम तक जब अभय घर नहीं पहुंचा, तो परिजनों ने सहसपुर पुलिस से संपर्क किया। पुलिस ने जब अभय की तलाश आरंभ की तो देर रात दो अपहरणकर्ता उनके हत्थे चढ़ गए, जिन्होंने कड़ी पूछताछ के बाद अभय की हत्या कर शव को देवबंद स्थित साखन नहर में फेंकना बताया। 

बुधवार को देहरादून पुलिस अपहरणकर्ताओं को लेकर देवबंद पहुंची। अभियुक्तों की निशानदेही पर बच्चे का शव नहर स्थित पुल के पिलर के नीचे से बरामद कर लिया। देहरादून क्राइम ब्रांच के अधिकारी विनीत जटराना के मुताबिक अभय के अपहरण के बाद अभियुक्तों ने रात में फोन कर उसके पिता से दस लाख रुपये की फिरौती मांगी थी। जिसके बाद ही सहसपुर थाना पुलिस को अपहरण की सूचना दी गई। पुलिस ने सीसीटीवी कैमरे की मदद से बदमाशों को पकड़ने के लिए जाल बिछाया तो चेकिंग के दौरान दोनों बदमाश पुलिस के हत्थे चढ़ गए। उन्होंने बताया कि दोनों बदमाशों के नाम अनीस है। इनमें से एक अनीस पुत्र अली हसन निवासी पांवटा साहिब (हिमाचल प्रदेश) और दूसरा अनीस सलमानी सहसपुर का रहने वाला है।

हादसे को हमला बताकर चुनावी नौटंकी कर रही ममता बनर्जी

 


कोलकाता। हादसे को हमला बताकर चुनावी नौटंकी कर रही हैं ममता बनर्जी। 

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी आज नंदीग्राम में घायल हो गईं। हालांकि उन्होंने आरोप लगाया है कि उन्हें धक्का दिया है। यहां तक कि उन्होंने इसे साजिश करार दिया है। हालांकि नंदीग्राम में जिस वक्त ममता घायल हुईं, वहां मौजूद एक छात्र ने इस बात से इनकार कर दिया है। छात्र का कहना है कि उन्हें किसी ने धक्का नहीं दिया है।

नंदीग्राम में मौके पर मौजूद एक छात्र सुमन मैती ने कहा, "जब सीएम यहां आए थे, तो जनता उनके चारों ओर इकट्ठा हो गई थी। उस समय उनकी गर्दन और पैर में चोट लगी थी। उन्हें धक्का नहीं दिया गया था। कार धीरे-धीरे चल रही थी"

एक और प्रत्‍यक्षदर्शी चित्‍तरंजन दास ने भी ममता बनर्जी के आरोपों को झुठलाया है। दास ने कहा- 'मैं मौके पर मौजूद था। मुख्‍यमंत्री अपनी कार में अंदर बैठी हुई थीं, लेकिन कार का दरवाजा खुला था। एक पोस्‍टर से टकराकर कार टका दरवाजा बंद हो गया। किसी ने दरवाजे को न तो धक्‍का दिया और न ही छुआ। दरवाजे के पास कोई भी नहीं था।'

हरिद्वार कुंभ में हेलीकॉप्टर से होगी पुष्प वर्षा


देहरादून। तीरथ सिंह रावत ने बुधवार को राज्य के 10वें मुख्यमंत्री पद की शपथ ग्रहण करने के बाद मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत राजभवन से देहरादून स्थित शहीद स्मारक पहुंचे। सत्ता संभालते ही नए सीएम तीरथ सिंह एक्शन में आ गए हैं। उन्होंने हरिद्वार कुम्भ मेले  में गुरूवार को महाशिवरात्रि के अवसर पर पहले शाही स्नान में श्रद्धालुओं पर हेलीकाप्टर से पुष्प वर्षा किए जाने के निर्देश दिए। 

बीजापुर गेस्ट हाउस में शासन के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ बैठक में मुख्यमंत्री श्री तीरथ सिंह रावत ने यह निर्देश दिए। मुख्यमंत्री ने कहा कि जरूरी सावधानियों का पालन करते हुए यह सुनिश्चित किया जाए कि कुम्भ में आने वाले श्रद्धालुओं को किसी तरह की परेशानी न हो। आगंतुक श्रद्धालु गंगा जी में सुविधापूर्वक पवित्र स्नान कर सकें। संतों का सम्मान सबसे ऊपर है। साथ ही कुम्भ की दिव्यता और भव्यता सुनिश्चित की जाए। शासन के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ बैठक में मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने निर्देश दिए कि हरिद्वार कुम्भ मेले में गुरूवार को महाशिवरात्रि के अवसर पर पहले शाही स्नान में श्रद्धालुओं पर हैलीकॉप्टर से पुष्प वर्षा की जाए और सुनिश्चित किया जाए कि श्रद्धालुओं को परेशानी न हो।

राशि के अनुसार करें शिव की आराधना, मिलेगा इच्छित फल

 


'शिवरात्रि' का अर्थ है 'भगवान शिव की महान रात्रि।' ऐसे तो प्रत्येक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को शिवरात्रि का व्रत रखने का बड़ा महत्व है। इस तरह तो सालभर में 12 शिवरात्रि व्रत किए जाते हैं, परंतु उन सभी में महाशिवरात्रि का व्रत रखने का खास महत्व होता है। महाशिवरात्रि व्रत काशी पंचांग के अनुसार फाल्गुन महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि पर किया जाता है।

शिवरात्रि के पावन पर्व में शिव मंदिरों की रौनक खूब दिखती है। प्रात:काल से ही शिव मंदिरों में भक्तों का तांता जुटने लगता है और सभी भगवान शिव के मंत्र 'ॐ नम: शिवाय' का जाप करते हैं। इस दिन शिवजी को दूध और जल से अभिषेक कराने की भी प्रथा है।

महाशिवरात्रि की कथाएं

महाशिवरात्रि को लेकर एक या दो नहीं बल्कि हिन्दू पुराणों में कई कथाएं प्रचलित हैं-


पुराणों में महाशिवरात्रि मनाने के पीछे एक कहानी है जिसके अनुसार समुद्र मंथन के दौरान जब देवतागण एवं असुर पक्ष अमृत प्राप्ति के लिए मंथन कर रहे थे, तभी समुद्र में से कालकूट नामक भयंकर विष निकला। देवताओं की प्रार्थना पर भगवान शिव ने भयंकर विष को अपने शंख में भरा और भगवान विष्णु का स्मरण कर उसे पी गए। भगवान विष्णु अपने भक्तों के संकट हर लेते हैं। उन्होंने उस विष को शिवजी के कंठ (गले) में ही रोककर उसका प्रभाव समाप्त कर दिया। विष के कारण भगवान शिव का कंठ नीला पड़ गया और वे संसार में 'नीलंकठ' के नाम से प्रसिद्ध हुए।


शिवपुराण में एक अन्य कथा के अनुसार एक बार ब्रह्माजी व विष्णुजी में विवाद छिड़ गया कि दोनों में श्रेष्ठ कौन है? ब्रह्माजी सृष्टि के रचयिता होने के कारण श्रेष्ठ होने का दावा कर रहे थे और भगवान विष्णु पूरी सृष्टि के पालनकर्ता के रूप में स्वयं को श्रेष्ठ कह रहे थे। तभी वहां एक विराट लिंग प्रकट हुआ। दोनों देवताओं ने सहमति से यह निश्चय किया गया कि जो इस लिंग के छोर का पहले पता लगाएगा, उसे ही श्रेष्ठ माना जाएगा।


अत: दोनों विपरीत दिशा में शिवलिंग का छोर ढूढंने निकले। छोर न मिलने के कारण विष्णुजी लौट आए। ब्रह्माजी भी सफल नहीं हुए, परंतु उन्होंने आकर विष्णुजी से कहा कि वे छोर तक पहुंच गए थे और उन्होंने केतकी के फूल को इस बात का साक्षी बताया। ब्रह्माजी के असत्य कहने पर स्वयं शिव वहां प्रकट हुए और उन्होंने ब्रह्माजी का एक सिर काट दिया और केतकी के फूल को श्राप दिया कि शिवजी की पूजा में कभी भी केतकी के फूलों का इस्तेमाल नहीं होगा।

चूंकि यह फाल्गुन के महीने का 14वां दिन था जिस दिन शिव ने पहली बार खुद को लिंग रूप में प्रकट किया था। इस दिन को बहुत ही शुभ और विशेष माना जाता है और महाशिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है। इस दिन शिव की पूजा करने से उस व्यक्ति को सुख और समृद्धि प्राप्त होती है।

एक पौराणिक कथा के अनुसार एक आदमी जो शिव का परम भक्त था, वह एक बार लकड़ियां काटने के लिए जंगल में गया और खो गया। बहुत रात हो चुकी थी इसीलिए उसे घर जाने का रास्ता नहीं मिल रहा था, क्योंकि वह जंगल में काफी अंदर चला गया था इसलिए जानवरों के डर से वह एक पेड़ पर चढ़ गया।

लेकिन उसे डर था कि अगर वह सो गया तो पेड़ से गिर जाएगा और जानवर उसे खा जाएंगे इसलिए जागते रहने के लिए वह रातभर शिवजी नाम लेकर पत्तियां तोड़कर गिराता रहा। जब सुबह हुई तो उसने देखा कि उसने रातभर में हजार पत्तियां तोड़कर शिवलिंग पर गिराई हैं और जिस पेड़ की पत्तियां वह तोड़ रहा था वह बेल का पेड़ था।

अनजाने में वह रातभर शिवजी की पूजा कर रहा था जिससे खुश होकर शिवजी ने उसे आशीर्वाद दिया। यह कहानी महाशिवरात्रि को उन लोगों को सुनाई जाती है, जो व्रत रखते हैं और रात को शिवजी पर चढ़ाया गया प्रसाद खाकर अपना व्रत तोड़ते हैं। एक कारण यह भी है इस पूजा को करने का कि यह रात अमावस की रात होती है जिसमें चांद नहीं दिखता है और हम ऐसे में भगवान की पूजा करते हैं।


महाशिवरात्रि के तुरंत बाद पेड़ फूलों से भर जाते हैं, जैसे सर्दियों के बाद होता है। पूरी धरती फिर से उपजाऊ हो जाती है। यही कारण है कि पूरे भारत में शिवलिंग को उत्पत्ति का प्रतीक माना जाता है। भारत के हर कोने में शिवरात्रि को अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है।

'अभिषेक' शब्द का शाब्दिक अर्थ है स्नान करना या कराना। 'रुद्राभिषेक' का अर्थ है भगवान रुद्र का अभिषेक।

भगवान शिव को 'रुद्र' कहा गया है और उनका रूप शिवलिंग में देखा जाता है। इसका अर्थ हुआ 'शिवलिंग पर रुद्र के मंत्रों के द्वारा अभिषेक करना।' 'अभिषेक' के कई रूप तथा प्रकार होते हैं। शिवजी को प्रसन्न करने का सबसे श्रेष्ठ तरीका है 'रुद्राभिषेक' करना या फिर श्रेष्ठ ब्राह्मण विद्वानों के द्वारा करवाना। अपनी जटा में गंगा को धारण करने से भगवान शिव को जलधाराप्रिय माना गया है।


*जानिए किस धारा का अभिषेक शुभ है आपकी राशि के लिए...*

कैसे करें अपनी राशि अनुसार रुद्राभिषेक?


1. मेष- शहद और गन्ने का रस


2. वृषभ- दुग्ध, दही


3. मिथुन- दूर्वा से


4. कर्क- दुग्ध, शहद


5. सिंह- शहद, गन्ने के रस से


6. कन्या- दूर्वा एवं दही


7. तुला- दुग्ध, दही


8. वृश्चिक- गन्ने का रस, शहद, दुग्ध


9. धनु- दुग्ध, शहद


10. मकर- गंगा जल में गुड़ डालकर मीठे रस से


11. कुंभ- दही से


12. मीन- दुग्ध, शहद, गन्ने का रस

शिव खोडी : भस्मासुर से बचने के लिए यहां पहुंचे थे भगवान शिव



 शिव रात्रि पर्व पर विशेष :

    जम्मू कश्मीर

शिव खोड़ी 🔱 शिव भगवान की पवित्र प्राचीन प्राकृतिक गुफा :

 शेषनाग व पंचमुखी गणेशसहित देवी-देवताओं के दर्शन एंव पवित्र शिवलिंग पर टपता है दूध

भस्मासुर से बचने को छिपे थे: यही से पहुंचे थे अमरनाथ गुफा


जम्मू-कश्मीर स्थित भगवान शिव के विश्व प्रसिद्ध धाम अमरनाथ से तो आप भलीभांति परिचित होंगे ही लेकिन यहाँ भगवान शिव का एक और प्राचीन और ऐतिहासिक महत्व का मंदिर है जिसका नाम है शिवखोड़ी धाम। मान्यता है कि इस मंदिर में भगवान के दर्शन किये तो आपका स्वर्ग जाना तय है। शिवखोड़ी एक ऐसी अलौकिक और अद्भुत गुफा है जिसमें भगवान शिव अपने पूरे परिवार के साथ वास करते हैं और मान्यता है कि इसी गुफा का रास्ता सीधा स्वर्ग लोक की और जाता है क्योंकि यहाँ स्वर्ग लोक की ओर जाने वाली सीढ़ियां भी बनी हुई हैं और साथ ही इस गुफा का दूसरा छोर सीधा अमरनाथ गुफा की ओर निकलता है।

        श्री माता वैष्णो देवी कटड़ा के बाद जिला रियासी के दूसरे सबसे बडे़ धार्मिक स्थल श्री शिवखोड़ी धाम रनसू श्रद्धालुओं के लिए 12 महीने खुला है मगर शिव रात्रि का विशेष महत्व है यहां 10 मार्च से 13 मार्च तक पर्यटन विभाग व श्राईन बोर्ड द्वारा विशेष  मेले का आयोजन किया जाता है अनेक हिन्दू संगठनों द्वारा भक्तों के लिए लंगर की व्यवस्था की जाती है कोविड -19 के बाद 16 अगस्त को मंदिरों के खुलने से प्राकृतिक गुफा के दर्शन हेतु श्रद्धालु शिवखोड़ी धाम पहुंचने लगे और  इनमें  श्रद्धालुओं स्थानीय श्रद्धालुओं के अनूरुप दूसरे राज्यों से आने वाले भक्तों की संख्या बढ़ी तादाद में होती है ।

इस गुफा में भगवान के अर्ध नारिश्वर रूप के दर्शन होते हैं, जम्मू से करीब 120 किलोमीटर दूर है जो जम्मू संभाग के रियासी जिले में स्थित है। इस गुफा में प्राकृतिक रूप से शिवलिंग बना हुआ है जिसकी ऊंचाई करीब साढ़े तीन से 4 फीट के बीच है, इतनी ही नहीं इस शिवलिंग के ऊपर अमृत की बूंदें यानि गंगा जल की बूंदें लगातार टपकती हैं। प्राचीन कथाओं के अनुसार पहले इस शिवलिंग पर दूध की धारा लगातार गिरती थी क्योंकि कामधेनु गाय के थन भी इन शिवलिंग के ऊपर ही बने हुए हैं। कथाओं के अनुसार इस शिव गुफा में भगवान शिव अपने पूरे परिवार के साथ वास करते हैं तो वहीं 33 करोड़ देवी देवता भी इस गुफा वास करते हैं।


  जम्मू कश्मीर राज्य के रियासी जिले में श्री शिवखोड़ी धाम में भगवान शिव ने भस्मासुर को भस्म किया था। पौराणिक कथा के अनुसार भस्मासुर ने भगवान शिव की आराधना कर उनको प्रसन्न किया, जिसके फलस्वरूप शिव ने उसको मुंह मांगा वर देते हुए कहा कि भस्मासुर जिसके भी सिर पर हाथ रखेगा वह वहीं भस्म हो जाएगा। शिव से वरदान मिलने के बाद भस्मासुर अहंकारी हो गया। उसने अहंकार में आकर शिव को ही भस्म करने की सोची और उनका पीछा करने लगा। भगवान शिव भस्मासुर की मंशा को भांपते हुए शिवखोड़ी की पहाड़ियों में आकर एक गुफा में बैठ गए। भस्मासुर के पीछा करने के उपरांत शिव ने मनमोहनी रूप धारण कर लिया तथा गुफा के बाहर आकर नृत्य करने लगे। मनमोहनी व सुंदर स्त्री को देखकर भस्मासुर भी उनके साथ नृत्य करने लगा। इस दौरान जैसे ही शिव ने अपना हाथ अपने सिर पर रखा तो भस्मासुर ने उनका अनुसरण करते हुए अपना हाथ अपने सिर पर रख लिया, इसके बाद वह वहीं भस्म हो गया।

   शिवखोड़ी की प्राकृतिक गुफा संगड़ की पहाड़ियों में स्थित है। पुरानी गुफा से भीतर जाने का रास्ता काफी संकरा और टेढ़ा-मेढ़ा है। वहां से खड़े होकर अथवा बैठ कर ही निकला जा सकता है। लगभग तेरह वर्ष पहले कोंकण रेलवे की तरफ से एक नई गुफा का निर्माण किया गया, जिससे श्रद्धालु किसी भी प्रकार से अंदर जा सकते हैं। शिवखोड़ी के आधार शिविर रनसू से जम्मू, कटड़ा, उधमपुर या फिर अन्य किसी भी स्थान से किसी भी वाहन के जरिये पहुंचा जा सकता है। आधार शिविर से गुफा तक पौने चार किलोमीटर की सरल चढ़ाई है। इसके अलावा घोड़ा पालकी की भी सेवा ली जा सकती है।

श्री शिवखोड़ी श्राइन बोर्ड रनसू की तरफ से पैदल ट्रैक पर सभी प्रकार की सुविधाएं उपलब्ध करायी गयी हैं। यहाँ पानी की व्यवस्था के साथ ही शौचालय भी बनाए गए हैं। गुफा के बाहर पांच मंजिला इमारत बना कर कमरे बनाए गए हैं। इसके साथ ही लॉकर की भी व्यवस्था की गई है। महाशिवरात्रि के मौके पर यहाँ प्रतिवर्ष दो लाख श्रद्धालु आते हैं, जिसके लिए पूरे इंतजाम किए गए होते हैं।

  गौरतलब है शिवखोड़ी में रोजाना पांच से छह हजार श्रद्धालु पहुंचते थे। ज्यादातर यात्री कटड़ा में माता वैष्णो देवी के दर्शन बाद यहां आते थे। अब कटड़ा में यात्रा शुरू होने के बाद ही रनसू शिवखोडी में बम बम भोले का जयघोष गूंजने लगा ।


देश में ऐसे कई धार्मिक स्थल हैं जहां शिव जी अपने विभिन्न रूपों में विराजमान हैं।  जिस गुफ़ा की हम बात कर रहे हैं वो शिवालिक पर्वत की श्रृंखलाओं में स्थित है, जहां प्रकृति-निर्मित शिवलिंग और अन्य दुर्लभ प्रतिमाएं स्थापित हैं। कहा जाता है ये प्राकृतिक गुफ़ा हर शिवभक्त के लिए बहुत मायने रखती हैं।


जम्मू-कश्मीर राज्य के जम्मू से कुछ दूरी पर स्थित है रयासी में ही भगवान शिव का घर कही जानेवाली शिवखोड़ी गुफा स्थित है। इससे जुड़ी सबसे हैरानी वाली बात ये है कि इसी गुफा का दूसरा छोर अमरनाथ गुफा में खुलता है। यही कारण है कि शिवखोड़ी शिव भक्तों की आस्था का केंद्र बिंदु माना जाता है।

     इस चमत्कारी गुफ़ा में देवों के देव महादेव भोलेनाथ शिवखोड़ी गुफ़ा के दर्शन करने जाने के लिए अप्रैल से लेकर जून तक का मौसम सबसे अच्छा माना जाता है। क्योंकि इस दौरान यहां का मौसम बेहद सुहावना और ठंडा रहता है। इसके बारे में कहा जाता है कि प्रकृति की गोद में बसी हुई यह एक ऐसी दुर्लभ जगह है, जहां अपने आप ही आदिकाल से ही लेकर अब तक भगवान शिव की महिमा बनी हुई है।

दूध सा सफ़ेद जल

माना जाता है कि शिवखोड़ी गुफ़ा में समस्त 33 कोटि देवी-देवता निवास करते हैं। बता दें कि यह स्थान जम्मू से करीब 120 कि.मी. एवं कटरा से 85 कि.मी. दूर उधमपुर ज़िले में स्थित है। रनसू (रणसू) से शिवखोड़ी की गुफ़ा करीब 3.5 कि.मी. दूर रह जाती है। यहां से पैदल व खच्चर के द्वारा बाबा भोलेनाथ की यात्रा प्रारंभ हो जाती है। इसके अलावा रनसू से थोड़ा आगे चलने पर लोहे का एक छोटा सा पुल आता है, जो नदी पर बना हुआ है। लोक मान्यता के अनुसार इस नदी को दूध गंगा कहते हैं। इससे जुड़ी किंवदंति के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन इस नदी का जल स्वतः ही दूध के समान सफ़ेद हो जाता है।


इससे आगे एक कुंड आता है, जिसे अंजनी कुंड के नाम से जाना जाता हैं। इसी कुंड के पास नीलकंठ की सवारी ‘नंदी’ यानि ‘बैल’ के पैरों के निशान हैं। मान्यता है कि नंदी इस कुंड में पानी पीने आते था ,हर-हर महादेव, बम-बम भोले, भोले तेरा रूप निराला शिवखोड़ी में डेरा डाला आदि जैसे जयकारों के साथ भक्त काफ़िले में आगे बढ़ते हैं। करीब एक किलोमीटर आगे चलने पर 'लक्ष्मी-गणेश' का मंदिर आता है। जिसके अंदर छोटी सी एक गुफ़ा में प्राचीन लक्ष्मी-गणेश की मूर्ति है। इसके अलावा नीचे से बहती हुई दूध गंगा की कल-कल ध्वनि मंदिर की शोभा में और चार चांद लगाती है।

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शिवखोड़ी एक ऐसी अलौकिक और अद्भुत गुफा है जिसमें भगवान शिव अपने पूरे परिवार के साथ वास करते हैं और मान्यता है कि इसी गुफा का रास्ता सीधा स्वर्ग लोक की और जाता है क्योंकि यहाँ स्वर्ग लोक की ओर जाने वाली सीढ़ियां भी बनी हुई हैं और साथ ही इस गुफा का दूसरा छोर सीधा अमरनाथ गुफा की ओर निकलता है।▪️


✍️  जगबीर सिंह पाल

148/6 राजीव कालोनी बड़ी ब्राह्मणा, जम्मू

सृष्टि के प्रारंभ का पर्व है महाशिवरात्रि

महाशिवरात्रि हिन्दुओं का एक प्रमुख त्यौहार है। 

फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को महाशिवरात्रि पर्व मनाया जाता है। माना जाता है कि सृष्टि का प्रारंभ इसी दिन से हुआ। पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन सृष्टि का आरम्भ अग्निलिंग (जो महादेव का विशालकाय स्वरूप है) के उदय से हुआ। इसी दिन भगवान शिव का विवाह देवी पार्वती के साथ हुआ था। साल में होने वाली 12 शिवरात्रियों में से महाशिवरात्रि को सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है|भारत सहित पूरी दुनिया में महाशिवरात्रि का पावन पर्व बहुत ही उत्साह के साथ मनाया जाता है|

कश्मीर शैव मत में इस त्यौहार को हर-रात्रि और बोलचाल में 'हेराथ' या 'हेरथ' भी कहा जाता हैं।

महाशिवरात्रि से संबधित कई पौराणिक कथायें है:

       *समुद्र मंथन*

समुद्र मंथन अमर अमृत का उत्पादन करने के लिए निश्चित था, लेकिन इसके साथ ही हलाहल नामक विष भी पैदा हुआ था। हलाहल विष में ब्रह्मांड को नष्ट करने की क्षमता थी और इसलिए केवल भगवान शिव इसे नष्ट कर सकते थे। भगवान शिव ने हलाहल नामक विष को अपने कंठ में रख लिया था। जहर इतना शक्तिशाली था कि भगवान शिव बहुत दर्द से पीड़ित हो उठे थे और उनका गला बहुत नीला हो गया था। इस कारण से भगवान शिव 'नीलकंठ' के नाम से प्रसिद्ध हैं। उपचार के लिए, चिकित्सकों ने देवताओं को भगवान शिव को रात भर जागते रहने की सलाह दी। इस प्रकार, भगवान भगवान शिव के चिंतन में एक सतर्कता रखी। शिव का आनंद लेने और जागने के लिए, देवताओं ने अलग-अलग नृत्य और संगीत बजाने। जैसे सुबह हुई, उनकी भक्ति से प्रसन्न भगवान शिव ने उन सभी को आशीर्वाद दिया।शिवरात्रि इस घटना का उत्सव है, जिससे शिव ने दुनिया को बचाया। तब से इस दिन, भक्त उपवास करते है।


     *शिकारी कथा*

एक बार पार्वती जी ने भगवान शिवशंकर से पूछा, 'ऐसा कौन-सा श्रेष्ठ तथा सरल व्रत-पूजन है, जिससे मृत्युलोक के प्राणी आपकी कृपा सहज ही प्राप्त कर लेते हैं?' उत्तर में शिवजी ने पार्वती को 'शिवरात्रि' के व्रत का विधान बताकर यह कथा सुनाई- 'एक बार चित्रभानु नामक एक शिकारी था। पशुओं की हत्या करके वह अपने कुटुम्ब को पालता था। वह एक साहूकार का ऋणी था, लेकिन उसका ऋण समय पर न चुका सका। क्रोधित साहूकार ने शिकारी को शिवमठ में बंदी बना लिया। संयोग से उस दिन शिवरात्रि थी।'

शिकारी ध्यानमग्न होकर शिव-संबंधी धार्मिक बातें सुनता रहा। चतुर्दशी को उसने शिवरात्रि व्रत की कथा भी सुनी। संध्या होते ही साहूकार ने उसे अपने पास बुलाया और ऋण चुकाने के विषय में बात की। शिकारी अगले दिन सारा ऋण लौटा देने का वचन देकर बंधन से छूट गया। अपनी दिनचर्या की भांति वह जंगल में शिकार के लिए निकला। लेकिन दिनभर बंदी गृह में रहने के कारण भूख-प्यास से व्याकुल था। शिकार करने के लिए वह एक तालाब के किनारे बेल-वृक्ष पर पड़ाव बनाने लगा। बेल वृक्ष के नीचे शिवलिंग था जो विल्वपत्रों से ढका हुआ था। शिकारी को उसका पता न चला।

पड़ाव बनाते समय उसने जो टहनियां तोड़ीं, वे संयोग से शिवलिंग पर गिरीं। इस प्रकार दिनभर भूखे-प्यासे शिकारी का व्रत भी हो गया और शिवलिंग पर बेलपत्र भी चढ़ गए। एक पहर रात्रि बीत जाने पर एक गर्भिणी मृगी तालाब पर पानी पीने पहुंची। शिकारी ने धनुष पर तीर चढ़ाकर ज्यों ही प्रत्यंचा खींची, मृगी बोली, 'मैं गर्भिणी हूं। शीघ्र ही प्रसव करूंगी। तुम एक साथ दो जीवों की हत्या करोगे, जो ठीक नहीं है। मैं बच्चे को जन्म देकर शीघ्र ही तुम्हारे समक्ष प्रस्तुत हो जाऊंगी, तब मार लेना।' शिकारी ने प्रत्यंचा ढीली कर दी और मृगी जंगली झाड़ियों में लुप्त हो गई।

कुछ ही देर बाद एक और मृगी उधर से निकली। शिकारी की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा। समीप आने पर उसने धनुष पर बाण चढ़ाया। तब उसे देख मृगी ने विनम्रतापूर्वक निवेदन किया, 'हे पारधी! मैं थोड़ी देर पहले ऋतु से निवृत्त हुई हूं। कामातुर विरहिणी हूं। अपने प्रिय की खोज में भटक रही हूं। मैं अपने पति से मिलकर शीघ्र ही तुम्हारे पास आ जाऊंगी।' शिकारी ने उसे भी जाने दिया। दो बार शिकार को खोकर उसका माथा ठनका। वह चिंता में पड़ गया। रात्रि का आखिरी पहर बीत रहा था। तभी एक अन्य मृगी अपने बच्चों के साथ उधर से निकली। शिकारी के लिए यह स्वर्णिम अवसर था। उसने धनुष पर तीर चढ़ाने में देर नहीं लगाई। वह तीर छोड़ने ही वाला था कि मृगी बोली, 'हे पारधी!' मैं इन बच्चों को इनके पिता के हवाले करके लौट आऊंगी। इस समय मुझे शिकारी हंसा और बोला, सामने आए शिकार को छोड़ दूं, मैं ऐसा मूर्ख नहीं। इससे पहले मैं दो बार अपना शिकार खो चुका हूं। मेरे बच्चे भूख-प्यास से तड़प रहे होंगे। उत्तर में मृगी ने फिर कहा, जैसे तुम्हें अपने बच्चों की ममता सता रही है, ठीक वैसे ही मुझे भी। इसलिए सिर्फ बच्चों के नाम पर मैं थोड़ी देर के लिए जीवनदान मांग रही हूं। हे पारधी! मेरा विश्वास कर, मैं इन्हें इनके पिता के पास छोड़कर तुरंत लौटने की प्रतिज्ञा करती हूं।

मृगी का दीन स्वर सुनकर शिकारी को उस पर दया आ गई। उसने उस मृगी को भी जाने दिया। शिकार के अभाव में बेल-वृक्षपर बैठा शिकारी बेलपत्र तोड़-तोड़कर नीचे फेंकता जा रहा था। पौ फटने को हुई तो एक हृष्ट-पुष्ट मृग उसी रास्ते पर आया। शिकारी ने सोच लिया कि इसका शिकार वह अवश्य करेगा। शिकारी की तनी प्रत्यंचा देखकर मृगविनीत स्वर में बोला, हे पारधी भाई! यदि तुमने मुझसे पूर्व आने वाली तीन मृगियों तथा छोटे-छोटे बच्चों को मार डाला है, तो मुझे भी मारने में विलंब न करो, ताकि मुझे उनके वियोग में एक क्षण भी दुःख न सहना पड़े। मैं उन मृगियों का पति हूं। यदि तुमने उन्हें जीवनदान दिया है तो मुझे भी कुछ क्षण का जीवन देने की कृपा करो। मैं उनसे मिलकर तुम्हारे समक्ष उपस्थित हो जाऊंगा।

मृग की बात सुनते ही शिकारी के सामने पूरी रात का घटनाचक्र घूम गया, उसने सारी कथा मृग को सुना दी। तब मृग ने कहा, 'मेरी तीनों पत्नियां जिस प्रकार प्रतिज्ञाबद्ध होकर गई हैं, मेरी मृत्यु से अपने धर्म का पालन नहीं कर पाएंगी। अतः जैसे तुमने उन्हें विश्वासपात्र मानकर छोड़ा है, वैसे ही मुझे भी जाने दो। मैं उन सबके साथ तुम्हारे सामने शीघ्र ही उपस्थित होता हूं।' उपवास, रात्रि-जागरण तथा शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ने से शिकारी का हिंसक हृदय निर्मल हो गया था। उसमें भगवद् शक्ति का वास हो गया था। धनुष तथा बाण उसके हाथ से सहज ही छूट गया। भगवान शिव की अनुकंपा से उसका हिंसक हृदय कारुणिक भावों से भर गया। वह अपने अतीत के कर्मों को याद करके पश्चाताप की ज्वाला में जलने लगा।

थोड़ी ही देर बाद वह मृग सपरिवार शिकारी के समक्ष उपस्थित हो गया, ताकि वह उनका शिकार कर सके, किंतु जंगली पशुओं की ऐसी सत्यता, सात्विकता एवं सामूहिक प्रेमभावना देखकर शिकारी को बड़ी ग्लानि हुई। उसके नेत्रों से आंसुओं की झड़ी लग गई। उस मृग परिवार को न मारकर शिकारी ने अपने कठोर हृदय को जीव हिंसा से हटा सदा के लिए कोमल एवं दयालु बना लिया। देवलोक से समस्त देव समाज भी इस घटना को देख रहे थे। घटना की परिणति होते ही देवी-देवताओं ने पुष्प-वर्षा की। तब शिकारी तथा मृग परिवार मोक्ष को प्राप्त हुए।

शिव पुराण के अनुसार, महाशिवरात्रि *पूजा में छह वस्तुओं को अवश्य शामिल करना चाहिए:*

शिव लिंग का पानी, दूध और शहद के साथ अभिषेक। बेर या बेल के पत्ते जो आत्मा की शुद्धि का प्रतिनिधित्व करते हैं;

सिंदूर का पेस्ट स्नान के बाद शिव लिंग को लगाया जाता है। यह पुण्य का प्रतिनिधित्व करता है;

फल, जो दीर्घायु और इच्छाओं की संतुष्टि को दर्शाते हैं;

जलती धूप, धन, उपज (अनाज);

दीपक जो ज्ञान की प्राप्ति के लिए अनुकूल है;

और पान के पत्ते जो सांसारिक सुखों के साथ संतोष अंकन करते हैं।

अभिषेक में निम्न वस्तुओं का प्रयोग नहीं किया जाता है:

तुलसी के पत्ते

हल्दी

चंपा और केतकी के फूल।



*डाॅ.रवि नंदन मिश्र*

*असी.प्रोफेसर*

( *पं.रा.प्र.चौ.पी.जी.काॅलेज,वाराणसी*) *सदस्य- अखिल भारतीय ब्राम्हण एकता परिषद, वाराणसी  एवं उत्तरप्रदेशअध्यक्ष - वीर ब्राह्मण महासंगठन,हरियाणा*

*मोबाइल नंबर-7766989511*

मोदी के पूरे बाकी कार्यकाल दिल्ली बॉर्डर पर बैठने को तैयार : नरेंद्र टिकैत


मुजफ्फरनगर। किसान नेता महेन्द्र सिंह टिकैत के पुत्र नरेंद्र टिकैत भी पहली बार किसान आंदोलन पर बोले हैं। उन्होंने कहा है कि केन्द्र के तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ किसान मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के शेष साढ़े तीन साल तक दिल्ली की सीमाओं पर बैठे रहने को तैयार हैं। नरेंद्र उनके पिता द्वारा 1986 में गठित भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) में किसी आधिकारिक पद पर नहीं है और ज्यादातर परिवार की कृषि गतिविधियों पर ध्यान केंद्रित करते हैं, लेकिन किसानों से संबंधित मुद्दों पर वह उतने ही मुखर है, जितने कि उनके दो बड़े भाई नरेश और राकेश टिकैत।

नरेश टिकैत और राकेश टिकैत इन कानूनों के खिलाफ जारी आंदोलन का पिछले 100 दिनों से अधिक समय से नेतृत्व कर रहे हैं।मुजफ्फरनगर जिले के सिसौली में स्थित अपने आवास पर 45 वर्षीय नरेंद्र ने कहा कि उनके दो भाइयों सहित पूरा टिकैत परिवार आंदोलन से पीछे हट जायेगा यदि उनके परिवार के किसी भी सदस्य के खिलाफ यह बात साबित कर दी जाये कि उन्होंने कुछ भी गलत किया है। उन्होंने कुछ वर्गो के उन आरोपों को भी खारिज कर दिया जिनमें कहा गया था कि उन्होंने आंदोलन से संपत्ति और धन अर्जित किया है। नरेंद्र के सबसे बड़े भाई नरेश टिकैत बीकेयू के अध्यक्ष हैं जबकि राकेश टिकैत संगठन के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं।

महेंद्र सिंह टिकैत के नेतृत्व में बीकेयू ने गन्ने की ऊंची कीमतों, ऋणों को रद्द करने और पानी और बिजली की दरों को कम करने की मांग को लेकर मेरठ की घेराबंदी की थी। उसी वर्ष, बीकेयू ने किसानों की ''दुर्दशा'' पर ध्यान केंद्रित करने के लिए दिल्ली के बोट क्लब में एक सप्ताह तक विरोध प्रदर्शन किया था। महेंद्र सिंह टिकैत की 2011 में मृत्यु के बाद, नरेश और राकेश टिकैत विभिन्न भूमिकाओं में मुख्य संगठन का नेतृत्व कर रहे हैं, हालांकि देश के विभिन्न हिस्सों में वर्षों से कई गुट उभरे हैं। नरेंद्र ने कहा कि केन्द्र इस गलतफहमी में है कि वह किसानों के विरोध को उसी तरह कुचल सकता है जैसा कि उसने विभिन्न रणनीतियों का इस्तेमाल कर पूर्व में हुए अन्य आंदोलनों को कुचला था। उन्होंने कहा, ''मैं यहां सिसौली में हूं, लेकिन मेरी नजर वहां पर है।''

उन्होंने कहा कि वह गाजीपुर की सीमा पर जाते रहते हैं जहां नवंबर 2020 से सैकड़ों किसान और बीकेयू समर्थक डेरा डाले हुए हैं। नरेंद्र ने कहा, ''इस सरकार को गलतफहमी है, शायद इसलिए कि इस तरह के विरोध का सामना उसे कभी नहीं करना पड़ा, लेकिन हमने आंदोलन देखे हैं और 35 वर्षों से इसका हिस्सा हैं। इस सरकार को केवल छोटे विरोधों का सामना करने और विभिन्न रणनीति के माध्यम से उन विरोध प्रदर्शनों को दबाने का अनुभव है।'' उन्होंने कहा, ''वे किसी भी तरह से इस विरोध को कुचल नहीं सकते। यह तब तक जारी रहेगा जब तक हमारी मांगें पूरी नहीं होतीं। इस सरकार का कार्यकाल साढ़े तीन साल का है, और हम उसके कार्यकाल के अंत तक आंदोलन जारी रख सकते हैं।''

उन्होंने कहा, ''अगर सरकार बार-बार कहती है कि फसलों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर खरीदा जाएगा, तो वे इसे लिखित रूप में क्यों नहीं दे सकते? वे रसोई गैस सिलेंडर पर सब्सिडी देने की बात कहते रहते हैं, लेकिन यह सब्सिडी भी खत्म हो गई है।'' टिकैत ने आरोप लगाया कि केंद्र ने स्कूल शिक्षा क्षेत्र के लिए यही काम किया है, जहां निजी संस्थान पैसे कमा रहे हैं, जबकि सरकारी संस्थानों की स्थिति और खराब होती जा रही है। उन्होंने कहा, ''अब वे चाहते हैं कि व्यावसायिक घराने फसलों का भंडारण करें और बाद में वांछित दरों पर बेच दें। उनका प्रयास व्यवसाय के लिए है और यही एजेंडा है।'' उन आरोपों के बारे में पूछे जाने पर कि टिकैत परिवार के पास करोड़ों की जमीन है और क्षेत्र में बीकेयू गुंडागर्दी में शामिल है, उन्होंने कहा, ''ऐसा कुछ भी नहीं है कि वे (सरकार) हमारे खिलाफ कुछ साबित कर सकें और इसलिए ऐसा (आरोपों को लगाना) हो रहा है। यदि वे हमारे परिवार के किसी एक सदस्य में भी कोई दोष पाते हैं, तो हम दिल्ली से लौट आएंगे।'' उन्होंने बीकेयू द्वारा गुंडागर्दी के आरोपों को भी गलत बताया।

उन्होंने कहा, ''हम ऐसा क्यों करेंगे? कुछ तो यह भी कहते हैं कि हम विरोध प्रदर्शन के लिए पैसे ले रहे हैं। हमारे 200 से अधिक किसानों ने विरोध प्रदर्शन के दौरान अपना बलिदान दिया है। विरोध के लिए पैसे लेने का कोई सवाल नहीं है क्योंकि हमारे पास किसी भी संसाधन की कमी नहीं है।'' उनके सबसे बड़े भाई नरेश टिकैत बालियान खाप के प्रमुख हैं। नरेंद्र ने कहा, ''हमारे 84 गांव हैं (बालियान खाप से संबंधित)। इस हिसाब से हमारे पास तीन लाख बीघा जमीन है। जब हमारे पिता का निधन हो गया, तो उन्होंने 84 गांवों की जिम्मेदारी हमारे ऊपर दी थी। हम 84 गांवों के चौधरी हैं और ये सब केवल हमारे है। ज्यादा पैसे हासिल कर हमें क्या करना हैं।''

टिकैत ने सोरम में एक 'सर्व खाप' बैठक में संकेत दिया कि यदि दिल्ली की सीमाओं पर प्रदर्शन जारी रहा और सरकार किसानों की मांगों पर सहमत नहीं होती है तो निकट भविष्य में और क्षेत्रीय समर्थन जुटाया जायेगा। गौरतलब है कि केन्द्र के तीन नये कृषि कानूनों को निरस्त किये जाने की मांग को लेकर किसान दिल्ली की सीमाओं टिकरी, सिंघू और गाजीपुर बॉर्डर पर पिछले कई महीनों से आंदोलन कर रहे हैं।

किसानों ने फिर किया 26 मार्च को भारत बंद का आह्वान


नई दिल्ली। एमएसपी पर कानून बनाने और तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग को लेकर 26 मार्च को चार महीने पूरे होने के अवसर पर किसान संगठनों ने भारत बंद बुलाया है। 

इससे पहले किसान यूनियनों ने 26 जनवरी को ट्रैक्टर परेड निकाली थी, जिसमें काफी हिंसा हुई थी। बड़ी संख्या में किसान दिल्ली पुलिस द्वारा तय किए गए रूटों से अलग चले गए थे। कई किसानों ने लाल किले परिसर में घुसते हुए झंडा फहरा दिया था। इसके बाद दिल्ली पुलिस ने कार्रवाई करते हुए कई लोगों को गिरफ्तार भी किया। हिंसा को लेकर विभिन्न व्यक्तियों के खिलाफ 38 मामले दर्ज किए गए। 

उधर,  भारतीय किसान यूनियन (भाकियू) के नेता राकेश टिकैत ने आगामी 13 मार्च को कोलकाता जाने का ऐलान करते हुए कहा है कि वह किसानों से पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव पर चर्चा करके भाजपा को पराजित करने का आह्वान करेंगे। हालांकि, वह किसी राजनैतिक दल का समर्थन नहीं करेंगे।

उन्होंने कहा कि वह 13 मार्च को कोलकाता जाएंगे और वहीं से निर्णायक संघर्ष का बिगुल फूकेंगे।

विधायक उमेश मलिक ने किया पुलिस चौकी के गेट का लोकार्पण

 मुजफ्फरनगर l




बुढ़ाना विधायक उमेश मलिक बुढ़ाना नगर पंचायत चेयरमैन बाला त्यागी व अन्य भाजपा नेताओं ने बुढाना विधानसभा के कस्बा बुढाना में निर्मित पुलिस चौकी के गेट का लोकार्पण किया व सेल्फी प्वाइंट पर बैठकर चाय का आनंद लिया इस दौरान जिला पंचायत सदस्य रामनाथ ठाकुर नामित सभासद कुलदीप बागड़ी व रामनरेश हिमांशु सिंघल अनिल राठी पुनीत पवार मोनू मलिक अनुज गौतम विकास वर्मा नीरज वर्मा आदि लोग उपस्थित रहे

जीआईसी भैंसी में मिशन शक्ति कार्यक्रम के अंतर्गत छात्राओं के साथ घरेलू हिंसा पर चर्चा


मुजफ्फरनगर l  राजकीय कन्या इंटर कॉलेज भैंसी में मिशन शक्ति अभियान के अंतर्गत छात्राओं के साथ घरेलू हिंसा के विभिन्न रूपों पर खुलकर चर्चा की गई। इस अवसर पर थाना कोतवाली खतौली के एसएचओ श्हृदय नारायण सिंह ने उपस्थित छात्राओं को संबोधित करते हुए कहा कि छात्राएं अपनी पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित करने के साथ-साथ मानसिक रूप से सबल रहे, तभी वह सभी समस्याओं से सुरक्षित रह सकती हैं ।  सिंह ने कहा कि बालिकाएं "डरे नहीं , सहे नहीं," को व्यवहारिकता में अपनाएं।

कोतवाली की उपनिरीक्षक  सुमन शर्मा ने कहा कि मिशन शक्ति कार्यक्रम का उद्देश्य नारी सुरक्षा, नारी सम्मान एवं नारी स्वावलंबन है । इसलिए छात्राओं को वीमेन पावर लाइन 1090, महिला हेल्पलाइन 181,  मुख्यमंत्री हेल्पलाइन 1076, पुलिस आपातकालीन सेवा 112, चाइल्डलाइन




1098, स्वास्थ्य सेवालाइन 102 एवं एंबुलेंस सेवा 108 के बारे में जागरूक रहना होगा ताकि जरूरत पड़ने पर उपरोक्त सेवाओं का लाभ लिया जा सके।

विद्यालय की प्रधानाचार्या एवं जनपदीय नोडल अधिकारी श्रीमती उमा रानी ने बालिकाओं को घरेलू हिंसा व उनके संवैधानिक अधिकारों के विषय में विस्तारपूर्वक जानकारी देते हुए उन्हें सजग किया तथा बताया कि उत्तर प्रदेश शासन एवं प्रदेश पुलिस प्रत्येक महिला व बेटी की सुरक्षा एवं सम्मान तथा उनके स्वावलंबन के प्रति प्रतिबंध है, इसलिए मिशन शक्ति अभियान संचालित किया जा रहा है। कार्यक्रम में उप निरीक्षक सुमन शर्मा, मोनिका, हरेंद्र सिंह व पिंटू सिंह तथा विद्यालय की प्रधानाचार्या उमारानी सहित प्रियंका, गुंजन राघव, आकांक्षा मित्तल, अंजू वर्मा, मुकेश गौतम, रेखा शर्मा, इला रानी, बिमलेश रानी, सुदेश आदि समस्त शिक्षिकाएं उपस्थित थी ।

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 🙏🏻 हर हर महादेव🙏🏻  🌞 *~ वैदिक पंचांग ~* 🌞  🌤️ *दिनांक - 04 मार्च 2025* 🌤️ *दिन - मंगलवार* 🌤️ *विक्रम संवत - 2081* 🌤️ *शक संवत -...