गुरुवार, 9 सितंबर 2021

काशी विश्वनाथ मंदिर ज्ञानवापी मस्जिद में सर्वे के आदेश पर रोक


प्रयाग राज। हाईकोर्ट ने ज्ञानवापी परि‍सर का एएसआई से पुरातात्‍वि‍क सर्वेक्षण कराने पर अग्रि‍म आदेश आने तक रोक लगा दि‍या है। यहां ये जानने के लिए सर्वे करने के आदेश निचली कोर्ट ने दिए थे कि क्या मंदिर तोड़ कर मस्जिद बनाई गई है। 

इलाहाबाद हाईकोर्ट में यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड और मस्जिद इंतेज़ामिया कमेटी की तरफ से सिविल कोर्ट वाराणसी के 8 अप्रैल के एएसआई से पुरातात्‍वि‍क सर्वेक्षण कराने फैसले के विरोध में याचिका दायर की गयी थी, जिसपर सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने सर्वेक्षण पर फि‍लहाल रोक लगा दी है। मस्जिद इंतेज़ामिया कमेटी और सुनी सेन्ट्रल वक्फ बोर्ड ने याचिका में पूजा स्थल (विशेष प्रवधान) अधिनियम 1991 के आदेश की अनदेखी का आरोप लगाया था।

हाईकोर्ट ने वाराणसी सिविल कोर्ट द्वारा 8 अप्रैल को मस्जिद परिसर की जांच के लिए एएसआई सर्वेक्षण का आदेश पारित किया था। इस आदेश के विरोध में 1991 पूजास्थल कानून का हवाला देते हुए यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड और मस्जिद इंतेज़ामिया कमेटी की तरफ से रोक लगाए जाने की मांग करते हुए हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की थी। 

इस अपील पर सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने ASI के सर्वेक्षण पर अग्रिम आदेश तक गुरुवार को रोक लगा दी। हाईकोर्ट की सिंगल बेंच में पहले से मामले पर फैसला सुरक्षित होने का इसमें हवाला दिया गया था और हाईकोर्ट के रिजर्व फैसला आने तक एएसआई जांच आदेश पर रोक लगाए जाने की मांग की गई थी, जिसके बाद हाईकोर्ट ने यह फैसला दिया है। 

स्वयंभू ज्‍योति‍र्लिंग लॉर्ड विश्‍वेश्‍वर के वाद मित्र विजय शंकर रस्तोगी के अनुसार विश्वनाथ मंदिर परिसर में तामील ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर साल 1991 में एक मुकदमा दायर हुआ था, जिसमे मांग की गई थी कि मस्जिद स्वयंभू विश्वेश्वर मंदिर का एक अंश है, जहां हिंदू आस्थावानों को पूजा-पाठ, दर्शन और मरम्‍मत का अधिकार है। इसी मुकदमे में सर्वेक्षण का एक प्रार्थना पत्र विजय शंकर रस्तोगी ने दिया था और कहा था कि कथित विवादित परिसर में स्वयंभू विश्वेश्वरनाथ का शिवलिंग आज भी स्थापित है। इसलिए, कोर्ट से भौतिक और पुरातात्विक दृष्टि से भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा रडार तकनीक से सर्वेक्षण तथा परिसर की खोदाई कराकर रिपोर्ट मंगाने की अपील की गई थी। जिस पर वाराणसी कोर्ट ने 8 अप्रैल को आदेश जारी किया था। 

वहीं मस्जिद पक्ष उसी दिन से इस फैसले को 1991 के पूजा स्थल कानून का खुलेआम उल्लंघन बता रहा था। मस्जिद इंतेज़ामिया कमेटी और सुन्नी सेन्ट्रल वक्फ बोर्ड के अधिवक्ता के अनुसार 1991 पूजास्थल कानून के मुताबिक 15 अगस्त 1947 से पहले अस्तित्व में आए किसी भी धर्मस्थल को दूसरे धर्मस्थल में नहीं बदला जा सकता। उनका कहना है कि इस मामले में 1937 में ही फैसला आ गया था, जिसे बाद में 1942 में हाईकोर्ट ने भी तस्दीक किया था। फिर ये मामला चलना ही नहीं चाहिए। लिहाजा, मस्जिद पक्ष ने कानूनी लड़ाई लड़ने के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।

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