सोमवार, 1 फ़रवरी 2021

क्या मुजफ्फरनगर के हजारो परिवारों को घर से बेघर कर देगा जिला प्रसाशन ?

मुज़फ्फरनगर : मुज़फ्फरनगर की उप जिलाधिकारी कोर्ट द्धारा आदेश जारी कर मुज़फ्फरनगर के भोपा रोड पर स्थित 51 बीघा भूमि के स्वामित्व व् काबिज अनिल सवरूप और अलोक सवरूप पर जांचोपरांत सरकारी अभिलेखों में हेरा फेरी कर अपना नाम दर्ज कराने का आरोप लगते हुए , उक्त 51 बीघा भूमि को कब्जा मुक्त करा राज्य सरकार के स्वामित्व में दर्ज किये जाने के आदेश तहसीलदार सदर को दीये है। वंही भूमि पर काबिज अनिल सवरूप ने भी दावा किया है की सरकारी बैनामों और अभिलेखों में दर्ज इस भूमि 
के स्वामित्व का अधिकार हमारे पास सुरक्षित है। उप जिलाधिकारी दीपक कुमार द्धारा जारी आदेश में यह भी आरोप लगाया गया है की उक्त भूमि पर काबिज अनिल सवरूप और आलोक स्वरूप आदि को दिनांक 15 जून 2020 को उप जिलाधिकार्यालय से एक नोटिस इस बाबत जारी गया था की 30 जून को कोर्ट में उपस्थित होकर अपने साक्ष्य के साथ अपना पक्ष रखे।लेकिन उपरोक्त अनिल सवरूप आदि नियत तिथि को कोर्ट में न तो उपस्थित ही हुए और न ही साक्ष्य उपलब्ध करा पाए जिस कारण उप जिलाधिकारी द्धारा एक पक्षीय कार्यवाही कर उक्त भूमि पर काबिज अनिल स्वरूप आदि को बेदखल कर भूमि को कब्जा मुक्त करा राज्य सरकार के स्वामित्व में दर्ज करने के आदेश जारी कर दीये . जबकि उक्त पर काबिज अनिल स्वरुप द्धारा दिनांक 27 जून 2020 को उप जिलाधिकारी को सम्बोधित ,उक्त नोटिस का जवाब में स्पष्ट लिखा गया था। की पुरे देश में कोरोना महामारी के चलते देश के प्रधानमंत्री द्धारा जारी दिशा निर्देश के अनुसार अनलॉक 1.0 कुछ शर्तो के लिए सामान्य लोगो के लिए खोला गया था। वरिष्ठ नागरीको को सरकार द्धारा घरो में ही रहने की हिदायत दी गयी थी। इसी लिए लगभग 60 वर्षीय आलोक स्वरूप द्धारा भी सरकार के दिशा निर्देशों का पालन करने का हवाला देते हुए जुलाई और अगस्त 2020 में साक्ष्य उपलब्ध कराकर अपना पक्ष रखने की अनुमति मांगी गयी थी। जिसपर उप जिला धिकारी द्धारा कोई अनुमति प्रदान नहीं की गयी और एक पक्षीय कार्यवाही करते हुए भूमि को कब्जा मुक्त किये जाने के आदेश जारी कर दीये गए। 




*आखिर करोड़ो की इस जमीन का कौन मालिक था ? देश की आज़ादी से पूर्व ? जाने पूरा मामला।* 




जनपद मुज़फ्फरनगर ग्राम युसुफपुर हदूद के अंतर्गत नंबर 4/1 भूमि क्षेत्रफल लगभग 570 बीघा , नवाब रुस्तम अली खां के वंशज शाजिद अली खां द्धारा सन 1942 में मुज़फ्फरनगर के सेठ लाला दीपचंद्र को 62,000 रूपये की कीमत पर बेचने और तीन माह में बैनामा कराये जाने का अनुबंध हुआ , जिसमे लाला दीपचंद्र द्धारा उक्त भूमि को खरीदने की बाबत शमशेर अली खा को 10,000 रूपये बाबत पेशगी अदा कर दी गयी। लेकिन बैनामा कराये जाने से पूर्व आपसी विवाद के चलते नवाब शमशेर अली खा द्धारा उक्त 570 बीघा भूमि का बैनामा मुज़फ्फरनगर के लाला दुर्गा प्रसाद को मात्र 58,000 रूपये लेकर कर दिया गया। और लाला दीपचंद्र द्धारा बैनामे की पेशगी में आये 10,000 रूपये नवाब शमशेर अली खा द्धारा वापिस कर दीये गए। लाला दीपचंद्र द्धारा उक्त पुरे मामले का एक वाद सिविल कोर्ट मेरठ में दायर किया गया जिसमे सिविल कोर्ट में सुनवाई के बाद कोर्ट ने लाला दुर्गा प्रसाद के बैनामे को सही मानते हुए उक्त भूमि का मालिकाना हक़ लाला दुर्गा प्रसाद को माना गया। जिस पर लाला दीपचंद्र द्धारा हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया गया जिसमे सुनवाई के बाद सन 1949 में हाई कोर्ट बेंच द्धारा लाला दीपचंद्र के बैनामे को सही करार देते हुए अपना फैसला सुनाया। लाला दुर्गा प्रसाद द्धारा कोर्ट में उक्त मामले की अपील की गयी जिसमे सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट के आदेश को सुरक्षित रखकर लाला दीपचंद्र के पक्ष में फैसला सुनाते हुए आदेश जारी कर दिया की उक्त 570 बीघा भूमि को खरीदने का सर्वप्रथम अधिकार लाला दीपचंद्र को दिया जाता है। सुप्रीम कोर्ट के न्यायधीश सरीन साहब द्धारा सन 1950 में लाला दुर्गा प्रसाद का बैनामा निरस्त होकर लाला दीपचंद्र के पक्ष में उक्त भूमि का बैनामा कर दिया जाता है। और लाला दुर्गा प्रसाद की रकम को भी वापस कर दिया जाता है। 





 *आखिर 51 बीघा भूमि का कैसे स्वामित्व मिला स्वरूप परिवार को ? जाने पूरा मामला*


हाई कोर्ट से राहत मिलाने के बाद लाला दीपचंद्र को उक्त 570 बीघा भूमि का स्वामित्व प्राप्त हुआ। उक्त 4/1 , 570 बीघा भूमि में सरकारी अभिलेखों के अनुसार लगभग 50 बीघा भूमि में मालिकाना हक़ लाला दीपचंद्र का दर्शाया गया था और अनिल सवरूप और आलोक स्वरूप के दादा रघुराज काश्तकार के रूप में काबिज थे। सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देश में यह भी स्पष्ट किया गया था की विवादित भूमि लाला दीपचंद्र की है। सन 1990 में लाला दीपचंद्र के वंशजो द्धारा सुप्रीम कोर्ट आदेश का अनुपालन करते हुए एक वाद उप जिलाधिकारी सदर मुज़फ्फरनगर कोर्ट में दायर किया गया की लाला दीपचंद्र की मलकियत उक्त भूमि को रघुराज स्वरूप के वंशजो से कब्ज़ा मुक्त कराई जाए। लेकिन शहर के मौजिज व्यक्तियों के हस्तक्षेप से दोनों पक्षों में आपसी रजामंदी से निर्णय लिया गया की उक्त विवादित भूमि पर काबिज रघुराज के वंशज अनिल स्वरूप और आलोक स्वरूप द्धारा उक्त जमीन का कुछ हिस्सा लाला दीपचंद्र के वंशजो को वापस दिया जाए । और बाकि बची जमीन पर मालिकाना हक़ रघुराज के वंशजो का होगा। दोनों पक्षों में हुए लिखित आपसी समझौते को उप जिलाधिकारी सदर कोर्ट मुज़फ्फरनगर के समक्ष पेश किया गया। और समझौते के तहत रघुराज स्वरूप के वंशजो द्धारा उक्त भूमि का लगभग आधा हिस्सा लाला दीपचंद्र के वंशजो को वापस कर दिया गया। सन 1994 में लिखित समझौते के अनुसार उप जिला अधिकारी सदर द्धारा उक्त समझौते के तहत रघुराज स्वरूप के वंशजो अनिल स्वरूप और आलोक स्वरूप पर बाकि बची जमीन पर मालिकाना हक़ मानते हुए सरकारी अभिलेखों में अनिल स्वरूप और आलोक स्वरूप का नाम इंद्राज किया गया था। 
 
   


*उप जिला अधिकारी ने अपनी ही कोर्ट के आदेश को झूठा साबित कर , उक्त जमीन को शत्रु संपत्ति घोषित कर दिया।* 



साक्ष्यों के अनुसार सन 1990 में लाला दीपचंद्र के वंशजो द्धारा सुप्रीम कोर्ट के अनुपालन में उप जिला अधिकारी सदर मुज़फ्फरनगर कोर्ट में एक वाद इस उदेश्य से डाला गया था की लाला दीपचंद्र की भूमि पर काबिज रघुराज स्वरूप के वंशजो से मुक्त कराकर वापस कराई जाए। लेकिन दोनों पक्षों के वंशजो द्धारा आपसी सहमति से लगभग आधी भूमि वापस जाने की सहमति बनी और उस सहमति को लिखित रूप में दोनों पक्षों द्धारा उप जिला अधिकारी सदर कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत किया गया। जिसके आधार पर उप जिला अधिकारी सदर द्धारा उक्त विवादित भूमि में दोनों पक्षों के वंशजो को लगभग आधा आधा मालिकाना हक़ करार देते हुए सन 1994 में रघुराज स्वरूप के वंशज अनिल स्वरूप और आलोक स्वरूप को मालिकाना हक़ देकर सरकारी अभिलेखों में नाम इंद्राज किये गए थे जिसका प्रमाण उप जिलाधिकारी कोर्ट में सुरक्षित है। 
    तत्कालीन उप जिला अधिकारी सदर दीपक कुमार ने आखिर किस आधार पर रघुनाथ स्वरूप के वंशजो पर उक्त जमीन के अभिलेखों में कटिंग/ओवर राइटिंग कर अपने नाम अंकित किये जाने का आरोप लगाते हुए नोटिस के माध्यम से उक्त जमीन के साक्ष्य समेत अपना पक्ष रखने की सूचना दी गई। लेकिन उप जिला अधिकारी द्धारा देश में फ़ैल रही वैश्विक बीमारी और केंद्र सरकार की गाईड लाइन को दरकिनार कर प्रतिवादी का बिना पक्ष सुने , एक पक्षीय कार्यवाही करते हुए निजी संपत्ति को शत्रु संपत्ति मान कब्जा मुक्त करने के आदेश जारी कर दीये गए।
  


*साक्ष्यों की अनदेखी कर , निजी सम्पति को जबरदस्ती अधिग्रहण करना चाहता है जिला प्रसाशन ।*  


उप जिला अधिकारी सदर मुज़फ्फरनगर द्धारा 31 दिसंबर 2020 को जारी किये गए आदेश में यह भी लिखा गया है की सरकारी अभिलेखों में छेड़छाड़ कर उक्त भूमि में अपने नाम अंकित किये गए है। सरकारी अभिलेख सरकार की संपत्ति है और यह संपत्ति बाकायदा जिला प्रसाशन की सुरक्षा के तहत रिकॉर्ड रूम में सुरक्षित रखी जाती है। सरकारी अभिलेख सरकारी सम्पत्ति है और आम आदमी की पहुंच से दूर है , यदि अभिलेखों में कोई कटिंग या ओवर राइटिंग की भी गयी है तो वह कोई सामान्य व्यक्ति द्धारा नहीं बल्कि अभिलेखों में लिखते समय हुयी त्रुटि को सम्बंधित अधिकारी / विभाग का अधिकृत कर्मचारी ही काटकर सही करता है। और यदि अभिलेखों में कटिंग को आधार मानकर शत्रु संपत्ति माना जा रहा है। तो क्या सन 1950 में सुप्रीम कोर्ट द्धारा उक्त भूमि का द्धारा लाला दीपचंद्र को किया गया था।1950 में हुआ बैनामा ही अपने आप में एक प्रमाण है जो साबित करता है की यह संपत्ति शत्रु संपत्ति नहीं , बल्कि लाला दीपचंद्र की अपनी निजी संपत्ति है जिसकी कीमत अदा करके लाला दीपचंद्र ने खरीदी थी। 
 
 

आपको बता दे की उक्त खसरा नंबर की भूमि में लाला दीपचंद्र द्धारा मुज़फ्फरनगर में गाँधी कॉलोनी , पटेल नगर, शिवपुरी ,महामना मालवीय कालेज , साकेत , नई मंडी जैसी अनेक रिहायशी बस्तिया बसाई गयी थी। जिसमे वर्तमान में हजारो की संख्या में आवास बने हुए है जिसमे लाखो की संख्या में लोग रह रहे है। नई मंडी स्थित द्धारका पुरी कॉलोनी को बसाने के लिए सरकार द्धारा लाला दीपचंद्र से जमीन को अधिग्रहण किया गया था , जिसकी बाबत सरकार द्धारा तीन बार लाला दीपचंद्र को जमीन का मुआवजा भी दिया गया था। यदि यह जमीन सरकार की थी तो , सरकार द्धारा लाला दीपचंद्र से जमीन का मुआवजा अदा कर अधिकरण क्यों की गयी थी ? यह भी सरकारी अभिलेखों में दर्ज है। जिला प्रसाशन / उप जिला अधिकारी सदर द्धारा उक्त मामले में सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों और दिशा निर्देशों को दरकिनार कर एक आदेश के तहत उक्त भूमि में बसे घर परिवारों को नेस्तेनाबूद करना चाहते है। उप जिला अधिकारी सदर मुज़फ्फरनगर द्धारा जारी किये गए आदेश में जो खाता संख्या और खसरा संख्या दर्शायी गयी है , उन पर रघुराज स्वरूप के वंशज नहीं बल्कि शहर की लाखो आबादी के घर बसे है। क्या जिला प्रसाशन ध्वस्तीकरण की कार्यवाही कर लाखो लोगो के घर नेस्तेनाबूद कर उक्त जमीन को राज्य सरकार के खाते में दर्ज कर पायेगा ? यह एक जांच का विषय है ।

*कोर्ट की अवमानना को लेकर हो सकती है जिला प्रसाशन के खिलाफ बड़ी कार्यवाही*

जिला प्रशासन द्वारा जारी एक आदेश के तहत कुछ जमीनों के खाता संख्या एवं खसरा संख्या को शत्रु संपत्ति मानते हुए उक्त खसरा संख्या की जमीनों पर कब्जा लेकर उत्तर प्रदेश के खाते में दर्ज किए जाने के आदेश जारी किए गए लेकिन उक्त खसरा संख्या में मुजफ्फरनगर की अनेक रिहायशी बस्तियों गांधी कॉलोनी साकेत कॉलोनी शिवपुरी नई मंडी इत्यादि बस्तियों में हजारों की संख्या में घर बने हुए हैं जिनमें लाखों की संख्या में परिवार बसे हैं क्या जिला प्रशासन अपने आदेश के मुताबिक उन सभी रिहायशी बस्तियों पर भी कब्जा लेकर लाखों परिवारों को घर से बेघर करेगा जबकि सभी के पास उक्त जमीन या घरों की रजिस्ट्री बेनामे भी लोगों के पास उपलब्ध है ऐसा क्या कारण है कि जिला प्रशासन द्वारा इतना बड़ा निर्णय लिया गया है ?उक्त मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा यदि संज्ञान लिया गया तो जिला प्रशासन के खिलाफ हो सकती है बड़ी कार्यवाही।

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