बुधवार, 30 सितंबर 2020

बिजली कर्मचारियों का धरना प्रदर्शन जारी रहा

मुजफ्फरनगर । बिजली विभाग के पूर्वांचल खंड के निजी करण के विरुद्ध विद्युत कर्मियों का धरना प्रदर्शन जारी रहा। 


जनपद मुजफ्फरनगर में आज जाट कालोनी स्थित स्टेडियम के सामने बिजली दफ्तर पर बिजली कर्मचारियों ने विधुत का निजीकरण व सरकार के खिलाफ नारेबाजी करते हुए अपनी 7 सूत्रीय मांगों को लेकर धरना प्रदर्शन किया ये धरना 4 अक्टूबर तक चलेगा। 


विधुत कर्मचारियों की 7 सूत्रीय मांगे----


1. हम आपके संज्ञान में लाना चाहते हैं कि पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम को तीन टुकड़ों में विभाजित कर सम्पूर्ण विद्युत वितरण का निजीकरण करने के प्रदेश सरकार के प्रस्ताव के विरोध में विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति, उप्र द्वारा चलाये जा रहे ध्यानाकर्षण अभियान के अनुसार प्रदेश के सभी ऊर्जा निगमों के तमाम बिजली कर्मचारी, जूनियर इंजीनियर व अभियन्ता विगत 01 सितम्बर से लगातार शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं किन्तु प्रबंधन का हठवादी व दमनात्मक रवैय्या बना हुआ है जिससे बिजली कर्मियों में भारी गुस्सा है। इस संबंध में हम आपसे निम्नवत निवेदन करना चाहते हैं :-


पूर्वांचल विद्युत् वितरण निगम का निजीकरण किसी भी प्रकार से प्रदेश व आम जनता के हित में नहीं है। निजी कंपनी मुनाफे के लिए काम करती है जबकि पूर्वांचल विद्युत् वितरण निगम बिना भेदभाव के किसानों और गरीब उपभोक्ताओं को निर्बाध बिजली आपूर्ति कर रहा है। निजी कंपनी अधिक राजस्व वाले वाणिज्यिक और औद्योगिक उपभोक्ताओं को प्राथमिकता पर बिजली देगी जो ग्रेटर नोएडा और आगरा में हो रहा है। ग्रेटर नोएडा और आगरा में निजीकरण की विफलता को देखते हुए पूर्वांचल विद्युत् वितरण निगम के निजीकरण का प्रस्ताव हर हाल में रद्द किया जाना चाहिए। 


निजी कंपनी लागत से कम मूल्य पर किसी उपभोक्ता को बिजली नहीं देगी। अभी किसानों, गरीबी रेखा के नीचे और 500 यूनिट प्रति माह बिजली खर्च करने वाले उपभोक्ताओं को पॉवर कारपोरेशन घाटा उठाकर बिजली देता है जिसके चलते इन उपभोक्ताओं को लागत से कम मूल्य पर बिजली मिल रही है। अब निजीकरण के बाद स्वाभाविक तौर पर इन उपभोक्ताओं के लिए बिजली महंगी होगी।


उत्तर प्रदेश में बिजली की लागत का औसत रु 07.90 प्रति यूनिट है और निजी कंपनी द्वारा एक्ट के अनुसार कम से कम 16% मुनाफा लेने के बाद रु 09.50 प्रति यूनिट से कम दर पर बिजली किसी को नहीं मिलेगी। इस प्रकार एक किसान को लगभग 8000 रु प्रति माह और घरेलू उपभोक्ताओं को 8000 से 10000 रु प्रति माह तक बिजली बिल देना होगा। निजी वितरण कंपनियों को कोई घाटा न हो इसीलिये निजीकरण के प्रस्ताव के अनुसार पूर्वांचल में तीन वर्ष में ट्यूबवेल के फीडर अलग कर ट्यूबवेल को सौर ऊर्जा से जोड़ देने की योजना है। अभी सरकारी कंपनी घाटा उठाकर किसानों और उपभोक्ताओं को बिजली देती है। निजीकरण के प्रस्ताव के अनुसार सरकार निजी कंपनियों को 05 साल से 07 साल तक परिचालन व अनुरक्षण हेतु आवश्यक धनराशि भी देगी। साथ ही निजी कंपनियों को विद्युत वितरण सौंपने के समय तक के सभी घाटे का उत्तरदायित्व पॉवर कारपोरेशन अपने ऊपर ले लेगा जिससे निजी कंपनियों को क्लीन स्लेट मिले। केन्द्र सरकार द्वारा 20 सितम्बर को जारी निजीकरण के बिडिंग दस्तावेज में इन सभी बातों का स्पष्ट उल्लेख है।


निजीकरण और फ्रेन्चाइजी के जरिये निजी क्षेत्र को विद्युत् वितरण सौंपने का प्रयोग उत्तर प्रदेश के लिए नया नही है, यह ग्रेटर नोएडा और आगरा में पूरी तरह विफल रहा है। पूरे देश में भी ऐसे प्रयोग विफल हो चुके है और वांछित परिणाम न दे पाने के कारण अन्य प्रदेशों में लगभग सभी फ्रेंचाइजी करार रद्द कर दिए गए हैं। उत्तर प्रदेश में भी आगरा में टोरेंट पावर कंपनी की लूट चल रही है और कंपनी करार की कई शर्तों का उल्लंघन कर रही है। सी ए जी ने भी टोरेंट कंपनी के घोटाले का पर्दाफाश किया किन्तु टोरेंट की ऊंची पहुंच होने के कारण कोई कार्यवाही नही हुई।वर्तमान में पॉवर कारपोरेशन घाटा उठाकर आगरा में टोरेन्ट कम्पनी को रु 04.45 प्रति यूनिट पर बिजली दे रहा है जबकि आगरा में बिजली का औसत टैरिफ रु 07.65 प्रति यूनिट है। इस प्रकार निजीकरण से पॉवर कारपोरेशन को अरबों खरबों रु का घाटा हो रहा है जबकि टोरेन्ट कम्पनी भारी मुनाफा कमा रही है। टोरेन्ट कम्पनी ने पॉवर कारपोरेशन का 2500 करोड़ रु से अधिक का राजस्व का बकाया दबा रखा है और 10 साल बाद भी नही दिया है। निजीकरण का यही प्रयोग अब पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम में दोहराया जा रहा है जिससे बिजली कर्मियों में भारी रोष है।


6. यह कि पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम का निजीकरण किये जाने की दशा में निगम में कार्यरत कार्मिकों की सेवाशर्तें बुरी तरह प्रभावित होंगी जिससे उनके भविष्य पर बुरा प्रभाव पड़ने के साथ ही उनका आर्थिक, मानसिक एवं सामाजिक शोषण होने की सम्भावना से इन्कार नहीं किया जा सकता जोकि विद्युत सुधार अधिनियम-1999 एवं विद्युत अधिनियम 2003 के आर्टिकल 23(7) में उल्लिलिखत व्यवस्थाओं का उल्लंघन होने के साथ ही वर्ष 2000 में तत्कालीन उप्ररावि परिषद के विघटन के समय उप्र सरकार, ऊर्जा प्रबन्धन एवं विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति, उप्र के साथ लिखित समझौते कि ‘‘राज्य विद्युत परिषद के विघटन के पश्चात् कार्मिकों की सेवा शर्तें कदापि कमतर नहीं होंगी’’ का खुला उल्लंघन होगा। 


7. अतः हमारा आपसे अनुरोध है कि आप प्रभावी हस्तक्षेप कर मा. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी व मा. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के समक्ष बिजली कर्मियों का यह अनुरोध रखने की कृपा करें कि निजीकरण किसी भी प्रकार जनहित में नहीं है अतः इसे तत्काल निरस्त किया जाये। 


 कोविड -19 महामारी के बीच प्रदेश में निर्बाध विद्युत आपूर्ति बनाये रखने वाले बिजली कर्मियों पर सरकार भरोसा रखकर सरकार सुधार के कार्यक्रम चलाए जिसमें हम सदा की तरह पूर्ण सहयोग करेंगे और निजीकरण का प्रस्ताव निरस्त किया जाए। सभा का संचालन इंजीनियर आरडी सिंह, यतेंद्र कुमार, नरेंद्र कुमार, पंकज कुमार, सौरभ पाठक, राज कुमार, श्री बीबी गुप्ता, दिनेश गौतम, आजाद धीरेन्द्र, आईपी सिंह, ओ पी कुशवाहा, विमल कुमार , विकास मिश्र, अर्जित , आशीष कुमार तथा विद्युत कर्मचारी संघर्ष समिति के समस्त पदाधिकारी एवम् कार्यकर्ता मौजूद रहे।


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