चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत का जीवन और किसान आंदोलन का गौरवमयी इतिहास-अशोक बालियान दिनांक 15-05-2020 को देश के किसान मसीहा चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत की पूण्यतिथि है। चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत के आन्दोलन से पहले देश कि आजादी से पहले अलग-अलग स्थानों पर कई किसान आन्दोलन हुए। 17वीं सदी में भी किसानों ने मुगल राज्य के विरुद्ध बगावत कर दी थी इसके बाद किसान आन्दोलन अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ किये गए थे। लेकिन भारत में किसान आन्दोलन को चौधरी टिकैत ने एक नई दिशा दी और सरकार को किसान की चोखट पर आने को अनेक बार मजबूर किया। मुझे चौधरी टिकैत के साथ अपनी पुस्तक “किसान आन्दोलन में चौधरी टिकैत की भूमिका” लिखने के समय काम करने का अवसर मिला। वह बेहद सरल और इमानदार किसान नेता थे, परन्तु अपने अख्खड़पन के लिए भी जाने जाते थे। भारत के अनेक प्रधानमंत्रीयो को भी किसानो की बात सुनने के लिए किसान राजधानी सिसोली आना पड़ा था। मेने उन पर एक पुस्तक भी लिखी है।
चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत के नेतृत्व में 80 के दशक में सरकारी विभागों में भ्रष्टाचार, बिजली के दाम में बढ़ोतरी और किसानों को उनकी फसलों का मूल्य न मिलने के खिलाफ एक गैर-राजनैतिक किसान आंदोलन खड़ा हुआ था। अगर चौधरी टिकैत के संघर्ष को गौर से देखें तो पाएंगे कि उनके आंदोलन का मुख्य मुद्दा फसलों के वाजिब दाम व सरकार द्वारा किसान की उपेक्षा का था। विभिन्न मंचों एवं आन्दोलन के माध्यम से चौधरी टिकैत जीवन पर्यन्त किसानों के इस महत्वपूर्ण मुद्दे को उठाते रहे। क्योकि देश में गन्ना, गेहूं, धान, रबड, कपास, जूट, आलू, टमाटर और नारियल समेत कई कृषि उत्पाद को किसान लागत मूल्य से कम कीमत पर बेचने को मजबूर रहते है। चौधरी टिकैत के समय भी समाचार पत्रों ने किसानों के शोषण, उनके साथ होने वाले सरकारी अधिकारियों के पक्षपातपूर्ण व्यवहार और किसानों के संघर्ष को अपने पत्रों में प्रमुखता से प्रकाशित किया था।
चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत का जीवन किसान आंदोलन के गौरवमयी इतिहास और विखंडित वर्तमान को समझने में मदद देता है। भारतीय राजनीति के शिखर पर चौधरी टिकैत का उदय अस्सी के दशक में हुआ था। बिजली की दरों पर श्री वीर बहादुर सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार को झुका कर टिकैत ने किसानो का सिक्का जमाया था। चौधरी टिकैत का ठेंठ गंवई व्यक्तित्व और किसी भी दबाव या लालच से ऊपर रहने की उनकी क्षमता से बने व्यक्तित्व ने 1988 में बोट क्लब पर हुए ऐतिहासिक धरने को संभव बनाया।इण्डिया गेट पर देखने में ऐसा लगता था कि कुछ दिन के लिए ही सही, जैसे ‘भारत’ ने ‘इंडिया’ को उसकी औकात बता दी हो। अस्सी के दशक के तमाम किसान आंदोलनों के चरमोत्कर्ष का प्रतीक बना यह धरना भारतीय राजनीति में एक निर्णायक मोड़ साबित हुआ था।
आज किसान और किसानी के सामने एक अभूतपूर्व संकट मुंह बाये खड़ा है, लेकिन देश की राजनीति में इसकी गूंज कहीं सुनायी नहीं पड़ती। चौधरी टिकैत और श्री नंजुंदास्वामी के वारिस किसान राजनीति में किस सफलता तक जायेंगे यह अभी भविष्य के गर्त में है। क्योकि अस्सी के दशक में ट्रैक्टरों से दिल्ली को घेरने का दुस्साहस रखने वाला किसान आज खुद घिरा बैठा उसी दिल्ली को फिर से चौ महेंद्र सिंह टिकैत की तरह घेरने कि उम्मीद लगाये हुए है। पिछले वर्ष उनके पुत्र व भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष चौधरी नरेश टिकैत की अगुवाई में सफल किसान यात्रा ने चौधरी टिकैत की याद दिलाई थी।
किसान आंदोलन की इस दशा की पड़ताल करने पर हम चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत के किसान आंदोलन से सीखते है कि वह आन्दोलन मुख्य रूप से खेती की लागत और उपज के मूल्य के सवालों पर केंद्रित था। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह था कि चौ महेंद्र सिंह टिकैत के जाने के बाद विकास के वर्तमान ढांचे में क्या किसान को कभी न्याय मिल पायेगा। किसान को बचाने की मुहिम को गांव के पुनरोद्धार से कैसे जोड़ा जाये? किसान को बेहतर दाम की मांग के सस्ते खाद्यान और भोजन की जरूरत से सामंजस्य कैसे बैठाया जाये? चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत ने इन सवालों का सामना किया था। चौधरी टिकैत और भारतीय किसान यूनियन के नेताओं ने दलगत राजनीति से दूरी बनाये रखी थी। चौधरी टिकैत के आन्दोलन में न तो नेताओं की भरमार थी और न पदाधिकारियों की कतार। इस आन्दोलन में शामिल हर व्य क्ति सिर्फ किसान था। चौधरी टिकैत जनता के बीच से आए थे और अंतिम समय (15मई 2011) तक जनता के बीच रहे। और चौधरी टिकैत अंतिम समय तक खेती से भी जुड़े रहे ।
हम उनकी पूण्यतिथि के अवसर पर उम्मीद करते है कि भारतीय किसान यूनियन राजनीति से अलग रहकर किसानो के लिए लड़ाई लडती रहेगी। इसके लिए भारतीय किसान यूनियन की भी जिम्मेदारी पहले से कहीं अधिक बढ़ गई है। किसान नेताओं को भी यह समझना होगा कि टिकैत एक आन्दोलन से बढ़कर किसानों के लिए एक विचार हैं। चौधरी टिकैत की तरह जमीन से जुड़कर ही उसकी मुसीबतों को समझा जा सकता है। चौधरी टिकैत के जीवन का उद्देश्य किसानों को इतना जागरूक करना था कि किसान की आवाज भी हुक्मरानों तक पहुंच सके। उनका यह सपना बखूबी पूरा भी हुआ।इस अवसर पर हम याद करते है |
गुरुवार, 14 मई 2020
महात्मा टिकैत जिन्होने गूँगे किसान को दी जुबान
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