बुधवार, 29 अप्रैल 2020

एक दिन लुप्त हो जाएंगे गंगा, बद्रीनाथ और केदारनाथ धाम


क्या एक दिन गंगा नदी पुनः स्वर्ग चली जाएगी फिर गंगा किनारे बसे तीर्थस्थलों का कोई महत्व नहीं रहेगा! वे नाममात्र के तीर्थ स्थल होंगे। केदारनाथ को जहां भगवान शंकर का आराम करने का स्थान माना गया है वहीं बद्रीनाथ को सृष्टि का आठवां वैकुंठ कहा गया है, जहां भगवान विष्णु 6 माह निद्रा में रहते हैं और 6 माह जागते हैं।
पूरा देश गंगा का हत्यारा हैरू मान्यताओं के अनुसार, जब गंगा नदी धरती पर अवतरित हुई, तो यह 12 धाराओं में बंट गई। इस स्थान पर मौजूद धारा अलकनंदा के नाम से विख्यात हुई और यह स्थान बद्रीनाथ, भगवान विष्णु का वास बना। अलकनंदा की सहचरणी नदी मंदाकिनी नदी के किनारे केदार घाटी है, जहां बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक सबसे महत्वपूर्ण केदारेश्वर है। यह संपूर्ण इलाका रुद्रप्रयाग जिले का हिस्सा है। रुद्रप्रयाग में भगवान रुद्र का अवतार हुआ था।
लेकिन 12 धाराओं में से अब अलकनंदा और उसकी सहयोगी मंदाकिनी का ही अस्तित्व बचा हुआ है। तीसरी आगे चलकर वह नदी जिसे गंगा कहा जाता है। लगातार हो रहे खनन, जंगल कटाई और नदी किनारे बढ़ रही जनसंख्‍या और धार्मिक क्रियाकांड के चलते जहां नदी का जलस्तर घटा है वहीं ये नदियां प्रदूषित भी हो गई है।
केदार घाटी में दो पहाड़ हैं- नर और नारायण पर्वत। विष्णु के 24 अवतारों में से एक नर और नारायण ऋषि की यह तपोभूमि है। उनके तप से प्रसन्न होकर केदारनाथ में शिव प्रकट हुए थे। 
पुराणों अनुसार गंगा स्वर्ग की नदी है और इस नदी को किसी भी प्रकार से प्रदूषित करने और इसके स्वाभाविक रूप से छेड़खानी करने का परिणाम होगा संपूर्ण जंबूखंड का विनाश और गंगा का पुनरू स्वर्ग में चले जाना। वर्तमान में गंगा प्रदूषित हो गई है और इसके जल की गुणवत्ता में भी परिवर्तन होने लगा है। पुराणों अनुसार भूकंप, जलप्रलय और सूखे के बाद गंगा लुप्त हो जाएगी और इसी गंगा की कथा के साथ जुड़ी है बद्रीनाथ और केदारनाथ तीर्थस्थल की रोचक कहानी
नृसिंह भगवान की मूर्ति रू अब बद्रीनाथ में नहीं होंगे भगवान के दर्शन, क्योंकि मान्यता अनुसार जोशीमठ में स्थित नृसिंह भगवान की मूर्ति का एक हाथ साल-दर-साल पतला होता जा रहा है। माना जाता है कि जिस दिन नर और नारायण पर्वत आपस में मिल जाएंगे, बद्रीनाथ का मार्ग पूरी तरह बंद हो जाएगा। भक्त बद्रीनाथ के दर्शन नहीं कर पाएंगे। उत्तराखंड में आई प्राकृतिक आपदा इस बात की ओर इशारा करती है कि मनुष्य ने विकास के नाम पर तीर्थों को विनाश की ओर धकेला है और तीर्थों को पर्यटन की जगह समझकर मौज-मस्ती करने का स्थान समझा है तो अब इसका भुगतान भी करना होगा। पुराणों अनुसार आने वाले कुछ वर्षों में वर्तमान बद्रीनाथ धाम और केदारेश्वर धाम लुप्त हो जाएंगे और वर्षों बाद भविष्य में भविष्यबद्री नामक नए तीर्थ का उद्गम होगा।
अलकनंदा और मंदाकिनी इन दोनों नदियों का पवित्र संगम रुद्रप्रयाग में होता है और वहां से ये एक धारा बनकर पुनरू देवप्रयाग में ‘भागीरथी-गंगा’ से संगम करती हैं। देवप्रयाग में गंगा उत्तराखंड के पवित्र तीर्थ गंगोत्री से निकलकर आती है। देवप्रयाग के बाद अलकनंदा और मंदाकिनी का अस्तित्व विलीन होकर गंगा में समाहित हो जाता है तथा वहीं गंगा प्रथम बार हरिद्वार की समतल धरती पर उतरती है। भगवान केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन के बाद बद्री क्षेत्र में भगवान नर-नारायण का दर्शन करने से मनुष्य के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे जीवन-मुक्ति भी प्राप्त हो जाती है। इसी आशय को शिवपुराण के कोटि रुद्र संहिता में भी व्यक्त किया गया है-झ झ तस्यैव रूपं दृष्ट्वा च सर्वपापैर प्रमुच्यते। जीवन्मक्तो भवेत् सोऽपि यो गतो बदरीबने।।
दृष्ट्वा रूपं नरस्यैव तथा नारायणस्य च।
केदारेश्वरनाम्नश्च मुक्तिभागी न संशयः।।
बद्रीनाथ की कथा अनुसार सतयुग में देवताओं, ऋषि-मुनियों एवं साधारण मनुष्यों को भी भगवान विष्णु के साक्षात दर्शन प्राप्त होते थे। इसके बाद आया त्रेतायुग- इस युग में भगवान सिर्फ देवताओं और ऋषियों को ही दर्शन देते थे, लेकिन द्वापर में भगवान विलीन ही हो गए। इनके स्थान पर एक विग्रह प्रकट हुआ। ऋषि-मुनियों और मनुष्यों को साधारण विग्रह से संतुष्ट होना पड़ा। शास्त्रों अनुसार सतयुग से लेकर द्वापर तक पाप का स्तर बढ़ता गया और भगवान के दर्शन दुर्लभ हो गए। द्वापर के बाद आया कलियुग, जो वर्तमान का युग है।
पुराणों में बद्री-केदारनाथ के रूठने का जिक्र मिलता है। पुराणों अनुसार कलियुग के पांच हजार वर्ष बीत जाने के बाद पृथ्‍वी पर पाप का साम्राज्य होगा। कलियुग अपने चरम पर होगा तब लोगों की आस्था लोभ, लालच और काम पर आधारित होगी। सच्चे भक्तों की कमी हो जाएगी। ढोंगी और पाखंडी भक्तों और साधुओं का बोलबाला होगा। ढोंगी संतजन धर्म की गलत व्याख्‍या कर समाज को दिशाहीन कर देंगे, तब इसका परिणाम यह होगा कि धरती पर मनुष्यों के पाप को धोने वाली गंगा स्वर्ग लौट जाएगी।


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