सोमवार, 4 मार्च 2024

विकास बालियान की फिल्म अन्नदाता की शूटिंग शुरू

 *मुज़फ्फरनगर*


*भोपा क्षेत्र में फ़िल्म अन्नदाता की हुई शूटिंग का हुआ शुभारंभ*


*किसान की ज़िन्दगी से रूबरू कराते गाने की हुई शूटिंग*


काज़ी अमजद अली



मुजफ्फरनगर। हरियाणवी टोन पर ग्रामीण सँस्कृति को फिल्मों के माध्यम से मनोरंजन के रूप में प्रस्तुत करने में माहिर डायरेक्टर विकास बालियान की नई थीम पर आधारित मूवी व गाने की शूटिंग का शुभारंभ भोपा क्षेत्र के गाँव मलपुरा गाँव मे विधिवत  रूप से किया गया।इस दौरान कलाकारों द्वारा फ़िल्म के गाने के कुछ अंश की शूटिंग भी की गयी।

भोपा क्षेत्र के गाँव मलपुरा के श्री सत्यनारायण मन्दिर आश्रम (त्यागी आश्रम) में अन्नदाता नामक शार्ट फ़िल्म की शूटिंग का शुभारंभ पँ. कमल शर्मा द्वारा मंत्रोच्चार कर,नारियल तोड़कर किया गया। वहीँ फ़िल्म के गाने की शूटिंग भी की गयी। फ़िल्म डायरेक्टर विकास बालियान ने शूटिंग के शुभारंभ अवसर पर बताया कि वाणी रिकॉर्ड्स इंटरटेनमेन्ट निर्माता विनय पँवार व चिराग बालियान द्वारा प्रस्तुत शार्ट फ़िल्म अन्नदाता शूटिंग के लिये दो दिवसीय कैम्प भोपा क्षेत्र के मलपुरा गाँव मे किया गया। प्रसिद्ध गीत धरती पुत्र किसान तेरी कौन सुनेगा की सफलता के बाद अन्नदाता फ़िल्म में किसान के दर्द व भावनाओं को प्रस्तुत किया गया है।किसान आप बीती को प्रस्तुत करता गाना निश्चित ही मन को छू लेने वाला है।फ़िल्म में स्वयं विकास बालियान किसान की भूमिका में हैं। नायक के रूप में लक्ष्य व आदित्य हैं।तथा नायिका के रूप में माही चौधरी,आराध्या,भावना ने अभिनय किया है।पुष्पेन्द्र निर्वाल ने शानदार अभिनय किया है।प्रोडक्शन बिजेन्द्र कुमार का है कैमरा निर्देशक विकास सैनी हैं।मैकअप आर्टिस्ट अंकुर भारद्वाज हैं।इसके अलावा लवि,हर्ष,अभिषेक, हिमांशू आदि भी शामिल हैं।

विकास बालियान फ़िल्म की थीम के बारे में बताते हैं।राजधानी दिल्ली में किसान आंदोलन जारी है। रास्ते बन्द होने के कारण चंडीगढ़ जाने वाले कुछ युवा भटक कर गाँव के एक आश्रम में पहुंच जाते हैं। रास्ते मे आई दिक्कत के कारण यात्री युवा टीम  में किसानों के प्रति बनी एक अनजान धारणा को मन्दिर के पुजारी द्वारा एक गीत के माध्यम से दूर किया जाता है।

डायरेक्टर विकास बालियान जो किसान का रोल अदा कर रहे हैं।फ़िल्म में किसान परिवार की धुरी  हैं।जो खेतों में कड़े परिश्रम और बड़ी लागत के बाद फसल उगाता है। दैवीय आपदाओं से प्रभावित फसल को दूसरों द्वारा तय किये गये दामों पर बेंचता है। बच्चों की शिक्षा आदि के लिये करोड़ों की ज़मीन को बैंक में गिरवी रखकर मात्र दो लाख का कर्ज लेता है। समय पर क़िस्त जमा न होने पर सरकारी कर्मचारियों द्वारा किसान के घर पर जाकर उसे अपमानित किया जाता है। और इस अपमान को बर्दाश्त न कर स्वाभिमानी किसान अंत मे आत्महत्या को मजबूर हो जाता है।

किसान के जीवन से जुड़ी सच्चाई को अभिनय के माध्यम से कुछ देर की फ़िल्म में दिखाया गया है। फ़िल्म अपने आप मे एक सन्देश है। 

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