गोमुख का मार्ग बहुत विकट है। सड़क तो क्या कोई पगडंडी भी नहीं है। ऊबड़ खाबड़ पड़े हुए पत्थरों पर चलना पड़ता है, वैसे अब कुछ दूर तक मार्ग बन गया है। चीड्वासा से हो कर गोमुख पहुंचा जाता है। बर्फ के गलने से गंगा का जल उत्पन्न होता है, यहाँ जल का वेग अति तीव्र होता है। जिस ग्लेशियर से गंगा जी निकलीं हैं वह प्रतिवर्ष कम होता जा रहा है। गंगा जी के उद्गम स्थान पर बर्फ का ग्लेशियर लगभग १०० फुट ऊंचा और आधा मील चौड़ा था। इसकी लम्बाई का अनुमान नहीं लगाया जा सकता क्योंकि यहाँ बड़े बड़े पर्वत खड़े हैं जो एक तरफ से बद्रीनाथ से जुड़े हैं तो एक तरफ से केदारनाथ से। यहाँ से बद्रीनाथ 12 मील के लगभग है जो केदारनाथ की अपेक्षा ज्यादा निकट है। यहाँ से केदारनाथ का मार्ग 15 मील है परन्तु इस मार्ग को खोजना अत्यंत कठिन है, परन्तु कोई गुप्त मार्ग यहाँ केदारनाथ के लिए अवश्य है।
यहाँ से अदृश्य नगरी सिद्धाश्रम स्तवन तीन-चार मील पर ही स्थित है परन्तु साधारण जनमानस को दिखाई नहीं दे सकता। यहाँ जब वृक्ष नाममात्र के दिखलाई देने लगे तो समझ लें कि सिद्धाश्रम निकट ही है। नंदवन के निकट जिसके उत्तर में गंगा ग्लेशियर है तो दक्षिणी भाग में शिवलिंग पर्वत, इसकी ऊंचार 21 हजार फीट है, इसके नीचे एक नदी है जो केदारनाथ से आती है। सिद्धाश्रम की ऊंचाई लगभग 13 हजार फीट तथा गोमुख की ऊंचाई 12 हजार 9 सौ फीट है।
नंदवन से होकर जाने पर मार्ग में चौखम्बा पर्वत मिलता है। नंदवन से हो कर जाने पर गोमुख और सिद्धाश्रम क्षेत्र सामने ही दिखते हैं। यहाँ का मार्ग अत्यंत दुर्गम और पिसलन भरा है चारों तरफ बर्फ ही बर्फ दिखलाई पड़ती है।
गोमुख का अर्थ
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भोजपत्र के जंगल से होते हुए गोमुख मिलता है, गोमुख के बारे में किवदंतियां प्रसिद्ध हैं कि गंगा की हिमधारा के ऊपर जो पर्वत है इस सबको संयुक्त रूप से मिलाकर गाय के मुख के समान जो आकृति बनी है, इसे ही गोमुख कहते है। कोई कहता है कि जिस स्थान से गंगा जी निकली है वो स्थान गोमुख की भाँति बना हुआ है। परन्तु विचार करें कि वेद में पृथ्वी को गो भी कहा गया है। निघुंट में पृथ्वी के 22 पर्यायवाची दिए गए हैं, इसमें गो शब्द भी आता है। इसलिए गो नाम पृथ्वी का है, और पृथ्वी का मुख फाड़ कर गंगा जी का उद्गम हुआ है। गंगा के ऊपर का भाग आधा मील तक हिम से आच्छादित है। इसे हिम धारा भी कह सकते हैं.परन्तु गंगा का वास्तविक उद्भव स्थान अज्ञात है। जहाँ कही भी गंगा जी का उद्गम हुआ होगा वह स्थान अदृश्य है, प्रत्यक्ष नहीं। गंगा ग्लेशियर के एक तरफ केदारनाथ दूसरी तरफ बद्रीनाथ है, इतना बड़ा ग्लेशियर पर कहीं भी किसी भी नदी के ऊपर नहीं है। बद्रीनाथ की ओर से अलकनंदा और ऋषिगंगा नदी निकलती हैं। ऋषिगंगा नदी की एक धारा कुछ दूर जा कर अदृश्य हो जाती है, कहा जाता है कि ये नदी सिद्धाश्रम होते हुए कैलाश क्षेत्र की तरफ निकल जाती है। गंगोत्री में केदार-गंगा और रूद्र-गंगा का संगम है। पकोड़ी गंगा भी एक मील बाद गंगा से मिलती है। यहाँ से आधे मील की दूरी पर लक्ष्मी वन है जिसे गंगा जी का बागीचा भी कहते हैं। गंगरोत्री मंदिर के पास भगीरथ शिला है यहाँ पर महाराज भगीरथ ने तपस्या की थी। गौरी कुंड का दृश्य अत्यंत दर्शनीय है। यहाँ से बहुत ऊंचाई से गंगा जी कुंड में गिरती है। यहाँ भगवान शंकर का वरण करने के लिए पार्वती जी ने घोर तपस्या की थी। यह स्थान अत्यंत शांत, रमणीय और आध्यात्मिक है।
गोमुख जलवायु परिवर्तन के कारण लगातार अपनी जगह पीछे की ओर जा रहा है। वो अब तक 18 किलोमीटर पीछे जा चुका है। गंगा गौ मुख रूपी ग्लेशियर से निकलती है। इस स्थान पर इन्हें भगीरथी भी कहा जाता है। यहां से निकलकर गंगा जब अलकनंदा से मिलती हैं तो वह गंगा कहलाती है। उत्तराखंड के उत्तर काशी जिले में हिमालय के शिखरों से निकलने वाली गंगा की उद्गम स्थल गोमुख से गंगोत्री की दूरी लगभग 18 किलोमीटर है। गंगोत्री स्थित गौड़ी कुण्ड को देखने से लगता है कि शिव जी ने निश्चित ही अपनी विशाल जटाओं में गंगा को बांध लिया है। गौड़ी कुण्ड के इस दिव्य दृश्य को देख कर दर्शक आनंद विभोर हो जाता है। गौमुख को देखने से ऐसा लगता है जैसे देवाधिदेव महादेव ने अपनी स्वर्णिम जटा को गोल में घुमाकर इस गौड़ी कुण्ड में एक लट से गंगा को इस कुण्ड में निचोड़ दिया है। यहाँ से पहाड़ों के सीना को चीरती हुई आगे की ओर बढ़ती हैं और यहाँ इसे भागीरथी के नाम से पुकारा जाता है। वैसे देवप्रयाग में सात नदियों की धारा मिलकर गंगा बनती है। इन सब श्रेष्ठ जीवन दायनी देव नदियों के नाम क्रमश: भागीरथी, जाह्नवी, भीलगंगा, मंदाकिनी, ऋषि गंगा, सरस्वती और अलकनंदा है। ये सभी देव नदियां देव प्रयाग में आकर मिलती हैं।
गोमुख पर लगातार रिसर्च करने वाले वैज्ञानिकों के अनुसार ग्लेशियर का एक टुकड़ा टूटने के कारण गोमुख बंद हो गया है। वैज्ञानिकों के अनुसार ऐसा भी नहीं है कि गोमुख के बंद हो जाने से गंगा में पानी का प्रवाह बंद हो गया हो। गोमुख का क्षेत्रफल 28 किलोमीटर में फैला हुआ है। ये समुद्रतल से 3,415 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। इसमें गंगोत्री के अलावा नन्दनवन, सतरंगी और बामक जैसे कई छोटे-छोटे ग्लेशियर स्थित हैं। अब गंगा की मुख्य धारा नन्दन वन वाले ग्लेशियर से निकल रही है। गोमुख का बंद होना सबको चकित कर रहा है और गंगोत्री पर शोध करने वाले वैज्ञानिक इसकी पड़ताल करने में जुटे हैं।
वैज्ञानिकों ने पाया है कि गोमुख से निकलने वाली नदी की धारा की दिशा बदल रही है। गोमुख एक ग्लेशियर है और पहले इससे सीधे-सीधे भागीरथी निकलती थीं लेकिन अब इसके बाएं तरफ से निकल रही हैं। गोमुख में एक झील बन गयी है जिसके कारण ये परिवर्तन आया है। इस झील के कारण गंगा लगातार बदली हुई दिशा में बह रही हैं और इसका अंतिम परिणाम गोमुख के नष्ट होने के रूप में हो सकता है।
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