लखनऊ। यूपी निकाय चुनाव को लेकर ओबीसी आयोग ने गुरुवार शाम को सीएम योगी आदित्यनाथ को 350 पेज की रिपोर्ट सौंप दी। शुक्रवार को कैबिनेट बैठक में रिपोर्ट पेश की जाएगी। इसके बाद चुनाव की तारीखों का ऐलान किया जा सकता है। माना जा रहा है कि अप्रैल में निकाय चुनाव हो सकते हैं। आचार संहिता भी लागू हो सकती है।
हाईकोर्ट ने बिना ओबीसी आरक्षण के चुनाव कराने का आदेश दिया था। इसके बाद 28 दिसंबर 2022 को आरक्षण के लिए आयोग का गठन किया गया था। रिटायर्ड जस्टिस राम अवतार सिंह को आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। सदस्यों में चोब सिंह वर्मा, महेंद्र कुमार, संतोष विश्वकर्मा और ब्रजेश सोनी को शामिल किया गया। ये आयोग राज्यपाल की सहमति से 6 महीने के लिए गठित किया गया था। आयोग को रिपोर्ट सबमिट करने के लिए छह महीने का समय दिया गया था। समय से पहले आयोग ने सीएम योगी को रिपोर्ट सौप दी है। 31 दिसंबर को आयोग ने पहली कॉन्फ्रेंस की थी। आयोग के सदस्यों ने कहा था कि यह लंबा काम है और रिपोर्ट तैयार होने में 31 मार्च का समय लग सकता है। इस टीम ने अपनी रिपोर्ट तैयार करने के लिए 75 जिलों का दौरा किया। हालांकि बीच में आयोग का यह बयान सामने आया था कि रिपोर्ट फरवरी के अंत तक तैयार हो जाएगी। आयोग ने अब सीएम योगी को रिपोर्ट दे दी है।
मालूम हो कि उत्तर प्रदेश में नगर निकाय चुनाव पहले जनवरी में ही कराया जाना था। इसको लेकर नगर विकास विभाग ने अंतिम आरक्षण की सूची जारी कर दी थी। हालांकि इसके खिलाफ कई पक्ष हाईकोर्ट पहुंच गए। हाईकोर्ट ने रैपिड टेस्ट के आधार पर आरक्षण को सही न मानते हुए ट्रिपल टेस्ट कराने का आदेश राज्य सरकार को दिया। हाईकोर्ट ने कहा कि बिना ओबीसी आरक्षण के निकाय चुनाव हों। जबकि सरकार ने कहा कि आरक्षण लागू करने के बाद चुनाव कराएंगे। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर ओबीसी को हिस्सेदारी देने के लिए यूपी सरकार ने आयोग का गठन किया था। कैबिनेट से आयोग की रिपोर्ट को मंजूरी मिलने के बाद इसकी जानकारी सुप्रीम कोर्ट को दी जाएगी। साथ ही कोर्ट से यूपी में निकाय चुनाव कराने की अनुमति मांगी जाएगी।
हालांकि इस बीच लखनऊ नगर निगम, कानपुर नगर निगम समेत तमाम नगर निकायों का कार्यकाल खत्म हो गया। 2023 में होने वाले नगर निकाय चुनाव में 17 नगर निगम, 200 नगरपालिका परिषद और 517 नगर पंचायत में चुनाव कराया जाना है।
जबकि 2017 में 16 नगर निगम, 198 नगर पालिका परिषद और 438 नगर पंचायत में चुनाव हुआ था। ऐसे में म्यूनिसिपल इलेक्शन को लेकर सरगर्मी फिर बढ़ती नजर आ रही है। सपा के रुख से ऐसी आशंका भी है कि कहीं आरक्षण सूची जारी होने के बाद ये मामला दोबारा अदालत न पहुंच जाए।
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