गुरुवार, 2 फ़रवरी 2023

किसानों को गुमराह कर रहे हैं संगठन : अशोक बालियान


मुजफ्फरनगर । अशोक बालियान,चेयरमैन,पीजेंट वेलफ़ेयर एसोशिएसन ने कहा कि  कुछ किसान संगठन मोदी शासनकाल में किसानों की हालत खराब हालात बताकर किसानों को गुमराह कर रहे है, जबकि तुलनात्मक तथ्यों के अनुसार मोदी शासनकाल में किसानों की हालत में बड़ा सुधार आया है। ये किसान संगठन दिल्ली सीमा पर चले आंदोलन के दौरान किसानों को गुमराह कर रहे थे कि कृषि कानून लागू होने से बड़ी-बड़ी कंपनी किसानों की जमीन हड़प लेंगी। कृषि कानून वापिस होने के बाद भी बोल रहे है कि बड़ी-बड़ी कंपनी किसानों की जमीन हड़प लेंगी, जबकि खुद जमीन खरीद रहे है।

    ये किसान संगठन किसानों को गुमराह करने व भड़काने का कार्य कर रहे है, इससे किसानों को नुकसान होगा और विकास के कार्य प्रभावित होंगे। पीजेंट वेलफ़ेयर एसोशिएसन हमेशा किसानों के सामने वास्तविक तथ्य रखने का कार्य करती है।    

    किसान को साहूकार से महंगी ब्याज दर पर ऋण न लेना पड़े, इसलिए मोदी सरकार ने सस्ती 4 प्रतिशत ब्याज दर पर किसान क्रेडिट कार्ड के लिए 20 लाख करोड़ रुपए का बजट में आवंटन किया है। ये किसान संगठन इसका भी विरोध कर रहे है, जबकि खुद सारी भूमि पर इन्होने किसान क्रेडिट कार्ड पर ऋण लिया हुआ है।   

    मनमोहन सरकार में वर्ष 2013-14 में कृषि क्षेत्र के लिए केवल 22 हजार करोड़ रुपए था, जबकि मोदी सरकार में वर्ष 2023-24 में कृषि क्षेत्र के लिए बजट में 1.25 लाख करोड़ रुपए आवंटित किया गया है। मोदी सरकार ने प्रधान मंत्री किसान सम्मान निधि के रूप मे 11.40 करोड़ किसानों को 2.20 लाख करोड़ रुपए सीधे खाते में ट्रांसफर किए है, जबकि मनमोहन सरकार में ऐसी कोई योजना नहीं थी। मोदी सरकार एक कृषि निधि लाएगी, जिसके तहत करीब 2.2 लाख करोड़ रुपये लगाए जाएंगे, यह किसानों के हित के लिए बहुत बड़ा आवंटन है।  

    मनमोहन सरकार के समय किसानों को कृषि कार्य के लिए 4 प्रतिशत सस्ते ब्याज पर किसान क्रेडिट कार्ड के रूप में  7.3 लाख करोड़ रुपए दिये गए थे, जबकि मोदी सरकार के समय किसानों को कृषि कार्य के लिए 4 प्रतिशत सस्ते ब्याज पर किसान क्रेडिट कार्ड के रूप में  18.5 लाख करोड़ रुपए दिये थे और इस वर्ष इनको बढ़ाकर 20 लाख करोड़ रुपए किया है, ताकि किसान को साहूकार से महंगी ब्याज दर पर ऋण न लेना पड़े। मनमोहन सरकार में प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना का आवंटन 6,057 करोड़ रुपए था, जबकि मोदी सरकार ने इसे करीब 136 प्रतिशत बढ़ाकर 15,511 करोड़ रुपए से अधिक कर दिया है।

    मनमोहन सरकार में वर्ष 2013-14 में धान की कीमत 1310 रुपए प्रति क्विंटल थी, जबकि मोदी सरकार में वर्ष 2022-23 में 2040 रुपए प्रति क्विंटल हो गई। मनमोहन सरकार में वर्ष 2013-14 में गेहूं के लिए एमएसपी में 1400 रुपये प्रति क्विंटल था और मोदी सरकार मे बढ़ाकर वर्ष 2022-23 में 2125 रुपये प्रति क्विंटल निर्धारित किया गया है।

    मनमोहन सरकार में गेहूं की खरीद  वर्ष 2013-14 में 250.72 लाख टन हुई, जबकि मोदी सरकार में बढ़कर वर्ष 2021-22 में 433.44 लाख टन हुई है। मनमोहन सरकार में धान की खरीद  वर्ष 2013-14 में 475.30 लाख टन हुई, जबकि मोदी सरकार में बढ़कर वर्ष 2021-22 में 857.00 लाख टन हुई है। जबकि ये ये किसान संगठन किसानों को गुमराह कर उन्हें कह रहे है कि एमएसपी की व्यवस्था खत्म हो जाएगी।

     मोदी सरकार में यूरिया प्रति बोरी 45 किलोग्राम 266.50 रुपए व डीएपी प्रति बोरी 50 किलोग्राम 1200 रुपए में मिलता है। पिछले 8 वर्ष से केवल डीएपी पर प्रति 50 किलो बोरी पर 150 रुपए बढ़े है। मनमोहन सरकार में उर्वरक सब्सिडी लगभग 22 हजार करोड़ रुपए थी, जबकि मोदी सरकार में उर्वरक सब्सिडी 2.25 लाख करोड़ रुपये की है।  

     देश में पहले कृषि क्षेत्र में केवल 100 स्टार्टअप काम कर रहे थे, लेकिन पिछले 7-8 वर्षों में यह संख्या बढ़कर 4,000 से अधिक हो गई है। कृषि स्टार्टअप स्मार्ट फार्मिंग को प्रोत्साहित करते हैं। इससे खेती में डिजिटलाइजेशन और मशीनीकरण का भी और तेजी से विकास हो रहा है। भारत भी तेजी से कृषि उत्पादों के शुद्ध निर्यातक देश के रूप में उभरा है। वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान, कृषि निर्यात 50.2 अरब डॉलर के सर्वकालिक उच्चस्तर पर पहुंच गया है।

     संयुक्त किसान मोर्चा का पूर्व में दिल्ली की सीमाओं पर चला आंदोलन मोदी सरकार को उखाड़ने के लिए भी था। यह किसान आंदोलन न होकर सियासी और देश विरोधी ताकतों के एजेंडे को लागू करने वाला आंदोलन बन गया था। 26 जनवरी के मौके पर नए कृषि कानून के विरोध में आंदोलन कर रहे किसानों ने दिल्ली में जमकर उपद्रव मचाया था। किसानों ने पुलिस द्वारा लगाए गए बैरिकेड्स को तोड़ दिये थे।आईटीओ और लालकिले का पास भी किसानों ने जमकर उत्पात मचाया था। सोशल मीडिया पर कुछ वीडियो वायरल हुए थे, जो दुनिया भर में भारत की बदनामी का सबब बने थे। 

    दिल्ली की सीमा पर चले इस आंदोलन को इस तरह पेश ऐसे किया जा रहा था कि किसान अपनी गाढ़ी कमाई के बल पर ही आंदोलन का खर्च उठा रहे हैं। लेकिन हकीकत इससे कहीं अलग थी। सच्चाई यह थी कि मोदी सरकार के खिलाफ माहौल बनाने के लिए इन किसान संगठनों को विदेशों से जबरदस्त फंडिंग हो रही थी। इस आंदोलन को चलाने के लिए विदेश में बैठे खालिस्तान समर्थकों, इस्लामी कट्टरपंथी और वामपंथी ताकतों द्वारा भी फंडिंग किए जाने के आरोप लगे थे। संयुक्त किसान मोर्चा के दिल्ली आंदोलन में मथुरा के जवाहरबाग से भी बुरे हालात हो सकते थे, इसलिए प्रधानमंत्री ने देश हित में कृषि क़ानूनों को वापिस लिया था। अब ये किसान संगठन हर समय व हर बात पर आंदोलन की बात कर फिर दिल्ली सीमा पर किए गये आंदोलन की राह पर व मथुरा में जवाहरबाग पर झोपड़ी डालकर आंदोलन चलाने वाले रामवृक्ष यादव की राह पर चलने का प्रयास कर रहे है, जिससे किसानों को नुकसान होगा। इसलिए किसानों को इनसे सावधान रहना चाहिए।

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