शुक्रवार, 18 नवंबर 2022

संयुक्त किसान मोर्चा ने कृषि कानूनों को लेकर झूठ बोला


मुजफ्फरनगर । संयुक्त किसान मोर्चा जिन कृषि कानूनों के वापिस होने की अपनी जीत मान रहे है वे किसान हित के कानून थे। 

अशोक बालियान, चेयरमैन,पीजेंट वेलफेयर एसोसिएशन का कहना है कि संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा कृषि कानूनों को वापिस लेने के आन्दोलन के दौरान झूठ बोला था कि अनुबंध खेती कानून में किसानों की जमीन छीन जाने का प्रावधान है और उन्होंने यह भी झूठ बोला था कि अनुबंध खेती में किसान की जमीन पर अनुबंध खेती करने वाला कर्ज ले सकता है, जबकि सच्चाई यह थी कि इस कानून में ऐसा कोई प्रावधान था ही नहीं। और पंजाब में आज भी अनुबंध खेती कानून लागू है।  

   संयुक्त किसान मोर्चा (SKM) ने केंद्र सरकार पर वादाखिलाफी का आरोप लगाते हुए एलान किया है कि वह 26 नवंबर को देशव्यापी अभियान चलाते हुए राजभवन के लिए मार्च करेगा। किसान मोर्चा की अगली बैठक 8 दिसंबर, 2022 को होगी जिसमें आंदोलन के अगले चरण का निर्णय व घोषणा की जाएगी। संयुक्त किसान मोर्चा अब फिर से किसानों को गुमराह कर रहा है कि केंद्र सरकार ने समझौता पूरा नहीं किया, जबकि न्यूनतम समर्थन मूल्य को प्रभावी बनाने के लिए समिति के गठन की शर्त समझौते में थी और केंद्र सरकार ने समिति की गठन कर दिया है।यह समिति अपना कार्य कर रही है।

   तीन कृषि कानूनों के विरोध में किसानों ने दिल्ली की सीमाओं पर नवंबर 2020 में आंदोलन शुरू किया था। इस आंदोलन के पीछे पंजाब व हरियाणा के आडतियों की लाबी व ख़ालिस्तान की माँग करने वाला प्रतिबंधित संगठन "सिख जस्टिस फ़ोरम" जैसे संगठन थे। ये संगठन इस आंदोलन को चलाने के लिए भारी मात्रा में धन खर्च कर रहे थे।

      इस सम्बन्ध में चली एक दर्जन वार्ताओं के विफल होने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 19 नवम्बर 2021 को देश हित में तीन कृषि कानूनों को रद्द करने की घोषणा की थी, क्योंकि इस आंदोलन में बड़े स्तर पर हिंसा होने की रिपोर्ट मिल रही थी। जबकि इन कानूनों के लागू होने से कृषि क्षेत्र में प्रतिस्पर्द्धा में वृद्धि, बाज़ार तक पहुँच में सुधार, ग्रामीण युवाओं को रोजगार, विपणन तथा परिवहन लागत में बचत और उपज गुणवत्ता में सुधार होता। 

       पीजेंट वेलफेयर एसोसिएशन किसानों को शुरू से ही यह समझाने का प्रयास कर रही है कि संयुक्त किसान मोर्चा किसानों का हितैषी नहीं है,वह अपने स्वार्थ में किसानों के नाम पर राजनीति कर रहा है। तीनो कृषि क़ानून किसान हित के थे।   

    पहले कानून ‘किसान उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्द्धन और सुविधा) कानून, 2020’ में प्रावधान था कि किसान पुरे देश में बिना किसी टैक्स के अपनी फसल कहीं भी बेच सकता है। दूसरे कानून ‘मूल्य आश्वासन और कृषि सेवाओं पर किसान (सशक्तीकरण और संरक्षण) समझौता कानून, 2020’ में प्रावधान था कि किसानों को बगैर किसी शोषण के भय के प्रसंस्करणकर्त्ताओं, थोक विक्रेताओं, बड़े खुदरा कारोबारियों, निर्यातकों आदि के साथ पहले से तय मूल्य पर जुड़ने में सक्षम बनाता था। इसके साथ ही इस कानून के माध्यम से कृषि को दुनिया के बाजार से जोड़ने व् फ़ूड चैन बनाने के लिए कृषि अवसंरचना के विकास हेतु निजी क्षेत्र के निवेश को बढ़ावा दिया जाता। 

   इसी तरह तीसरे कानून ‘आवश्यक वस्तु (संशोधन) कानून, 2020’ के लागू होने से कोल्ड स्टोरेज में निवेश को बढ़ावा मिलता और खाद्य आपूर्ति श्रृंखला को आधुनिक बनाने में मदद मिलती। किसानों की कृषि उपज के मूल्य स्थिरता आती, जिससे किसानों को फायदा मिलता और भंडारण सुविधाओं की कमी के कारण होने वाली कृषि उत्पादों की बर्बादी को भी रोका जाता।

    कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के अनुसार भारत में कृषि आदि काल से ही ग्रामीण अर्थव्यवस्था का एक महत्त्‌वपूर्ण अंग रही है। हालांकि जनसंख्या बढ़ने के साथ कृषि जोत का आकार छोटा हुआ है और इस क्षेत्र में नवीनतम प्रौद्योगिकी तथा वैज्ञानिक विधियों की पहुंच में कमी के कारण कृषि आय में भारी गिरावट हुई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की केंद्र सरकार द्वारा कृषि क्षेत्र की चुनौतियों को दूर करने के लिये जून 2020 में कृषि सुधार से जुड़े तीन कानून बनाये थे और इसके साथ ही किसानों का ख्याल रखते हुए उनको प्रतिवर्ष 6 हजार रु सीधे खाते में दिए जा रहे हैं जो अब तक किसी सरकार ने नहीं सोचा था।

    केन्द्रीय पशुपालन मंत्री डॉ संजीव बालियान के अनुसार यह किसानों का दुर्भाग्य रहा था कि  किसानों के लाभ के लिए बने कृषि कानूनों को लेकर संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा लगातार बोले जा रहे झूठ के कारण आन्दोलन में शामिल किसानों को ये कानून किसान विरोधी लगने लगे थे। जबकि  सरकार बार−बार किसान नेताओं से कह रही थी कि वे कानूनों की कमियां बताए, सरकार संशोधन करेगी व् सुधार करेगी।, लेकिन किसान नेताओं ने कभी कमी नहीं बताई। उनकी केवल एक ही रट रही थी कि सरकार तीनों काले कानून वापस ले।

    पीजेंट वेलफेयर एसोसिएशन का किसानों से अनुरोध है कि संयुक्त किसान मोर्चा के झूठ से सावधान रहने की जरूरत है। यह किसानों की वास्तविक मांगों के बजाय गैर वास्तविक मांगों का डर किसान को दिखा रहा है और किसान हित के कृषि कानून वापिस होने के बाद भी संयुक्त किसान मोर्चा विपक्ष की राजनीति के एजेंडे के साथ मिलकर किसानों को गुमराह कर रहा है। भारत के कृषि वैज्ञानिकों द्वारा तैयार जीएम् सरसों के बीज के ट्रायल का भी संयुक्त किसान मोर्चा विरोध कर रहा है, यदि किसान खामोश है, तो उसकी ये खामोशी, उसकी ये चुप्पी उसे अब लंबे समय तक नुकसान पहुंचाएगी। 

     पीजेंट वेलफेयर एसोसिएशन ने पिछले दिनों केन्द्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर  से मिलकर किसानों की वास्तविक मांगों को उनके सामने उठाया था और आगे भी उठती रहेगी।

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