शुक्रवार, 24 सितंबर 2021

पितृ दोष है तो यह उपाय करने से शांति मिलती है


पूर्वजों को पितृ के नाम से जाना जाता है। पितृ वे लोग हैं जो अप्राकृतिक मृत्यु को प्राप्त हुए और उन्हें मोक्ष नहीं मिला। इसके कारण लोग पितृ दोष के निवारण के लिए उपाय करते हैं। इतना ही नहीं जो पूर्वज समस्याएँ पैदा कर रहे हैं, वे भी पितृ योनी से राहत पाना चाहते हैं। यदि उनके परिजन अपने पूर्वजों का श्राद्ध या तर्पण नहीं करते हैं तो यह दोष बन जाता है।

नवग्रहों में सूर्य को स्‍पष्‍ट रूप से पूर्वजों का प्रतीक माना गया है। किसी व्‍यक्ति की कुंडली में सूर्य को बुरे ग्रहों के साथ स्थित होने से या फिर बुरे ग्रहों की दृष्टि पड़ने से जो दोष लगता है, उसे पितृदोष कहते हैं। ज्‍योतिष के अनुसार कुंडली के नवम भाव को पूर्वजों का स्‍थान माना गया है। यह पिता का घर भी होता है, अगर किसी प्रकार से नवां घर खराब ग्रहों से ग्रसित होता है तो यह सूचित करता है कि पूर्वजों की इच्छायें अधूरी रह गयीं थी, लग्न और चन्द्रमा से नवम भाव, नवम भाव का मालिक ग्रह अगर राहु या केतु से ग्रसित है तो यह पितृ दोष कहा जाता है। इस प्रकार का जातक हमेशा किसी न किसी प्रकार की परेशान रहता है, उसकी शिक्षा पूरी नही हो पाती है, उसे आजीविका उपार्जन के लिए अत्यधिक संघर्ष करना पड़ता है, वह किसी न किसी प्रकार से मानसिक या शारीरिक रूप से अपंग होता है।


पितरों के कारण वंशजों को किसी प्रकार का कष्ट ही पितृदोष माना गया है। पितृ दोष जिन लोगों की कुंडली में होता है उन्हें धन अभाव से लेकर मानसिक क्लेश तक का सामना करना पड़ता है। उनकी तरक्की बाधित होती है। कई कार्यों में बाधाएं आती हैं। आये दिन घर में कलह होती है। जीवन एक उत्सव की जगह संघर्ष बन जाता है। रुपया पैसा होते हुए भी शांति और सुकून नहीं मिल पाता। शिक्षा में अनेक बाधाएं आती हैं, क्रोध अधिक आने से कई कार्य बिगड़ जाते हैं, परिवार में आये दिन कोई न कोई बीमार रहता है, आत्मबल में कमी रहती है| संतान होने में समस्याएं आती हैं, कई बार तो ऐसा देखा गया है कि संतान पैदा ही नहीं होती और यदि संतान हो जाए तो उनमें से कुछ अधिक समय तक जीवित नहीं रहती, और उनकी शादी होने में कई प्रकार की समस्याएं आती हैं, और घर-परिवार में किसी न किसी कारण झगड़ा होता रहता है, परिवार के सदस्यों में मनमुटाव की स्थिति बानी रहती है, पितृ दोष होने के कारण ऐसे लोगों को नौकरी और व्यापार में हमेशा परेशानियां बनी रहती हैं, और किसी न किसी रूप में धन की हानि होती रहती है,


जन्म कुण्डली के पहले, दूसरे, चौथे, पांचवें, सातवें, नौवें या दसवें भाव में यदि सूर्य-राहु या सूर्य-शनि एक साथ स्थित हों तब यह पितृ दोष माना जाता है, इन भावों में से जिस भी भाव में यह योग बनेगा उसी भाव से संबंधित फलों में व्यक्ति को कष्ट या संबंधित सुख में कमी हो सकती है|

सूर्य यदि नीच का होकर राहु या शनि के साथ हो तब पितृ दोष के अशुभ फलों में और भी अधिक वृद्धि हो जाती है|

किसी जातक की कुंडली में लग्नेश यदि छठे, आठवें या बारहवें भाव में स्थित है और राहु लग्न में है तब यह भी पितृ दोष का योग होता है|

जो ग्रह पितृ दोष बना रहे हैं यदि उन पर छठे, आठवें या बारहवें भाव के स्वामी की दृष्टि या युति हो जाती है तब इस प्रभाव से व्यक्ति को वाहन दुर्घटना, चोट, ज्वर, नेत्र रोग, ऊपरी बाधा, तरक्की में रुकावट, बनते कामों में विघ्न, अपयश की प्राप्ति, धन हानि आदि अनिष्ट फलों के मिलने की संभावना रहती है|

जन्म कुण्डली में दशम भाव का स्वामी छठे, आठवें अथवा बारहवें भाव में हो और इसका राहु के साथ दृष्टि संबंध या युति हो रहा हो तब भी पितृ दोष का योग बनता है|

यदि जन्म कुंडली में आठवें या बारहवें भाव में गुरु व राहु का योग बन रहा हो तथा पंचम भाव में सूर्य-शनि या मंगल आदि क्रूर ग्रहों की स्थिति हो तब पितृ दोष के कारण संतान कष्ट या संतान से सुख में कमी आती है|

बारहवें भाव का स्वामी लग्न में स्थित हो, अष्टम भाव का स्वामी पंचम भाव में हो और दशम भाव का स्वामी अष्टम भाव में हो तब यह भी पितृदोष के कारण धन हानि या संतान के कारण कष्ट होता है|

यदि कुंडली के पहले घर में पितृ दोष बनता है तो जातक को हमेशा किसी भी प्रकार की शारीरिक समस्या बनी रहती है। खासतौर पर नेत्र रोग हो सकता है। जातक शारीरिक तौर पर और आर्थिक तौर कमजोर बना रहता है।


कुंडली के दूसरे घर में सूर्य पर अशुभ ग्रहों के प्रभाव से जातक जीवनभर संघर्ष करता रहता है और जीवनयापन के लिए उसे कर्ज तक लेना पड़ जाता है। जातक को वैवाहिक जीवन में मतभेद का सामना करना पड़ता है और संतानप्राप्ति में बाधाएं आती हैं।


कुंडली के तृतीय भाव में पितृदोष होने पर जातक के व्यापार में बाधाएं आने लगती हैं और जातक को पैतृक संपत्ति से बेदखल किया जा सकता है। जातक अनैतिक कार्य करके पैसा कमाने की कोशिश करने लगता है।


यदि जातक की कुंडली के चौथे भाव में पितृदोष निर्माण से मानसिक तनाव और अवसाद बना रहता है। जातक को आर्थिक, संपत्ति, भूमि, वाहन आसानी से नहीं मिल पाता है।


पंचम भाव में सूर्य पर अशुभ ग्रहों के प्रभाव से जातक को संतान सुख प्राप्ति में कठिनाई होती है। यदि संतान पैदा हो जाए तो वह विकलांग या मानसिक तौर पर कमजोर होती है।


यदि किसी कुंडली में छठें घर में पितृदोष निर्माण होता है तो जातक शारीरिक रूप से स्वस्थ्य नहीं रहता है। साथ ही वह कानूनी विवाद या कोर्ट कचहरी के मामलों में फंसा रहता है। ऐसे लोगों के शत्रु उन्हें हरदम परेशान करते रहते हैं।


कुंडली के सातवें घर में सूर्य पर अशुभ ग्रहों के प्रभाव के कारण जातक को शादी के लिए काफी इंतजार करना पड़ता है। यदि विवाह हो जाए तो जातक का पारिवारिक जीवन समस्याओं से भरा रहता है। शादी भी टूटने की संभावना बनी रहती है।


यदि जातक के कुंडली के अष्टम भाव में पितृदोष बनता है तो जातक की आयु अल्प हो जाती है। उसे भयंकर बीमारियां घेर लेती हैं, जिससे उसकी मृत्यु हो सकती है। ऐसे लोगों को शत्रु भी बार-बार परेशान करते हैं।


यदि किसी जातक की कुंडली के नवम भाव में पितृदोष बनता है तो जातक आर्थिक, शारिरिक, पारिवारिक और सामाजिक जीवन में परेशानी का सामना करना पड़ता है। जातक आर्थिक तंगी होने पर कर्ज लेता है और कर्ज न चुका पाने पर सुसाइड तक का कदम उठा सकता है।


यदि कुंडली के दशवें भाव में सूर्य पर अशुभ ग्रहों का प्रभाव होता है तो जातक बार-बार नौकरी बदलता रहता है और उसे व्यापार में हानि का सामना करना पड़ता है। जातक को साझेदार से विश्वासघात मिलता है और निवेश किए गए धन से लाभ प्राप्त नहीं होता है।  


एकादश भाव में पितृदोष बनने से जातक अनैतिक तरीकों से धन अर्जित करता है। उसके पास आय के स्त्रोत बहुत कम होते हैं। गलत तरीके से धन कमाने की वजह से जातक जेल भी जा सकता है।


कुंडली के 12वें भाव में पितृदोष निर्माण से जातक धन का अपव्यय करता है। जातक को परिवार का सुख नहीं मिल पाता है। साथ ही सामाजिक जीवन में मान-सम्मान प्राप्त नहीं होता है।   


यदि आप अश्विन  माह के कृष्ण पक्ष में तिल, काउच घास, फूल, कच्चे चावल और गंगा जल से अपने पितृ की मृत्यु की तिथि पर पिंडदान, पूजन और तर्पण करेंगे तो आपके पूर्वज संतुष्ट हो जाएंगे। उसके बाद आप ब्राह्मणों को भोजन कराएं और दान-दक्षिणा दें। जिन लोगों को अपने पूर्वजों की मृत्यु की तारीख का पता नहीं है, वे अमावस्या के दिन अपने पितरों को शांत करने के लिए इन सभी गतिविधियों को कर सकते हैं।


यदि सोमवती अमावस्या पर ओम नमो भगवते वासुदेवाय नम: का मंत्र जाप करने से और पीपल के पेड़ की पूजा करने से पितृदोष को कम किया जा सकता है। यदि वह सोमवती अमावस्या के दिन अपने पूर्वजों को खीर अर्पित करें तो पितृ दोष दूर हो सकता है। आप पितृ दोष की नकारात्मकता को कम करने के लिए हर अमावस्या पर ब्राह्मणों को भोजन और कपड़े भी भेंट कर सकते हैं।


हर अमावस्या पर, खीर को गाय के गोबर के कंडे में रख कर दक्षिण दिशा में अपने पितरों को याद करें और अपनी गलतियों और कर्मों के लिए क्षमा मांगें। यह लाभकारी उपायों में से एक है।


अपने पिता और परिवार के अन्य वरिष्ठ सदस्यों को सम्मान दें और सूर्य की स्थिति को मजबूत करने के लिए उनका आशीर्वाद लें।


एक चटाई पर खड़े होकर सूर्योदय के समय सूर्य को देखें, अपनी कुंडली में सूर्य की स्थिति को मजबूत करने के लिए गायत्री मंत्र का जाप करें।


माणिक्य पहनने से सूर्य की ताकत बढ़ सकती है, लेकिन यह कुंडली में सूर्य की स्थिति पर निर्भर करता है।


यदि जन्म कुंडली के केंद्र या त्रिकोण में मजबूत लाभकारी ग्रह हैं तो पितृ दोष काफी हद तक कम हो सकता है।

घर में श्रीमद्भागवत के गजेंद्र मोक्ष अध्याय का पाठ करें।

हर चतुर्दशी (अमावस्या और पूर्णिमा के एक दिन पहले) को पीपल पर दूध चढ़ाएं।

सवा किलो चावल लाकर रोज अपने ऊपर से एक मुट्ठी चावल सात बार उतारकर पीपल की जड़ में डाल दें। ऐसा लगातार 41 दिन करें।

कुंडली में पितृ दोष बन रहा हो, तब जातक को घर की दक्षिण दिशा की दीवार पर अपने स्वर्गीय परिजनों का फोटो लगाकर और उसपर हार चढ़ाकर रोज़ाना उनकी पूजा स्तुति करनी चाहिए। उनसे आशीर्वाद प्राप्त करने से पितृदोष से मुक्ति मिलती है।

अपने स्वर्गीय परिजनों की निर्वाण तिथि पर ज़रूरतमंदों अथवा ज्ञानी ब्राह्मणों को भोजन कराए। भोजन में मृतात्मा की कम से कम एक पसंद की वस्तु अवश्य बनाएं। 

काले कुत्ते को उड़द के आटे से बने बड़े हर शनिवार को खिलाएं।

घर के आसपास पीपल के वृक्ष पर दोपहर में जल चढ़ाएं। इसके साथ ही पुष्प, अक्षत, दूध, गंगा जल और काले तिल भी अर्पित करें। हाथ जोड़कर पूर्वजों से अपनी ग़लतियों के लिए क्षमा-याचना करें और उनसे आशीर्वाद माँगें।

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