रविवार, 26 जुलाई 2020

गंगा के नाम करन पर पंगा

हरिद्वार । हर की पौड़ी पर गंगा के नाम को लेकर नया विवाद खड़ा हो गया है। देव धारा के रूप में नया नामकरण तीर्थ पुरोहितों को रास नहीं आ रहा है। तीर्थ पुरोहितों ने नए नामकरण का कड़ा विरोध करते हुए सदियों से चले आ रहे नाम को ही रखने का अनुरोध किया है। ऐसा नहीं होने पर आंदोलन की चेतावनी दी है


बताते चलें कि हर की पौड़ी पर बहने वाली जलधारा गंगा की अविछिन्न जलधारा है। अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए समय-समय पर राजनीतिक पार्टियों ने इसका नामकरण किया जिसका खुलेआम विरोध किया गया। पूर्व में कांग्रेस संस्कार के मुख्यमंत्री ने गंगा की अविरल धारा को स्केप चैनल का नाम दिया था। बताया गया की गंगा धारा रखने से कई रसूखदार लोगों के निर्माण चपेट में आ रहे थे। इसका पुरजोर तरीके से विरोध किया गया। कांग्रेस की सरकार को सत्ता से हाथ धोना पड़ा था। अब भाजपा सरकार ने भी नया नाम देवधारा रखने का प्रयास कर रही है। इसकी जानकारी मिलते ही तीर्थ पुरोहितों ने विरोध करना शुरू कर दिया । अखिल भारतीय तीर्थ पुरोहित महासभा के राष्ट्रीय महामंत्री श्रीकांत वशिष्ठ, गंगा सभा अध्यक्ष प्रदीप झा, अखिल भारतीय प्राच्य विद्या सोसाइटी के संस्थापक डॉ प्रतीक मिश्रपुरी, पूरी गंगा सभा के पूर्व अध्यक्ष अशोक त्रिपाठी , अविक्षित रमन, परीक्षित सहित अन्य पुरोहितों ने बताया की वर्ष 1916 में पंडित मदन मोहन मालवीय व तत्कालीन अंग्रेज सरकार के बीच समझौता हुआ था कि भागीरथी बिंदु से लेकर हर की पौड़ी की ओर बहने वाली जलधारा गंगा की जलधारा है। कालांतर में गंगा के तटों पर कई रसूखदार लोगों के निर्माण हो गए। वोट बैंक की खातिर राजनीतिक पार्टी के लोगों ने गंगा के नाम को बदलने का प्रयास किया जिसे पुरोहितों के साथ आम जनमानस ने कभी स्वीकार नहीं किया। आज भी एकमात्र स्वर में लोग इसे गंगा की आविछिन्न धारा के नाम से ही स्वीकार करते हैं और स्वीकार करते रहेंगे।


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