रंगों और खुशियों का त्योहार होली अक्सर कई परिवारों के लिए बेरंगा और दुखदायी हो जाता है। वजह है खतरनाक रासायनिक रंगों का दुष्प्रभाव। जहां लोगों में इस त्योहार को लेकर उत्साह है वहीं एक चिंता यह भी है कि कहीं खतरनाक रंग इस त्योहार की खुशियों के रंग में भंग ना डाल दें। जहां पुराने समय में होली और रंगों का संबंध सीधे प्रकृति से था, सादगी और समन्वय से था, आज इस त्योहार में अक्सर रंग में भंग होता देखा जा सकता है, वजहें अनेक हैं लेकिन रासायनिक घातक रंगों के दुष्प्रभावों के चलते सेहत की दुर्दशा जायज़ है। इसी विषय को ध्यान में रखकर पाँच बड़े सवाल और उनके जवाब इस लेख में दे रहा हूं। आपके कोई और भी सवाल हो तो “गाँव कनेक्शन” के फेसबुक पेज पर आप अपने “हर्बल आचार्य” से पूछ सकते हैं।
रासायनिक रंग हमारे शरीर पर त्वचा रोग, एलर्जी पैदा करते हैं वहीं दूसरी तरफ आंखों में खुजली, लालपन, अंधत्व के अलावा कई दर्दनाक परिणाम देते हैं और इन रंगों की धुलाई होने पर ये नालियों से बहते हुए बड़े नालों और नदियों तक प्रवेश कर जाते है और प्रदूषण के कारक बनते हैं। रसायनों से तैयार रंग जैसे काला, किडनी को प्रभावित करता है, हरा रंग आंखों में एलर्जी और कई बार नेत्रहीनता तक ले आता है, वहीं बैंगनी रासायनिक रंग अस्थमा और एलर्जी को जन्म देता है, सिल्वर रंग कैंसरकारक है तो लाल भी त्वचा पर कैंसर जैसे भयावह रोगों को जन्म देता है। । रसायनों से तैयार रंग जैसे काला, किडनी को प्रभावित करता है, हरा रंग आंखों में एलर्जी और कई बार नेत्रहीनता तक ले आता है, वहीं बैंगनी रासायनिक रंग अस्थमा और एलर्जी को जन्म देता है, सिल्वर रंग कैंसरकारक है तो लाल भी त्वचा पर कैंसर जैसे भयावह रोगों को जन्म देता है। रंग खेलते समय आंखों में रंग जाना आम बात है लेकिन ये उतना ही घातक भी हो सकता है। रंग कृत्रिम या रसायन आधारित होंगे तो लेने के देने भी पड़ सकते हैं। बतौर प्राथमिक उपचार सर्वप्रथम आंखों को साफ पानी से धोया जाए और ये ध्यान रखा जाए कि आंखों को मसला ना जाए। आंखों की साफ धुलाई होने के बाद आंखों में दो-दो बूंद गुलाबजल की डालकर आंखों को बंद करके लेटा जाए। यदि असर ज्यादा गहरा नहीं है तो कुछ देर में आराम मिल जाएगा। तेज जलन या लगातार आंखों से पानी टपकने की दशा में तुरंत अपने चिकित्सक से संपर्क करें। होली बेशक मनायी जानी चाहिए लेकिन रंग प्राकृतिक हों और आपकी सेहत पर इनका दुष्प्रभाव ना हो तो रंग में भंग होने के बजाए असली होली का मजा लिया जा सकेगा। हमारे किचन में ही उपलब्ध अनेक वनस्पतियों का उपयोग कर कई तरह के प्राकृतिक रंगों को बनाया जा सकता है। हरे सूखे रंग को तैयार करने के लिए हिना या मेहंदी का सूखा चूर्ण लिया जाए और इतनी ही मात्रा में कोई भी आटा मिला लिया जाए। सूखी मेहंदी चेहरे पर अपना रंग नहीं छोड़ती और इसके क्षणिक हरे रंग को आसानी से धोकर साफ किया जा सकता है। गुलाबी रंग तैयार करने के लिए एक बीट रूट या चुकन्दर लीजिए, बारीक बारीक टुकड़े करके एक लीटर पानी में डालकर पूरी एक रात के लिए रख दीजिए और सुबह गुलाबी रंग तैयार हो जाएगा। गुड़हल के खूब सारे ताजे लाल फूलों को एकत्र कर लें और छांव में सुखा लें और बाद में इन्हें कुचलकर इनका पावडर तैयार कर लें और इस तरह तैयार हो जाएगा सूखा लाल रंग। यह लाल रंग बालों के लिए एक जबरदस्त कंडिशनर होता है साथ ही गुड़हल बालों के असमय पकने को रोकता है और बालों का रंग काला भी करता है। इसी तरह पीला सूखा रंग तैयार करने के लिए हल्दी एक चम्मच और बेसन (2 चम्मच) को मिलाकर सूखा पीला रंग तैयार किया जाता है, ये पीला रंग ना सिर्फ आपकी होली रंगनुमा करेगा बल्कि चेहरा और संपूर्ण शरीर कांतिमय बनाने में मदद भी करेगा। बेसन की उपलब्धता ना होने पर गेहूं, चावल या मक्के के आटा का उपयोग किया जा सकता है। इस दौर में संक्रामक रोग सावधानी और साफ सफाई बरतने पर काफी हद तक संक्रमित होने से रोका जा सकता है। होली के दौरान आप साधारण फ्लू, सर्दी, छींक या हल्के बुखार से पीड़ित हैं तो होली खेलने से तौबा करें। ज्यादा देर तक गीला रहना नुकसानदायक है क्योंकि इस मौसम में शरीर का कफ ढीला होना शुरु हो जाता है और संक्रमण होने की संभावनाएं ज्यादा होती है। कोशिश करें हर्बल पाउडर से गुलाल तैयार करके सूखी होली खेलने की सलाह बच्चों को दें।
शुक्रवार, 6 मार्च 2020
होली : खतरनाक रासायनिक रंगों का दुष्प्रभाव
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