सोमवार, 22 मार्च 2021

एसडीएम सदर द्वारा निजी संपत्ति को शत्रु संपत्ति घोषित करने के आदेश पर हाईकोर्ट ने दिया स्टे



मुजफ्फरनगर । मॉल समेत शहर के बड़े भूभाग को शत्रु संपत्ति में दर्ज करने के एसडीएम कोर्ट के आदेश पर हाईकोर्ट ने स्टे देते हुए कहा कि बिना सुनवाई के एक पक्षीय आदेश न्यायोचित नहीं  है। 

समाज सेवी और उद्योग पति आलोक स्वरूप व अनिल स्वरूप ने यह जानकारी देते हुए बताया कि हाई कोर्ट ने पूरे प्रकरण पर स्टे आदेश दिया है। उन्होंने पत्रकारों से बातचीत में कहा कि निजी स्वामित्व की भूमि को शत्रु सम्पत्ति मानते हुए उक्त भूमि को राज्य सरकार में दर्ज किये जाने से सम्बन्धित प्रकरण में पिछले कुछ दिनों से कुछ समाचार पत्रों व न्यूज़ ग्रुप में समाचार प्रकाशित हो रहे है जिनसे जहाँ हमारी छवि धूमिल करने का प्रयास हुआ है वहीं पर हमेें भी गहरी पीड़ा हुई है लेकिन आप सबके सहयोग व न्यायिक प्रक्रिया के संज्ञान लेने से हमारे हितों की रक्षा हो सकेगी एसी हमें आशा है I सर्वप्रथम जैसे की हमने एसडीएम कोर्ट में भी याचना की थी की कोरोना काल में एक पक्षीय आदेश न्यायोचित नहीं है वही याचना माननीय हाई कोर्ट इलाहाबाद ने स्वीकार कर ली तथा वाद संख्या 6866 सन 2021 आलोक स्वरुप बनाम राज्य सरकार व अन्य में sdm कोर्ट का आदेश दिनांक 31-12-2020 को प्रथम द्रष्टया  गलत मानते हुए इस पुरे प्रकरण पर स्टे पारित कर दिया है तथा आदेश में स्पष्ट रूप से कोरोना काल में जून-2020 के बाद सुनवाई का मौका दिए बिना एक पक्षीय आदेश को न्यायोचित नहीं मान I यह भी उल्लेखनीय है की यह सारी कार्यवाही 4/1 महल नवाब रुस्तम अली खान की ग्राम युसुफपुर मुज़फ्फरनगर की भूमि को शत्रु सम्पत्ति मानते हुए कार्यवाही कर रहे है जो की अनुचित है यह भूमि लगभग 570 बिघे का नोटिस संख्या 178 दिनांक 27-01-2018 तहसीलदार सदर द्वारा शत्रु सम्पत्ति अधिनियम /निस्क्रांत संपत्ति अधिनियम में निर्गत किया गया था तथा एक और नोटिस  प्रभारी शत्रु सम्पत्ति कार्यालय एडीम-ई के कार्यालय से नोटिस संख्या 371 दिनांक 13-04-2018 को भी निर्गत किया गया I नोटिस संख्या 371 दिनांक-13-04-2018 हुबहू कट-कोपी पेस्ट तहसीलदार के नोटिस संख्या 178 का है I अत: दो अलग-अलग विभाग से एक जैसे नोटिस अधिकारियों के द्वारा निर्गत करना आश्चर्यजनक तथा न्यायोचित नहीं है I दो अलग –अलग विभागों से एक जैसे नोटिस एक ही प्रकरण पर निर्गत करने का कोई भी प्रविधान संविधान में नहीं है क्योंकि दोनों नोटिस का कारण और अधिनियम एक जैसे है I फिर भी हमने नोटिस संख्या 178 का जवाब दिनांक 28-02-2018 को तथा नोटिस संख्या 371 का जवाब दिनांक 02-07-2018 को दे दिया I दिए गये जवाब में हमने यह भी निवेदन किया की सुनवाई की तिथि सुनिश्चित करने की क्रपा करे ताकी हम उपस्थित हो सके , यह आश्चर्य की बात है की दोनों नोटिस आज तीन वर्ष व्यतीत होने के बाद भी लम्बित चले आ रहे है और कोई भी सुनवाई की तिथि नियुक्त नहीं हुई है हमने दोनों विभाग में सुनवाई हेतु कई अनुस्मारक भेजे है , अनुस्मारक जो हमारे द्वारा रजिस्टर्ड डाक से भेजे है वो दिनांक 10-07-2018,10-01-2018 ,22-12-2018, 09-01-2019 ,12-06-2019 ,01-07-2019 ,07-11-2019 ,23-11-2019 ,27-11-2019 ,16-12-2019 ,18-12-2019 ,09-01-2020 ,10-07-2018 ,10-10-2018 ,22-12-2018 ,09-01-2019 ,12-06-2019 ,01-07-2019 ,07-11-2019 ,26-11-2019 ,28-05-2020 ,08-06-2020 ,06-07-2020  को भेजे है इतने सारे अनुस्मारक भेजने के बाद भी सुनवाई की तिथि नियुक्त न होना तथा शत्रु सम्पत्ति प्रकरण को लंबित रखना एक विचारणीय  प्रश्न है I सम्बन्धित अधिकारी / विभाग यह भली-भांति जानते है की माननीय हाई कोर्ट के आदेश दिनांक 11-05-1949 व सुप्रीम कोर्ट के आदेश दिनांक 18-11-1953 के उपरांत खेवट संख्या 4/1 की यह भूमि शत्रु सम्पत्ति नहीं है तथा निजी सम्पत्ति है इसलिए तीन वर्ष व्यतीत होने के बाद भी सम्बन्धित भूमि को शत्रु सम्पत्ति घोषित नहीं की जा रही है I उल्लेखनीय है की यदि वास्तव में भूमि शत्रु सम्पत्ति है तो यह समस्त 570 बीघे भूमि को सरकार में निहित क्यों नहीं की गयी व कब्ज़ा नही लिया गया I हमारे साथ–साथ आम जनमानस भी संशय की स्तिथि  में है I भूमि का क्रय -विक्रय ठप्प हो गया है I सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है की कस्टोडियन मुज़फ्फरनगर ने दिनांक 26-02-1953 को प्रमाण पत्र जारी किया है की यह सम्बन्धित भूमि निजी सम्पत्ति है तथा कस्टोडियन की सम्पत्ति नहीं है I अत: निस्क्रांत सम्पत्ति नहीं है I जब स्वयं कस्टोडियन ने प्रमाण पत्र दिनांक 26-02-1953 को जारी कर दिया तो इस पर अब कोई भी किसी प्रकार का विवाद न्यायोचित नहीं है तथा समझ से परे है I कस्टोडियन प्रमाण पत्र दिनांक 26-02-1953 माननीय हाई कोर्ट आदेश 11-05-1949 तथा सुप्रीम कोर्ट आदेश दिनांक 18-11-1953 के अनुशार निजी सम्पत्ति माना है I यह भी आश्चर्य का विषय है की कस्टोडियन प्रमाण पत्र दिनांक 26-02-1953 जब विभाग के पास विभागीय दस्तावेजो में है तो इस अहम् दस्तावेज को विपरीत नोटिस इत्यादि को कार्यवाही में लाना नियम विरुद्ध है I विभाग भली-भांति सारे  तथ्यों को जानता और समझता है और यही कारण है की शत्रु सम्पत्ति घोषित न करके प्रकरण की सुनवाई नहीं की जा रही है तथा जानबूझकर प्रकरण को लंबित रखा जा रहा है I कोरोना काल में आदेश संख्या 32 बिना सुनवाई के जल्दबाजी में पारित करना तथा अब हमारी उस आदेश में रिकाल प्रार्थना पत्र दिनांक 27-01-2021 को लंबित रखना भी एक गंभीर सवाल है I रिकाल प्रार्थना पत्र पर माननीय अधिकारी द्वारा बिना किसी भी पक्ष द्वारा स्थगन प्राथना पत्र दिए माननीय अधिकारी स्वयं अग्रिम तारीख दिनांक 12-02-2021 ,19-02-2021 ,24-02-2021 ,03-02-2021 ,10-03-2021 ,19-03-2021 लगाना भी स्पष्ट दर्शाता है कि सुनवाई का मौका नहीं देना चाहते है तथा फिर से इस प्रकरण को लंबित रखना चाहते है। उपरोक्त सभी तथ्यों से यह भी स्पष्ट है की उक्त प्रकरण सामान्य प्रकरण की भांति न चलकर किसी दबाव में , जो लगता है  कुछ अधिकारियो पर भी पर अवश्य है दबाव किसका है तथा क्यों है इसकी भी जांच अवश्य होनी चाहिए। यह भी उल्लेखनीय है की वाद 32 दिनांक 15-06-2020 नोटिस निर्गत होने से एक पक्षीय कार्यवाही करने तक सारी प्रक्रिया महज 5 माह में समाप्त कर दी गयी , जबकी इसी कार्यालय में मेरे स्वयं के 35 वाद आज भी लंबित चले आ रहे है जिस पर कोई भी निर्णय नहीं लिया गया है मेरे कुछ वाद तो वर्षो पुराने है। ऐसे में सारी वस्तु-स्तिथि मिडिया के माध्यम से आम-जनमानस के सामने रखने से पूरा प्रकरण लोगो को समझ में आ जायेगा। हम मिडिया के माध्यम से अधिकारी वर्ग से भी यह अनुरोध करते है की वे भी बिना किसी दबाव के निष्पक्ष होकर कार्य करे ,ताकि न्याय व्यवस्था पर लोगो का भरोसा बना रहे तथा हमे भी इंसाफ मिल सके। इससे जहाँ इनकी छवि भी निखरेगी वे न्यायिक प्रक्रिया के गंभीर परिणामो से भी बच सकेंगे । इस दौरान आलोक स्वरूप, अनिल स्वरूप, प्रणव स्वरूप, अभिनव स्वरूप, एडवोकेट तरूण गोयल एवं मुश्ताक आदि मौजूद रहे। 

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