मंगलवार, 22 सितंबर 2020

फसलों के समर्थन मूल्य में वृद्धि स्वागत योग्य :अशोक बालियान

मुजफ्फरनगर । केंद्र की मोदी सरकार द्वारा रबी फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा स्वागत योग्य है। 


किसान नेता अशोक बालियान ने कहा कि  केंद्र की मोदी सरकार की कैबिनेट की आर्थिक मामलों की समिति ने रबी फसलों (Rabi Crops) के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) को केंद्र सरकार की कैबिनेट कमेटी ने मंजूरी दे दी है। केंद्र सरकार के अनुसार न्यूनतम समर्थन मूल्य में यह वृद्धि स्वामीनाथन आयोग की अनुशंसाओं के अनुरुप हैं।


    केंद्र सरकार ने न्‍यूनतम समर्थन मूल्‍य मसूर दाल के लिए 300 रू. प्रति क्‍विंटल वृद्धि कर 5100 रू. प्रति क्विंटल, चना के लिए 225 रू. प्रति क्‍विंटल वृद्धि कर 5100 रू. प्रति क्विंटल, रेपसीड के लिए 225 रू. प्रति क्‍विंटल वृद्धि कर 4650 रू. प्रति क्विंटल, सरसों के लिए 225 रू. प्रति क्‍विंटल वृद्धि कर 4650 रू. प्रति क्विंटल, कुसुम्‍भ के लिए 112 रू. प्रति क्‍विंटल वृद्धि कर 5327 रू. प्रति क्विंटल, जौ के लिए 75 रू. प्रति क्‍विंटल वृद्धि कर 1600 रू. प्रति क्विंटल और गेहूँ के 50 रू. प्रति क्‍विंटल की वृद्धि कर 1975 रू. प्रति क्विंटल करने की घोषणा की गई है।


किसानों को उनकी उत्‍पादन लागत पर मुनाफा गेहूं के लिए उच्‍चतम 106 प्रतिशत, रेपसीड तथा सरसों के लिए 93 प्रतिशत,चना और लेन्‍टिल के लिए 78 प्रतिशत अपेक्षित है। जौ के लिए, किसानों को उनके उत्‍पादन लागत पर मुनाफा 65 प्रतिशत और कुसुम्‍भ के लिए 50 प्रतिशत मुनाफा आंकलित किया गया है।


सरकार हर वर्ष बुबाई से पहले, कृषि लागत और मूल्य आयोग (CACP) की सिफारिशों पर 22 अनिवार्य फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की घोषणा करती है इन 22 फसलों में 6 रबी फसलें, 14 खरीफ मौसम की फसलें, और दो अन्य वाणिज्यिक फसलें हैं


    केंद्र सरकार के अनुसार किसानों को उनकी उत्‍पादन लागत में भुगतान की गई लागतें शामिल हैं जैसे किराया मानव श्रम, बैल श्रम/मशीन श्रम, पट्टा भूमि के लिए दिया गया किराया, बीज, उर्वरक, खाद, सिंचाई प्रभार जैसे भौतिक आदानों के उपयोग पर व्यय, उपकरणों और फार्म भवनों का मूल्यह्रास, कार्यशील पूंजी पर ब्याज, पंप सैटों आदि के प्रचालन के लिए डीजल/बिजली, विविध व्यय और पारिवारिक श्रम का आरोपित मूल्य शामिल हैं।


      केन्द्रीय कृषि मंत्री ने कहा है कि देश में अनाजों के मामलें में, भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) तथा अन्य नामित राज्‍य एजेंसियों ने किसानों से वर्ष 2014-15 में 280 लाख मीट्रिक टन की खरीद की गई थी। मोदी सरकार के समय वर्ष 2019-20 में गेहूं की 384 लाख मीट्रिक टन की खरीद की गई थी। उन्होंने यह भी कहा है कि कांग्रेस सरकार के शासन काल में वर्ष 2009 से वर्ष 2014 के बीच 1.52 लाख मीट्रिक टन दाल की खरीद हुई थी। और हमारी सरकार ने वर्ष 2014 से वर्ष 2019 के मध्य 76.85 लाख मीट्रिक टन दाल किसानों से खरीदी है।


     पीजेंट वेलफेयर एसोसिएशन के अनुसार वर्ष 1967 में एक क्विंटल गेंहू के बदले 121 लीटर डीजल आ जाता था लेकिन वर्तमान में यह सिर्फ 28 लीटर ही मिल पाता है। सरकार किसी भी एक वर्ष को आधार वर्ष मानकर सभी प्रकार की उपजों का लागत मूल्य सभी प्रभावित पक्षों को सुनवाई का अवसर देकर तय करे, और फिर उस लागत को मूल्य सूचकांक के साथ जोड़ दे।


      किसान नेता स्व चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत कहते थे कि कृषि मूल्यों को निश्चित करने के लिए आयोग तब तक कृषि उपजों का सही आकलन कर ही नहीं सकता, जब तक प्राकृतिक प्रकोप जैसे सूखा, बाढ़, ओले, बीमारियां, बेमौसमी बरसात आदि जोखिमों के सम्बंध में विचार कर लागत का लेखा तैयार नहीं किया जाता।


       पीजेंट वेलफेयर एसोसिएशन व किसान संगठनो की मांग है कि स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट को पुरी तरह स्वीकार किया जाना चाहिए और सरकार को भूमि की लागत की धनराशी पर ब्याज भी जोडकर न्यूनतम न्यूनतम समर्थन मूल्य दिया जाना चाहिए। स्वामीनाथन आयोग ने सी२ स्तर पर 50 प्रतिशत लाभ के साथ एमएसपी देने की सिफारिश की थी। इसके साथ ही यह भी मांग है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य पर कृषि उपज खरीद की गारंटी के लिए कानून बनना चाहिए। यह कहना उचित है कि केंद्र की मोदी सरकार ने स्वामिनाथन की रिपोर्ट की अधिकतर सिफ़ारिशों को न्यूनतम समर्थन मूल्य देने में लागू किया है और उपज की ख़रीद भी पिछली सरकार के मुक़ाबले अधिक की है।


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