मेरठ। जहां सांप्रदायिकता का विष फैला हुआ है वहां इंसानियत की रोशनी कई बार उम्मीदों का बडा रास्ता दिखाती है। 1857 की क्रांति का इतिहास समेटे दो दिन पहले मेरठ शहर से हिंदू - मुस्लिम भाईचारे की अनूठी मिसाल सामने आई ।
शाहपीर गेट स्थित कायस्थ धर्मशाला में भगवान चित्रगुप्त का मंदिर है । 65 वर्षीय रमेशचन्द्र माथुर इसमें पुजारी थे । दोपहर बाद अचानक उनका निधन हो गया । हालांकि उनके दो बेटे हैं । एक बेटा लॉकडाउन के चलते दिल्ली में फंसा हुआ था । उनकी आर्थिक स्थिति भी अच्छी नहीं थी । ऐसे में आसपास के मुस्लिम समुदाय के लोग जमा हुए । एक तरफ स्वर्गीय माथुर के अंतिम संस्कार की जिम्मेदारी और दूसरी ओर रोजा इफ्तार का वक्त । ऐसे में सभी एकजुट हुए और अंतिम संस्कार की तैयारी में जुट गए । अकील अंसारी ने शव वाहन का बंदोबस्त करने की कोशिश की । पर ऐसा मुमकिन नहीं हो पाया । ऐसे में मौजूद मुस्लिम भाइयों ने शव को अपने कांधों पर रखा और पैदल ही सूरजकुंड स्थित श्मशान की ओर राम नाम सत्य का उच्चारण करते हुए निकल पड़े । माथुर के छोटे बेटे ने चिता को मुखाग्नि दी । सभी धार्मिक रस्मों को पूरा किया गया । अंतिम संस्कार के बाद लौट कर मुस्लिम भाइयों ने अपना रोजा खोला ।
मंगलवार, 19 मई 2020
शव पुजारी का, कांधे मुसलमानों के स्वर राम नाम सत्य है
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