बुधवार, 22 अप्रैल 2020

इस बार दो दिन मनेगी परशुराम जयंती


हर वर्ष अक्षय तृतीया और परशुराम जयंती एक ही दिन मनाई जाती है लेकिन इस बार स्वयंसिद्ध मुहूर्त अक्षय तृतीया से एक दिन पहले भगवान परशुराम की जयंती मनाई जाएगी। परशुराम जयंती और अक्षय तृतीया विभिन्न पंचागों में अलग-अलग दिन बताए गए हैं। इनमें 25 अप्रैल को परशुराम जयंती और 26 को अक्षय तृतीया मनाना शास्त्र सम्मत कहा गया है। हालांकि पारंपरिक मान्यता के अनुसार कई लोग भगवान परशुराम की जयंती 26 को भी मनाएंगे। इसके साथ ही स्वयंसिद्ध मुहूर्त अक्षय तृतीया पर लॉकडाउन के चलते भले ही इस बार वैवाहिक आयोजन नहीं होंगे लेकिन ज्योतिर्विदों की मानें तो इस अवसर पर रोहिणी नक्षत्र होने से बादलों के अनुकूल बरसने और धान्य (अनाज) की अच्छी उपज होने के संयोग बन रहे हैं।
ज्योतिर्विद पं.अतुलेश मिश्रा ने बताया कि वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को पुनर्वसु नक्षत्र में रात्रि के प्रथम पहर में उच्च के 6 ग्रहों से युक्त मिथुन राशि पर राहु के स्थित होने पर माता रेणुका के गर्भ से भगवान परशुराम का प्रादुर्भाव हुआ। इस प्रकार अक्षय तृतीया को भगवान परशुराम का जन्म माना जाता है। साथ ही यह मत भी है कि इस तिथि को प्रदोष व्यापिनी रूप में ग्रहण करना चाहिए, क्योंकि भगवान परशुराम का प्राकट्य काल प्रदोष काल ही है। 25 अप्रैल को वैशाख शुक्ल द्वितीया तिथि उज्जैन के पंचांग में सुबह 10रू 43 बजे तक है। अन्य सभी पंचांगों में भी द्वितीया तिथि सुबह 11.51 बजे तक बताई गई है। इसके बाद तृतीया तिथि आरंभ होगी जो अगले दिन 26 अप्रैल रविवार को सुबह 11रू29 बजे तक रहेगी। अन्य सभी पंचांगों में दोपहर 1.22 बजे तक रहेगी। अतरू भगवान परशुराम जयंती 25 अप्रैल शनिवार को ही मनाना उचित है। इसी दिन को सभी पंचांगों ने जयंती मनाने की मान्यता दी है। इसके अलावा 26 अप्रैल रविवार को तृतीया सुबह 11रू29 तक रहेगी। इसके चलते 26 को अबूझ मुहूर्त में से एक अक्षय तृतीया मनाने को शास्त्र सम्मत बताया गया है।
आचार्य शिवप्रसाद तिवारी ने बताया कि वैशाख की अक्षय तृतीया को यदि रोहिणी न हो, पौष की अमावस्या को मूल न हो, रक्षाबंधन के दिन श्रवण और कार्तिक की पूर्णिमा को कृतिका नक्षत्र न हो तो पृथ्वी पर दुष्टों का बल बढ़ता है और उस साल धान्य की उपज नहीं होती है परंतु अक्षय तृतीया के दिन इस बार रोहिणी नक्षत्र भी है। अतरू इस वर्ष धान्य की उपज बहुतायत में होगी। अक्षय तृतीया पर रोहिणी नक्षत्र का संयोग बहुत ही श्रेष्ठ माना गया है।
इसलिए खास है अक्षय तृतीया
- अक्षय तृतीया को साढ़े तीन अबूझ मुहूर्त में से एक माना जाता है, इसलिए विवाह के लिए तारीख देखने की आवश्यकता नहीं होती है।
- अक्षय तृतीया पर गन्ने के रस से बने पदार्थ, दही, चावल, दूध से बने व्यंजन, खरबूज, तरबूज और लड्डू का आराध्य को भोग लगाकर दान करने का विधान है
- मालवा क्षेत्र में जल से भरे नए घड़े के ऊपर खरबूजा और आम्रपत्र रखकर पूजा की जाती है। किसानों के लिए नववर्ष के प्रारंभ का शुभ दिन माना जाता है।
- इस दिन कृषि कार्य का प्रारंभ शुभ और समृद्धि देगा। ऐसा विश्वास किया जाता है। इसी दिन बद्रिकाश्रम में भगवान बद्रीनाथ मंदिर के पट भी खुलते हैं। इसलिए इस तिथि को श्री बद्रीनाथ की प्रतिमा स्थापित कर पूजा की जाती है और लक्ष्मी नारायण के दर्शन किए जाते हैं।
- इस दिन जो भी दान दिया जाता है, वह अक्षय फल देने वाला माना गया है। इसी दिन त्रेतायुग का आरंभ भी हुआ था।


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