गुरुवार, 30 अप्रैल 2020

गंगा सप्तमी- महाराज भगीरथ की कष्टमयी साधना की गाथा कहती है गंगा की धारा 


 वैसाख मास में शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को गंगा जयंती और गंगा सप्तमी के रूप में जाना जाता है। ज्येष्ठ माह में शुक्ल पक्ष दशमी के दिन मां गंगा पृथ्वी पर अवतरित हुईं। उस दिन को गंगा दशहरा के रूप में जाना जाता है। गंगा सप्तमी को मां गंगा के पुनर्जन्म के रूप में भी जाना जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार गंगा तीव्र वेग से बह रही थी और ऋषि जह्नु ध्यान में लीन थे। उनका कमंडल गंगाजल के साथ बह गया। जब ऋषि का ध्यान पूरा हुआ तो यह देखकर बहुत क्रोधित हो गए और पूरी गंगा को पी गए। इस पर भागीरथ ने उनसे आग्रह किया तब ऋषि ने गंगा को अपने कान से बाहर निकाला। उस दिन वैशाख शुक्ल पक्ष की सप्तमी थी, इसलिए इस दिन से गंगा सप्तमी मनाई जाती है। जह्नु ऋषि की कन्या होने के कारण ही मां गंगा को जाह्नवी भी कहा जाता है। गंगा सप्तमी के दिन गंगा जल में स्नान करने से पापों का हरण होता है। गंगा में स्नान न कर पाएं तो घर पर स्नान करते समय पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान कर सकते हैं। इस दिन दान-पुण्य का भी विशेष महत्व है। इस दिन मां गंगा का पूजन करें। ऐसा करने से रिद्धि-सिद्धि, यश-सम्मान की प्राप्ति होती है। मांगलिक दोष से ग्रसित जातकों को विशेष लाभ प्राप्त होता है। 
जिस दिन गंगा जी की उत्पत्ति हुई वह दिन गंगा जयंती (वैशाख शुक्ल सप्तमी) और जिस दिन गंगाजी पृथ्वी पर अवतरित हुई वह दिन 'गंगा दशहरा' (ज्येष्ठ शुक्ल दशमी) के नाम से जाना जाता है। इस दिन मां गंगा का पूजन किया जाता है। इस साल गंगा सप्तमी 30 अप्रैल 2020 को मनायी जा रही है। 
गंगा सप्तमी का महत्व
माना जाता है कि गंगा सप्तमी के अवसर पर्व पर मां गंगा में डुबकी लगाने से मनुष्य के सभी पाप धुल जाते हैं और मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है। वैसे तो गंगा स्नान का अपना अलग ही महत्व है लेकिन इस दिन स्नान करने से मनुष्य सभी दुखों से मुक्ति पा जाता है। इस पर्व के लिए गंगा मंदिरों सहित अन्य मंदिरों पर भी विशेष पूजा-अर्चना की जाती है।


कहा जाता है कि गंगा नदी में स्नान करने से दस पापों का हरण होकर अंत में मुक्ति मिलती है। इस दिन दान-पुण्य का विशेष महत्व है। शास्त्रों में उल्लेख है कि जीवनदायिनी गंगा में स्नान, पुण्यसलिला नर्मदा के दर्शन और मोक्षदायिनी शिप्रा के स्मरण मात्र से मोक्ष मिल जाता है। गंगा सप्तमी गंगा मैया के पुनर्जन्म का दिन है इसलिए इसे कई स्थानों पर गंगा जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। गंगा सप्तमी के दिन गंगा स्नान का बहुत महत्व है।


अभी कोरोना वायरस के चलते लॉकडाउन चल रहा है तो आप गंगा स्नान करने नहीं जा सकते। अत: ऐसे समय घर पर रही रहकर इस तरह से पूजन करके गंगा सप्तमी का पुण्य कमा सकते हैं।


- गंगा में स्नान करना या डुबकी लगाना संभव न भी हो तो गंगा जल की कुछ बूंदें साधारण जल में मिलाकर उससे स्नान किया जा सकता है।


- स्नानादि के पश्चात गंगा मैया की प्रतिमा का पूजन कर सकते हैं।


- भगवान शिव की आराधना भी इस दिन शुभ फलदायी मानी जाती है।


- इसके अलावा गंगा को अपने तप से पृथ्वी पर लाने वाले भगीरथ की पूजा भी कर सकते हैं।


- गंगा पूजन के साथ-साथ दान-पुण्य करने का भी फल मिलता है।


वैसे तो गंगा नदी के साथ अनेक पौराणिक कथाएं जुड़ी हुई हैं, जो गंगाजी के संपूर्ण अर्थ को परिभाषित करती है। गंगा नदी हिंदुओं की आस्था का केंद्र है और अनेक धर्मग्रंथों में गंगा महत्व का वर्णन देखने को मिलता है।


मंत्र- 'ॐ नमो भगवति हिलि हिलि मिलि मिलि गंगे माँ पावय पावय स्वाहा'


यह गंगाजी का सबसे पवित्र पावन मंत्र है।


गंगा सप्तमी के मुहूर्त :-


गंगा सप्तमी की तिथि- 30 अप्रैल 2020


29 अप्रैल 2020, बुधवार को दोपहर 03 बजकर 12 मिनट से सप्तमी तिथि प्रारंभ।


गंगा सप्तमी मध्याह्न मुहूर्त- सुबह 10 बजकर 59 मिनट से दोपहर 1 बजकर 38 मिनट तक


अगले दिन यानी 30 अप्रैल 2020, गुरुवार को दोपहर 02 बजकर 39 मिनट तक पर सप्तमी तिथि समाप्त होगी।


अत: इस समयावधि में गंगा सप्तमी का पूजन करना उचित रहेगा।


गंगा सप्तमी पूजन के लाभ  


- गंगा सप्तमी के दिन गंगा पूजन एवं स्नान से रिद्धि-सिद्धि, यश-सम्मान की प्राप्ति होती है। सभी पापों का क्षय होता है।
- मान्यता है कि इस दिन गंगा पूजन से मांगलिक दोष से ग्रसित जातकों को विशेष लाभ प्राप्त होता है। - विधि-विधान से किया गया गंगा का पूजन अमोघ फल प्रदान करता है।


गंगा सप्तमी की कथा 


भागीरथ एक प्रतापी राजा थे। उन्होंने अपने पूर्वजों को जीवन-मरण के दोष से मुक्त करने के लिए गंगा को पृथ्वी पर लाने की ठानी। उन्होंने कठोर तपस्या आरम्भ की। गंगा उनकी तपस्या से प्रसन्न हुईं तथा स्वर्ग से पृथ्वी पर आने के लिए तैयार हो गईं। पर उन्होंने भागीरथ से कहा कि यदि वे सीधे स्वर्ग से पृथ्वी पर गिरेंगीं तो पृथ्वी उनका वेग सहन नहीं कर पाएगी और रसातल में चली जाएगी।
यह सुनकर भागीरथ सोच में पड़ गए। गंगा को यह अभिमान था कि कोई उसका वेग सहन नहीं कर सकता। तब उन्होंने भगवान भोलेनाथ की उपासना शुरू कर दी। संसार के दुखों को हरने वाले शिव शम्भु प्रसन्न हुए और भागीरथ से वर मांगने को कहा। भागीरथ ने अपना सब मनोरथ उनसे कह दिया।
गंगा जैसे ही स्वर्ग से पृथ्वी पर उतरने लगीं गंगा का गर्व दूर करने के लिए शिव ने उन्हें जटाओं में कैद कर लिया। वह छटपटाने लगी और शिव से माफी मांगी। तब शिव ने उसे जटा से एक छोटे से पोखर में छोड़ दिया, जहां से गंगा सात धाराओं में प्रवाहित हुईं। इस प्रकार भगीरथ पृथ्वी पर गंगा का वरण करके भाग्यशाली हुए। उन्होंने जनमानस को अपने पुण्य से उपकृत कर दिया। युगों-युगों तक बहने वाली गंगा की धारा महाराज भगीरथ की कष्टमयी साधना की गाथा कहती है। गंगा प्राणीमात्र को जीवनदान ही नहीं देती, मुक्ति भी देती है।


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

बीए की छात्रा से ट्यूबवेल पर गैंगरेप

मुजफ्फरनगर। तमंचे की नोक पर बीए की छात्रा से गैंगरेप के मामले में रिपोर्ट दर्ज की गई है।  बुढ़ाना कोतवाली क्षेत्र के एक गांव में कॉफी पिलाने ...