मुजफ्फरनगर। जिस तब्लीगी जमात के निजामुद्दीन मरकज से सैकड़ों लोगों में कोरोना फैलने की खबर है उसकी शुरूआत मुजफ्फरनगर के मौहम्मद इलियास कांधलवी ने की थी। आज देश के साथ दुनिया भर में इस्लाम के प्रचार के लिए जमात काम कर रही है।
तब्लीगी जमात की स्थापना 1927 में एक सुधारवादी धार्मिक आंदोलन के तौर पर मोहम्मद इलियास कांधलवी ने की थी। यह धार्मिक आंदोलन इस्लाम की देवबंदी विचार धारा से प्रभावित और प्रेरित है। मोहम्मद इलियास का जन्म मुजफ्फरनगर जिले के कांधला गांव में हुआ था। उनके जन्म की ठीक तारीख पता नहीं है। इतना पता है कि 1303 हिजरी यानी 1885ध्1886 में उनका जन्म हुआ था। कांधला गांव में जन्म होने की वजह से ही उनके नाम में कांधलवी लगता है। उनके पिता मोहम्मद इस्माईल थे और माता का नाम सफिया था। एक स्थानीय मदरसे में उन्होंने एक चैथाई कुरान को मौखिक तौर पर याद किया। अपने पिता के मार्गदर्शन में दिल्ली के निजामुद्दीन में कुरान को पूरा याद किया। उसके बाद अरबी और फारसी की शुरुआती किताबों को पढ़ा। बाद में वह रशीद अहमद गंगोही के साथ रहने लगे। 1905 में रशीद गंगोही का निधन हो गया। 1908 में मोहम्मद इलियास ने दारुल उलूम में दाखिला लिया। हरियाणा के मेवात इलाके में बड़ी संख्या में मुस्लिम रहते थे। इनमें से ज्यादातर काफी बाद में इस्लाम धर्म को स्वीकार किया था। 20वीं सदी में उस इलाके में मिशनरी ने काम शुरू किया। बहुत से मेव मुसलमान ने मिशनरी के प्रभाव में आकर इस्लाम धर्म का त्याग कर दिया। यहीं से इलियास कांधलवी को मेवाती मुसलमानों के बीच जाकर इस्लाम को मजबूत करने का ख्याल आया। उस समय तक वह सहारनपुर के मदरसा मजाहिरुल उलूम में पढ़ा रहे थे। वहां से पढ़ाना छोड़ दिया और मेव मुस्लिमों के बीच काम शुरू कर दिया। 1927 में तब्लीगी जमात की स्थापना की ताकि गांव-गांव जाकर लोगों के बीच इस्लाम की शिक्षा का प्रचार प्रसार किया जाए।
तब्लीगी जमात के लोग पूरी दुनिया में फैले हुए हैं। बड़े-बड़े शहरों में उनका एक सेंटर होता है जहां जमात के लोग जमा होते हैं। उसी को मरकज कहा जाता है। वैसे भी उर्दू में मरकज जो है वह इंग्लिश के सेंटर और हिंदी के केंद्र के लिए इस्तेमाल होता है। उर्दू में इस्तेमाल होने वाले जमात शब्द का मतलब किसी एक खास मकसद से इकट्ठा होने वाले लोगों का समूह है। तब्लीगी जमात के संबंध में बात करें तो यहां जमात ऐसे लोगों के समूह को कहा जाता है जो कुछ दिनों के लिए खुद को पूरी तरह तब्लीगी जमात को समर्पित कर देते हैं। इस दौरान उनका अपने ार, कारोबार और सगे-संबंधियों से कोई संबंध नहीं होता है। वे गांव-गांव, शहर-शहर, ार-ार जाकर लोगों के बीच इस्लाम की बातें फैलाते हैं और लोगों को अपने साथ जुड़ने का आग्रह करते हैं। इस तरह उनके ाूमने को गश्त कहा जाता है। जमात का एक मुखिया होता है जिसको अमीर-ए-जमात कहा जाता है। गश्त के बाद का जो समय होता है, उसका इस्तेमाल वे लोग नमाज, कुरान की तिलावत और जिक्र (प्रवचन) में करते हैं। जमात से लोग एक निश्चित समय के लिए जुड़ते हैं। कोई लोग तीन दिन के लिए, कोई 40 दिन के लिए, कोई चार महीने के लिए तो कोई साल भर के लिए शामिल होते हैं। इस अवधि के समाप्त होने के बाद ही वे अपने घरों को लौटते हैं और रोजाना के कामों में लगते हैं।
मंगलवार, 31 मार्च 2020
मुजफ्फरनगर से शुूरू हुई थी तब्लीगी जमात
Featured Post
मंगलवार विशेष :पंचाग एवँ राशिफल
🙏🏻 हर हर महादेव🙏🏻 🌞 *~ वैदिक पंचांग ~* 🌞 🌤️ *दिनांक - 04 मार्च 2025* 🌤️ *दिन - मंगलवार* 🌤️ *विक्रम संवत - 2081* 🌤️ *शक संवत -...
-
नई दिल्ली । भारत सरकार ने समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं के पंजीकरण के लिए अब प्रेस सेवा पोर्टल के माध्यम से ऑनलाइन सुविधा शुरु की गई है। कें...
-
मुजफ्फरनगर। पुलिस उपमहानिरीक्षक/वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक मुजफ्फरनगर अभिषेक सिंह द्वारा 43 उपनिरीक्षकगण को उनके नाम के सामने अंकित स्थान/थानों पर...
-
मिर्जापुर । एंटी करप्शन टीम ने घूस लेते थाना प्रभारी को रंगे हाथ पकड़ा और SO चील्ह को घसीटकर ले गई। एंटी करप्शन टीम ने आज थाना प्रभारी निरी...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें